अमेरिकी खोजी पत्रकार सेमोर हर्ष ने आतंकी ओसामा के मारे जाने की जो ‘असली कहानी’ बतायी है, आज पढ़िए उसका तीसरा व अंतिम भाग
ओबामा के कथन ने यह असर छोड़ा कि वे या उनके सलाहकार निश्चित तौर पर यह नहीं जानते थे कि बिन लादेन एबटाबाद में छिपा था, बल्कि उन्हें केवल ‘ऐसी संभावना’ की सूचना थी. इससे पहले यह कहानी बनायी गयी कि यह तय करने के लिए कि उन्होंने सही व्यक्ति को निशाना बनाया है, एक छह फुट लंबे सील ने शव के बगल में लेट कर उससे अपनी लंबाई की तुलना की (बिन लादेन के विषय में यह पता था कि वह छह फुट चार इंच लंबा था) और फिर यह दावा किया गया कि शव की एक डीएनए जांच की गयी, जिससे यह पक्के तौर पर पता चल गया कि सील्स ने सही व्यक्ति को निशाना बनाया था. किंतु उस पूर्व अधिकारी के अनुसार, सील्स की शुरुआती रिपोर्ट से यह साफ नहीं था कि बिन लादेन का पूरा शव अफगानिस्तान आया अथवा इसका केवल एक हिस्सा. पूर्व अधिकारी ने यह भी बताया,‘गेट्स ऐसे अकेले व्यक्ति नहीं थे, जो ओबामा द्वारा अपने बयान की त्रुटिहीनता को पहले से परखे बिना उसे सार्वजनिक किये जाने से दुखी थे. पर उसका विरोध करनेवाले वे अकेले व्यक्ति थे. ओबामा ने न केवल गेट्स को, बल्कि हरएक को धोखा दिया. यह कोई युद्ध की धुंध नहीं थी. इस तथ्य पर कि पाकिस्तान के साथ एक समझौता भी था और ऐसी किसी आकस्मिकता के लिए कोई योजना न थी कि कहीं कुछ गड़बड़ हो जाने की स्थिति में क्या किया जाना है- इस पर कोई विचार तक नहीं किया गया. और जब एक बार यह गलती हो गयी, तो फिर उसे छिपाने के लिए एक के बाद दूसरी कहानी गढ़नी पड़ी.’ कुछ धोखाधड़ी के लिए तो एक उचित वजह यह थी कि उस भेदिये की भूमिका को हर हालत में बचाये रखना था.
विसंगतियों की भरपाई की कोशिशें
व्हाइट हाउस के प्रेस प्रभाग को ओबामा की घोषणा के शीघ्र बाद एक बैठक में यह बताया गया कि बिन लादेन की मृत्यु वर्षो के सावधानीपूर्ण तथा अत्यंत उन्नत खुफिया कार्रवाई का नतीजा है, जो कोरियर के एक दल के अवलोकन पर केंद्रित थी, जिसमें से एक बिन लादेन के अत्यंत निकट था. संवाददाताओं से यह बताया गया कि सीआइए तथा राष्ट्रीय सुरक्षा एजेंसी के विेषकों के एक विशिष्ट दल ने इस कोरियर को एबटाबाद के उस अत्यंत सुरक्षित कैंपस में जाते हुए पाया. महीनों के अवलोकन के बाद अमेरिकी खुफिया समुदाय को काफी हद तक यह यकीन हो गया कि उस कैंपस में कोई बड़ा शिकार रहता है और यह आकलन किया गया कि इसकी काफी संभावना थी कि वह व्यक्ति ओसामा बिन लादेन था. अमेरिकी हमलावर दल ने उस कैंपस में प्रवेश करने पर गोलीबारी का सामना किया और तीन वयस्क पुरुष, जिसमें संभवत: दो कोरियर थे, बिन लादेन के साथ ही मारे गये. यह पूछे जाने पर कि क्या बिन लादेन ने जान बचाने को प्रतिरोध भी किया, एक विेषक ने कहा,‘हां, उसने निश्चित रूप से हमलावर बल का प्रतिरोध किया, जिसके चलते हुई गोलीबारी में मारा गया.’
अगले ही दिन जॉन ब्रेनन ने, जो आतंकवादरोध के लिए ओबामा के मुख्य सलाहकार थे, को यह जिम्मेवारी दी गयी कि वे ओबामा के बयान में आयी खामियों की भरपाई करें. उन्होंने उस हमले तथा उसकी योजना की ज्यादा विस्तृत, मगर उतनी ही त्रुटिपूर्ण तफसील मुहैया की. उन्होंने बताया कि नेवी सील्स को यह आदेश था कि यदि संभव हो, तो बिन लादेन को वे जिंदा पकड़ने की कोशिश करें. उन्होंने आगे कहा कि अमेरिका को ऐसी कोई सूचना नहीं थी कि पाकिस्तानी सरकार अथवा सेना में किसी को बिन लादेन के ठिकाने की जानकारी थी. ब्रेनन ने उस समय कहा, ‘जब तक हमारे सभी लोग और विमान पाकिस्तानी वायुसीमा से बाहर नहीं आ गये, हमने पाकिस्तानियों से कोई संपर्क नहीं किया.’ उन्होंने इस हमले का आदेश देने में ओबामा के साहस की तारीफ की और कहा कि व्हाइट हाउस को हमले की शुरुआत के पूर्व ऐसी कोई सूचना नहीं थी, जिससे इसकी पुष्टि होती कि बिन लादेन उस अहाते में मौजूद था.
