मनुष्य सचमुच कितना संकीर्ण हो गया है. हम बड़ी–बड़ी बातें करते हैं, लेकिन हमारे जीवन में ही इसका कोई अर्थ नहीं बचा है. यह संकीर्णता हमें कहां ले जायेगी. दायित्व का हर जगह अभाव दिखता है. लोगों के आचरण में जिम्मेवारी नहीं दिखती. समाज के हर क्षेत्र पर चरित्र का और मूल्यों के संकट का असर साफ–साफ दिखता है. राजनीति, पत्रकारिता कोई क्षेत्र अछूता नहीं है.
मनुष्य का राक्षस बनना अपने शिखर पर है. भाई श्री कहते हैं, इस परिस्थिति में एकमात्र सॉल्यूशन है कि मनुष्य का हृदय परिवर्तन हो. चाहे वह खुद विवश होकर करे या फिर भगवान की कृपा से हो. जीवन में कनविक्शन (आस्था) के साथ चलना होगा, परिस्थितियां जब विकट होती हैं, तब अपने आपको जानने के लिए आपको खुद को चैलेंज करना होगा. सभ्यता का संकट, क्या है निदान श्रृंखला में एक अत्यंत तपे–तपाये साधक –संत भाई श्री से प्रभात खबर के प्रधान संपादक हरिवंश की लंबी बातचीत की अगली कड़ी.
प्रश्न : लेकिन यह प्रयोग जो बिहार वगैरह में हो रहा है, उसको आप कैसे देखते हैं?
भाई श्री : दायित्व का अभाव हो गया, आज देश में. लोगों के आचरण में जिम्मेदारी नहीं दिखती है. क्यों? देखिए आप जानते हैं, फिर भी पैसा लेकर वोट करते है. शराब की पाउच पर वोट दे रहे हैं. ऐसा हो रहा है कि नहीं हो रहा है? पंचायत में हो रहा हैं. जब सब जानबूझ कर गलत रास्ते पर जा रहे हैं, तो क्या कहा जाये?
प्रश्न : उन पंचायतों से कैसे उम्मीद करें, जिनमें भ्रष्टाचार भी उसी तरह है?
भाई श्री : जब उनको पावर दे देंगे कि अपना निर्णय आप खुद लीजिए़ बाहर से कुछ नहीं मिलेगा, तो बाध्य होकर वह अपना सोचेंग़े बड़ा सोचेंग़े
प्रश्न : बाहर से पैसे मिलने बंद हो जाए, यह आप सही कह रहे हैं.
भाई श्री : आप मनुष्य को यह कैसे सिखलाओगे कि आपको सबका भला सोचना चाहिए़ परिवार का भला सोचना चाहिए़ समाज का और फिर देश का भला सोचना चाहिए़ फिर विश्व का भी भला सोचना चाहिए़ इस प्रक्रिया में प्रत्येक व्यक्ति का भला निहित है. यह विकास की एक कड़ी है, जो मनुष्य के जीवन में लिखी हुई है. आपको एक बिंदु से पूरा फैल जाना है. आप अपने आप में एक ड्रॉप ऑफ ओशियन (समुद्र की एक बूंद) हैं. पूरे समुद्र तक फैल जाइए़. मनुष्य के नाते आप महसूस करेंगे, तो यही महसूस कीजिएगा कि एक पशु अपने में सिमट जायेगा, लेकिन मनुष्य अपने में नहीं सिमटेगा. वो फैलना चाहेगा. वह उसका सहज स्वभाव है. तो फिर पहले परिवार में फैलेगा. यदि वहां रुक गया, तो वह संकीर्ण मनुष्य है. वह पौधा बढ़ ही नहीं पाया और नहीं तो वह परिवार को क्रॉस करके समाज में फैलेगा, तो सबके हित की चिंता होगी उस़े यदि वहां उसका अच्छा–खासा विकास हुआ, तो फिर वह समाज में भी नहीं रुकेगा, बल्कि देश तक फैल जायेगा. समाज यानी आसपास का समाज और देश यानी पूरा देश़ फिर विश्व़ वसुधैव कुटुंबकम. ये सब क्या हैं? क्या ये सब मनुष्य भूल नहीं गया है? इसका एहसास उसको कैसे दिलाओगे? उसको जिम्मेदार बना करक़े उसका धन बेकार है. क्यों? क्योंकि आप गांव के बाहर कुछ खरीद नहीं सकत़े गांव में जो उपज रहा है, बस वहीं आप खरीद सकते हैं. क्या कीजिएगा आप इतना धन रख के? ये सब वेस्टेज हैं. बेकार हैं.. हम उधर जा रहे है. एकदम क्लीयर कट गुजर रहे हैं. सबका क्लेक्टीवहुड देखते हुए़ सामूहिक मंगल कामना देखते हुए़
प्रश्न : क्या ऐसी ही व्यवस्था हमारे समाज के संचालक चाहते हैं?
