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जीने का अर्थ तलाशना !

– हरिवंश – पुस्तक : मैंस सर्च फॉर मीनिंग लेखक : विक्टोर श्राइंकल प्रकाशक : राइडर मूल्य : 225 रू. यह किताब खरीदी, दिल्ली एयरपोर्ट पर. आठ दिनों पहले. छोटी. कुल एक सौ साठ पेज. भावपूर्ण कवर. लंदन के ‘ राइडर’ प्रकाशन से छपी. कीमत 4.99 पौंड. पर भारतीय मूल्य 225 रु. मात्र. पुस्तक कवर […]

– हरिवंश –
पुस्तक : मैंस सर्च फॉर मीनिंग
लेखक : विक्टोर श्राइंकल
प्रकाशक : राइडर
मूल्य : 225 रू.
यह किताब खरीदी, दिल्ली एयरपोर्ट पर. आठ दिनों पहले. छोटी. कुल एक सौ साठ पेज. भावपूर्ण कवर. लंदन के ‘ राइडर’ प्रकाशन से छपी. कीमत 4.99 पौंड. पर भारतीय मूल्य 225 रु. मात्र. पुस्तक कवर पर लिखा है 12 मिलियन (1.20 करोड़) प्रतियां बिक चुकी हैं. इस पुस्तक से परिचय रहा है. पर पढ़ा नहीं था. लेखक हैं-विक्टोर फ्रैंकल, नाम ‘ ‘ मैंस सर्च फॉर मीनिंग’ (अर्थपूर्ण या सार्थक होने के लिए मनुष्य की खोज या तलाश.) साफ और सामान्य भाषा में कहें, तो अर्थपूर्ण या सार्थक जीवन की खोज.
जीने का अर्थ तलाशना. होने (बीइंग) का मकसद. उद्देश्य पाना. हम जीते क्यों हैं? यह ढूंढना. पुस्तक कवर पर सूचना है कि ‘द क्लासिक ट्रिब्यूट टू होप फ्रॉम द होलोकास्ट.’ विध्वंस से आशा-उम्मीद को उत्कृष्ट भेंट/उपहार. यानी प्रलय (सब कुछ खत्म हो जाने की स्थिति) से मानव की आशा-उम्मीद को चिर-सम्मत उपहार. यह एक पंक्ति ही पुस्तक के विषय वस्तु का सार है. प्रलय से जूझता एक इनसान कैसे जीवन का अर्थ खोजता है?
पुस्तक के 92 के संस्करण में लेखक फ्रैंकल ने भूमिका लिखी थी. तब तक अंगरेजी में सौ बार यह छोटी पुस्तक छप चुकी थी. 21 अन्य भाषाओं में. अंगरेजी संस्करण ही 30 लाख से अधिक बिक चुका था. फ्रैंकल ने यह किताब 1945 में लिखी. नाजियों के हमले के दौर में.
गैस चैंबर के युग में कंसंट्रेशन कैंप की रोंगटे खड़े करने वाले हालात. यह पुस्तक महज नौ दिनों में लिखी गयी. इस पुस्तक में लेखक ने नाम नहीं लिखा. जर्मन का पहला मूल संस्करण अनाम छपा. बाद में लेखक ने मित्रों के आग्रह और दबाव पर अपना नाम डाला.
स्पष्ट था कि यह पुस्तक नाम के लिए नहीं लिखी गयी. न लेखक इससे कोई यश, दौलत या प्रतिष्ठा चाहता था. बल्कि यह अंदर की आदिम बेचैनी थी, जिसे लेखक का मन बेचैनी से तलाश रहा था.उस स्तर पर और गहराई में जाकर, जहां शायद सारी सृष्टि का मन एक ही धरातल पर पहुंच जाता है. उस बेचैन मानव मन में जीने के कारणों को ढूंढने की ललक. हम जीते क्यों हैं? वही सवाल जिसे बुद्ध ने अपने जीवन में तलाशा. बालक नचिकेता ने यम से भिन्न तरीके से पूछा. शायद सृष्टि के होने के बाद से ही हर धर्म-संस्कृति में यह तलाश रही है कि मनुष्य के होने का अर्थ क्या है? जीने का मकसद क्या है?
लेखक विक्टोर इ फ्रैंकल न्यूरोलॉजी और मनोविज्ञान के प्रोफेसर थे. यूनिवर्सिटी ऑफ वियेना मेडिकल स्कूल में. वह द वियेनीस स्कूल ऑफ साइकोथेरेपी के जन्मदाता माने जाते हैं.फ्रायड के साइको-एनालिसिस और एडलर की निजी मनोविज्ञान धारा की स्थापना के बाद की तीसरी धारा, स्कूल ऑफ लोगो थेरेपी के जन्मदाता. उनका लेखन फ्रायड , एडलर, जुंग के बाद सबसे महत्वपूर्ण योगदान करने वाले के रूप में है.

