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3.5 लाख की मशीन 90 रुपये में बनी, बची नवजात की जान
जमशेदपुर: एमजीएम अस्पताल के जूनियर डॉक्टरों ने जुगाड़ तकनीक से 3.5 लाख रुपये की मशीन (सी-पैप) मात्र 90 रुपये में बनाकर नवजात की जान बचायी. बताया जाता है कि मंगलवार सुबह बालीगुमा निवासी एस राय ने अपनी गर्भवती पत्नी को एमजीएम अस्पताल में भरती कराया. यहां महिला ने एक बच्चे को जन्म दिया. बच्चे को […]
जमशेदपुर: एमजीएम अस्पताल के जूनियर डॉक्टरों ने जुगाड़ तकनीक से 3.5 लाख रुपये की मशीन (सी-पैप) मात्र 90 रुपये में बनाकर नवजात की जान बचायी. बताया जाता है कि मंगलवार सुबह बालीगुमा निवासी एस राय ने अपनी गर्भवती पत्नी को एमजीएम अस्पताल में भरती कराया. यहां महिला ने एक बच्चे को जन्म दिया. बच्चे को सीवियर बर्थ एस्फेक्सिया बीमारी थी. बच्च सांस नहीं ले पा रहा था. उसकी धड़कन भी बंद हो जा रही थी. पीडियाट्रिक वार्ड में लाकर डॉक्टरों ने बच्चे का इलाज किया. एमजीएम में इस तरह की कोई मशीन नहीं है.
क्या है बर्थ एस्फेक्सिया बीमारी
डॉक्टरों के अनुसार शिशु जब गर्भ में रहता है, उस दौरान तरल (मेकोनियम) बच्चे के मुंह से छाती में चला जाता है. इसकी वजह से रेस्पिरेशन और हार्ट बंद हो जाता है. शिशु सही तरीके से सांस ले, इसके लिए कंटीन्युअस पॉजीटिव एयरवे प्रेशर ट्रीटमेंट की जरूरत होती है.
कैसे बनायी जुगाड़ तकनीक से मशीन
शिशु विभाग के जूनियर डॉक्टरों ने बताया कि जुगाड़ टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल कर मात्र 90 रुपए में सी-पैप की तरह काम करने वाला डिवाइस तैयार किया. इस आर्टिफिशियल बबल सी-पैप बनाने के लिए 60 रुपये में पीडिया ड्रिप और 30 रुपए का थ्री वे कैन्यूला का इस्तेमाल किया गया. इन दोनों डिवाइसेज को ऑक्सीजन सिलिंडर से जोड़कर पूरा डिवाइस तैयार किया गया. सी-पैप का इस्तेमाल ब्रीदिंग प्रॉब्लम होने या प्रीटर्स चिल्ड्रेन (जिनके लंग्स पूरी तरह से डेवलप ना हो) के इलाज में किया जाता है. इसमें माइल्ड एयर प्रेशर का इस्तेमाल एयरवे ओपन रखने के लिए किया जाता है. डॉक्टरों के अनुसार थ्री वे कैन्यूला के एक सिरे से ऑक्सीजन सप्लाइ दी गयी, जबकि दूसरे सिरे को पीडिया ड्रीप से जोड़ा गया. ऑक्सीजन को थ्री वे कैन्यूला के तीसरे सिरे से शिशु की नाक में पहुंचाया गया.
अस्पताल में मौजूद संसाधन से जुगाड़ कर बच्चे का इलाज किया गया. बच्चे की सांस बंद हो गयी थी. उसको चालू किया गया. हमारी कोशिश रहती है कि मरीजों का अच्छा इलाज किया जा सकें.
डॉ वीरेंद्र प्रसाद, एचओडी पीडियाट्रिक विभाग
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