भाई श्री : चाहने या न चाहने की बात नहीं है. यही एकमात्र उत्तर है. जो आग लगी हुई है, वो तभी बुझेगी, जब मनुष्य यह सोचे कि हम कितने छोटे हो गये हैं? कितने सिमट गये हैं? यही समस्या का मूल कारण है. यह सबसे बड़ा स्वार्थ है.. हम एकदम संकीर्ण हो गये हैं. इतने छोटे हो गये हैं कि बड़ी–बड़ी बात तो करते हैं, लेकिन उसका अपने ही जीवन में कोई अर्थ नहीं बचा है. बड़ी–बड़ी बात करने के अभ्यासी हो गये हैं. हमलोग विचारों को भी सजानेवाली चीजों की तरह अपने दिमाग में रखते हैं. नोट करने के लिए़ आप देखते होंगे कि बड़े–बड़े घरों में अच्छी चीजें सजा देते हैं, ताकि लोग देखें. इसी तरह हम किताब पढ़ कर अपने दिमाग में भी कुछ अच्छी–अच्छी बातें रख लेते हैं.. आजकल इसको बहुत अच्छा समझा जाता है.
ऐसा बतलाया जाता है, न्यू एज (नये दौर के) गुरुओं द्वारा. अच्छी–अच्छी बातों को कोट करेंगे, तो आपका इंप्रेशन जरा बढ़िया होगा. प्रभाव अच्छी तरह डाल सकेंगे आप़ हम ह्यूज हो गये हैं, इस तरह की लाइफस्टाइल स़े हम अच्छी–अच्छी बातों को अपने माइंड में रखते हैं, नहीं तो हमारे जीवन का कोई अर्थ नहीं है. अन्ना की सोसाइटी, पूरी सिविल सोसाइटी को फोर्स करना होगा. अपने आप को देखो, आप क्या चाहते हैं? नहीं तो कोई समाधान नहीं है. आप अंधकार में ही रहेंगे.. किसी में दम नहीं हैं, न भाजपा में, न कांग्रेस में. किसी संस्थान में दम नहीं है.. पोलिटिक्स भ्रष्ट हो चुकी है. मीडिया के लोगों के नाम आ रहे हैं (आशय 2जी).. हम विश्वास नहीं कर सकते कि मीडिया के बड़े लोग इसमें हैं. हम समझते हैं कि जो आज भी एक जर्नलिस्ट है., उसके इथिक्स हैं. वैल्यू हैं. पर, भ्रष्ट लोग अब आपको भी एक्जीक्यूटिव क्लास में ले जाते हैं. बड़ी–बड़ी जगहों पर भी ले जाते हैं. मंहगे होटलों में ठहराते हैं.
