एक बड़ी कामयाबी हासिल करते हुए भारत ने स्वदेशी तकनीक से तैयार इंटरकॉन्टिनेंटल बैलिस्टिक मिसाइल (आइसीबीएम) अग्नि-5 का सफल परीक्षण कर लिया है. रक्षा अनुसंधान व विकास संगठन के अनुसार यह मिसाइल सभी पैमानों पर खरी उतरी है. अग्नि मिसाइल, अंतरमहाद्विपीय दूरी तक मार करने में सक्षम प्रक्षेपास्त्रों का एक ऐसा समूह है, जिसे स्वदेशी तकनीक से विकसित किया गया है. अग्नि-5 और इससे पहले बनी अन्य अग्नि मिसाइलों पर एक नजर..
।।शशांक द्विवेदी।।
(विज्ञान के प्राध्यापक)
अग्नि सीरीज की मिसाइलों का विकास 1983 में महान वैज्ञानिक डॉ एपीजे अब्दुल कलाम की अगुवाई में एकीकृत मिसाइल विकास कार्यक्रम के तहत शुरू किया गया था. इस कार्यक्रम को सफलता के मुकाम तक पहुंचाने के लिए डॉ कलाम को ‘मिसाइल मैन’ की संज्ञा भी दी गयी थी. भारत ने 1983 से मिसाइलों के विकास का अपना महत्वाकांक्षी कार्यक्रम शुरू किया था और आज भारत के पास अग्नि-1(700 किमी), अग्नि-2(2000 किमी), अग्नि-3(3500 किमी), अग्नि-4(4000 किमी) और अग्नि-5(5000 किमी) वाली बैलिस्टिक मिसाइलों के अलावा ब्रrाोस क्रूज मिसाइल और पृथ्वी की 150 से 350 किलोमीटर दूर तक मार करनेवाली कई मिसाइल मौजूद हैं. अग्नि-5 मिसाइल की खासियत यह है कि इस पर एक साथ कम से कम तीन मिसाइलों का तैनात होना. यानी एक रॉकेट पर तीन मिसाइलें एक साथ छोड़ी जा सकेंगी, जो लक्षित क्षेत्रों में एक साथ तीन अलग-अलग ठिकानों को तबाह कर सकेंगी. इस तरह की तकनीक वाली मिसाइल को एमआइटीआरवी (मल्टिपल इंडिपेंडेंट टारगेटेबेल रीएंट्री वेहिकल) मिसाइल यानी कई विस्फोटक सिरों वाली मिसाइल कहते हैं.
अग्नि सीरीज की पहली मिसाइल अग्नि-1 का पहला परीक्षण 1989 में हुआ था. तब अमेरिका और यूरोपीय देशों ने भारत के इस मिसाइल कार्यक्रम पर घोर चिंता जाहिर की थी और भारत पर कई तरह के तकनीक सप्लाई प्रतिबंध लगाने की कोशिशें भी की थीं. भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम के लिए ऐसी सभी टेक्नोलॉजी संबंधित सामग्रियां रोक दी गयी थीं, जिनका इस्तेमाल मिसाइलों के उत्पादन में किया जा सकता था. लेकिन बीते 10 साल में भारत की ताकत अग्नि-1 मिसाइल से अब अग्नि-5 मिसाइल तक पहुंच चुकी है. अग्नि-5 भारत की पहली अंतर महाद्वीपीय यानी इंटरकॉन्टिनेंटल बैलिस्टिक मिसाइल (आइसीबीएम) है. अब भारत की गिनती दुनिया के उन पांच देशों में होगी, जिनके पास आइसीबीएम मौजूद हैं. भारत से पहले अमेरिका, रूस, फ्रांस और चीन आइसीबीएम की ताकत हासिल कर चुके हैं.