उन्होंने आगे कहा,‘ओबामा ने इस हमले के आदेश देते वक्त, मेरे यकीन से, हालिया याददाश्त में किसी भी अन्य राष्ट्रपति से अधिक दिलेरीभरा फैसला लिया.’ ब्रेनन ने अहाते के अंदर मारे गये लोगों की तादाद बढ़ाकर पांच कर दी- लादेन, एक कोरियर, उसका भाई, लादेन का एक बेटा और एक महिला, जो बिन लादेन का ढाल बनने की कोशिश कर रही थी.
जब उनसे यह पूछा गया कि क्या बिन लादेन ने सील्स पर गोलियां भी चलायीं, तो ब्रेनन ने उसे ही दोहरा दिया, जो अब तक व्हाइट हाउस का मंत्र बन चुका था, ‘जो लोग उस मकान के उस हिस्से में प्रविष्ट हुए, जिसमें वह रह रहा था, उनके साथ उसकी गोलीबारी हुई. यह वह बिन लादेन था, जो अग्रिम मोरचे से बहुत दूर एक सुरक्षित जगह से हमलों के आदेश देता था. और जो महिलाओं को ढाल बना उनके पीछे छिपने की कोशिश कर रहा था. मैं समझता हूं कि (यह) एक व्यक्ति के रूप में उसकी प्रकृति के बारे में बहुत कुछ बताता है.’
गेट्स ने ब्रेनन तथा लियोन पनेटा द्वारा यह वक्तव्य देने के विचार का भी विरोध किया कि अमेरिकी खुफिया एजेंसियों को बिन लादेन के ठिकाने का पता जानकारों को कई किस्म की यातनाएं देने के बाद हासिल हुआ था. पूर्व अधिकारी ने बताया कि उधर सील्स अपने मिशन को अंजाम देकर वापस लौट रहे थे, और इधर यह सारी खिचड़ी पकायी जा रही थी. इनमें से कुछ विचार तो सीआइए के उन सेवानिवृत्त कर्मियों के थे, जिनसे संविदा के आधार पर काम लिया जा रहा था. उन्होंने ही कहा कि क्यों नहीं यह बात भी बतायी जाये कि हमें कुछ सूचनाएं कड़ी पूछताछ से भी हासिल हुई थीं, जबकि उसी समय वाशिंगटन में कुछ वैसे सीआइए एजेंटों पर मुकदमा चलाने की बातें भी हो रही थीं, जिन्होंने अपने कैरियर में यातनाएं देने का कृत्य किया था. पूर्व अधिकारी ने कहा,‘उनमें अपने कैरियर के अंतिम चरण में ऐसे बकवासों में शामिल न होने की बुद्धिमानी थी. किंतु सरकार, एजेंसी और पेंटागन ने इस कहानी को हाथोंहाथ लिया. सील्स में भी किसी को उम्मीद नहीं थी कि ओबामा राष्ट्रीय टीवी पर आकर इस हमले की घोषणा करेंगे. इससे विशिष्ट बल कमांड क्षुब्ध हो उठा. उन्हें अपनी कार्रवाईयों से संबद्ध सुरक्षा व्यवस्था पर नाज था. विशिष्ट ऑपरेशनों से संबद्ध क्षेत्रों में यह आशंका व्याप्त हो गयी कि यदि इस मिशन की सच्ची कहानी सामने आ गयी, तो व्हाइट हाउस की नौकरशाही इसे सील्स के मत्थे मढ़ देगी.’
सील्स के मुंह खोलने पर पाबंदी
व्हाइट हाउस ने इस समस्या का समाधान सील्स को चुप कर देने में निकाला. 5 मई को, जब हमला करनेवाली सील्स टीम अपने वर्जिनिया स्थित अड्डे पर वापस पहुंच चुकी थी, तो उनके सभी सदस्यों तथा संयुक्त विशिष्ट ऑपरेशंस कमांड नेतृत्व को व्हाइट हाउस के विधि पदाधिकारी द्वारा तैयार किया गया एक फॉर्म दिया गया, जिसमें निजी अथवा सार्वजनिक तौर पर इस मिशन का खुलासा करनेवालों पर सजा तथा मुकदमे की निश्चितता बतायी गयी थी. इससे सील्स के साथ-साथ इस कमांड के तत्कालीन प्रभारी एडमिरल मैकरैवेन दुखी थे. पूर्व अधिकारी ने बताया,‘मैकरैवेन क्षुब्ध हो उठे, किंतु वे सच्चे अर्थो में एक सील थे और यह जानते थे कि राष्ट्रपति पर सवाल खड़े करना कोई गौरव की बात न थी.’
