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भारतीय रक्षा सौदों में व्यापक भ्रष्टाचार

।। सैयद नजाकत ।। (न्यूयॉर्क) न्यूयॉर्क के व्यवसायी और हथियारों के सौदागर एडमंड्स एलन ने भारतीय सेना द्वारा हथियार खरीद मामले में बड़े स्तर पर भ्रष्टाचार का खुलासा किया है. उसने भारतीय जांच एजेंसियों को कई गोपनीय दस्तावेज उपलब्ध कराये हैं, जिनमें सेना के बड़े अधिकारियों की संलिप्तता की बात सामने आयी है. ‘द वीक’ […]

।। सैयद नजाकत ।।

(न्यूयॉर्क)

न्यूयॉर्क के व्यवसायी और हथियारों के सौदागर एडमंड्स एलन ने भारतीय सेना द्वारा हथियार खरीद मामले में बड़े स्तर पर भ्रष्टाचार का खुलासा किया है.

उसने भारतीय जांच एजेंसियों को कई गोपनीय दस्तावेज उपलब्ध कराये हैं, जिनमें सेना के बड़े अधिकारियों की संलिप्तता की बात सामने आयी है. ‘द वीक’ पत्रिका ने एलेन का इंटरव्यू प्रकाशित किया है. एलन विसल ब्लोअर हैं.

मुझे मेरे दोस्तों ने 2000 में अभिषेक वर्मा (जो अभी तिहाड़ जेल में है) से मिलवाया था. मुझे यह कह कर मिलवाया गया कि वह भारत के प्रतिष्ठित राजनीतिक परिवार से आनेवाले बड़े उद्योगपति हैं.

वर्मा ने मुझे बताया कि यूरोप में उसके 200 मिलियन डॉलर (लगभग 1200 करोड़ रुपये) यूरोप में पड़े हुए हैं और उसे हैंडल करने के लिए एक जिम्मेदार व्यक्ति की जरूरत है. मैंने उन्हें अमेरिका में निवेश करने की सलाह दी क्योंकि वहां पैसा लगाने में कोई दिक्कत नहीं है और दूसरे देशों के मुकाबले टैक्स में छूट आदि से पैसे बनाये जा सकते हैं.

2011 में मुझे उसके बिजनेस पर तब शक हुआ, जब उसने यूरोप के एक व्यवसायी डिडियर टाइगैट को फर्जी दस्तावेज देकर झांसे में लाने को कहा. मैंने इनकार किया, तो उसने मुझे धमकी दी.

तभी मैंने अभिषेक वर्मा का कच्च-चिट्ठा खोलने का निर्णय लिया. यह जानने में आपको दस वर्ष लग गये कि वह कुछ गैर कानूनी कर रहा है?

हां, यह सुनने में थोड़ा अटपटा लग सकता है, पर सच है. वह बहुत ही शातिर है. मुझ जैसे कई लोगों को झांसा दे चुका है.

क्या भारत से कोई सरकारी एजेंसी आपके संपर्क में है?

मैंने प्रधानमंत्री कार्यालय, रक्षा मंत्री और भारत की जांच एजेंसियों को पत्र लिखा. पर कोई जवाब नहीं मिला. लेकिन पिछले साल सीबीआइ और इडी की टीम ने मुझसे न्यूयॉर्क में मुलाकात की. मैंने वर्मा से जुड़े सभी दस्तावेज सौंप दिये और उसके गैर कानूनी कारोबार की जानकारी दी. उन्हें जब भी जरूरत होती है, मुझसे संपर्क करते हैं. अब एफबीआइ भी मामले की जांच की कर रही है.

एफबीआइ की क्या भूमिका है?

एफबीआइ इस बात की जांच कर रही है कि क्या वर्मा के किसी अमेरिकन कंपनी या व्यक्ति से भी संबंध थे और क्या उन्होंने ‘यूएस फॉरेन करप्ट प्रैक्टिसेज एक्ट’ का भी उल्लंघन किया है. दिल्ली स्थित अमेरिकी दूतावास और एफबीआइ के अफसरों ने भी मुझसे संपर्क किया था.

रिनमेटैल कंपनी के अतिरिक्त क्या किसी दूसरी कंपनी ने भी रक्षा सौदे के लिए भारतीय अधिकारियों को पैसे दिये थे?

अगस्ता वेस्टलैंड (इटालियन हेलीकॉप्टर कंपनी, जिस पर वीवीआइपी चॉपर डील के लिए भारतीय अधिकारियों को घूस देने का आरोप लगा है) के अलावा ग्रीस की एक कंपनी हेलिनिक डिफेंस सिस्टम्स की भी सहभागिता रही है. भारत में सैन्य हथियारों की खरीद में व्यापक स्तर पर भ्रष्टाचार है.

बिना किसी कारण के ही वह मुझसे प्राय: न्यूयॉर्क से पैसे लाने को कहता. हॉकर बीचक्राफ्ट डील में, वह मुझे भारत ले आया, पर इससे पहले ही वह डील फाइनल कर चुका था. यह समय जून 2010 का था और मैं तीन दिनों तक भारत में रहा. मैं दिल्ली स्थित उसके फॉर्म हाउस में रुका.

उसने मुझे हॉकर के बड़े अधिकारियों से मिलवाया. फिर ओबराय होटल में भी हमारी मीटिंग हुई. उसके बाद उसने अपने फॉर्म हाउस में एक भव्य पार्टी रखी, जिसमें कई रूसी दलाल भी थे. वहां भारतीय सेना के भी कई अधिकारी थे.