आप आतिथ्य कबूल कर रहे हैं, मुफ्त में सब कुछ है. यह क्या है? सीता को हरण किया रावण ऩे ब्राह्मण वेश में. मैं आज 10 साल से अपने मित्रों से बात कह रहा हूं कि रावण से भय की कोई बात नहीं है. वो तो रावण है ही. लेकिन, रावण जब ब्राह्मण का वेश धर लेता है, तो बड़ी परेशानी बढ़ जाती है. सीता जैसी नारी भी ठगी जाती है. वह भी समझ नहीं पाती. इसलिए ये जो सिविल ड्रेस में लोग छिपे हैं. आप संसार में रहने वाले लोग देख रहे हैं कि सब लोग ऐसे ही हैं, तो हम भी हैं. धारा के विपरीत तैरना कौन चाहता है?
प्रश्न : आज सार्वजनिक जीवन में जीने की प्रेरणा का स्नेत या रोशनी दिखाई नहीं देती? आपको कहां से प्रेरणा मिलती है?
भाई श्री : हां, हम जीवित लोग बैठे हैं. मैं ढोल नहीं बजाऊंगा. मैं लाउडस्पीकर नहीं बजाऊंगा. मैं कोई दुकान नहीं खोलूंगा, क्योंकि इस रास्ते पर चल कर लोग बिगड़ते हैं, बनते नहीं हैं. वे उन्हीं हथकंडों का इस्तेमाल करते हैं, जिससे कि गलत रास्ते पर जाया जाता है. जिससे समाज का नुकसान हो रहा है. ये हथकंडे मुझे सही नहीं लगत़े इसलिए कोई कहता हैं कि चुनाव के माध्यम से जमाने को बदल देंगे, संभव नहीं है. चुनाव में भ्रष्टाचार की इंट्री बहुत सालों पहले हो चुकी है.
बिना करप्शन के चुनाव संभव ही नहीं है. आप कुछ भी कर लीजिए, लोग सोच रहे हैं कि सरकार ये करेगी, वो करेगी. नहीं साहब, आप ह्यूमन नेचर (मानव स्वभाव)को कैसे बदलेंगे? यही मूल समस्या है. मानव स्वभाव, जब गंदगी से भरा पड़ा है, हर जगह वह भ्रष्ट है, तो वह किसी भी सिस्टम को टिकने नहीं देगा. रहने नहीं देगा. इसलिए मूल समस्या यही है. मनुष्य को कैसे बदलिएगा? उसको मुक्त करना. आप बदलो, नहीं तो नाश है. बरबादी है. मैं समझता हूं कि कुछ भगवान की कृपा भी है. बहुत कष्ट हो गया. अब हमलोग तो भगवान में सहज विश्वास करनेवाले लोग हैं. हमारा तो प्रार्थना से ही दिल भरता है. हे भगवान! कृपा करना इस धरती पऱ समाज पऱ इस विश्व पऱ
प्रश्न : आपको लगता है कि ईश्वर का अवतार होगा ?
भाई श्री : हां, वह आ रहे हैं. उनकी आवाज निकट सुनाई पड़ती है, और अबकी घटनाओं में ईश्वर का हाथ दिखता है. ये घटनाएं गंदी परंपरा का परिणाम हैं.. लेकिन बहुत दूर तक चादर से ढंका हुआ था. अब चादर हट गयी. एकाएक बेनकाब हुए सब लोग़ कोई, किसी पर उंगली उठा रहा है. कोई, प्रधानमंत्री को समेटने की इच्छा रखता है. वित्त मंत्री को समेटने की इच्छा रखता है. अपने बचने के लिए़ बस हमको बचाओ, चाहे जैसे भी हो.
सच क्या है, कौन जानता है? कौन कहेगा कि सच क्या है? प्रधानमंत्री ने खुद कई बार अपने को कंट्राडिक्ट किया है. पिछले छह–सात महीनों में. इसका मतलब साफ है कि जो सत्य है, वो थोड़ा अनकंफर्टेबल है. तब ऐसा मनुष्य करता है. वह प्रधानमंत्री हैं, वो समझदार लोग हैं. संभव है किसी को बचाना चाहते हैं. संभव है कुछ छिपाना चाहते हैं. हो सकता है, राजनीति कुछ डिमांड कर रही है. इस परिस्थिति में जब एक सॉल्यूशन ढूंढ़ोगे, तो एकमात्र सॉल्यूशन है कि मनुष्य का हृदय परिवर्तन हो. चाहे वह खुद विवश होकर करे या भगवान की कृपा से हो. ऐसा मुझे लगता है, निकट समय आ गया है, भगवान जगन्नाथ का प्रभाव दिखेगा.