कुछ ही दिनों के भीतर शुरुआती अतिरंजनाएं तथा तोड़-मरोड़ की विसंगतियां सामने आ गयीं और तब पेंटागन ने सफाई देनेवाले बयानों की कड़ियां देनी शुरू कीं. ‘नहीं, जब बिन लादेन पर गोलियां चलीं और वह मारा गया, तब वह हथियार से लैस नहीं था.’ ‘नहीं, बिन लादेन ने अपनी पत्नियों में से किसी को ढाल नहीं बनाया.’ मोटे तौर पर प्रेस ने इन सफाइयों को इसलिए स्वीकार भी कर लिया कि ये शुरुआती त्रुटियां संवाददाताओं द्वारा मिशन के विस्तृत विवरण के लिए मचायी गयी आपाधापियों का अपरिहार्य नतीजा थीं.
प्रतिरोध की मनोवैज्ञानिक जरूरत
एक झूठ, जो बना रहा, वह यह था कि सील्स को अपने लक्ष्य तक पहुंचने के लिए संघर्ष करना पड़ा. केवल दो सील्स ने सार्वजनिक बयान दिये. सितंबर, 2012 में हमले के संबंध में मैट बिसोनेट का स्वानुभूत विवरण ‘नो इजी डे’ के नाम से प्रकाशित हुआ और दो वर्षो बाद रॉब ओ नील का ‘फॉक्स न्यूज’ द्वारा लिया गया इंटरव्यू सामने आया. उन दोनों ने नेवी से त्यागपत्र दे दिया था. दोनों ने बिन लादेन पर गोलियां चलायी थीं. उन दोनों की ओर से दिये गये विवरण में कई आपसी विसंगतियां थीं, मगर दोनों ने व्हाइट हाउस द्वारा दी गयी इस दलील का समर्थन किया कि जब वे लादेन की ओर बढ़ रहे थे, उस वक्त ‘मारो अथवा मारे जाओ’ जैसी भावना की जरूरत थी. ओ नील ने तो ‘फॉक्स न्यूज’ को यहां तक कहा कि वह और उसके साथी सील्स यह सोच चुके थे कि ‘हम मरने जा रहे हैं. हम इसका जितना ही पूर्वाभ्यास कर रहे थे, उतना ही यह यकीन घर करता जा रहा था कि यह केवल एकतरफा मिशन था, जिसमें जीवित वापसी की संभावना न थी.’
मगर उस पूर्व अधिकारी ने मुङो बताया कि वहां से लौट कर अपनी रिपोर्ट में सील्स ने गोलीबारी के संघर्ष अथवा किसी प्रतिरोध का कोई जिक्र नहीं किया. बिसोनेट तथा ओ नील ने जिस नाटकीयता तथा खतरे का जिक्र किया, वह उनकी एक गहरी जरूरत की पूर्ति करती थी. ‘सील्स इस तथ्य के साथ सहज नहीं हो सकते कि उन्होंने लादेन को बिना प्रतिरोध के मार गिराया. इसलिए सामने खड़े खतरे के मुकाबले उनके साहस का एक विवरण आना ही था. क्या वे नौजवान बार में बैठ पेय का आनंद लेते हुए यह टिप्पणी करेंगे कि यह आसान दिन रहा? ऐसा नहीं हो सकता था.’
पूर्व अधिकारी के अनुसार, एक और वजह थी, जिससे यह दावा करना जरूरी था कि उस अहाते में गोलीबारी भरा संघर्ष हुआ था, वरना एक दूसरा सवाल उठना लाजमी था कि उस वक्त बिन लादेन के सुरक्षाकर्मी कहां थे? इतना तो तय था कि विश्व के सबसे वांछित आतंकवादी के पास चौबीसों घंटे की सुरक्षा होगी. और फिर मारे गये लोगों में से एक का कोरियर होना बहुत जरूरी था, क्योंकि उसका कोई अस्तित्व ही न था और हम उसे सार्वजनिक रूप से सामने ला खड़ा नहीं कर सकते थे. पाकिस्तानियों के पास इसके अलावा और कोई विकल्प नहीं था कि वे हमारा साथ देते रहें. (दो दिनों बाद रॉयटर्स ने तीन मृत व्यक्तियों की तसवीर प्रकाशित की, जिसके विषय में उसने बताया कि उसे आइएसआइ के एक अधिकारी से खरीदा गया. आइएसआइ के एक प्रवक्ता द्वारा बाद में उसमें से दो व्यक्तियों की पहचान तथाकथित कोरियर और उसके भाई के रूप में की गयी.)
हमले को जायज ठहराने की कोशिशें
हमले के पांच दिनों बाद पेंटागन प्रेस प्रभाग को वीडियो टेपों की एक श्रृंखला मुहैया करायी गयी, जिनके बारे में अमेरिकी अधिकारियों ने यह बताया कि यह सील्स द्वारा एबटाबाद कैंपस से लाये गये 15 कंप्यूटरों समेत एक बड़े भंडार का हिस्सा है. इसमें एक वीडियो में कंबल में लिपटा बीमार-सा दिखता बिन लादेन अकेले बैठकर टेलीविजन में अपना ही एक वीडियो देख रहा है. एक अनाम अधिकारी ने संवाददाताओं को बताया कि हमले में उपयोगी सूचनाओं का एक खजाना जैसा मिला. ऊंचे स्तर की आतंकी सामग्रियों का अब तक का सबसे बड़ा भंडार, जिससे अल कायदा की योजनाओं की अहम सूचनाएं मिलेंगी. उक्त अधिकारी ने बताया कि बिन लादेन अल कायदा का एक सक्रिय नेता था और वह इस समूह को लगातार रणनीति, कार्यनीति तथा परिचालन संबंधी निर्देश दे रहा था. वह उसका कोई प्रतीकात्मक नेता नहीं था, बल्कि एबटाबाद के उस कमांड तथा नियंत्रण स्थल से इस समूह को प्रबंधन और गुप्त योजनाओं से संबद्ध विस्तृत दिशानिर्देश दे रहा था. ‘वह एक सक्रिय नेता था और इसका मतलब यह था कि उसके विरुद्ध हालिया कार्रवाई हमारे राष्ट्र की सुरक्षा के लिए नितांत आवश्यक थी,’ उस अधिकारी ने कहा. ये सूचनाएं इतनी अहम हैं कि प्रशासन उनके प्रसंस्करण के लिए एक अंतरएजेंसी कार्यबल का गठन कर रहा है. ‘वह एक ऐसा व्यक्ति नहीं था, जो केवल अल कायदा की रणनीति तय करता था, बल्कि वह उसके परिचालन के संबंध में अपने विचार देते हुए उसके सदस्यों को निर्देशित भी कर रहा था.’
