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तो टल सकता है धरती पर मंडराता सौर तूफान का खतरा
अजय कुमार राय आधुनिक युग में इंसान की ज्यादातर गतिविधियों में संचार एवं इलेक्ट्रिसिटी ग्रिड और सेटेलाइट आधारित तकनीकों की भूमिका बढ़ गयी है. इस बीच वैज्ञानिक शोध में यह आशंका जतायी गयी है कि सूर्य से आनेवाले सौर तूफान से बिजली और संचार समेत कई जरूरी चीजें ठप हो सकती हैं. इसलिए समय रहते […]
अजय कुमार राय
आधुनिक युग में इंसान की ज्यादातर गतिविधियों में संचार एवं इलेक्ट्रिसिटी ग्रिड और सेटेलाइट आधारित तकनीकों की भूमिका बढ़ गयी है. इस बीच वैज्ञानिक शोध में यह आशंका जतायी गयी है कि सूर्य से आनेवाले सौर तूफान से बिजली और संचार समेत कई जरूरी चीजें ठप हो सकती हैं. इसलिए समय रहते इसकी चेतावनी के लिए नयी तकनीक विकसित की जा रही है. सौर तूफान से संबंधित जरूरी पहलुओं पर नजर डाल रहा है नॉलेज.
ब त्ती अचानक गुल, फोन ठप, इंटरनेट फेल, टीवी बंद. जरा सोचिये, कभी ऐसा हो जाये तो जिंदगी कैसी होगी. सौर तूफान इसी तरीके से एक झटके में हमारी जिंदगी को प्रभावित कर सकता है. लेकिन यदि समय रहते यह पता चल जाये कि यह तूफान कब आनवाला है, तो हम अपनी तैयारियों को पुख्ता कर सकते हैं. अपनी आधुनिक तकनीक आधारित सेवाओं को सुरक्षित कर सकते हैं.
सौर तूफान सूर्य की सतह पर बड़े विस्फोट के कारण उठता है. इससे निकलनेवाला विकिरण कई तरह से विनाशकारी सिद्ध हो सकता है. दरअसल, यह विकिरण लाखों ऊर्जावान आवेशित कणों से युक्त होता है. इससे एक शक्तिशाली चुंबकीय क्षेत्र बनता है. सूरज की सतह से उठनेवाले सौर तूफान की रफ्तार 3,000 किलोमीटर प्रति सेकेंड यानी 6.7 मिलियन मील प्रति घंटा तक आंकी गयी है. इस तरह से देखा जाये तो यह कुछ ही मिनटों में सौरमंडल के ग्रहों या उपग्रहों को अपनी चपेट में ले सकता है. इसकी दिशा धरती की ओर होने पर यह पृथ्वी के साथ-साथ कई दूसरे ग्रहों को खतरनाक रूप से प्रभावित कर सकता है.
पृथ्वी की ओर हो तो खतरनाक
यदि सौर तूफान की दिशा पृथ्वी की ओर हो, तो यह हमारी विभिन्न आधुनिक तकनीक जैसे जीपीएस और उच्च आवृत्ति के संचार नेटवर्क, पावर ग्रिड, रेडियो सिगनल को पूरी तरह ठप कर सकता है. ऐसा होने पर बिजली और इससे चलनेवाली सेवाएं पूरी तरह बाधित हो जायेंगी. साथ-साथ संचार सेवाएं भी छिन्न-भिन्न हो जायेंगी. अर्थात् हमारे फोन, इंटरनेट और इस पर आधारित उपकरण काम करना बंद कर देंगे.
इससे उड्डयन समेत अन्य उद्योगों पर गहरा असर पड़ेगा. यही वजह है कि सौर तूफान से होनेवाली बड़ी आर्थिक हानि से बचने के लिए संबंधित क्षेत्रों के लोगों की लंबे समय से चाहत रही है कि कोई ऐसा तरीका विकसित किया जाये, जिससे इसकी भविष्यवाणी कम-से-कम 24 घंटे पूर्व हो सके. इस महत्वपूर्ण समय में वे इसकी मार से बचने के लिए अपनी कार्यप्रणाली में समुचित बदलाव कर सकते हैं. उदाहरण के रूप में, यात्री जहाजों की दिशा बदली जा सकती है या पावर ग्रिड ट्रांसफॉर्मर थोड़ी देर के लिए बंद किये जा सकते हैं.
उल्लेखनीय है कि ‘नासा’ से जुड़े और इंपीरियल कॉलेज, लंदन के शोधार्थी नील सावनी और उनके सहयोगी एक ऐसी विधा पर काम कर रहे हैं, जिसकी मदद से सौर तूफान की भविष्यवाणी 24 घंटे पहले या सूर्य की सतह से उठने के साथ ही की जा सकेगी. इससे इसकी दिशा और तीव्रता का भी सटीक अनुमान लगाया जा सकेगा.