(यह बातचीत उस समय हुई थी, जब टूजी मामले में फंसे लोग एक –दूसरे पर दोषारोपण कर रहे थ़े मीडिया–राजनीति–कॉरपोरेट घरानों के शीर्ष नाम इस प्रकरण में उछल रहे थे)
प्रश्न : आज की दुनिया में भौतिक सफलता ही सब कुछ है?
भाई श्री : इन सब का कारण रुपया–पैसा है. भगवान को भी हटा दिया गया है. हरिद्वार में एक साधु ने हमसे कहा कि वह पैसेवाला है, वह भगवान को क्यों खोजेगा? उसके पास पैसे हैं. तुम मूर्ख हो, तुम इतनी छोटी–सी बात नहीं समझ सकते.. वह अमीर आदमी है. वह भगवान को क्यों खोजेगा? उसके पास पैसा है. तब हमको याद आया कि क्राइस्ट (ईसा) ने कहा था कि ऊंट, सूई की नोक से पार कर सकता है, पर एक धनी स्वर्ग में प्रवेश नहीं पा सकता. पूरा वेस्टर्न वर्ल्ड क्रिश्चियन वर्ल्ड (ईसाई संसार) है.
मार्केटिंग वगैरह सब कुछ वहीं पुष्पित–पल्लवित हुआ़ वहीं पर इस महापुरुष ने कहा कि कैमल कैन पास़…. और, तब भी रुपया और हाय रुपये की कहानी ने पश्चिम के जीवन को एकदम पजल (जटिल) कर दिया है. माननेवाली बात है कि आज रुपया क्या नहीं कर सकता है? हमने एक वीडियो में देखा कि फिलिप्स ने एक लाइटिंग सिस्टमवाली खिड़की बनायी है. बहुत बड़ी खिड़की. उसमें कहता है कि आप अपनी इच्छा से कलर ला सकते हैं. ऐसे करता है, तो वो पिंक हो जाता है. दूसरे तरीके से करता है, तो ब्लू हो जाता है. अगर आपको सोना है, यू नीड डार्कनेस, तो किसी और भी तरीके से किया, तो उस पर पेड़ की डालों की छाया पड़ जाती है. आपको लगता है कि आप बहुत सुकून की नींद सो रहे हैं.
इस तरह अगर आपको पूरी रोशनी चाहिए, तो ऐसे कर दिया, तो पूरा डेलाइट अंदर आ रहा है. मतलब हरेक चीज आपके कंट्रोल में है. आप दिन में रात कर सकते हैं. आप जो चाहें, कर सकते हैं. हमने कहा, अरे! यह तो अद्भुत है. बताइए, साइंस (विज्ञान) क्या कर सकता है? क्यों नहीं वो भगवान की कुरसी पर बैठेगा? क्या नहीं कर सकता है? प्रोजेक्टेड है कि 2025 होते–होते शरीर के सारे ऑरगन (अंग) आपको बाजार में मिलेंग़े आपके हांथ में दर्द है, तो रिप्लेश कर दीजिए़ इस तरह का भी काम शुरू हो चुका है. ऑपरेशन हो रहा है. हम कहते हैं कि एक कॉमन मैन (सामान्य आदमी) को बनाने में ज्यादा देर नहीं है.. 2025 तक यह चमत्कार भी हो जायेगा. उन लोगों का यह प्रोजेक्शन है कि आपके ही सेल से वो आपका ऑरगन बना देंग़े टिशू रिजेक्शन का कोई सवाल नहीं है. किसी से डोनेशन कुछ भी नहीं. एक आदमी का विंड पाइप खराब हो गया था, उसी का टिशू लेके नया विंड पाइप बना दिया. पुराने वाले को हटाके नया वाला लगा देगा. नो प्रोब्लम़ ही इज फाइन (उसे कोई तकलीफ नहीं है. वह स्वस्थ्य है).