ये सारे दावे गढ़े हुए थे. बिन लादेन के आदेश और नियंत्रण के लिए अब कोई अधिक गतिविधि नहीं बच गयी थी. उस पूर्व अधिकारी ने बताया कि सीआइए की आंतरिक रिपोर्टो के अनुसार, 2006 में बिन लादेन को एबटाबाद ले आये जाने के बाद अल कायदा में जो कुछ भी बचा-खुचा था, उससे केवल मुट्ठीभर आतंकवादी घटनाओं को ही जोड़ा जा सकता है. पूर्व अधिकारी ने बताया,‘पहले हमलोगों से यह कहा गया कि सील्स वहां से बड़े थैलों में भरकर सामग्रियां ले आये हैं, जिनसे खुफिया समुदाय रोजाना खुफिया जानकारियां जुटा रहा है. फिर यह कहा गया कि यह समुदाय सभी चीजें समेकित कर रहा है, जिसका अनुवाद किये जाने की जरूरत है. मगर फिर उससे कुछ भी बाहर नहीं आया. उन्होंने जितनी भी चीजें गढ़ीं, वे सभी बस असत्य ही सिद्ध होती गयीं. यह सब एक बड़ा धोखा था.’ उस अधिकारी ने बताया कि एबटाबाद में उस मकान से मिली ज्यादातर सामग्रियां पाकिस्तानियों ने अमेरिका को सौंप दीं और फिर उस मकान को ढाह दिया. बिन लादेन की पत्नियों तथा बच्चों का जिम्मा आइएसआइ ने लिया, जिनमें से किसी को भी पूछताछ के लिए अमेरिका को नहीं सौंपा गया. मेरे यह पूछने पर कि फिर इस बड़े खजाने की कहानी क्यों गढ़ी गयी? पूर्व अधिकारी ने कहा, ‘व्हाइट हाउस को यह छवि गढ़नी थी कि बिन लादेन अपने संगठन के परिचालन के लिए अब भी अहम था. वरना फिर उसे क्यों मारा जाता? एक कहानी गढ़ी गयी कि कोरियरों का एक नेटवर्क वहां आ-जा रहा था, जिसके द्वारा संवादों का आदान-प्रदान हो रहा था. इन सबसे यह सिद्ध होता था कि बिन लादेन अहम था.’
हासिल ‘सामग्रियों’ पर भी सवाल
जुलाई, 2011 में ‘द वाशिंगटन पोस्ट’ ने इन तथाकथित सामग्रियों में से कुछ का संक्षिप्त विवरण प्रकाशित किया, जिनमें ज्वलंत विसंगतियां थीं. इसमें यह बताया गया कि इन कागजातों से छह सप्ताहों में चार सौ से भी ज्यादा खुफिया रिपोर्ट तैयार की गयीं, जिनमें अल कायदा की कई योजनाओं की चेतावनी दी गयी और उन संदिग्धों की गिरफ्तारी का जिक्र किया गया, जिनके नाम बिन लादेन द्वारा प्राप्त इ-मेल में पाये गये थे. अखबार ने उन संदिग्धों की पहचान नहीं दी और न ही उस विवरण का मिलान प्रशासन के उस दावे से किया कि एबटाबाद अहाते में कोई भी इंटरनेट संपर्क नहीं था. उनके इस दावे के बावजूद कि उन कागजातों से सैकड़ों रिपोर्टे निकलीं, इस अखबार ने अधिकारियों को यह कहते हुए भी उद्धृत किया कि उनकी मुख्य अहमियत इसमें नहीं थी कि उनसे प्राप्त सूचनाओं पर कार्रवाई की जा सके, बल्कि इसमें थी कि उनसे विेषकों को अल कायदा की ज्यादा पूर्ण तसवीर खींचने में मदद मिली. मई, 2012 में वेस्ट प्वॉइंट स्थित द कम्बैटिंग टेररिज्म सेंटर ने, जो एक निजी शोध समूह है, अमेरिकी सरकार के साथ हुए उसके एक अनुबंध के तहत बिन लादेन कागजात के 175 पृष्ठों का अनुवाद प्रस्तुत किया. इसमें पत्रकारों को वैसी कोई भी नाटकीयता नहीं मिल सकी, जिसके विषय में हमले के बाद के दिनों में बयान दिये गये. प्रशासन का शुरुआती दावा कि बिन लादेन ‘षड्यंत्रों के मकड़जाले के केंद्र में बैठा एक मकड़ा था’ और जो कुछ इन अनुवादों से वस्तुत: निकल कर आया, उनकी विसंगतियों के विषय में पैट्रिक कॉकबर्न ने लिखा कि लादेन एक ‘भ्रमित’ व्यक्ति था, जिसका अपने अहाते से बाहर की दुनिया से सीमित सरोकार रह गया था.
