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पेशहैंइपीएफऔरइपीएससेजुड़ीसभीजिज्ञासाओंकेजवाब एक नजर में नियोक्ता से कर्मचारी के बराबर ही अंशदान देने की उम्मीद की जाती है. लेकिन ऐसा करने के लिए वे कानूनन बाध्य नहीं हैं. सिर्फ सुनिश्चित आयवाली सरकारी प्रतिभूतियों में आपका पैसा लगाया जाता है. इक्विटी (शेयरों) में निवेश की अनुमति नहीं है. ब्याज दर हर साल केंद्र सरकार की सिफारिश के […]

पेशहैंइपीएफऔरइपीएससेजुड़ीसभीजिज्ञासाओंकेजवाब

एक नजर में

नियोक्ता से कर्मचारी के बराबर ही अंशदान देने की उम्मीद की जाती है. लेकिन ऐसा करने के लिए वे कानूनन बाध्य नहीं हैं.

सिर्फ सुनिश्चित आयवाली सरकारी प्रतिभूतियों में आपका पैसा लगाया जाता है. इक्विटी (शेयरों) में निवेश की अनुमति नहीं है.

ब्याज दर हर साल केंद्र सरकार की सिफारिश के मुताबिक घोषित की जाती है. इसमें इपीएफओ के ट्रस्टियों के बोर्ड से सलाह ली जाती है.

धारा 80सी के तहत एक लाख रुपये तक के अंशदान को करयोग्य आय से घटाया जा सकता है. नियोक्ता का अंशदान भी करमुक्त होता है.

इपीएफ के अंशदाता निश्चित मकसदों के लिए एक बार या समय-समय पर निकासी कर सकते हैं. इसके लिए शर्तो को पूरा करना जरूरी.

इपीएफ में अंशदान पर आपको जो भी कर छूट मिली हुई है, पांच साल से पूर्व पैसा निकालने पर वह सब वापस करनी होगी.

इपीएफओ की वेबसाइट से बैलेंस पता कर सकते हैं. इ-पासबुक भी डाउनलोड कर सकते हैं.

क्या है इपीएफ? क्या है इपीएस?

इपीएफ (कर्मचारी भविष्य निधि योजना 1952) और इपीएस (कर्मचारी पेंशन योजना 1955) सेवानिवृत्ति के लिए दो अलग-अलग बचत योजनाएं हैं. जो ‘कर्मचारी भविष्य निधि और विभिन्न प्रावधान अधिनियम, 1952’ के तहत आती हैं. ये वेतनभोगी कर्मचारियों के लिए हैं (यहां बता दें कि सरकारी और अर्ध-सरकारी कर्मचारी ‘भविष्य निधि अधिनियम, 1925’ के तहत आते हैं).

क्या सभी कर्मचारियों के लिए इपीएफ और इपीएस में अंशदान करना बाध्यकारी है?

हां, यह बाध्यकारी है. हालांकि, जिन कर्मचारियों का मूल वेतन 6500 रुपये से ज्यादा है, उनके पास इस योजना से बाहर रहने का विकल्प है.

इपीएफ और इपीएस में कुल कितना अंशदान दिया जाता है?

आम तौर पर, नियोक्ता और कर्मचारी दोनों मूल वेतन (जोड़ महंगाई भत्ता, अगर है) का 12 फीसदी अंशदान करते हैं. कर्मचारी का पूरा अंशदान इपीएफ में जाता है, जबकि नियोक्ता के अंशदान के 12 फीसदी में से 8.33 फीसदी इपीएस में जाता है और बाकी का 3.67 फीसदी इपीएफ में जाता है. केंद्र सरकार इपीएस में 1.16 फीसदी बतौर सब्सिडी अंशदान देती है. इस तरह इपीएस में जानेवाला कुल अंशदान मूल वेतन का 9.49 फीसदी हो जाता है. लेकिन, अगर आपका मूल वेतन 6500 रुपये से ज्यादा है, तो इपीएस में अंशदान 6500 रुपये के 8.33 फीसदी तक ही सीमित रहेगा, जो 541 रुपये बनता है. नियोक्ता के अंशदान का बाकी हिस्सा इपीएफ में जाता है.

क्या मैं इपीएफ में वैधानिक सीमा से ज्यादा अंशदान कर सकता हूं?

हां, आप स्वैच्छिक भविष्य निधि (वीपीएफ) जमा करके भविष्य निधि में अतिरिक्त राशि (12 फीसदी के अतिरिक्त) का अंशदान कर सकते हैं. हालांकि, नियोक्ता इसके अनुरूप अंशदान करने के लिए बाध्य नहीं है.

इपीएफ और इपीएस पर लागू ब्याज दरें क्या हैं?

इपीएफ पर हर साल ब्याज दर सरकार तय करती है. वित्तीय वर्ष 2012-13 के लिए यह 8.5 फीसदी है. इससे पूर्व यह 8.25 फीसदी थी. वहीं, इपीएस के पेंशन योजना होने के नाते उस पर ब्याज नहीं मिलता.

इपीएफ और इपीएस पर लागू ब्याज दरें क्या हैं?

नियोक्ता का अंशदान करमुक्त होता है. वहीं आपका अंशदान करयोग्य होता है, लेकिन उसे आयकर कानून की धारा 80सी के तहत लाभ मिलता है. यानी, आपके अंशदान की रकम आपकी आय में से घटाने के योग्य होती है.