वह हॉर्वर्ड समेत प्रतिष्ठित विश्वविद्यालयों में विजिटिंग प्रोफेसर रहे. 1997 में वह नहीं रहे. यह वह दिन थे, जब हिटलर ने ऑस्ट्रिया पर कब्जा कर लिया था. यहूदियों पर भयानक अत्याचार हो रहे थे. उन्हीं दिनों की बात है. तब तक अमेरिका दूसरे युद्ध में नहीं कूदा था. फ्रैंकल को वियना स्थित अमेरिकन कांसुलेट ने सूचना दी कि उनका इमिग्रेशन वीजा हो गया है. वह अमेरिका जा सकते हैं.

तब तक बड़े पैमाने पर यूरोप वगैरह से लोग भाग रहे थे. नाजियों के डर से प्रोफेसर फ्रैंकल के बूढ़े मां- बाप बड़े खुश हुए कि उनका बेटा ऑस्ट्रिया से बच कर निकल सकता है. वह जीवित बच सकता है. क्योंकि लोग जीने की उम्मीद छोड़ चुकेथे. पर उसी क्षण फ्रैंकल के मन में सवाल यह उठा कि क्या बूढ़े मां-बाप को भाग्य के भरोसे छोड़ कर अमेरिका निकल जाना सही है? यह द्वंद्व उन्हें खाये जा रहा था. तभी, वह मानते हैं कि उन्हें संकेत मिला. प्रचलित मुहावरे में ‘ ए हिंट फ्रॉम हेवेन’ (स्वर्ग से संदेश).
उनके घर में एक संगमरमर का टुकड़ा पड़ा था. पिता से पूछा,यह क्या है? पिता ने कहा- वियना के सबसे बड़े पूजागृह या इबादत स्थल का टुकड़ा है. जिसे जला डाला गया है. संगमरमर के इस टुकड़े पर ‘ ईसा मसीह का दस आदेश’ खुदा था. हिब्रू में इस टुकड़े पर एक अंश है. फ्रैंकल ने पिता से पूछा वह क्या है?
बूढ़े पिता ने उत्तर दिया, अपने मां-बाप का सम्मान करें. ताकि आपका जीवन इस धरती पर लंबा हो सके. फ्रैंकल कहते हैं उसी क्षण मैंने तय कर लिया, अपने मां-बाप के साथ रहूंगा. मौत के बीच रहूंगा. नाजियों के कैंप में पहुंचा. अमेरिका जाने का वीजा लैप्स (खत्म होना) हो गया. याद रखिए यह वीजा तब जीवित रहने का पासपोर्ट माना जाता था. एक इनसान ने जीवन को छोड़ कर मौत के पास जाने का रास्ता चुना.
मौत के साथ जीने के मकसद की वही तलाश – अनुभव है, इस पुस्तक में. फ्रैंकल एक जगह कहते भी हैं – मुझे लगा, जो लोग लगातार निराशा में जीते हैं, उम्मीद खो बैठते हैं, शायद यह पुस्तक उनके लिए उपयोगी हो. क्योंकि भयावह से भयावह स्थिति में भी, अत्यंत त्रासद क्षणों में भी, जीवन का कुछ अर्थ होता है.
जीवन अर्थहीन नहीं है. वह उद्देश्यपूर्ण है. उद्देश्यहीन नहीं. यह अनुभव है, नाजी कंसंट्रेशन कैंप का. लाखों अनाम मौत देखने वाले का. गैस चैंबर में प्रवेश कर मौत को गले लगानेवालों का. वहां कैदियों को नाम से नहीं, नंबर से पुकारते थे. सिर पर, हाथ पर या शरीर में नंबर गोद दिये जाते थे.
उनके कपड़ों पर भी. उन कैपों में सिर्फ मौत की प्रतीक्षा थी. जीवन, उम्मीद या आशा की दूर-दूर तक कोई किरण नहीं थी. इतना डरावना, इतना खौफनाक कि पढ़ कर रोंगटे खड़े होते हैं. ऐसी स्थिति में जीने का अर्थ तलाशना, जहां किसी चेहरे पर भविष्य की झलक न हो. ‘ ट्रेन बैड थिंग्स हैपेंड टू गुड पीपुल’ (जब अच्छे लोगों के घर बुरी चीजें होती हैं) जैसी चर्चित पुस्तक के लेखक हेरॉल्ड कुशेनर लिखते हैं कि जीवन महज मौज की प्यास नहीं है. जैसा फ्रायड मानते थे.