उक्त पूर्व अधिकारी ने वेस्ट प्वॉइंट में अनुदित सामग्रियों की मौलिकता पर सवाल खड़े किये. इन कागजात और सीआइए के आतंकरोधी केंद्र में कोई जुड़ाव नहीं दिखता. उसमें खुफिया समुदाय का कोई विेषण मौजूद नहीं है. इसके पहले सीआइए ने कभी भी (1) यह घोषित नहीं किया था कि उसे एक अहम खुफिया जानकारी मिली है, (2) कभी भी उसके स्नेत का खुलासा नहीं किया, (3) कभी सामग्रियों के प्रसंस्करण की विधि नहीं बतायी, (4) कभी उसकी प्रस्तुति की अवधि नहीं बतायी, (5) कभी यह खुलासा नहीं किया कि किसके द्वारा और कहां पर यह विेषण किया जा रहा है और (6) कभी भी उस सूचना पर कार्रवाई करने के पहले ही संवेदनशील नतीजे प्रकाशित नहीं कर दिये? सीआइए का कोई भी पेशेवर अधिकारी इस पटकथा का समर्थन नहीं करेगा.
डीएनए स्रोत छिपाने की कोशिश
जून, 2011 में ‘न्यूयॉर्क टाइम्स’, ‘वाशिंगटन पोस्ट’ और पूरे पाकिस्तानी प्रेस में यह रिपोर्ट आयी कि अमीर अजीज को पूछताछ के लिए पाकिस्तान में हिरासत में लिया गया है. यह कहा गया कि वह सीआइए का मुखबिर था, जो बिन लादेन अहाते में आने-जानेवालों की जासूसी करता था. अजीज को फिर छोड़ दिया गया, पर उस पूर्व अधिकारी ने कहा कि यूएस खुफिया विभाग यह नहीं जान सका कि किसने मिशन के साथ उसकी भागीदारी की अत्यंत गोपनीय सूचना को उजागर किया. वाशिंगटन के अधिकारियों ने यह फैसला किया कि वे बिन लादेन का डीएनए लेने में अजीज की भूमिका उजागर हो जाने का जोखिम नहीं ले सकते थे. तो फिर बलि के किसी एक बकरे की जरूरत थी, जिसके लिए 48 वर्षीय पाकिस्तानी डॉक्टर शकील अफरीदी का चयन किया गया, जो कभी-कभी सीआइए की मदद किया करता था. पाकिस्तानियों द्वारा उसे मई के अंत में हिरासत में लिया गया और उस पर सीआइए की मदद के आरोप लगाये गये. पूर्व अधिकारी ने बताया,‘हम पाकिस्तानियों तक पहुंचे और उन्हें अफरीदी के पीछे लगने के लिए कहा. हमें डीएनए लेने के पूरे मामले को छिपाना था.’
जल्दी ही यह रिपोर्ट आयी कि सीआइए ने अफरीदी की मदद से एबटाबाद में एक नकली टीकाकारण कार्यक्रम चलाया, जिसका उद्देश्य बिन लादेन का डीएनए हासिल करना था, पर वह अपने उद्देश्य में विफल रहा. अफरीदी का वैध मेडिकल कार्यक्रम स्थानीय स्वास्थ्य अधिकारियों से स्वतंत्र रूप से चला, उसमें खासी वित्तीय सहायता मिली थी, जिसमें हेपेटाइटिस बी से लड़ने वाले मुफ्त टीकाकरण की पेशकश की गयी थी. पूरे क्षेत्र में इस कार्यक्रम के पोस्टर लगाये गये थे. अफरीदी पर बाद में देशद्रोह का मुकदमा चला और उसे 33 वर्षो की सजा सुनायी गयी, क्योंकि उसका संबंध एक ऐसे आतंकवादी समाचार से था, जिसे सीआइए ने प्रायोजित किया था और जिससे पाकिस्तान में देशव्यापी क्रोध की लहर व्याप्त हो गयी थी. उसके नतीजे में अन्य टीकाकरण कार्यक्रमों को भी बंद करना पड़ा, क्योंकि उन्हें भी अमेरिकी जासूसी के छद्म रूप में देखा गया.
