हम-तुम
वीना श्रीवास्तव
अगले दिन सभी सुबह तैयार हो गये. दीपा पार्थ और नव्या को भी ले गयी. आज कुहू भी तारापुर बस्ती गयी. रास्ते में कई क्रॉसिंग पड़े, वहां पर भीख मांगते हुए बच्चे और महिलाएं मिलीं. कुछ बच्चियां छोटी-सी टोकरी लिये हुए थीं, जिसमें देवी की फोटो रख कर लोगों से पैसे मांग रही थीं. नव्या ने कहा, मम्मा वो देखो वो ‘बेगर’ कह रही है, उसके बच्चे ने कुछ नहीं खाया, तो आप कुछ रुपये दे दो न उसे. उसका बेबी भूखा है और उसका बेबी भी तो मांग रहा है. दीपा ने कहा नहीं बेटा भीख नहीं देनी चाहिए, क्योंकि भीख मांगना सबसे खराब काम होता है.
वे हेल्दी हैं, कुछ काम कर सकते हैं, तो फिर भीख क्यों मांगते हैं. उन्हें काम करना चाहिए. भीख मांगने से अच्छा है कि काम करके इज्जत से जो मिले, उसमें गुजारा करें. बच्चों को तो भीख बिल्कुल भी नहीं देनी चाहिए. अगर उन्हें भीख मांगने की आदत लग गयी, तो वे कभी भी कोई काम नहीं करेंगे और बड़े होकर भी भीख मांगेंगे. तभी पार्थ बोल पड़ा कि अगर उन्हें पैसा नहीं मिला और भूख से परेशान हो जाएं, तो हो सकता है कि वे चोरी करने लगें. इससे अच्छा है कि उन्हें पैसे दे दिये जायें.
हां, दीपा दीदी पार्थ की बातों में दम तो है, लेकिन पार्थ बेटा ये तो जरूरी नहीं कि एक अपराध को रोकने के लिए दूसरा अपराध किया जाये? जिनको चोर-पॉकेटमार बनना होता है, वे भीख मांग कर खाने का इंतजार नहीं करते. इसीलिए भीख देकर बच्चों की आदत नहीं खराब करनी चाहिए. उन्हें लगेगा कि भीख मांग कर उनका गुजारा हो जाता है, तो काम करने की क्या जरूरत है. जो युवा हैं मतलब यंग हैं, उन्हें तो खुद मेहनत करनी चाहिए. कितने ही लोग हैं जो विकलांग यानी हैंडिकैप हैं. इसके बावजूद वे किसी ना किसी हुनर के मालिक हैं. मतलब कोई न कोई आर्ट है उनके पास.
उन्होंने विकलांगता को अपनी कमजोरी नहीं, बल्कि ताकत बनाया. वो जीवन से हारे नहीं, बल्कि समय से जीत कर अपने जीवन में आगे बढ़े. ऐसे लोगों को सलाम करना चाहिए. बहुत से नेत्रहीन हैं, जो आंखें न होने के बावजूद अपनी दुनिया खुद देखते हैं. जिनके हाथ-पैर कटे होते हैं, फिर भी मेहनत करते हैं. पैर से चित्रकारी करते हैं. जब विकलांग इतना कर सकते हैं, तो जिसके दोनों हाथ-पैर सही सलामत हैं, वो तो कुछ काम करके जीवन जी सकते हैं. इसलिए भीख नहीं देनी चाहिए.
ये बच्चियां जो भगवान जी की तसवीर लिये घूम रही हैं, उनको भी नहीं देना चाहिए? ये भी एक तरह से भीख मांगना और लोगों को भगवान के नाम पर ब्लैकमेल करने का तरीका है. कैसे मौसा जी? नव्या ने पूछा. वो ऐसे कि अगर मैं तुमसे कहूं कि तुम मुङो पांच रुपये दो तो भगवान जी तुम्हारी सारी विश पूरी करेंगे, तो तुम क्या करोगी? आशु ने पूछा. नव्या ने कहा कि मैं आपसे फाइव रुपीज लेकर उसको दूंगी, जिससे मेरी विश पूरी हो जाये. एक्जेक्टली. इसी तरह से ये ऐसे ही कहती हैं. जैसे कि आपके बच्चे सुखी रहें, उन्हें लंबी उम्र मिले, आपका सुहाग यानी पति बना रहे, आपकी मनोकामना पूरी हो, आपके बच्चों को भगवान हर मुसीबत से बचाये.