प्रश्न : इसके क्या परिणाम होंगे ?
भाई श्री : इसका परिणाम है कि ऐसा होगा, तो आप मरेंगे नहीं, आपके जीवन में कम–से–कम 25-30 साल की उम्र और जुड़ जायेगी. ऊपर से क्या है, कुछ ऐसा कैप्शूल भी खोज निकाला है कि जिससे बढ़ती उम्र पर कंट्रोल कर लिया जायेगा. उम्र वही स्थिर हो जायेगी. इस तरह कम–से–कम 20 साल तो ऐसे भी जोड़ देंग़े हार्ट खराब होगा, तो नया हार्ट लगा लेंग़े लंग्स (फेफड़ा) खराब होगा, तो नया लंग्स लगा लेंग़े लंग्स का रिप्लेशमेंट हुआ है. साउंड पाइप का भी हुआ है. विंड पाइप का भी हुआ है. एकदम उसी के टिशू को लेकर नया बना कर लगा दिया.
पूरी बॉडी का सकरुलेशन ठीक–ठाक़ कहीं कोई दिक्कत नहीं., उसी के टीशू हैं. यह तुरंत में मिलनेवाले लाभ है. लेकिन, इसका नुकसान भी है. अब सोच रहे हैं कि नुकसान क्या? देखिए, क्या है कि भगवान को हटा कर कुरसी पर साइंस को बैठा दिया है, तो उसका नुकसान तो दिखाई पड़ेगा ऩ वो फैक्टर, जो सबको जोड़ता है, वही गायब हो गया. हम तकनीकी रूप से तो संपन्न हो गये, लेकिन हैं, राक्षस़ हमारे एक मित्र हैं, वो जिम खोल रहे थ़े हमने पूछा, तुम क्या कर रहे हो? उसने कहा, मैं जिम खोल रहा हूं. तब मैने कहा कि अच्छा, तो तुम स्वस्थ गुंड़ा बना रहे हो. गुंड़े आकर यहां व्यायाम करेंग़े हेल्दी रहेंग़े बदमाशी–गुंडागर्दी को बढ़ावा. ऐसा कहने के बाद वह थोड़ी देर सोचता रहा, फिर वोला कि हां, बात तो सही है. अरे! जो सही है, उसे तो मानना होगा न! आदमी को नहीं न बदलोगे, हां उसको थोड़ा ताकत–वाकत दे दोगे, जिम खोल कऱ उसी तरह यह टेक्नोलॉजी है. आदमी, जो अब राक्षस हो गया, उसकी वजह या कारण, यह बड़ी–बड़ी टेक्नोलॉजी है. पहले न यह राक्षस था और न ऐसी टेक्नोलॉजी थी. यह तो क्रमश: हुआ है. आज एक बिंदु पर आमने–समाने है, टेक्नोलॉजी. यह अपने शिखर पर है. इस कारण आदमी में राक्षसी स्वभाव (मोन्स्टर) भी अपने शिखर पर है. मनुष्य का राक्षस बनना, अपने शिखर पर है. इसमें कोई दो राय नहीं है. कहीं भी नहीं है. गांव से लेकर बड़े शहर तक, जर्मनी, अमेरिका, वगैरह–वगैरह, द सेम पैशन वर्कस, द सेम इमोशनस वर्कस़. (एक तरह का भाव, भूख व आकांक्षा) अरे! थोड़ा–बहुत कहीं–कहीं है, लेकिन इसमें भी 19-20 का ही फर्क है. लेकिन, बात वही है.
प्रश्न : बिल्कुल सही कह रहे हैं, आप़ वही परिवार टूटन वगैरह़.