पूर्व अधिकारी ने बताया,‘अफरीदी को लादेन मिशन के बहुत पहले एक खुफिया मिशन के लिए नियुक्त किया गया था, जिसका मकसद एबटाबाद और आसपास के क्षेत्रों में संदिग्ध आतंकवादी गतिविधियों के बारे में सूचनाएं एकत्रित करना था. टीकाकरण के बहाने ग्रामीण क्षेत्रों के संदिग्ध आतंकवादियों के रक्त के नमूने हासिल करना था.’ अफरीदी ने बिन लादेन के अहाते में रहनेवालों के ब्लड सैंपल लेने की कोई कोशिश नहीं की थी और यह रिपोर्ट कि उसने वैसा करने की कोशिश की, दरअसल अजीज को बचाने के लिए हड़बड़ी में तैयार की गयी थी, ताकि ‘तथ्य’ तैयार किये जा सकें. पूर्व अधिकारी ने कहा कि अब इसके दुष्परिणाम सामने हैं, जब ग्रामीणों के लिए चलायी गयी एक महान मानवतावादी परियोजना को एक पागलपनभरी धोखाधड़ी में बदल दिया गया. अफरीदी के साबित हो चुके दोष को बाद में पलट दिया गया, मगर वह अब भी हत्या के एक आरोप में जेल में है.
दफनाये जाने की कहानियों का सच
हमले की घोषणा करते अपने भाषण में ओबामा ने बताया कि बिन लादेन को मौत के घाट उतारने के बाद सील्स ने ‘उसके शव को अपने कब्जे में ले लिया.’ इस कथन से एक समस्या खड़ी हो गयी. शुरुआती योजना के अनुसार उसकी मौत की घोषणा एक सप्ताह बाद करनी थी और यह कहना था कि ड्रोन हमले में उसकी मौत के बाद उसके शव की पहचान डीएनए जांच के आधार पर की गयी. मगर ओबामा द्वारा यह कहे जाने पर कि उसे सील्स द्वारा मारा गया, अब हर किसी को उसका शव दिखाये जाने की अपेक्षा थी. इसके बजाय पत्रकारों को यह बताया गया कि बिन लादेन के शव को सील्स द्वारा अफगानिस्तान के जलालाबाद स्थित अमेरिकी सैन्य हवाईअड्डे पर लाया गया और वहां से उसे सीधे यूएसएस कार्ल विजन नामक विमानवाहक पोत पर ले जाया गया, जो उत्तरी अरब सागर में अपनी नियमित गश्त पर था. उसके बाद बिन लादेन को उसकी मौत के चंद घंटों बाद ही समुद्र में दफना दिया गया. 2 मई को जॉन ब्रेनन की प्रेस ब्रीफिंग के दौरान प्रेस प्रभाग को इस संबंध में चंद असुविधाजनक सवालों का सामना करना पड़ा. ये सवाल छोटे और तीखे थे, जिनके जवाब कभी नहीं दिये गये, जैसे- यह फैसला कब लिया गया कि यदि वह मारा जाये, तो उसे समुद्र में दफना दिया जायेगा? क्या यह हमेशा से इस योजना का हिस्सा था? क्या आप हमें यह बता सकते हैं कि किस तरह इसे एक अच्छा विचार माना गया? क्या आपने एक मुसलिम विशेषज्ञ से इस संबंध में विचार-विमर्श किया? क्या इस दफन की विजुअल रिकॉर्डिग मौजूद है?
जब यह अंतिम सवाल पूछा जा रहा था, तो ओबामा के प्रेस सेक्रेटरी जे कार्नी, ब्रेनन के बचाव के लिए वहां आ गये और बीच में बोल पड़े,‘हमें यहां दूसरे व्यक्तियों को भी मौका देना है.’ ब्रेनन ने इन सवालों के जवाब देते हुए कहा, ‘हमने यह सोचा कि उसे एक समुचित इसलामी रीति से दफनाने का सबसे अच्छा तरीका यह था कि उसे समुद्र में दफनाया जाये. संबंधित विशेषज्ञों से इस बारे में विचार-विमर्श किया गया. अमेरिकी सेना इसलामी रीति के अनुसार दफन करने में पूरी तरह सक्षम है.’ ब्रेनन ने इसका कोई जिक्र नहीं किया कि मुसलिम रीति के मुताबिक मृतक को एक इमाम की मौजूदगी में ही दफनाया जा सकता है और इस बात की कोई जानकारी नहीं है कि कार्ल विन्सन पर उस वक्त एक मुसलिम इमाम मौजूद था.
‘वैनिटी फेयर’ नामक पत्रिका के लिए बिन लादेन ऑपरेशन की प्रतिकृति तैयार करते वक्त मार्क बोडेन ने, जिन्होंने बहुत-से वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारियों से बातें की थीं, लिखा कि जलालाबाद में बिन लादेन के शव को साफ कर उसका फोटो लिया गया. उसके आगे की प्रक्रियाएं पोत पर की गयीं, जहां बिन लादेन के शव को फिर से नहलाया और एक सफेद कफन में लपेटा गया. 2 मई की सुबह सूरज की रोशनी में उसे दफन किये जाते वक्त नेवी के एक फोटोग्राफर ने दफनाने की प्रक्रिया की तसवीरें लीं.
बोडेन ने तसवीरों के विवरण इस तरह दिये : एक तसवीर में शव एक वजनदार कफन में लिपटा है. दूसरे में यह एक ढलवें तख्ते पर आड़ा पड़ा है, जिसमें पैर बाहर की ओर हैं. अगली तसवीर में शव पानी को छू रहा है, हालांकि उसके बाद वाली तसवीर में उसे पानी की सतह के ठीक नीचे देखा जा सकता है, जबकि चारों ओर लहरें फैल रही हैं. और अंतिम में सिर्फ चारों ओर फैलती लहरें ही देखी जा सकती हैं.
