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बिहार को जरूरत है ग्रोथ पॉलिटिक्स की

बिहार की ताजा राजनीतिक उलट-फेर से राज्य के बाहर रह रहे लोगों और खास कर युवाओं मे गहरी चिंता है. यह किसी एक राजनीतिक दल को लेकर नहीं, बल्कि पूरे राजनीतिक सिस्टम को लेकर है. हम यह नहीं चाहते कि हमें एक बार फिर अपने बिहारीपन को लेकर शर्मिदगी उठानी पड़े, क्योंकि हमने उस दौर […]

बिहार की ताजा राजनीतिक उलट-फेर से राज्य के बाहर रह रहे लोगों और खास कर युवाओं मे गहरी चिंता है. यह किसी एक राजनीतिक दल को लेकर नहीं, बल्कि पूरे राजनीतिक सिस्टम को लेकर है. हम यह नहीं चाहते कि हमें एक बार फिर अपने बिहारीपन को लेकर शर्मिदगी उठानी पड़े, क्योंकि हमने उस दौर को ङोला है. 1998 से मैं बिहार से बाहर हूं. पहले इंजीनियरिंग की पढ़ाई के लिए ओड़िशा जाना पड़ा. फिर नौकरी के लिए बेंगलुरु में बसना पड़ा. अपने राज्य को छोड़ने की हमारी मजबूरी तब भी थी और आज भी है. हम चाह कर भी बिहार नहीं लौट सकते, क्योंकि वहां हमारे लिए जॉब नहीं है. कोई कंपनी अब तक ऐसी नहीं पहुंची, जो हमें नौकरी दे सके. इस लिहाज से देखें, तो बिहार को अभी बहुत विकास करने की जरूरत है.

बिहार जैसे राज्य का लक्ष्य केवल और केवल विकास होना चाहिए. बाकी सभी बातें बेमानी हैं. बिहार को ग्रोथ पॉलिटिक्स की जरूरत है, कास्ट पॉलिटिक्स की नहीं. बिहार का नौजवान नौकरी पाने के लिए बेंगलुरु, पुणो, हैदराबाद और दिल्ली पलायन कर रहा है. कोई बड़ी कंपनी वहां जाना नहीं जा रही है. किसी राज्य के लिए इससे बड़ी त्रसदी और क्या हो सकती है. टेक्निकल नॉलेज और प्रोफेशनल स्किल रखने वाले युवाओं के पलायन का बड़ा नुकसान राज्य को भी है. उसका काबिल और समर्थ मानव संसाधन दूसरे राज्य के विकास में लगा है. अगर ये ही इंजीनियर और डॉक्टर अपने राज्य में रह कर काम करें, तो उससे राज्य की प्रगति में मदद मिलेगी. सभी राजनीतिक दलों और लोगों को इस पर सोचना चाहिए. यह सही है कि पिछले एक दशक में वहां बहुत कुछ प्रगति हुई है. आधारभूत संसाधन विकसित हुए हैं. कानून व्यवस्था सुधारी.

वहां की राजनीतिक धारा विकास की ओर मुड़ी. इन सब का प्रभाव देश भर के लोगों के सोच पर पड़ा है. जब मैं बिहार से बाहर आया था, तब बिहारियों को लेकर दूसरे राज्य के लोगों की बड़ी खराब धारणा थी. वे यह मानते थे कि हम आपराधिक प्रवृत्ति के होंगे. हम अपने साथ गोली-बंदूक लेकर आये होंगे. एक दशक में बिहार के पॉलिटिक्स में आये बदलाव ने इस धारणा को बदला, लेकिन हाल में वहां जो कुछ भी हो रहा है और जिस तरह की राजनीति हो रही है, उससे बिहार को लेकर बाहर के लोगों की धारणा फिर से खराब होने लगी है. हम भी यह महसूस करने लगे हैं कि वहां सत्ता के लिए नेता और दल किसी भी राह जा सकते हैं, किसी भी तरह का समझौता कर सकते हैं. इससे हमें निराशा है. बिहार के सभी लोगों को इस पर सोचना चाहिए.

चुनाव का वक्त है और जनता वहां की राजनीति की दिशा बदल सकती है. इसके लिए वैसे लोगों का ही समर्थन करना चाहिए, जो विकास की बात करता हो, जिसके पास विकास का ठोस कार्यक्रम हो और जिसमें ऐसा करने की क्षमता हो. पढ़े-लिखे और सक्षम व्यक्ति जब चुनाव जीत कर विधानसभा पहुंचेंगे, तब वे सत्ता में हों या विपक्ष में, राज्य की प्रगति के लिए वे सोच सकेंगे और कुछ कर सकेंगे. अगर ऐसा नहीं हुआ, तो विकास की दौड़ में पीछे ही रहेंगे.
लेखक पटना के एजी कालोनी के रहने वाले हैं. बेंगलुरू में मेकेनिकल इंजीनियर हैं. बिहार की बदलती राजनीतिक परिस्थियों पर नजर रखते हैं

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