भाई श्री : क्षुद्र शारीरिक सुख, थोड़ी देर का आनंद, सब कुछ तत्काल़ यह इंसटेंट (तत्काल) का जमाना है. इसलिए सब कुछ इंसटेंट यानी तत्काल चाहिए़ अभी इस वक्त यह अच्छा लग रहा हैं, तो चलो कर लेते हैं. क्यों? हम समझते नहीं हैं. समझदार नहीं हैं. खासतौर से आज की पीढ़ी सोचने में सक्षम नहीं है.. उसने अपनी सक्षमता खो दी है. मैंने इस विषय पर ऐसे लोगों से बात की, तो उनमें से कुछ ने कहा कि आप क्या कह रहे हैं? अब देखिए साहब, क्या है कि गांजा पी लिया, तो उसमें क्या है? जिंदगी में आये, धरती पर आये, यही तो एक लाइफ है. देखिए, क्या फिलॉसफी (दर्शन) है. मुझे सुनने में आया कि सरिया जैसी छोटी जगह में भी ऐसा ही लाइफ है. इसी तरह का जीवन है. दूसरे से क्या मतलब है. यह मेरी जिंदगी है. मेरी खुद की जिंदगी है. हम अचंभित होते हैं कि अरे! यह क्या हो गया? अरे! यह तो राक्षस है, उसमें किसी भी तरह का, जरा–सा भी आदमी की पहचान है ही नहीं.
प्रश्न : मेरे मन में सवाल है कि क्या जीवन दुखों से भरा है या करने योग्य कुछ सार्थक चीजें भी हैं, इसमें?
भाई श्री : देखिए, दुख और सुख आपके इंटरप्रीटेशन हैं किसी भी घटना क़े इन दोनों का कोई इंडिपेंडेट एक्जीसटेंस (स्वतंत्र रूप से अस्तित्व) नहीं है. ये दोनों किसी चीज का आश्रय लेकर आते हैं. किसी चीज की पीठ पर बैठ कर आते हैं. मसलन एक घटना घटी. हम सभी सातों लोग सामने थे, लेकिन यदि वो घटना दुख भरी है, तो दुख का जो इंपैक्ट (प्रभाव) है, वो सब पर डिफरेंट (अलग–अलग) होगा. क्यों? क्योंकि यह पर्सनल इंटरप्रीटेशन (निजी व्याख्या) है, घटना का.
अगर सुख है, तो सुख भी अलग–अलग होगा. क्यों? क्योंकि सुख भी पर्सनल इंटरप्रीटेशन (व्यक्तिगत अनुभव) है, घटना का. सुख जो है, वो किसी चीज के सहारे आया है. इसलिए कि सुख–दुख का अपना इंडिपेंडेट एक्जीसटेंस नहीं है. इसलिए जगत, न तो दुख से भरा है और न सुख से भरा है. जगत, जगत है. दुख और सुख उसमें आपका इंटरप्रीटेंशन (व्याख्या या अनुभव) है. आप कैसे उसको इंटरप्रेट करेंग़े एक अच्छा आदमी यह कह सकता है कि एक आदमी दमा से खांस रहा है. थोड़ा कष्ट में है. हां, उसे कष्ट है, लेकिन दुख और कष्ट में अंतर है. कष्ट है, तो हां भाई कष्ट है. इसको अप्रीसिएट (स्वीकार) करने में कोई समस्या नहीं है कि उसको कष्ट है. लेकिन क्या उसको दुख है? क्योंकि दुख उस कष्ट का इंटरप्रीटेशन हो जायेगा. हां, इस कष्ट के कारण ही मुझे दुख है. तब ऐसा भी हो सकता है कि हां कष्ट है, लेकिन दुख नहीं हैं. क्यों नहीं? ऐसा तो कंस्ट्रक्ट (अवधारणा) हो ही सकता है. यह एकदम लॉजिकल है. मैं इस पर विश्वास करने के लिए नहीं कह रहा हूं.
