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हर कंपनी चलाये इस तरह की स्कीम

दक्षा वैदकर ऑ फिस में तरह-तरह के लोग होते हैं. कुछ अच्छे समृद्ध परिवारों से होते हैं, तो कुछ की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं होती. ऐसे साथियों की मदद के लिए चंद कंपनियां कुछ खास स्कीम चलाती हैं. इसे ‘सुविधा’ भी कहा जा सकता है. यह सुविधा जाहिर करती है कि कंपनी अपने कर्मचारियों के […]

दक्षा वैदकर
ऑ फिस में तरह-तरह के लोग होते हैं. कुछ अच्छे समृद्ध परिवारों से होते हैं, तो कुछ की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं होती. ऐसे साथियों की मदद के लिए चंद कंपनियां कुछ खास स्कीम चलाती हैं. इसे ‘सुविधा’ भी कहा जा सकता है. यह सुविधा जाहिर करती है कि कंपनी अपने कर्मचारियों के साथ किस कदर जुड़ी हुई है.
वह उन्हें परिवार का सदस्य मानती है. एक साथी ने बताया कि उनकी पुरानी कंपनी में हर महीने लोगों की सैलरी से चंद रुपये काट लिये जाते थे. अगर किसी की सैलरी दस हजार है, तो 50 रुपये कट जाते और 20 हजार है, तो 100 रुपये. इस तरह सैलरी के मुताबिक रुपये कटते थे.
ये रुपये एक खास कोष में जमा होते जाते थे और जब कभी कंपनी में ऐसे किसी कर्मचारी को रुपयों की जरूरत पड़ती, जिसकी आर्थिक स्थिति बहुत खराब है, तो जरूरत के मुताबिक उसे वे रुपये दे दिये जाते. एक बार एक महिला कर्मचारी के पिता को कैंसर हो गया. उस महिला के पास बिल्कुल रुपये नहीं थे. पूरे परिवार का खर्चा वह अकेली चलाती थी.
तब कंपनी ने उन रुपयों से उसके पिताजी का इलाज करवाया. बदले में महिला कर्मचारी को कुछ भी नहीं देना था. ऐसा ही एक अन्य कर्मचारी के साथ हुआ. उन्हें अपनी बेटी की शादी के लिए रुपयों की जरूरत थी, लेकिन उन्हें लोन नहीं मिल रहा था और न ही कोई उधार दे रहा था. हालांकि, उनकी स्थिति थोड़ी ठीक थी. तब कंपनी में उन्होंने एप्लीकेशन दिया और वे जमा किये गये रुपये उन्हें लोन स्वरूप दे दिये गये.
ये रुपये उन्होंने धीरे-धीरे कंपनी को लौटाये. हर महीने सैलरी से कुछ रुपये कट जाया करते और वह कटे रुपये वापस उस कोष में जमा हो जाते. इस तरह रकम हासिल होने से उनकी बेटी की शादी भी बेहद आसानी से हो गयी.
हम इस तरह की सुविधा हर कंपनी में शुरू कर सकते हैं. इस तरह मदद कर के हम किसी परिवार को भी बिखरने से बचा सकते हैं. ऐसा इसलिए क्योंकि आज ऐसे कई केसेज हम टीवी या अखबारों के माध्यम से देखते-पढ़ते हैं, जिसमें तंगी की वजह से, कर्ज की वजह से किसी भले इंसान ने आत्महत्या कर ली हो.
बात पते की..
– यह सुविधा जाहिर करती है कि कंपनी के अधिकारियों के दिल में कर्मचारियों के प्रति संवेदनाएं जिंदा हैं. यह विश्वास आज बहुत जरूरी है.
– जब कंपनी जरूरत पड़ने पर कर्मचारियों की इस तरह मदद करती है, तो सभी कर्मचारियों के दिल में कंपनी के प्रति सम्मान आना स्वाभाविक है.

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