फरवरी 2012 में जब पंचायतनामा के प्रकाशन की शुरुआत हुई थी तो हमने पंचायतों को अधिकार दिये जाने के मसले को ही अपनी आमुख कथा का विषय बनाया था. उस वक्त पंचायत प्रतिनिधियों में बड़ी नाराजगी थी कि अगर पंचायतों से कोई काम ही नहीं करवाना था तो चुनाव ही क्यों करवाये गये. राजधानी रांची में पंचायत प्रतिनिधियों ने जन सभा कर आवाज बुलंद की. तब से डेढ़ साल का वक्त बीत चुका है. नौ विभागों ने पंचायतों को अधिकारों का हस्तांतरण भी कर दिया है. मगर पंचायत प्रतिनिधियों में आज भी वही गुस्सा है.
जगह-जगह पर प्रतिनिधि एकजुट होकर सम्मेलन कर रहे हैं. यह गुस्सा कुछ नहीं कर पाने की कुंठा से उपज रहा है. जिस प्रतिनिधि से पूछिये वह यही कहता है कि ये अधिकार केवल कहने के लिए है. जिला स्तर और उससे नीचे काम करने वाला एक भी अधिकारी इन अधिकारों को मानने के लिए तैयार नहीं है. जगह-जगह अधिकारियों और पंचायत प्रतिनिधियों में टकराव हो रहा है. कई जगह अशोभनीय दृश्य उपस्थित हो जा रहे हैं. प्रतिनिधियों के खिलाफ झूठे मुकदमे किये जा रहे हैं. उन्हें अविश्वास प्रस्ताव के झमेलों में उलझाने की कोशिश की जा रही है. ऐसे में पंचायत प्रतिनिधियों को अबुआ राज और गांव की सरकार की बात झूठी लगने लगी है. पेश है इस नाराजगी को सामने लाती हुई पुष्यमित्र की यह रिपोर्ट. इस रिपोर्ट में हम ग्राम पंचायत और प्रखंड पंचायत के प्रतिनिधियों की बात सामने ला रहे हैं.
रांची के नामकुम प्रखंड के आरा पंचायत की मुखिया डोरोथिया दयामनी एक्का को राज्य की सबसे पढ़ी लिखी और सक्रिय पंचायत प्रतिनिधियों में से एक माना जाता रहा है. उसने अपने पंचायत के विकास के लिए कई महत्वपूर्ण काम किये थे. उनके काम-काज को देखते हुए झारखंड महिला पंचायत रिसोर्स सेंटर की ओर से उन्हें पुरस्कृत भी किया गया और एक तरह से उनकी छवि राज्य में पंचायती राज के ब्रांड अम्बेस्डर के तौर पर विकसित होने लगी. लोग आरा पंचायत जाकर उनके द्वारा किये जा रहे विकास कार्यो का अवलोकन करते थे ताकि उन्हें अपने इलाके में उतारा जा सके. मगर पिछले दिनों डोरोथिया ने मुखिया पद से इस्तीफा दे दिया. उनका कहना था कि मौजूदा प्रशासनिक व्यवस्था में उनके लिए काम कर पाना मुश्किल हो रहा है. प्रखंड कार्यालय की ओर से बार-बार अडंगा लगाया जा रहा है. यह स्थिति सिर्फ डोरोथिया एक्का की ही नहीं है राज्य के अधिसंख्य पंचायत प्रतिनिधि इस सवाल से जूझ रहे हैं. अभी हाल ही में पूर्वी सिंहभूम के घाटशिला प्रखंड में जिले के सभी पंचायतों से प्रतिनिधि एक जुट हुए और उन्होंने अधिकारों को हासिल करने के लिए संघर्ष का ऐलान किया. राज्य के कई हिस्सों में पंचायत प्रतिनिधियों में इस मसले को लेकर काफी नाराजगी है.
झारखंड पंचायती राज अधिनियम के तहत पंचायत प्रतिनिधियों को 29 मामलों से संबंधित अधिकार दिये जाने की घोषणा की गयी है ताकि पंचायतों को लेकर महात्मा गांधी की अवधारणा को धरातल पर उतारा जा सके. मगर राज्य सरकारों का रवैया हमेशा से पंचायतों को अधिकार दिये जाने के खिलाफ रहा है. पहले पंचायत चुनाव कराये जाने में हीला-हवाला किया जाता रहा. मगर जब 2010 में जाकर पंचायत चुनाव हुए तो पंचायत प्रतिनिधियों को एक नयी तरह की जंग लड़नी पड़ रही है. राज्य सरकार और अफसरान मानते हैं कि पंचायतों को अधिकार देने में जल्दीबाजी नहीं की जानी चाहिये, क्योंकि उनमें प्रशिक्षण का घोर अभाव है. इन्हीं नीतियों के चलते अब तक राज्य में सिर्फ नौ विभागों का अधिकार पंचायतों को दिया गया है. मगर ये अधिकार भी सिर्फ कागजी हैं. धरातल पर इनमें से एक भी अधिकार नहीं उतारे जा सके हैं. लिहाजा पंचायत प्रतिनिधि अभी 29 विषयों में अधिकार के मसले पर सोच भी नहीं रहे, वे बस इतना चाह रहे हैं कि जो नौ विभाग के अधिकार उन्हें मिले हैं उन्हें ठीक से लागू करा लिया जाये. दूसरे अधिकार के बारे में इसके बाद सोचेंगे.
लातेहार की प्रमुख आशा देवी कहती हैं, जो मिला है वो भी तो अभी सपना ही है. जब तक इन अधिकारों का इस्तेमाल नहीं कर लें, दूसरे अधिकारों के बारे में कैसे सोच सकते हैं.