मान लिया कि आपके सामने एक कष्टवाली कहानी बनी कि मुझे पेट में बहुत दर्द है. दर्द से मुझे कष्ट है. मैं छटपट कर रहा हूं. लेकिन, इसमें दुख का सवाल नहीं है. दुख तो उसका इंटरप्रीटेशन होगा. उस कष्ट के कारण़ इसलिए अगर मैं इंटरप्रेट न करूं, तो दुख का अस्तित्व नहीं रहेगा. अगर सुख के कारण मैं सुख को इंटरप्रेट नहीं करूं, तो सुख का कोई अस्तित्व नहीं रहेगा. कहां है, सुख–दुख? आपकी एक आनंदावस्था है. वो बराबर रहती है. वो निर्विघ्न है. वो बाधित नहीं होती. आप आनंदस्वरूप रहते हैं. कुछ होता रहता है. सुख–दुख होता–चलता रहता है. कष्ट–आनंद ये सब होता रहता है. यह होता ही नहीं है, ऐसी बात नहीं है. लेकिन, सुख–दुख का जो इंटरप्रीटेशन है, वो इंटरप्रीटेशन आप किसी विशेष अवस्था में नहीं करते हुए दिखलाई पड़ते हैं.
प्रश्न : लेकिन, आनंद का जो मूल स्वभाव है, वह क्यों दब जाता हैं? उसको सामने लाने के लिए हमें कैसे चौकस रहना चाहिए?
भाई श्री : जैसे सूरज, आकाश में चमक रहा है और बादल आ जाता है. आप देख नहीं पाते, सूरज को. आप बादलों को पहचानते भी सूरज के ही कारण हैं. अगर सूरज न रहे, तो आप बादल भी नहीं पहचान पायेंग़े पहचानते भी सूरज के प्रकाश के कारण हैं, पर सूरज आपको दिखाई नहीं देता. बादल छंटेगा, तो सूरज दिखेगा. हर मनुष्य परिपूर्ण और अपरिपूर्ण (परफेक्शन और इंपरफेक्शन) का एक सम्मिश्रण होता है. कोई भी रिश्ता इसी बात पर टिकता है कि इस इंपरफेक्शन को हम कैसे हैंडल करें? मान लीजिए कि आप हमारे बड़े गहरे मित्र हैं, तो इसका राज इसी में छिपा है कि आप हमारे इंपरफेक्शन को कैसे हैंडल करते हैं. आपकी, मैं कैसे करता हूं? इसी में हमारी दोस्ती का राज छिपा है. वह, उस बादल को छांटेगा, उस इंपरफेक्शन को हटायेगा, तो अपने आप सूरज (आनंद से आशय) दिखायी देगा. यही सत्य है.
प्रश्न : मैं कोई अच्छा काम कर रहा हूं या अपने स्तर से किसी का बुरा नहीं चाहता.. पर, आसपास बहुत सारे लोग हैं, जो आपको पीछे खींचना चाह रहे हैं. आपमें बुराई खोजना चाह रहे हैं कि यह गलत है, वह गलत है, जबकि आप इस तरह की चीजों में नहीं पड़ना चाहत़े इस स्थिति को आप कैसे देखते हैं?
भाई श्री : यह सोशल टेंडेंसी (सामाजिक प्रवृति) बड़ी पुरानी है. मैं हू–ब–हू वह लाइन सुना देता हूं. बाबूजी लिखते हैं, और कब लिखते हैं, 1950 में. उस समय उनका पहला संस्करण छपा था, जिसका नाम था, जीवन के तीन अघ्याय़ बाद में उसका नाम संस्मरण हुआ़ इसमें वह लिखते हैं कि जब भी आप अपने लिए एक लकीर खीचते हैं, अपने लिए खुद एक रास्ता बनाते हैं, तो समाज आपके सामने खड़ा होता है. चाहे जैसा भी आपका समाज है. जिस किसी भी क्षेत्र में आपने अपना रास्ता चुना है, जो सामान्य ट्रेंड से थोड़ा अलग है, उससे थोड़ा हट कर आप होते हैं. तब लोग, अड़ंगा लगाते हैं. यह उनका नेचर (स्वभाव) होता है. नेचर ऑफ द कलेक्टिव (समाज की प्रवृति) है. इस नेचर ऑफ कलेक्टिव को आप अपने जीवन की निष्ठा से ही डील कर सकते हैं. आप जिस रास्ते पर चल रहे हैं, उसमें आपकी कैसी निष्ठा है? कितनी गहरी है? कितनी प्रतिबद्घता और समर्पण है? आपके लिए उसका क्या मतलब है? उसका वैल्यू कितना है आपके जीवन में? प्राइस (कीमत) नहीं. जिस पथ पर आप चल रहे हैं, जो मेनस्ट्रीम से कुछ अलग है, उस पथ पर चलने में आपकी निष्ठा बड़ी है. यदि आप बड़े निष्ठावान होकर चल रहे हैं, तो आपको कोई कुछ नहीं कर सकता.