अग्नि-5 मिसाइल, एक बड़ी कामयाबी
एक बड़ी कामयाबी हासिल करते हुए भारत ने स्वदेशी तकनीक से तैयार इंटरकॉन्टिनेंटल बैलिस्टिक मिसाइल (आइसीबीएम) अग्नि-5 का सफल परीक्षण कर लिया है. इस परीक्षण के दौरान अग्नि-5 ने निर्धारित लक्ष्य पर सटीक वार किया. 80 फीसद से ज्यादा स्वदेशी उपकरणों से बनी इस मिसाइल ने भारत को नाभिकीय बम के साथ सुदूर लक्ष्य पर सटीक वार करनेवाली अतिजटिल तकनीक का रणनीतिक रक्षा कवच दिया है. भारत के लिए यह एक बड़ी सामरिक उपलब्धि है, क्योंकि इस कामयाबी में स्वदेशी तकनीक के साथ हमारी आत्मनिर्भरता की तरफ बढ़ते कदम की भी पुष्टि होती है. भारत के सामरिक कार्यक्रम के लिए काफी महत्वपूर्ण यह मिसाइल 5000 किमी तक मारक क्षमता के साथ पूरे एशिया, ज्यादातर अफ्रीका व आधे से अधिक यूरोप तथा अंडमान से छोड़ने पर ऑस्ट्रेलिया तक पहुंच सकती है. गौरतलब है कि इसे सिर्फ तीन साल में बनाया गया है.
अत्याधुनिक तकनीक का इस्तेमाल
अग्नि-5 तीन स्तरीय, पूरी तरह से ठोस ईंधन पर आधारित है, जो विभिन्न उपकरणों को ले जाने में सक्षम है. इसमें लगा मल्टीपल इंडीपेंडेंटली टार्गेटेबल रीएंट्री व्हीकल (एमआइटीआरवी) भी विकसित किया जा चुका है. यह देश की पहली कैनिस्टर्ड मिसाइल है, जिससे इसको एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाना भी सरल होगा. इसे अचूक बनाने के लिए भारत ने माइक्रो नेवीगेशन सिस्टम, कार्बन कंपोजिट मैटेरियल से लेकर कंप्यूटर व सफ्टवेयर तक स्वदेशी तकनीक से विकसित की है. इसका प्रयोग छोटे सेटेलाइट लांच करने और दुश्मनों के सेटेलाइट नष्ट करने में भी किया जा सकता है. 1.5 टन परमाणु हथियार ले जाने में सक्षम और तीन चरणों में काम करनेवाली इस मिसाइल में ठोस ईंधन का प्रयोग हुआ है. पहले चरण में रॉकेट इंजन मिसाइल को 40 किमी ऊपर ले जाता है, दूसरे में यह 150 किमी धकेलता है और तीसरे में यह धरती से 300 किमी दूर जाता है. इसकी प्रक्षेपण प्रणाली इतनी सरल है कि इसे सड़क किनारे से भी छोड़ा जा सकता है. कुछ प्रक्षेपणों के बाद इसे 2014-15 तक सेना में शामिल किया जा सकेगा.
भारत के लिए बहुत महत्वपूर्ण
आज के तकनीकी युग में हजारों किमी तक मार करनेवाली बैलिस्टिक मिसाइलों की बड़ी महत्वपूर्ण भूमिका होगी. चीन एशिया में लगातार अपनी सैन्य ताकत को बढ़ा रहा है, ऐसे में भारत को भी अपनी सैन्य क्षमता को अत्याधुनिक तकनीक बनाना ही होगा. देश की रक्षा जरूरतों को देखते हुए अग्नि-5 का परीक्षण काफी जरूरी था, क्योंकि पड़ोस में चीन के पास बैलिस्टिक मिसाइलों का अंबार है, जो एक सैन्य असंतुलन पैदा कर रहा था. चीन ने दो साल पहले ही 12 हजार किमी दूर तक मार करने वाली तुंगफंग-31ए बैलिस्टिक मिसाइलों का विकास कर लिया था.