डालटेनगंज के चियांकी पंचायत की मुखिया रोशनी टोप्पो अधिकारों का सवाल सुनते ही उग्र हो जाती हैं. वे कहती हैं कि सारे अधिकार बस नाम के हैं. मनरेगा का अधिकार तो शुरू से है मगर आज तक पंचायतें अपने दम पर मनरेगा की एक भी योजना को पास नहीं कर पातीं. उसे सिर्फ प्रस्ताव बना कर भेजना है. वे कहती हैं कि हाल-हाल तक उनके पंचायत के स्कूलों में मिड-डे मील में सिर्फ खिचड़ी बंटता था, मीनू का पालन करवाने में ही उन्हें काफी पापड़ बेलने पड़े. बीआरजीएफ फंड का पैसा आज तक उनके खाते में नहीं पहुंचा है,
टकराव की घटनाएं
तनातनी, बीडीओ का कॉलर पकड़ा
12 अगस्त 2013 को बोकारो जिले के चंदनकियारी प्रखंड में साइकिल वितरण का कार्यक्रम था. बीडीओ ने इस कार्यक्रम में पंचायत प्रतिनिधियों को आमंत्रित नहीं किया. इससे पंचायत प्रतिनिधियों और बीडीओ के बीच तनातनी हो गयी और आवेश में आकर प्रमुख पद्मा देवी ने बीडीओ का कॉलर पकड़ लिया. अगले दिन बीडीओ ने प्रमुख के खिलाफ एफआइआर दर्ज करायी. बाद में 17 अगस्त को पेटरवार के प्रमुख मनोज गुप्ता सहित अन्य पंचायत समिति सदस्य गिरफ्तार कर लिये गये, उन्होंने पूर्व में प्रखंड कार्यालय में तालाबंदी की थी.
सीडीपीओ का जमकर विरोध
जुलाई, 2013 में धनबाद में समाज कल्याण विभाग की एक कार्यशाला में पंचायत प्रतिनिधियों ने झरिया के सीडीपीओ का जमकर विरोध किया और उनकी कार्यप्रणाली की आलोचना की और झरिया के 25 आंगनबाड़ी केंद्रों की जांच की मांग की.
प्रमुख और जिप सदस्य पर मुकदमा
रांची के इटकी प्रखंड में लंबे समय से पंचायत प्रतिनिधियों और बीडीओ के बीच विवाद कायम है. पहले एक साइकिल वितरण कार्यक्रम के दौरान विवाद हुआ. कार्यक्रम में प्रमुख को नहीं बुलाया गया तो प्रमुख ने साइकिल के भंडार में ही ताला लगा दिया. जिस पर प्रमुख सुखमनी तिग्गा पर सरकारी काम में बाधा डालने का मुकदमा दर्ज कर दिया गया. बाद में इंदिरा आवास वितरण कार्यक्रम के दौरान भी ऐसी ही घटना घट गयी. आयोजन में जिला परिषद सदस्य को आमंत्रित नहीं किया गया तो जिप सदस्य ने बैठक में पहुंच कर सवाल-जबाव किया. इसके बाद अगले दिन बीडीओ ने उन पर भी सरकारी काम-काज में बाधा उत्पन्न करने का मुकदमा कर दिया. इसके बाद से लगातार इटकी में पंचायत प्रतिनिधि बीडीओ के खिलाफ एकजुट होकर संघर्ष कर रहे हैं.
सामूहिक इस्तीफे की तैयारी
गिरिडीह के सरिया प्रखंड के प्रमुख, उप प्रमुख समेत सभी पंचायत समिति सदस्य ने सामूहिक इस्तीफा की तैयारी कर ली. क्योंकि वहां एक साल में सिर्फ चार बैठकें ही हो पायी थी और उनमें लिए गये किसी फैसले को लागू नहीं कराया गया था.
मुखियाओं का पावर सीज
देवघर के सारठ प्रखंड के नवादा पंचायत में तो अजीबोगरीब मामला सामने आया है. वहां के मुखिया पर चुनाव से पहले के एक मामले में एफआइआर था. बाद में सितंबर, 2012 में उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया. इसको आधार बनाते हुए उपायुक्त ने उनका पावर सीज कर दिया और उनका पावर प्रखंड कृषि पदाधिकारी को दे दिया गया. जबकि झारखंड पंचायत राज अधिनियम के मुताबिक मुखिया की गैरहाजिरी में उनका काम उप मुखिया को संभालना है. खैर मुखिया पलटन मेहरा आठ अक्तूबर, 2012 को जमानत पर रिहा हो गये. इसके बावजूद उन्हें कार्यभार नहीं सौंपा गया. मधुपुर प्रखंड के गौनैया पंचायत और सारवां बेजुपुरा को भी इसी तरह उनके पद से हटा दिया गया, खैरियत यह रही कि इन जगहों पर किसी अधिकारी को चार्ज नहीं दिया गया. उप मुखिया ही मुखिया का चार्ज संभाल रहे हैं.
सहायक अभियंता को हटाने की मांग
16 अप्रैल, 2013 को पूर्वी सिंहभूम के पोटका प्रखंड के सभी मुखिया और उप मुखिया ने धरना देकर बीपीओ माला कुमारी और पेयजल एवं स्वच्छता विभाग के सहायक अभियंता आरके मंडल को हटाने की मांग करते हुए कहा कि ये अफसर उन पर बेवजह धौंस जमाते हैं और मनमानी करते हैं.