पटना: रेडियोलॉजी में बिना प्रैक्टिकल किये ही इन दिनों मेडिकल के छात्र डॉक्टर बन जा रहे हैं. यह सब मेडिकल कॉलेजों की ओर से सुविधा नहीं मिलने की वजह से हो रहा है. दरअसल मेडिकल कॉलेजों में एमबीबीएस छात्रों को अंतिम सत्र में मेडिसिन के पेपर में पढ़ाया जाता है कि मरीजों को किस बीमारी में कौन-सी जांच करानी है. बिहार के मेडिकल कॉलेजों में मेडिकल छात्रों को प्रोफेसर साहब थ्योरी तो पढ़ा देते हैं, लेकिन प्रैक्टिकल में मामला टांय-टांय फिस्स हो जाता है. प्रैक्टिकल की सुविधा नहीं मिलने से छात्र बिना प्रैक्टिकल के ही परीक्षा पास कर डॉक्टर बन जा रहे हैं.
एमआरआइ की सुविधा नहीं
सूत्रों की मानें तो सूबे के किसी भी मेडिकल कॉलेज में एमआरआइ की सुविधा नहीं है. इतना ही नहीं, तीन मेडिकल कॉलेज अस्पतालों को छोड़ कर बाकी में तो सिटी स्कैन की भी सुविधा नहीं है. वहीं एक्स-रे व अल्ट्रासाउंड पुराने रेडियोलॉजी के मॉडल के हैं, जिससे छात्रों को प्रैक्टिकल समझने में परेशानी होती है. लेटेस्ट टेक्निक को प्रैक्टिकल के माध्यम से समझ नहीं पाते हैं. ऐसे में वैसे छात्र प्रैक्टिकल के पेपर में खुद को कमजोर मानते हैं.
पीपीपी मोड से भी परेशानी
पीएमसीएच में लगाये गये सिटी स्कैन पीपीपी मोड में है. इस कारण से उसके संचालन का जिम्मा भी अस्पताल प्रशासन के हाथ में नहीं हैं. जब छात्र कुछ समझने जाते हैं, तो उनको बाद में आने या दूर से देखने को कहा जाता है. खासकर रेडियोलॉजी की पढ़ाई के लिए जब थ्योरी के साथ-साथ प्रैक्टिकल की जरूरत पड़ती है, तो छात्रों को पेपर लिखने में काफी परेशानी होती है. जानकारी के मुताबिक पीएमसीएच में तीन साल पहले पीपीपी मोड में एमआरआइ मशीन लगायी गयी थी, लेकिन उसके अंदर छात्रों को नहीं जाने दिया जाता था, जिसके कारण छात्रों ने हंगामा किया और अचानक से वह बंद हो गयी. इसके बाद से अब तक दोबारा जांच शुरू नहीं हो पायी है.
बाहर में 30 हजार होते हैं खर्च
जिन छात्रों की दिलचस्पी रेडियोलॉजी जांच में अधिक होती है, वह जानना चाहते हैं कि कौन सी मशीन कैसे चलायी जाती है और जांच रिपोर्ट कैसे देखी जाती है. छात्र के मुताबिक बहुत से छात्र इसके लिए निजी संस्थानों में जाते हैं, जहां सीखने के लिए उसे काफी पैसे खर्च करने पड़ते हैं. छात्रों की मानें तो हर स्टूडेंट को बाहर में प्रैक्टिकल करने में लगभग 25 से 30 हजार रुपये खर्च हो जाते हैं.