आत्मनिर्भरता ही एक मात्र विकल्प
अग्नि-5 की सफलता ने भारत की सामरिक प्रतिरोधक क्षमता की पुष्टि कर दी है और डीआरडीओ ने अपनी क्षमताओं के अनुरूप ही अगिA-5 को विकसित किया है. लेकिन देश की रक्षा प्रणाली में आत्मनिर्भरता और रक्षा जरूरतों को समय पर पूरा करने की जिम्मेदारी सिर्फ डीआरडीओ की ही नहीं होनी चाहिए, बल्कि ‘आत्मनिर्भरता संबंधी जिम्मेवारी’ रक्षा मंत्रालय से जुड़े सभी पक्षों की होनी चाहिए. देश में स्वदेशी रक्षा प्रौद्योगिकी को बड़े पैमाने पर विकसित करने की जरूरत है. सरकार को यह समझना चाहिए कि सैन्य तकनीकों और हथियार उत्पादन में आत्मनिर्भरता देश की राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए बहुत जरूरी है. अगर हम एक विकसित देश बनने की इच्छा रखते हैं, तो आतंरिक और बाहरी चुनौतियों से निपटने के लिए हमें दूरगामी रणनीति बनानी पड़ेगी. क्योंकि भारत पिछले छह दशक के दौरान अपनी अधिकांश सुरक्षा जरूरतों की पूर्ति दूसरे देशों से करता रहा है. वर्तमान में हम अपनी सैन्य जरूरतों का 70 फीसदी हार्डवेयर और सफ्टवेयर आयात कर रहे हैं. रक्षा जरूरतों के लिए भारत का दूसरों पर निर्भर रहना कई मायनों में ठीक नहीं है. वास्तव में स्वदेशी व आत्मनिर्भरता का कोई विकल्प नहीं है.
परनिर्भरता की दिक्कतें
पिछले वर्षो में सैन्य हथियारों, उपकरणों की कीमत दोगुनी कर देने, पुराने विमान, हथियार व उपकरणों के उच्चीकरण के लिए मुंहमांगी कीमत वसूलने और सौदे में मूल प्रस्ताव से हट कर और कीमत मांगने के कई मामले आ चुके है. वहीं अमेरिका रणनीतिक रक्षा प्रौद्योगिकी में भारत को भागीदार नहीं बनाना चाहता. अमेरिका भारत को हथियार व उपकरण तो दे रहा है, पर उनका हमलावर इस्तेमाल न करने व कभी भी इस्तेमाल की जांच के लिए अपने प्रतिनिधि भेजने जैसी शर्मनाक शर्ते भी लगा रहा है. इससे हम ब्लैकमेल का शिकार भी हो सकते हैं. वर्तमान में भारत दुनिया का सबसे बड़ा हथियार आयातक देश बनता जा रहा है. इससे जल्द ही निपटना होगा.
कामयाबी के साथ चुनौतियां भी
अग्नि-5 मिसाइल के सफल परीक्षण के बाद रक्षा वैज्ञानिकों को दुश्मन मिसाइल को मार गिरानेवाली इंटरसेप्टर मिसाइल और मिसाइल डिफेंस सिस्टम पर अधिक काम करने की जरूरत है. क्योंकि अमेरिका, रूस, फ्रांस, चीन जैसे सामरिक रूप से मजबूत देश इस सिस्टम को विकसित कर चुके हैं. इस कामयाबी के साथ ही हमारी चुनौती अब और भी बढ़ गयी है, क्योंकि अब चीन और पाकिस्तान इसका जवाब देने के लिए हथियारों और सामरिक उपकरणों की होड़ में शामिल हो जायेंगे. इसलिए इस कामयाबी को आगे बढ़ाते हुए हमें अपनी सैन्य क्षमताओ को स्वदेशी तकनीक से और अत्याधुनिक बना कर आत्मनिर्भर होने की जरूरत है.