सौर तूफान की तीव्रता चुंबकीय क्षेत्र पर निर्भर
तूफान की तीव्रता या तकनीकी वस्तुओं को प्रभावित करने की क्षमता कितनी होगी, यह इस दौरान बनने वाले चुंबकीय क्षेत्र के आकार और उसकी क्षमता पर निर्भर करता है. सौर तूफान के दौरान चुंबकीय क्षेत्र जितना शक्तिशाली होगा, हमारे तकनीकी ढांचे को वह उतना ही प्रभावित करेगा. सौर तूफान के दौरान बननेवाले चुंबकीय क्षेत्र की संरचना प्राय: चक्रीय होती है, बिल्कुल एक कॉर्क स्क्रू की तरह घुमावदार. दूसरे शब्दों में कहें तो यह धरती पर उठनेवाले बवंडर की तरह होते हैं.
यह तूफान सूरज की सतह से उठने के बाद कई तरह के परिवर्तनों से गुजरता हुआ विभिन्न ग्रहों या उपग्रहों तक पहुंचता है. इस दौरान सूर्य से आनेवाले आवेशित कण पृथ्वी के वायुमंडल में प्रवेश करते हैं. धरती के गर्भ में भी चुंबक है. इसलिए एक चुंबक की दूसरे चुंबक से मुलाकात होती है. धरती के गर्भ से निकलनेवाली चुंबकीय शक्तियां वायुमंडल के आस-पास कवच का काम करती हैं. ये आवेशित कणों का रुख मोड़ देती हैं या उन्हें अवशोषित कर लेती हैं.
इस प्रकार धरती को इन आवेशित कणों से पृथ्वी का चुंबकीय क्षेत्र बचाता है. इस बीच यह इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों को प्रभावित कर देता है. सौर पदार्थ और पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र के बीच यह अंत:क्रिया मुख्यत: एक-दूसरे के चुंबकीय क्षेत्रों के साथ जुड़ने के गुणों से संचालित होती है. इस अंत:क्रिया को चुंबकीय पुनर्मिलान कहा जाता है.
नॉर्दर्न लाइट
चुंबकीय क्षेत्रों का यह मिलान कुछ उसी तरह से काम करता है, जिस तरह से चुंबक के दो छड़ एक-दूसरे की ओर आकर्षित होते हैं. यदि प्रत्येक छड़ के समान ध्रुव करीब लाये जाते हैं, तो क्षेत्र रेखा दोनों को पीछे धकेलती है. जबकि विपरीत ध्रुव आकर्षित होकर एक दूसरे के साथ जुड़ जाते हैं. इसी प्रकार यदि सौर तूफान और पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्रों के ध्रुव विपरीत होंगे, तो दोनों आसानी से एक दूसरे से जुड़ जाते हैं. इससे पृथ्वी का चुंबकीय क्षेत्र ऊर्जावान कणों को इधर-उधर बिखरने की बजाय पकड़ लेता है. यदि सूरज से आने-वाले कणों की मात्र ज्यादा है, तब यह पृथ्वी की ऊपरी सतह से टकराकर मनोरम दृश्य भी प्रस्तुत करता है. इसे प्राय: नॉर्दर्न लाइट कहा जाता है.
परीक्षण पर खरा उतरा
नील सावनी और उनके साथी अब तक इस नयीविधा से आठ अलग-अलग सौर तूफानों की भविष्यवाणी कर चुके हैं और हर बार उनका अनुमान सही निकला है. ‘नासा’ में वे इस मॉडल पर और गहन अध्ययन कर रहे हैं, ताकि इसे ज्यादा बेहतर बनाया जा सके. ‘नासा’ के स्पेस वेदर रिसर्च सेंटर के निदेशक का कहना है कि इस नयी विधा पर हमारी गहरी नजर है.
उनका कहना है, ‘हम देख रहे हैं कि आने वाले वर्षो में सौर तूफानों की यह कितनी सटीक भविष्यवाणी करती है. उसके बाद ही हम इसे प्रामाणिक मानने की स्थिति में होंगे. जब इसकी प्रामाणिकता पूरी तरह सिद्ध हो जायेगी, तब स्पेस वेदर प्रेडिक्सन सेंटर में इसका प्रयोग शुरू कर दिया जायेगा.’ विशेषज्ञों का मानना है कि इस सेंटर के सटीक तौर पर काम शुरू करने के बाद पृथ्वी पर सोलर स्टोर्म आने की समय रहते जानकारी मिल पायेगी.
