प्रोफेसर नुपुर प्रकाश
कुलपति, इंदिरा गांधी दिल्ली टेक्निकल यूनिवर्सिटी फॉर वुमेन, दिल्ली
इंदिरा गांधी दिल्ली टेक्निकल यूनिवर्सिटी (आइजीडीटीयू) फॉर विमेन देश की पहली महिला टेक्निकल यूनिवर्सिटी है. यह दिल्ली सरकार से सहायता प्राप्त यूनिवर्सिटी है. क्यों पड़ी इसकी जरूरत, किन उद्देश्यों के साथ हुई इसकी स्थापना जैसे महत्वपूर्ण बिंदुओं पर आइजीडीटीयू फॉर वुमेन की कुलपति प्रोफेसर नुपुर प्रकाश से विस्तार से बातचीत की मंजूषा सेंगर ने. पेश हैं प्रमुख अंश.
एक नये स्वरूप में इंदिरा गांधी दिल्ली टेक्निकल यूनिवर्सिटी फॉर वुमेन की स्थापना की जरूरत क्यों पड़ी?
देश की इस पहली महिला यूनिवर्सिटी की स्थापना 1 मई, 2013 को हुई. हालांकि एक संस्थान के रूप में इसकी शुरुआत 1998 में ही इंदिरा गांधी इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (आइजीआइटी) के रूप में डायरेक्टोरेट ऑफ ट्रेनिंग एंड टेक्निकल एजुकेशन, दिल्ली सरकार द्वारा की गयी थी. तब भी यह सिर्फ महिलाओं के लिए ही था और अपने आप में इस तरह का पहला संस्थान था. इसलिए हमें नया समझना सही नहीं होगा, हम बीते 15 वर्षो से इस क्षेत्र में सक्रिय हैं.
इसे महिला टेक्निकल यूनिवर्सिटी बनाने के पीछे क्या उद्देश्य है?
2002 में आइजीआइटी का पहला बैच पास आउट हुआ था. हमने 15 वर्षो तक महिला इंजीनियरिंग कॉलेज को सफलतापूर्वक चलाया है. 2002 से 2012 के दौरान हमने महसूस किया कि भारतीय कॉरपोरेट सेक्टर में महिला इंजीनियरों की काफी मांग है. हमारे यहां बड़े-बड़े कॉरपोरेट हाउस महिलाओं की नियुक्ति के लिए आते थे. हमने देखा कि यहां महिलाओं की जितनी मांग बढ़ रही हैं, उसके हिसाब से पूर्ति नहीं हो पा रही है. अब कॉरपोरेट हाउसेस लैंगिक समावेश (जेंडर इंक्लूजन) और लैंगिक समानुपात (जेंडर डायवजर्न) पर काफी ध्यान दे रहे हैं. इसके तहत ही वे महिला इंजीनियरों की मांग कर रहे हैं. इस कमी को पूरा करने के लिए हमने टेक्निकल संस्थान में बदलाव किये और उसे यूनिवर्सिटी का रूप दिया, जिससे इसे ज्यादा फंड मिल सके और ज्यादा महिलाओं को इंजीनियरिंग क्षेत्र की ओर लाया जा सके.
साइंस और टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में महिलाओं की कैसी है स्थिति?
देश का विकास साइंस-टेक्नोलॉजी पर काफी हद तक निर्भर करता है. यहां आधी आबादी महिलाओं की है, पर साइंस व टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में महिलाओं की भागीदारी 15 से 25 फीसदी ही है. जबकि हेल्थ केयर, बैंकिंग, एजुकेशन, फाइनेंस जैसे क्षेत्रों में महिलाओं की भागीदारी 50 फीसदी के करीब है.
इस यूनिवर्सिटी में किस तरह के कोर्स हैं और कुल कितनी सीटें हैं?
फिलहाल पहले सत्र के लिए कुल सीटें 1,500 रखी गयी हैं, जिसे आगे आनेवाले समय में 2,500 तक पहुंचाना हमारा लक्ष्य है. फिलहाल चार एमटेक प्रोग्राम शुरू किये गये हैं. बीटेक और एमसीए के लिए 300-300 सीटें रखी गयी हैं.
अब तक की प्रतिक्रिया से देश के किस राज्य से इस क्षेत्र के प्रति महिलाओं का ज्यादा रुझान देखने का मिला है?
इंजीनियरिंग कॉलेज से यूनिवर्सिटी तक के सफर में हमें महिलाओं का रुझान बहुत ज्यादा दिखा है. इस वर्ष एमटेक के लिए 120 सीटें हैं. इसके लिए एक हजार अप्लीकेशंस आयीं. इसमें प्रवेश के लिए ग्रेजुएट इंजीनियरिंग एप्टीट्यूड टेस्ट (गेट) के स्कोर को न्यूनतम योग्यता रखा गया है. प्राप्त आवेदनों में से 50 फीसदी आवेदन गेट स्कोर धारकों के थे. स्थिति यह है कि यूनिवर्सिटी में सीटें भर गयी हैं, लेकिन प्रवेश की इच्छुक छात्रएं अब भी पहुंच रही हैं. यहां बीटेक और एमसीए के लिए 300-300 सीटें हैं, जिसमें से 85 फीसदी सीटें दिल्ली डोमिसाइल धारक छात्रओं के लिए आरक्षित है. वे सीटें भी भर चुकी हैं.
एमटेक के लिए राष्ट्रीय स्तर पर प्रवेश और बीटेक व एमसीए के लिए दिल्ली डोमिसाइल की बाध्यता रखना, इसका क्या कारण हैं?
आनेवाले वर्षो में किस तरह के नये कोर्सो की शुरुआत करने की योजना है?
2012 में जब इसके लिए एक्ट पास किया गया था, तबसे ही हमने इसकी प्लानिंग शुरू कर दी थी. हमने आगे के पांच वर्षो की प्लानिंग कर रखी है. इसके तहत आनेवाले सत्र में बीइ इन आर्किटेक्टचर, मास्टर इन आर्किटेक्चर, एमटेक इन नैनोटेक्नोलॉजी, एमटेक रिन्यूऐबल एनर्जी रिसोर्स शुरू करने के बारे में सोचा है. दो से तीन कोर्स और शुरू करने पर विचार चल रहा है. ये कोर्स इंडस्ट्री की मांग को देखते हुए शुरू किये जायेंगे, जैसे एमटेक ऑटोमोबोइल आदि.