क्या परिपक्वता से पहले निकासी संभव है?

हां, इपीएफ में शादी, गंभीर बीमारी, उच्च शिक्षा, घर खरीदने या बनाने आदि के लिए आंशिक निकासी की जा सकती है.

क्या इपीएफ खाते में बैलेंस ऑनलाइन जाना जा सकता है?

जी हां, आप इपीएफओ की वेबसाइट पर जाकर बैलेंस जान सकते हैं. खुद को मेंबर पोर्टल पर पंजीकृत कर अपनी पासबुक भी डाउनलोड कर सकते हैं. इसके अलावा क्लेम स्टैटस भी ऑनलाइन जाना जा सकता है.

कर्मचारी को पेंशन कब मिलनी शुरू होती है?

कर्मचारी को इपीएस के तहत कम से कम 10 साल की सेवा पूरी करने के बाद ही पेंशन मिल सकती है, 50 या 58 साल का होने पर. 50 साल से पूर्व किसी पेंशन का भुगतान नहीं किया जाता है. 50 साल की उम्र के बाद पेंशन ली जा सकती है, लेकिन 58 की उम्र से पहले, 58 का होने में जितने साल बाकी हैं, उनके लिए हर साल चार फीसदी की दर से कटौती लागू की जायेगी. मृत्य या विकलांगता की स्थिति में ऊपर बतायी गयीं पाबंदियां लागू नहीं होंगी.

पेंशन कितने समय तक मिलेगी?

पेंशन जिंदगीभर के लिए होती है. सदस्य की मृत्यु के बाद उसके परिवार के लोग पेंशन के हकदार होंगे.

मासिक पेंशन की गणना का सूत्र क्या है?

इपीएस के तहत, मासिक पेंशन ‘पेंशनयोग्य सेवा’ और ‘पेंशनयोग्य वेतन’ के आधार पर तय की जाती है. इसका सूत्र इस प्रकार है :

मासिक पेंशन = (पेंशनयोग्य वेतन गुणा पेंशनयोग्य सेवा)/70

पेंशनयोग्य वेतन : इस योजना से निकलने के ठीक 12 माह पहले किया जानेवाला औसत अंशदान वेतन पेंशनयोग्य वेतन कहलाता है. अमूमन यह 6500 रुपये प्रतिमाह तक सीमित होता है, जब तक कि अनुमति लेकर नियोक्ता द्वारा सुनिश्चित अतिरिक्त

अंशदान न किया जाये.

पेंशनयोग्य सेवा : यह सदस्य द्वारा दी गयी सेवा की अवधि है, जिस दौरान अंशदान किया गया है. यह 35 साल से ज्यादा नहीं हो सकती.

इपीएस के तहत अधिकतम कितनी पेंशन मिल सकती है?

35 साल की अधिकतम सेवा अवधि पर गणना की जाये, तो पेंशन के मौजूदा फारमूले के मुताबिक अधिकतम पेंशन प्रतिमाह 3250 रुपये होगी.

क्या पेंशन को पूर्ण या आंशिक रूप से एकमुश्त नकद में बदला (कम्यूशन) जा सकता है?

पहले एक तिहाई मासिक पेंशन को एकमुश्त नकद में बदला जा सकता था. यह मूल मासिक पेंशन के 100 गुना के बराबर होती थी. लेकिन, 26 सितंबर 2008 से लागू संशोधन के बाद इस पर रोक लगा दी गयी है.

क्या इपीएफ और विविध प्रावधान अधिनियम के तहत कोई अन्य लाभ भी है?

हां, पीएफ अधिनियम के तहत इंप्लायीज डिपॉजिट लिंक्ड इंश्योरेंस (इडीएलआइ) योजना भी है जो पीएफ सदस्यों को जीवन बीमा कवर उपलब्ध कराती है. इसका खर्च नियोक्ता द्वारा वहन किया जाता है, लेकिन इस वैधानिक योजना के तहत बीमा राशि बहुत कम होती है. अधिकतम बीमा राशि महज 60 हजार रुपये है. इसलिए बहुत से नियोक्ता दूसरी समूह बीमा योजना लेकर इडीएलआइ से बाहर रहने का विकल्प चुनते हैं.

क्या नौकरी बदलते समय इपीएफ खाते को ट्रांसफर आवश्यक है? नौकरी बदलने पर इपीएस का क्या होता है? क्या कोई पूरी राशि की निकासी कर सकता है?

हां, नौकरी बदलते समय इपीएफ खाते को ट्रांसफर कराना कानूनन जरूरी है. लेकिन बहुत से लोग खाता ट्रांसफर कराने के बजाय पैसा निकाल लेते हैं. इपीएस के मामले में, अगर आपकी सेवा अवधि 10 साल से कम है, तो आपके सामने अपना पैसा निकाल लेने या फिर ‘स्कीम सर्टिफिकेट’ हासिल कर उसे ट्रांसफर कराने का विकल्प है. लेकिन अगर सेवा अवधि को 10 साल पूरे हो गये हैं, तो निकासी का विकल्प खत्म हो जाता है.

नौकरी बदलने के समय इपीएफ का पैसा निकालने पर टैक्स सबंधी प्रावधान क्या हैं?

अगर आप 5 साल से पूर्व पीएफ से निकासी करते हैं, तो इस पर 80 सी/88 के तहत मिले लाभ वापस करने होंगे.

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