बोडेन ने कहीं भी यह दावा न करने की सावधानी बरती कि उन्होंने उन तस्वीरों को वस्तुत: स्वयं भी देखा था. उन्होंने हाल में मुझसे बातचीत के दौरान यह कहा कि उन्होंने उन्हें स्वयं नहीं देखा था. ‘जब मैं स्वयं कोई चीज नहीं देख सकता, तो मैं निराश हो जाता हूं. पर मैंने एक ऐसे व्यक्ति से बातें कीं, जिस पर मैं यकीन करता हूं और उसने ये तसवीरें स्वयं देखी थीं.’ बोडेन का कथन समुद्र में तथाकथित दफन के संबंध में और भी सवाल खड़े करता है, जिसे लेकर सूचना की स्वतंत्रता एक्ट के तहत आवेदनों की बाढ़ आ गयी थी, मगर उनका कोई भी उत्तर नहीं दिया गया. उनमें से एक में इन तसवीरों को दिखाने की मांग की गयी थी. पेंटागन ने यह जवाब दिया कि सभी उपलब्ध रिकॉर्ड की छानबीन से ऐसा कोई सबूत नहीं मिलता कि दफन की कोई तसवीर भी ली गयी थी. हमले से संबद्ध अन्य मुद्दों के संबंध में दिये गये आवेदनों का भी कोई नतीजा नहीं निकल सका, जिसकी वजह तब साफ हुई, जब पेंटागन ने इस आरोप के संबंध में एक जांच बिठायी कि ओबामा प्रशासन ने फिल्म जीरो डार्क थर्टी के निर्माताओं को इन गोपनीय दस्तावेजों तक पहुंच की अनुमति दे दी. पेंटागन रिपोर्ट में, जिसे जून, 2013 में ऑनलाइन कर दिया गया, यह बताया गया था कि एडमिरल मैकरैवेन ने यह आदेश दिया कि हमले से संबद्ध सभी फाइलों को सभी सैन्य कंप्यूटरों से मिटाकर सीआइए को स्थानांतरित कर दिया जाये, जहां वे सूचना की स्वतंत्रता एक्ट के क्षेत्र से बाहर हो जायेंगी. मैकरैवेन के आदेश का यह मतलब था कि कोई भी बाहरी व्यक्ति कार्ल विन्सन के गैर-गोपनीय लॉग्स (डायरी) तक नहीं पहुंच सकता. नेवी में लॉग्स को अत्यंत अहम माना जाता है, और हवाई ऑपरेशनों, डेक, इंजीनियरिंग विभाग, मेडिकल ऑफिस तथा कमांड सूचना समेत नियंत्रण के लिए उन्हें अलग-अलग संधारित किया जाता है, जिनमें रोजाना के घटनाक्रम को दर्ज किया जाता है. यदि कार्ल विन्सन पर समुद्र में दफन की क्रिया हुई होगी, तो उसके विवरण उसमें अवश्य दर्ज होंगे.
इस दफन को लेकर कार्ल विन्सन के नाविकों में कोई गपबाजी नहीं हुई थी. छह महीनों की अपनी सामुद्रिक तैनाती को जून, 2011 में पूरा कर जब इस पोत ने कैलिफोर्निया स्थित कोरोनाडो के अपने गृह अड्डे पर लंगर डाले, तो इस बेड़े के कमांडर रियर एडमिरल सैम्युएल पेरेज ने पत्रकारों से कहा कि इसके क्रू को दफन के विषय में बातें करने की मनाही है. कार्ल विन्सन के कप्तान कैप्टन ब्रूस लिंडसे ने पत्रकारों से कहा कि वे इस विषय में बातचीत करने में असमर्थ हैं. कार्ल विन्सन के एक नाविक केमरून शार्ट ने इलिनोइस, डनविले के ‘द कमर्शियल न्यूज’ को बताया कि हमें दफन के विषय में कुछ भी नहीं बताया गया. उक्त अखब़ार के अनुसार,‘उसे जो कुछ भी पता है, उसे उसने अखबारों में ही देखा है.’ पेंटागन ने ‘एसोसिएटेड प्रेस’ को कई इमेल जरूर भेजे, जिनमें से एक में रियर एडमिरल चाल्र्स गोते ने यह रिपोर्ट किया कि इसलामी दफन की पारंपरिक रीति का पालन किया गया. पोत के किसी भी नाविक को इसके अवलोकन की इजाजत नहीं दी गयी. लेकिन इसके कोई संकेत नहीं दिये गये कि किसने शव को नहलाया और उसमें कफन लपेटा तथा किस अरबीभाषी ने जरूरी रीतियों को अंजाम दिया.
