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हमले से कौन हुआ मालामाल

।। रवि दत्त वाजपेयी ।। सैनिकों के मॉल में पार्टी मनाने, लूटपाट के मिले सबूत कीनिया की राजधानी नैरोबी में 21 सितंबर को एक शॉपिंग मॉल में आतंकी संगठन अल शबाब के हमले में दर्जनों लोगों के मारे जाने और इस शॉपिंग माल के ध्वस्त होने के समाचार आये. अफ्रीका महाद्वीप के अपेक्षाकृत शांतिपूर्ण राष्ट्र […]

।। रवि दत्त वाजपेयी ।।

सैनिकों के मॉल में पार्टी मनाने, लूटपाट के मिले सबूत

कीनिया की राजधानी नैरोबी में 21 सितंबर को एक शॉपिंग मॉल में आतंकी संगठन अल शबाब के हमले में दर्जनों लोगों के मारे जाने और इस शॉपिंग माल के ध्वस्त होने के समाचार आये.

अफ्रीका महाद्वीप के अपेक्षाकृत शांतिपूर्ण राष्ट्र में मुंबई 26/11 की शैली पर हुए इस आक्रमण ने कीनिया प्रशासन और सुरक्षा व्यवस्था पर गंभीर सवाल उठाये हैं. सवाल यह नहीं है कि इतना बड़ा आतंकी हमला हुआ. सवाल है कि हमले से निबटने के नाम पर पुलिस सेना के जवानों ने शातिर अपराधियों की तरह यहां की दुकानों में बड़े पैमाने पर लूटपाट की!

हमले में मारे गये लोगों की सही संख्या अब तक नहीं मिली. हमलावरों की सही संख्या का पता नहीं है. सुरक्षा संस्थाओं ने बंधकों के बारे में कई विरोधाभासी बयान दिये. नैरोबी के एक अखबार ने एक तसवीर छापी है, जिसमें दिख रहा है कि हमले के पहले दिन सैनिकों को एक दुकान का ताला तोड़ा और उसमें रखी तिजोरी से पैसे निकाल कर एक बड़े थैले में भरा.

हालात सामान्य हुए, तो दुकान का हाल देख दुकानदार भौचक्के रह गये. सारी कीमती वस्तुएं और नकदी गायब. महंगे और फैशनेबुल कपड़ों गहनों की दुकानों से सिर्फ सामान ही नहीं, सजावटी पुतलों के कपड़े और सजावट तक उतार लिये थे. चश्मे, घड़ी, मोबाइल फोन, लैपटॉप, कैमरे के अलावा एटीएम मशीनों और नकद रखनेवाली मशीनें तक खाली थीं.

हमले के बाद पहली बार मॉल में आये सफाईकर्मियों को बड़ी संख्या में शराब की खाली बोतलें मिली. सुरक्षा के लिए तैनात एक पुलिसकर्मी के पास से खून से सना बटुआ मिला. उसे गिरफ्तार कर लिया गया. रक्षक के भक्षक बन जाने की इन खबरों से कीनिया के लोग बहुत नाराज हैं.

लेकिन कीनिया की पुलिस सुरक्षा संस्थाओं के लिए यह नयी बात नहीं है. अगस्त, 2013 में नैरोबी एयरपोर्ट में आग लगने के बाद भी सुरक्षाकर्मियों को शराब पैसे लूटते कैमरों पर देखा गया.

कीनिया की आम जनता और उच्चपदस्थ अधिकारी भी सैनिकों की इन आपराधिक गतिविधियों से बहुत चिंतित हैं. सेना ने लूटपाट के आरोपों की जांच के आदेश दिये हैं, लेकिन कीनिया में ऐसी जांच का कोई प्रयोजन नहीं है. कीनिया के सैनिकों पुलिसकर्मियों का वेतन कम माना जाता है, पर क्या कम वेतन इन सरकारी कर्मचारियों को लूट की छूट देता है? क्या सुरक्षाकर्मियों ने जानबूझ कर सुरक्षा अभियान देर तक जारी रखा, जिससे उन्हें लूट के लिए अधिकतम समय मिल सके? क्या सुरक्षाकर्मी बंधकों को बचाने के बजाय लूटपाट कर रहे थे?

क्या मृतकों के बटुए चुराने के कारण ही लोगों की पहचान में बहुत समय लगा? क्या कीनिया के उच्चपदस्थ अधिकारी इस योजनाबद्ध तरीके से हो रही लूटपाट से पूरी तरह अनभिज्ञ थे? एक बहुत अहम सवाल : किसी आतंकी संगठन द्वारा कीनिया की सुरक्षा सेनाओं पुलिस को घूस देकर खरीदना कितना मुश्किल है?

कीनिया की घटना और पुलिसकर्मियों सैनिकों का व्यवहार भारत सहित अन्य किसी भी देश की सुरक्षा संस्था के लिए एक विचारणीय विषय है.भारत में भी दूरदराज के इलाकों में पुलिस सुरक्षा बलों की कार्रवाई के दौरान भी उत्पीड़न के समाचार आते रहते हैं. इन समाचारों को कीनिया की इस घटना के परिप्रेक्ष्य में देखने और समझने की जरूरत है.

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