या जैसा एडलर ने माना कि जीवन सत्ता की खोज है. यह भी यथार्थ से परे है. बल्कि जीवन अर्थवान होने की खोज या प्यास है. किसी भी इनसान के जीवन में सबसे बड़ा काम अपने जीवन का अर्थ तलाशना है.कुशेनर के अनुसार फ्रैंकल ने जीवन के तीन संभावित अर्थ के स्रोत ढूंढे. पहला काम में. यानी किसी महत्वपूर्ण या महान काम में अपने को झोंक देना. दूसरा प्यार में, यानी निजी या रोमांटिक प्यार नहीं, बल्कि दूसरों की देखभाल, दूसरों की चिंता में खुद को समर्पित कर देना.
जैसे फ्रैंकल द्वारा नाजियों के मौतगृह (नाजी कंसंट्रेशन कैंप) या मौतगृह के काले क्षणों में अपनी पत्नी को स्मरण करना. तीसरा साहस. कठिन क्षणों में साहस और धीरज का होना ही जीवन को अर्थ देता है.
अपने-आप में दुख, कष्ट या त्रासदी अर्थहीन हैं. जब इनसान ऐसी स्थिति में भी जीने का अर्थ तलाशता है, तब जीवन को अर्थ मिलता है. आपके जीवन में क्या होनेवाला है या आपके साथ कुछ होता है, तो आप उसको नियंत्रित नहीं कर सकते. बल्कि उससे आप पर जो प्रभाव होता है या आप उस पर कैसी प्रतिक्रिया देते हैं? इस पर आपका नियंत्रण संभव है.
फ्रैंकल की पुस्तक का संदेश है कि जीवन सार्थक है. अर्थपूर्ण है. हमें जीवन को अर्थपूर्ण ढंग से देखने की कोशिश करनी चाहिए. हर प्रतिकूल परिस्थिति में. यही जीवन का उद्देश्य या अर्थ है.
20वीं सदी का चर्चित प्रसंग यह रहा है कि मनुष्य ने ही नाजियों के कैंपों का गैस चैंबर खोजा. ढूंढा. वहीं, यह भी सच है कि मनुष्य ने ही सीना चौड़ा कर और सिर ऊंचा कर अपने होंठों पर ईश्वर की आराधना लेकर इन गैस चैंबरों में प्रवेश किया. बिना झुके या आत्मसम्मान का सौदा किये या अपने होने की शर्त्तों को समर्पित किये बगैर. इस अर्थ में यह पुस्तक आज भी अर्थपूर्ण है.
परिस्थितियां बदलती हैं, पर हर आदमी जो जहां है, जीने का अर्थ ढूंढ रहा है. सफलता की खोज में बेचैन है. पुस्तक में एक जगह सफलता के बारे में उल्लेख है. बेहद रोचक प्रसंग. सारांश यही है- सफलता के पीछे मत भागो. सफलता उतनी ही दूर भागेगी. अपने काम-मकसद के प्रति प्रतिबद्ध रहो. सफलता खुद आयेगी. यह पढ़ते हुए कृष्ण की गीता का स्मरण होता है. बिना फल की कामना के कर्म की याद आती है. यह पुस्तक मानव समाज के लिए धरोहर है.
नये वर्ष की शुरुआत में इसे पढ़ा. मानव उम्मीद-आशा पर रोशनी डालती है, यह कृति. 21वीं सदी के दूसरे दशक की शुरुआत में भी उतनी ही प्रासंगिक, जितनी जब छपी होगी,1945 में.
दिनांक : 3-1-10

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