हमले के कुछ सप्ताह के भीतर ही विशिष्ट ऑपरेशन कमांड के दो परामर्शियों ने, जिनकी वर्तमान खुफिया जानकारियों तक पहुंच है, मुङो बताया कि कार्ल विन्सन पर कोई अंत्येष्टि नहीं हुई. एक परामर्शी ने बताया कि बिन लादेन के शव की तसवीर लेने तथा उसकी पहचान का काम जलालाबाद पहुंचने के बाद हुआ. परामर्शी ने आगे बताया,‘उस बिंदु पर आकर सीआइए ने शव पर अपना नियंत्रण कर लिया.’ यह बताया गया कि उसे कार्ल विन्सन पर ले जाना था. दूसरा परामर्शी भी इससे सहमत था कि समुद्र में कुछ भी दफन नहीं हुआ.’ उसने आगे बताया कि बिन लादेन की हत्या एक राजनीतिक नाटक था, जिसकी पटकथा ओबामा की सैन्य विश्वसनीयता चमकाने के लिए लिखी गयी थी. सील्स को यह उम्मीद करनी ही चाहिए थी कि इसके राजनीतिक लाभ लिये जायेंगे. ‘एक राजनेता के लिए यह लोभ संवरण कर पाना असंभव हो जाता है. बिन लादेन एक फायदेमंद संपत्ति बन गया.’ इस साल की शुरुआत में दूसरे परामर्शी से बातें करते हुए मैं एक बार फिर समुद्र में दफन के मुद्दे पर आ गया. वह परामर्शी हंसा और उसने कहा,‘आपका मतलब है कि वह पानी में दफन नहीं हुआ?’ पूर्व अधिकारी ने कहा कि एक दूसरी समस्या भी थी. सील टीम के कुछ सदस्यों ने अपने साथियों और दूसरों से यह शेखी बघारी कि उन्होंने बिन लादेन के शरीर को रायफल की गोलियों से चीर डाला था. सिर (जिसमें कुछ ही गोलियों के छिद्र थे) सहित उसके अवशेष को उन्होंने एक बॉडीबैग में डाला और हेलीकॉप्टर से जलालाबाद वापस आने के क्रम में शव के कुछ हिस्से उन्होंने हिंदूकुश के पहाड़ों पर फेंक दिये या फिर उन्होंने वैसा दावा किया. उस पूर्व अधिकारी ने बताया कि उस वक्त तक सील्स को इस बात की जरा भी भनक न थी कि ओबामा इस हमले को कुछ ही घंटों के भीतर सार्वजनिक कर देंगे. यदि राष्ट्रपति पहले से सोची हुई कहानी के साथ आगे बढ़े होते, तो उसमें अंत्येष्टि की कोई जरूरत ही नहीं पड़ती. किंतु जब एक बार उस कहानी को छोड़ कर मौत को सार्वजनिक कर दिया गया, तो व्हाइट हाउस के सामने एक गंभीर समस्या आ खड़ी हुई कि ‘शव कहां है?’
सारी दुनिया के लिए यह राज खुल चुका है कि अमेरिका के सैनिकों ने बिन लादेन को एबटाबाद में मार गिराया. तो फिर क्या किया जाये? हमें एक कामचलाऊ शव की जरूरत है, ताकि हम यह कह सकें कि हमने डीएनए विश्लेषण के जरिये बिन लादेन की पहचान की. नेवी के अधिकारीगण ‘समुद्र में दफनाने’ का उपाय सुझाते हैं. हां, यह ठीक रहेगा. शव सामने करने की जरूरत ही नहीं. शरीया कानूनों का पालन करते हुए सम्मानजनक दफन की तफसील सार्वजनिक कर दी जाती है. मगर दफन की पुष्टि करनेवाले वैसे कागजात तक पहुंच को, जिनका संबंध सूचना की स्वतंत्रता से है, राष्ट्रीय सुरक्षा की वजहों से रोक दिया जाता है. यह एक त्रुटिपूर्ण ढंग से बुनी गयी इस कहानी का उत्कृष्ट खुलासा है. यह कहानी एक तात्कालिक समस्या का समाधान तो करती है, मगर इसमें जरा भी गहरे जाने पर यह पता चलता है कि इसका कोई भी ‘बैकअप सपोर्ट’ नहीं है. शुरू में शव को समुद्र तक ले जाने की कोई योजना नहीं थी और बिन लादेन का समुद्र में कोई दफन नहीं हुआ. उस पूर्व अधिकारी ने बताया कि यदि सील्स द्वारा दिये गये विवरण पर यकीन किया जाये, तो बिन लादेन के शरीर का वैसे भी ज्यादा कुछ ऐसा नहीं बचा था, जिसे समुद्र में डाला जाता.
पकिस्तान की प्रतिक्रिया
यह अपरिहार्य था कि ओबामा प्रशासन के झूठ, गलतबयानी एवं धोखाधड़ी की प्रतिक्रियाएं होतीं. पूर्व अधिकारी ने कहा,‘हमें हासिल सहयोग में हम चार वर्ष पीछे चले गये, क्योंकि आतंकरोधी सैन्य सहयोग के लिए हम पर एक बार फिर से विश्वास जमाने में पाकिस्तानियों को इतनी ही अवधि लग गयी, जबकि सारी दुनिया में आतंकवाद बढ़ता चला गया. पाकिस्तानियों ने ऐसा महसूस किया कि ओबामा ने उन्हें कहीं का न छोड़ा. अब कहीं जाकर एक बार फिर वे हमारे साथ आ रहे हैं, क्योंकि वहां सिर उठाता आइएसआइएस का खतरा कहीं ज्यादा बड़ा है और बिन लादेन का मामला इतना पीछे छूट चुका है कि अब जनरल दुर्रानी जैसा कोई और व्यक्ति सामने आकर उसे उठाने में समर्थ नहीं रहा.’