कौन-कौन थे वहां?
मुझे उनके नाम याद नहीं. एयर वाइस मार्शल रैंक का एक अधिकारी वहां मौजूद था. साथ ही एयरफोर्स और आर्मी के भी कई अधिकारी मौजूद थे. मैं नहीं जानता कि वे नौकरी में थे या रिटायर्ड, लेकिन वे उस पार्टी में बहुत सहज लग रहे थे. वर्मा की गर्लफ्रेंड अंका निकासू भी वहां थी. वह भी स्मार्ट महिला है.

वह भारत के रक्षा और गृह मंत्रलय के वरिष्ठ अधिकारियों से मिलने के लिए प्राय: उनके कार्यालयों में आया-जाया करती थी. उसने अपने पति के हाइ कनेक्शन के प्रूफ के तौर पर गुप्त वीडियो भी बनाये थे.

क्या अमेरिकी कंपनी एसआइजी सौर भी वर्मा से जुड़ी थी?

वर्मा एसआइजी सौर के लिए एक डील करना चाहता था. वह जानता था कि एसआइजी भारत के साथ डील करने को इच्छुक है. एसआइजी राइफल, कारबाइन और पिस्टल बनाने वाली बड़ी कंपनी है. उसने एसआइजी सौर के साथ एक ज्वांइट वेंचर बनाया. एसआइजी ने वर्मा को 50 हजार डॉलर (30.5 लाख रुपये) दिये, ताकि भारतीय अधिकारियों को स्निपर राइफल डील कराने के लिए घूस दी जा सके.

वह और दूसरे तरीके भी अपना रहा था. लेकिन फिर भी मामला नहीं बन सका. सबसे बड़ी मुश्किल यह है कि दुनिया भर की मिलिटरी कंपनियों के लिए भारत बेहद आकर्षक बाजार है. इसमें बेशुमार पैसा लगा है.

आपके अलावा, अमेरिका में और कौन वर्मा के साथ काम कर रहा था?

मैं नहीं जानता कि यहां उसका कोई कर्मचारी है. वह लोगों से सीधे ई-मेल या फोन के जरिये संपर्क करता था. न्यूजर्सी में उसका एक करीबी दोस्त है पॉल परमार. उसके बारे में बस यही जानता हूं कि वह भारत से है और बहुत कम समय में उसने तरक्की की.

उसने शुरुआत प्रॉपर्टी डीलर के रूप में की और बहुत जल्द वह देश के सर्वाधिक धनवान लोगों की सूची में गिना जाने लगा. वह प्राय: बड़ी संपत्तियों को खरीदने के लिए चर्चा में रहता है. उसने हाल ही में 10 मिलियन डॉलर (61 करोड़ रुपये) में एक घर खरीदा. एफबीआइ भी उससे पूछताछ कर रही है.

भारत के रक्षा सौदे से जुड़े सैकड़ों दस्तावेज आपके हाथ कैसे लगे?
मुझे ये वर्मा से मिले थे. वह मुझे प्राय: ई-मेल करके सारे डिटेल्स बताता और कंसल्टेंसी सेवाओं के लिए तार सेवा का इस्तेमाल करता. मैंने सीबीआइ को सारे दस्तावेज उपलब्ध कराये. मुझे यह बताया गया कि ये अत्यंत गोपनीय दस्तावेज हैं और इसे सार्वजनिक नहीं किया जाना चाहिए. दस्तावेजों में रक्षा सौदे से जुड़े बेहद संवेदनशील तथ्य थे.

क्या दस्तावेजों में एंटी टैंक मिसाइलों की भी चर्चा थी?
हां, दस्तावेजों में भारतीय रक्षा प्रस्तावों में एंटी टैंक गन मिसाइलों की खरीद का भी उल्लेख था. वर्मा ने इस संबंध में विदेशी रक्षा फर्मो से बात की थी. दस्तावेजों में सेना में एंटी टैंक मिसाइलों की कमी, उसकी जरूरत और मिसाइलों और लांचरों की संख्या का जिक्र था. मैंने सीबीआइ को सारे डिटेल्स उपलब्ध कराये हैं.

क्या दस्तावेजों में कांग्रेस नेता जगदीश टाइटलर का भी नाम है?
मेरा मानना है कि इसमें जगदीश टाइटलर को फंसाया गया है. वह अपने बेटे के लिए कुछ करना चाहते थे. पर वर्मा ने उनसे धोखेबाजी की.

लेकिन टाइटलर ने वर्मा के साथ अपने बेटे के संबंधों को खारिज किया है.

यह सच नहीं है. उनका बेटा सिद्धार्थ टाइटलर वर्मा के साथ काम कर रहा था. वह अमेरिकी कंपनियों के साथ मिल कर टेलीकॉम बिजनेस खड़ा करना चाह रहा था, जिसमें वह अभिषेक वर्मा की मदद ले रहा था.

वे दोनों साथ में एक ज्वांइट फर्म जीटी टेलीकॉम स्थापित करने के लिए साइप्रस की कंपनी कोरविप लिमिटेड के साथ काम कर रहे थे. टाइटलर ने एक बार मुझसे फोन पर बात भी की थी. मुझे याद नहीं आ रहा कि उन्होंने टेलीकॉम कारोबार पर बात की थी या कुछ और.

क्या आप कोर्ट का सामने करने को तैयार हैं?

हां मैं किसी भी कोर्ट का सामना करने को तैयार हूं.

क्या आप जांच में सहयोग के लिए भारत आयेंगे?

मैं अपनी सुरक्षा और जान के खतरे को देखते हुए भारत नहीं आ सकता. वर्मा खतरनाक आदमी है. मुझे भारत जाने की जरूरत भी नहीं है क्योंकि भारतीय जांच एजेंसियों के लिए मैं हमेशा उपलब्ध हूं. इसी कारण से सीबीआइ पिछले साल यहां थी.

द वीक से साभार

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