भविष्यवाणी की एक नयी विधा
अभी पृथ्वी को प्रभावित करनेवाले सौर तूफान के अंदर बने चुंबकीय क्षेत्र की संरचना के बारे में जानने का हमारा तरीका पूरी तरह विश्वसनीय नहीं है. अंतरिक्ष यान या उपग्रहों पर स्थापित कुछ दूरबीनों से सूर्य की ली गयी तसवीरों और उनके विश्लेषणों के आधार पर वैज्ञानिक इसका खाका पेश करते रहे हैं.
जाहिर है, इस विधा से तूफान का पता तब चलता है, जब वह सूर्य की सतह से उठ गया होता है और पृथ्वी के करीब पहुंच गया होता है. वैज्ञानिक प्रत्यक्ष रूप से तूफान के अंदर के हालात का परीक्षण कर पता लगाते हैं कि इसके चुंबकीय क्षेत्र की दिशा किस ओर है.
हालांकि, इस तरह अग्रिम चेतावनी जारी करने के लिए कुछ ही मिनट मिलते हैं. ऐसे में खतरा बरकरार रहता है. यह समस्या तभी दूर होगी, जब सूरज की सतह से उठने के पहले ही सौर तूफान का सटीक अनुमान लगा लिया जाये. इस तरह हमारे पास बचाव के लिए दो दिन का समय होगा.
नील सावनी और उनके सहयोगियों ने इस संबंध में ‘स्पेस वेदर’ नामकजर्नल में एक रिपोर्ट प्रकाशित करवायी है, जिसमें सौर तूफान के पैदा होने से पहले की कुछ रासायनिक क्रियाओं के परीक्षण के आधार पर इसके चुंबकीय क्षेत्र की तीव्रता और दिशा की भविष्यवाणी करने के तरीके का जिक्र किया गया है. हालांकि, यह विधा अभी शुरुआती चरणों में है.
बहरहाल, यह तरीका इस प्रश्न पर आधारित है कि कैसे सोलर प्लाज्मा यानी हाइड्रोजन आयन की गति और सूरज की सतह के नीचे छिपे चुंबकीय क्षेत्र सौर तूफान की आरंभिक प्रक्रिया को संचालित करते हैं. इसे सौर डायनेमो प्रक्रिया भी कहा जाता है. यही सौर तूफान समेत सभी तरह की सौर क्रियाओं की ऊर्जा का स्नेत है. वैज्ञानिकों को विश्वास है कि इसी भौतिक प्रक्रिया के कारण सूरज का चुंबकीय क्षेत्र पैदा होता है और उसे गति मिलती है.
नील सावनी ने कहा है कि इस विधा को पहले के मॉडल के साथ जोड़ कर देखने के बाद जो नया तरीका सामने आयेगा, उससे निश्चित रूप से सौर तूफान की भविष्यवाणी की हमारी क्षमता बढ़ेगी.
उन्होंने अपने मॉडल में सूर्य की सतह पर बारीकी से नजर रखने के लिए अंतरिक्ष में त्रिभुजाकार में तीन उच्च क्षमता के कैमरों को स्थापित करने की भी बात कही है. चूंकि ये कैमरे अंतरिक्ष में प्रेक्षण स्थल पर स्थित होते हैं, लिहाजा वैज्ञानिक इनके संयोजन से सौर तूफान के आकार और स्थिति का बेहतर आकलन कर सकते हैं.
क्या होता है सौर तूफान
सौर तूफान एक वैज्ञानिक प्रक्रिया है. सूर्य, जो दरअसल एक तारा है, उसमें आम तारों की तरह रासायनिक प्रक्रियाएं चलती रहती हैं. उसके केंद्र में हाइड्रोजन कणों के बीच न्यूक्लियर रिएक्शन होता है, जिससे वह हीलियम बन जाते हैं और सूर्य में रोशनी इसी तरह पैदा होती है.
इसके साथ ही सूर्य की सतह पर एक चुंबकीय प्रवाह पहुंचने का सोलर मिनिमम और सोलर मैक्सिमम चक्र भी चलता है, जिसे सौर चक्र कहते हैं. एक चक्र पूरा होने में तकरीबन 11 वर्ष लगते हैं. सोलर मिनिमम में सूरज काफी स्थिर रहता है और उसकी सतह पर तूफान नहीं आते.
