महज एक शौचालय के लिए शादी का बंधन तोड़ कर पति के घर से बहू चली गयी
शौचालय नहीं होने के कारण अपने पति से तलाक लेने के बाद सुनीता गांव एवं समाज की लड़कियों को जागरूक करने का संकल्प लिया है. मीडिया को उसने बताया कि मेरे ससुराल के लोग गरीब थे,पर जागरूक नहीं थे.
उस गांव के कई लोगों के घर में शौचालय नहीं है. गांव की महिलाएं खुले में शौच करने को विवश हैं. पहाड़पुर गांव को निर्मल ग्राम का दर्जा मिल चुका है, लेकिन यहां स्वच्छता के प्रति कभी लोगों को जागरूक किया ही नहीं गया.
जंदाहा/महनार : अपनी ससुराल से सदा के लिए नाता तोड़ कर लौटी सुनीता की हिम्मत को अधिकतर लोगों ने सराहा. साथ ही उसके गांव की अन्य लड़कियां उससे मिल कर उसके कदम-से-कदम मिला कर चलने को तैयार हो गयीं. वहीं दूसरी ओर धीरज अपनी गरीबी तले दबा जा रहा है.
महज एक शौचालय के लिए उसके घर से बहू चली गयी. दो वक्त की रोटी किसी तरह जुटाने वाला युवक हजारों की लागत से शौचालय नहीं बना पाया, लेकिन सुनीता ने सिर्फ अपनी समस्या के लिए यह कदम नहीं उठाया. वह तो वैसी सभी महिलाओं के लिए आगे आयी, जो आज भी खुले में शौच जाती हैं. इसके बाद जिला प्रशासन की ओर से ठोस पहल होनी चाहिए. वैसे सभी गांव में गरीबों को शौचालय की व्यवस्था हो, जहां लोग खुले में शौच को मजबूर हैं.
गरीब एवं लाचार परिवार : धीरज के पिता अच्छे लाल का नाम बीपीएल में है, लेकिन उसके पिता की मौत हो चुकी है. उसके बाद आज तक धीरज का नाम बीपीएल में जुड़ नहीं पाया.
इसके कारण उसे सरकारी लाभ नहीं मिला. परंतु गांव के मुखिया एवं अन्य प्रतिनिधि ने कभी इस परिवार का हाल जानने की कोशिश नहीं की. पिता के नाम पर बहुत पहले इंदिरा आवास के तहत मकान मिला था. वह भी सिर्फ एक कमरा ही बन पाया. उसके बाद इस परिवार को कुछ नहीं है. पूरी तरह भूमि हीन है. घर के बाहर चूल्हा जलता है. धीरज तीन भाई है और एक कमरा है. किस तरह की जिंदगी कट रही है, यह सोचने की बात है. इसके लिए स्थानीय प्रतिनिधि से लेकर जिला प्रशासन तक जिम्मेवार है. ऐसे परिवार की संख्या जिले में अनगिनत है.
सुनीता का अगला कदम क्या होगा : फिलहाल सुनीता अभी तो कुछ दिन तनाव मुक्त होने के लिए अपने मायके में माता-पिता के साथ समय गुजारेगी. उसके बाद गांव-घर की युवतियों को जागरूक करने को कदम बढ़ायेगी. उसने बताया कि ससुराल में गरीबी ङोल कर भी हम लड़कियां किसी तरह रह सकती हैं.
लेकिन बगैर शौचालय रहना वाजिब नहीं है. आखिर कब तक घर की महिलाएं असामाजिक तत्वों का शिकार होती रहेगी. किसी को तो आगे आना ही होगा. सुनीता के माता-पिता उसकी दूसरी शादी के बारे में सोच रहे हैं. मगर अभी सुनीता इस फैसले पर कुछ नहीं कहना चाहती.
सुनीता को जाते ही पहुंचे प्रशासनिक अधिकारी: महज एक शौचालय के लिए पहाड़पुर गांव से एक विवाहिता अपने मायके लौट गयी. यह खबर जैसे ही मीडिया एवं आस पास के इलाके में फैली, वहां प्रशासन के कई अधिकारी आने लगे. पंचायत प्रतिनिधि भी दौरा करने लगे. लेकिन तब तक समय गुजर चुका था. प्रतिनिधि एवं अधिकारी ने यह क र पल्ला झाड़ लिया कि इस परिवार ने तो शौचालय के लिए कभी शिकायत ही नहीं की. क्या, जो शिकायत करता है, उसे ही सरकारी योजनाओं का लाभ मिलता है.
क्या कहते हैं प्रशासनिक अधिकारी
इस परिवार के किसी भी सदस्य ने कोई शिकायत नहीं की, जिसके कारण शौचालय एवं चापाकल से वंचित रह गये. लेकिन अब अविलंब ही इस परिवार को सारी सुविधाएं उपलब्ध करायी जायेंगी.
मनीष कुमार, एसडीओ,पीएचइडी
क्या कहता है युवक
मेरे पास महज एक कमरा है. मैं अकेले मजदूरी कर पूरे परिवार की देख-भाल करता हूं. पिता की मौत हो चुकी है. सरकारी लाभ भी नहीं मिल पा रहा है. मैं काफ ी मजबूर हो चुका हुं. सुनीता के साथ कोई दूसरा विवाद नहीं है. शौचालय नहीं होने के कारण ही वह नाराज थी और हम दोनों ने अपनी मर्जी से तलाक लिया है.
धीरज कुमार, महनार
क्या कहती है सुनीता
मुङो अपनी ससुराल से दूसरा कोई विवाद नहीं था. खुले में शौच जाने में वहां बहुत परेशानी होती थी. मुङो ही नहीं उस गांव की अनेक महिलाएं है, जो इस जटिल समस्या से जूझ रही है. प्रशासन को पहाड़पुर गांव की समस्या से अवगत हो कर उसका समाधान करना चाहिए.
सुनीता कुमारी, जंदाहा
क्या कहती हैं मुखिया
गांव के किसी व्यक्ति ने भी इस समस्या को हमलोगों तक नहीं पहुंचाया, जिसके कारण सुनीता को ससुराल छोड़नी पड़ी. धीरज ने भी कभी अपनी समस्या नहीं बतायी.
सकिला देवी, मुखिया