ये ऐसी बातें हैं कि हर इनसान सोचता है शायद इनकी दुआ ही लग जाये, क्योंकि सब लोग अपने घर का, बच्चों का भला चाहते हैं और समझते हैं कि ना जाने कब किसकी बात सच हो जाये. घर-परिवार की खुशी के बदले दो-चार रुपये कुछ भी नहीं होते, लेकिन इन लोगों को आदत पड़ जाती है. फिर इनके बच्चे भी भीख मांगने लगते हैं. जिन बच्चों को स्कूल जाकर पढ़ना चाहिए वे सड़कों पर भीख मांगते हैं. जिन्हें खाने को नहीं मिलता वे भला पढ़ाई कैसे करेंगे? और तुम नहीं जानते इनमें से कुछेक के माता-पिता तो बच्चों द्वारा इकट्ठे किये पैसों से शराब पी लेते हैं और उनकी देखा-देखी बच्चों को भी गलत आदतें पड़ जाती हैं. इसलिए भीख नहीं देनी चाहिए. हां कोई कुछ काम करे तो उसे पैसे जरूर देने चाहिए.
बात करते-करते सब तारापुर बस्ती पहुंच गये थे. आशु के बाकी दोस्त भी वहां पहुंच गये थे.झिलमिल वैक्सीनेशन चार्ट भी लायी थी. कुछ दोस्त बच्चों को पढ़ाने चले गये. आशु और उसके बाकी दोस्तों को देख कर कई सारे लोग इकट्ठे हो गये. आशु ने सबको चार्ट पेपर देकर बच्चों को लगने वाले टीकों के बारे में बताया और कहा कि सरकारी अस्पताल में ये टीके मुफ्त लगाये जाते हैं. साथ ही यह भी बताया कि सरकार जब-जब पोलियो शिविर लगाये, अपने पांच साल तक के बच्चों को पोलियो कैंप जरूर ले जाएं और दो बूंद जिंदगी की पिलाएं, जिससे उनका बच्चा अपाहिज होने से बच सके. ऐसा करके वो अपने बच्चों को भविष्य में होने वाले खतरों से बचा सकते हैं.
तभी पार्थ ने कहा वापस चलो मम्मा यहां बहुत गंदगी है. दीपा ने उसे समझाया कि जहां तुम एक घंटे भी नहीं रुक पा रहे हो वहां ये लोग रहते हैं. दीपा पार्थ से कह ही रही थी कि उन्होंने देखा कि एक रोटी के लिए दो बच्चे लड़ रहे थे और छोटे बच्चे के हाथ से रोटी नीचे गिरते ही बड़े बच्चे ने रोटी जमीन से उठायी और खाने लगा. उसे खाते देख पार्थ जोर से बोला. इसे मत खाओ. जमीन पर गिरी चीज नहीं खाते. तुम बीमार हो जाओगे, लेकिन उस बच्चे ने नहीं सुना. पार्थ उसके पास गया और बोला कि तुमसे मना कर रहा हूं न कि ये रोटी मत खाओ, बीमार हो जाओगे. इस पर उस लड़के ने कहा ओ शहरी भाई हम तो ऐसे ही खाते हैं, हमें कुछ नहीं होता. एक रोटी बची थी. मां पहले ही इसे एक रोटी दे चुकी है. ये भी खा गया तो मैं तो भूखा ही मर जाऊंगा. शाम का क्या भरोसा कि चूल्हा जले कि नहीं. क्यों? पार्थ ने पूछा. खन्नू ने जवाब दिया कि हमारे यहां रोज रोटी नहीं पकती. शाम को आटा आयेगा तो रोटी बनेगी, नहीं आया तो नहीं बनेगी.
veena.rajshiv@gmail.com