इसके विपरीत सोलर मैक्सिमम के दौरान सूरज की सतह पर काले दाग बन जाते हैं, जिसकी वजह से उसके चुंबकीय क्षेत्रों में भारी बदलाव आता है. इसमें सूर्य की सक्रियता सर्वाधिक होती है. इसके कारण सूर्य की सतह पर कभी-कभी अचानक चमकदार प्रकाश दिखने लगता है. कभी कभार होने वाली इस घटना के दौरान सूर्य के कुछ हिस्से असीम ऊर्जा छोड़ते हैं. इस ऊर्जा से एक खास चमक पैदा होती है, जो आग की लपटों जैसी नजर आती है.
इस घटना को ‘सन फ्लेयर’ कहा जाता है. इसके साथ सूर्य से अति सूक्ष्म आवेशित कणभी निकलते हैं. यह ऊर्जा और कण के रूप में ब्रह्मांड में फैल जाते हैं. असल में इसी विकीरण को सौर तूफान कहा जाता है.
सूर्य से बड़ी मात्र में निकलती है ऊर्जा
इस प्रकार सौर तूफान का सीधा मतलब होता है सूर्य की ओर से बहुत बड़ी मात्र में ऊर्जा निकलना, जिससे अणु, आयन, इलेक्ट्रॉन के बादल अंतरिक्ष में छूटते हैं. वैज्ञानिकों के मुताबिक, कुछ वर्षो से सूर्य अपने न्यूनतम यानी सोलर मिनिमम से हट कर मैक्सिमम में जा रहा है, जिससे आनेवाले वर्षो में और तूफान दिखेंगे. आम तौर पर एक सौर चक्र में सौर तूफानों की संख्या सामान्य तौर पर 100 से 200 तक हो सकती है. वैज्ञानिकों के मुताबिक, यह तूफान एक विशाल बुलबुले की तरह आगे बढ़ता है. इससे पृथ्वी पर सूर्य से चुंबकीय, रेडियो और विकिरण वाले कणों की बारिश होती है. यदि तूफान की दिशा धरती की तरफ हो तो कुछ ही घंटे में इसके कारण धरती पर चुंबकीय बवंडर आ सकता है. और ये पृथ्वी की विद्युत चुंबकीय क्षेत्र में टकरा सकते हैं.
धरती पर इसका असर
आम तौर पर पृथ्वी में इसका असर कम होता है, लेकिन अब उपग्रहों पर निर्भरता बहुत बढ़ गयी है. मोबाइल, टेलीविजन और यहां तक कि रास्ता पहचानने वाले जीपीएस भी उपग्रहों से चलते हैं. सौर तूफान इनमें बाधा डाल सकते हैं. सबसे ज्यादा प्रभावित इलेक्ट्रॉनिक उपकरण होते हैं. पावर ग्रिड फेल होने से बिजली की आपूर्ति, उपग्रह आधारित नौवहन प्रणाली और वायु यातायात बाधित हो सकता है.
यह अंतरिक्ष यान को भी प्रभावित कर सकता है. इसका असर कुछ घंटों से लेकर एक दिन तक रह सकता है. ध्रुवीय क्षेत्रों में इसका असर कुछ अधिक ही देखा जाता है. विमानों में उस मार्ग पर उड़ान भरने से परहेज किया जाता है. इस तूफान के कारण उत्तरी ध्रुव पर दिखाई देने वाले ऑरोरा में बढ़ोतरी होती है.
इसकी वजह से कभी-कभी आसमान में आतिशबाजी जैसी स्थिति पैदा हो जाती है. सौर तूफानों के असर के बारे में वैज्ञानिकों को पिछले दशक में ही पता चला है. सबसे पहला सौर तूफान 1859 में रिकॉर्ड किया गया था. 1972 में एक बड़े तूफान ने अमेरिका के मध्य पश्चिमी राज्यों में टेलीफोन लाइनों को अस्त-व्यस्त कर दिया. 1989 में इसी तरह के तूफान से कनाडा के केबेक इलाके में बिजली की लाइनें खराब हो गयी थीं.
वर्ष 2012 और 2014 में धरती पर जोरदार सौर तूफान की चेतावनी जारी की गयी थी, लेकिन उनकी दिशा पृथ्वी की तरफ नहीं थी. वहीं जुलाई, 2013 में एक बहुत ही बड़ा सौर तूफान धरती के करीब से गुजरा था.
सूर्य की आंतरिक संरचना
अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी ‘नासा’ के मुताबिक, सूर्य कुछ इस तरह का है- जिसे तीन हिस्सों में बांटा जा सकता है. कोर में नाभिकीय क्रियाएं होती हैं. इन क्रियाओं से पैदा हुई विकीरण ऊर्जा को रेडियोएक्टिव जोन बाहर फेंकता है. संवहन जोन विकीरण ऊर्जा को सतह तक लाता है.
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