दक्षा वैदकर
आज हम सभी की एक ही शिकायत है कि सामनेवाला मेरी बात नहीं सुनता. मैं जो कहता हूं, वो करता नहीं. मैं उसे अच्छी बात सिखा रहा हूं, लेकिन वो सीखना चाहता ही नहीं. मैं ऐसा करता हूं, तो वह वैसा करता है..
दिन भर यही सब बातें हम अपने आसपास के लोगों के बारे में सोचते हैं और तनाव लेते जाते हैं. हम चाहते हैं कि सामनेवाला बिल्कुल हमारी तरह हो जाये. हमें किताबें पढ़ना पसंद हैं, तो वह भी कैंडी क्रश छोड़ कर किताबें पढ़ने लगे. अब सुधा आंटी की ही बात ले लो. वे सुबह पांच बजे उठती हैं और घर का काम पूरा कर 9 बजे तक फ्री हो जाती है. वहीं उनकी बेटी पूजा, जो जॉब करती है, 9:30 बजे उठती है, भाग-भाग कर तैयार होती है और नाश्ता कर ऑफिस चली जाती है. दोनों के बीच में इसी बात को लेकर रोज झगड़ा होता है.
सुधा आंटी के पास सुबह उठने के अपने तर्क हैं और पूजा के पास देर तक सोने के अपने तर्क हैं. दोनों को ही यह लगता है कि वे बिल्कुल सही हैं. अब ऐसे में जब सुधा आंटी बार-बार पूजा को टोकती है और कहती है कि तुम देर से उठती है, हड़बड़ी में नाश्ता करती हो, आखिर देर रात तक जागने की क्या वजह है, ये कैसे कपड़े पहने हैं.. तो पूजा की तरफ वे नेगेटिव एनर्जी भेजती हैं. ये नेगेटिव एनर्जी पूजा को महसूस होती है और बदले में वह भी मम्मी को गलत ठहराना शुरू कर देती है. उसके पास भी अपने तर्क होते हैं. इस तरह दोनों के बीच का अंतर बढ़ता जाता है.
अब दूसरा उदाहरण लें. क्या आपने कभी डॉगी पालनेवाले लोगों पर गौर किया है? या कभी खुद पाला है? डॉगी पालनेवाले लोग हर डॉगी को उसकी नस्ल के हिसाब से ट्रीट करते हैं. उन्हें पता होता है कि किस नस्ल के डॉगी काक्या स्वभाव होता है. किसे जल्दी गुस्सा आता है और किसे नहीं. किसे हाथ से खिलाना पड़ता है और किसे खाना खाते वक्त डिस्टर्बेस पसंद नहीं. इन स्वभावों में विविधता के बावजूद हम सभी प्रकार के डॉगी को क्यों पसंद करते हैं? जब हम डॉगी को उनके स्वभाव के साथ पसंद करते हैं, अपनाते हैं, तो इनसानों को क्यों नहीं?
बात पते की..
– आपने आसपास जो व्यक्ति जैसा है, उसे वैसा ही अपनाना सीखें. उन्हें अपने हिसाब से तोड़ने-मरोड़ने और बदलने की कोशिश न करें.
– हर आत्मा के अपने अलग संस्कार होते हैं. स्वभाव होता है. उसके हिसाब से वह बिल्कुल सही है. उसके पास इसके लिए बेहतरीन तर्क भी हैं.