हाल में देश का चालू खाता घाटा जीडीपी के चार फीसदी तक पहुंच गया था और देश में पर्याप्त पूंजी प्रवाह नहीं होने से डॉलर के मुकाबले रुपया कमजोर हो गया. किसी देश के चालू खाता घाटा यानी करेंट एकाउंट डेफिसिट (सीएडी) से यह जानकारी मिलती है कि उसने अपने देश से वस्तुओं और सेवाओं के निर्यात की तुलना में कितनी तादाद में आयात किया है. जरूरी नहीं कि चालू खाता घाटा किसी राष्ट्र के लिए नुकसानदेह ही हो.
विकासशील देशों में उत्पादकता बढ़ाने और आनेवाले समय में निर्यात को बढ़ाने के मकसद से शॉर्ट टर्म में चालू खाता घाटा हो सकता है. इसमें फंडिंग पोर्टफोलियो निवेश, प्रत्यक्ष विदेशी निवेश और एनआरआइ डिपॉजिट जैसी स्कीमों के तहत किया जाता है. चालू खाता घाटा को वित्त मुहैया कराने के लिए पर्याप्त संसाधनों नहीं होने की दशा में उस देश की मुद्रा की कीमत कम हो जाती है. इसलिए इससे निबटने का सबसे बेहतर तरीका दीर्घकालीन विदेशी निवेश को माना जाता है. पोर्टफोलियो निवेश से इसके गड़बड़ाने की आशंका रहती है.