कुछ खास बातें
* बारहवीं सदी में सुनहरे पत्थरों से बना था जैसलमेर का किला.
* रावल जैसल द्वारा निर्मित यह किला 80 मीटर ऊंची त्रिकूट पहाड़ी पर स्थित है.
* जैसलमेर के प्रमुख ऐतिहासिक स्मारकों में सर्वप्रमुख जैसलमेर किला स्थापत्य का सुंदर नमूना है, जिसमें बारह सौ घर हैं.
* ढाई सौ फुट की ऊंचाई वाला यह किला 30 फुट ऊंची प्राचीरों से घिरा हुआ है.
* जैसलमेर जैनों का प्रसिद्ध तीर्थ स्थल भी है. सोनार किले में जैन मंदिरों का समूह है, जो 12वीं से 15वीं शताब्दी के बीच बनाये गये थे.
आज आपको एक ऐसे खूबसूरत नगर से परिचय कराते हैं, जो पश्चिमी राजस्थान के सुदूर रेगिस्तानी टीलों के बीच बसा है. यह प्राचीन शहर है जैसलमेर. यहां देशी पर्यटकों के साथ फ्रांस, इटली, इंगलैंड, बेल्जियम, ईरान आदि के विदेशी सैलानी भी खिंचे चले आते हैं. अस्त व उदय होते सूर्य की किरणों जब नगर के पीले पत्थर से बने दुर्ग की दीवारों, बुजरे व मंदिरों के पीले कलशों को छूती हैं, तो लगता है सोना पिघल रहा हो, इसलिए जैसलमेर के किले को सोनार किला भी कहते हैं.
नगर के बीच स्थित त्रिभुजाकार जैसलमेर के किले का निर्माण 1156 में किया गया था. ढाई सौ फीट ऊंचा और सेंट स्टोन के विशाल खंडों
रावल जैसल द्वारा निर्मित किला 80 मीटर ऊंची त्रिकूट पहाड़ी पर है. यहां की अभेद फौलादी दीवारों और बुजरे पर लगी तोपें इसका प्रमाण हैं कि दुर्ग को अनेक बार दुश्मनों से मुकाबला करना पड़ा. अलाउद्दीन खिलजी की यवन सेना ने दुर्ग को 12 वर्ष तक घेरे रखा, पर वह इसकी एक ईंट भी हिला नहीं सके. महलों की बाहरी दीवारें, घर और मंदिर कोमल पीले सेंट स्टोन से बने हैं. इसकी संकरी गलियां और चार प्रमुख विशाल प्रवेश द्वार हैं- गणोश पोल, सूरज पोल, भूत पोल और हवा पोल. किले के अंदर अनेक सुंदर हवेलियां और जैन मंदिरों के समूह हैं, जो 12वीं से 15वीं शताब्दी के बीच बने थे.
यहां की गगनचुंबी हवेलियां देखते ही बनती हैं. जैन मंदिरों में प्रसिद्ध ग्रंथागार भी है. इसमें अनेक प्राचीनतम दुर्लभ ग्रंथ संग्रहीत हैं. इसकी वास्तुकला देख आप कल्पना भी नहीं कर सकते कि रेगिस्तान के दिल में इतना खूबसूरत शहर बस सकता है. कस्बे की एक चौथाई आबादी इसी किले के अंदर रहती है. जैसलमेर घूमने का सही समय अक्तूबर से मार्च है. जनवरी-फरवरी में यहां मरु उत्सव आयोजित किया जाता है.