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देश में हर घंटे एक दहेज हत्या

कहते हैं आंकड़े * 2007-11 के बीच दहेज हत्याओं के मामलों में तेजी *गहराई तक फैली है सामाजिक व्यवस्था * कानून संशोधन के बावजूद नहीं दिख रहा असर *देशभर में 2012 में दहेज हत्या के 8233 * मामले सामने आये राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के हैं ये आंकड़ेनयी दिल्ली : देश में औसतन हर एक […]

कहते हैं आंकड़े

* 2007-11 के बीच दहेज हत्याओं के मामलों में तेजी

*गहराई तक फैली है सामाजिक व्यवस्था

* कानून संशोधन के बावजूद नहीं दिख रहा असर

*देशभर में 2012 में दहेज हत्या के 8233

* मामले सामने आये

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के हैं ये आंकड़े

नयी दिल्ली : देश में औसतन हर एक घंटे में एक महिला दहेज संबंधी कारणों से मौत का शिकार होती है और वर्ष 2007 से 2011 के बीच इस प्रकार के मामलों में काफी वृद्धि देखी गयी है. राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़े बताते हैं कि विभिन्न राज्यों से वर्ष 2012 में दहेज हत्या के 8233 मामले सामने आये. आंकड़ों का औसत बताता है कि प्रत्येक घंटे में एक महिला दहेज की बलि चढ़ रही है. महिलाओं के खिलाफ अपराधों की इस श्रेणी के तहत वर्ष 2011 में हुई मौतों की संख्या 8618 थी, लेकिन कुल दोष सिद्धि दर 35. 8 फीसदी थी, जो वर्ष 2012 में दर्ज मामलों में 32 फीसदी दोष सिद्धि दर से थोड़ा ही अधिक थी.

रिकॉर्ड कहता है कि वर्ष 2007 से 2011 के बीच देश में दहेज हत्याओं के मामलों में तेजी आयी है. वर्ष 2007 में ऐसे 8093 मामले दर्ज हुए, लेकिन वर्ष 2008 और 2009 में यह आंकड़ा क्रमश: 8172 और 8383 था. एनसीआरबी के अनुसार, वर्ष 2010 में इस प्रकार की 8391 मौतें दर्ज की गयीं. एनसीआरबी राष्ट्रीय स्तर पर आपराधिक आंकड़ों का संग्रहण करने वाली केंद्रीय एजेंसी है. इस प्रकार के अपराधों से निबटनेवाले पुलिस अधिकारी मामलों में वृद्धि के लिए विभिन्न कारण गिनाते हैं.

दिल्ली पुलिस की अतिरिक्त पुलिस आयुक्त (विशेष महिला एवं बाल शाखा) सुमन नलवा कहती हैं कि यह समस्या केवल निचले या मध्यम तबके तक ही सीमित नहीं है. वह कहती हैं, उच्च सामाजिक आर्र्थिक ढांचे में भी इस प्रकार के अपराध हो रहे हैं. हमारे समाज में उच्च वर्ग तक दहेज को ना नहीं कहता. यह हमारी सामाजिक व्यवस्था में गहरे तक फैला हुआ है.

नहीं मिल पा रहा कानून का लाभ

1961 का दहेज निषेध अधिनियम विवाह के लिए दहेज की अपील, भुगतान या दहेज स्वीकार करने का निषेध करता है और यहां दहेज को शादी के लिए पूर्व शर्त के रूप में या मांगे गये उपहार के रूप में दिखाया गया है. नलवा ने कहा, मौजूदा कानून में कई खामियां हैं और इसे अधिक कड़ा किये जाने की जरूरत है.

1983 में इस कानून में किये गये संशोधन के बावजूद इसके अच्छे परिणाम मिलने अभी बाकी हैं. हालांकि उच्चतम न्यायालय की वरिष्ठ अधिवक्ता कामिनी जायसवाल कहती हैं कि पुलिस द्वारा शुरुआती चरण में ही मामले की उचित तरीके से जांच नहीं करने के कारण न्यायिक कार्यवाही की प्रक्रिया को धीमा कर देती है. वह कहती हैं, ‘ हमें ऐसे मामलों में जल्द दोष सिद्धि की जरुरत है. हमारी न्यायकि प्रक्रिया काफी धीमी हो गयी. पुलिस शुरुआत में मामला दर्ज नहीं करती.

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