आप अपने रास्ते चलते जायेंग़े आप किसी चीज से नहीं डरेंग़े समाज में विरोध कैसे होता है? कहीं–न–कहीं बाबूजी के लेख की भूमिका में ही लिखा हुआ है कि यह सोशल ट्रेंड (सामाजिक चलन–प्रथा) है. आपको इसके बारे में क्यों डरना चाहिए? आपको, अपने बारे में सोचना चाहिए़ चिंता करनी चाहिए़ आपको, अपने जीवन के रास्ते में कन्विक्शन (आस्था) लेकर चलना होगा. हां, एक और चीज है, चीजों को सराहना. उसको एप्रीसिएट करना. कभी–कभी हम बड़े लोग भी उस सराहना को खोजते हैं. तुमको भी लगता है कि कुछ लोग हमें भी सराहें, तो अच्छा होता. यह मनुष्य की प्रवृत्ति है. इसमें कोई गलत नहीं है. थ्रो आउट दिस डार्कनेस (अंधेरे को दूर भगाओ). क्यों? क्योंकि और कुछ उपाय नहीं है.
आज की तारीख में यह अंधेरा कदम–कदम पर है. इसमें कोई शक नहीं है.
बाबूजी के संस्करण में है कि भोग और वैराग्य के प्रबल आकर्षणों के बीच संतुलन ढूंढ़ती हुई जीवनधारा चली जा रही है. यह संतुलन जिस कर्मक्षेत्र में ढूंढ़ना पड़ा, उसके द्वार पर ही परिवार, समाज और सरकार ने द्वंद खड़ा कर दिया.. उन्होंने स्पष्ट शब्दों में जोर के साथ कहा कि मेरी मरजी से चलो अथवा रोटी के भी लाले पड़ेंग़े इस तरह समाज की मुख्यधारा आपको खींचती है. बुलाती है. अरे! मेरी मरजी से चलो. अपनी मरजी से चलनेवाले कौन हो? तुम अपना मार्ग चार्ट आउट करनेवाले कौन हो? लोग अपने विचारों और सिद्घांतों के आकर्षण में उलझे हैं, कुछेक जीवन के सुख और शांति के आकर्षण स़े दे आर पुलिंग इच अदऱ ऐसा सब के साथ होता है. रॉबर्ट फ्रास्ट, जो अंगरेजी के प्रसिद्घ कवि थे, उन्होंने कहा था, आइ मेड ए डिफरेंस, आइ चूज ए रोड, लेस ट्रेवल्ड, आइ चूज ए पाथ, लेस ट्रेवल्ड, दैट मेड ए डिफरेंस, दैट सेपरेटस वन फ्रॉम अदर्स़ यदि आप सींसियर हैं, तो आपको तैयार रहना होगा, कीमत देने के लिए़ हमने भी कीमत चुकायी है, अपने जीवन में. सबको इसी प्रोसेस से जाना है.
इसी दर्द से गुजरना है. वो चीजें, जो फोर्सेस के विरुद्घ में हैं, उनके सामने जब आप खड़े होते हैं, तो आप अपनी क्षमता पर, अपनी ताकत पर गौर करते हैं. परिस्थितियां विकट होती हैं, तब अपने आप को जानने के लिए, आपको खुद को चैलेंज करना होगा. अपने इतिहास के बारे में सोचिए़ ऋषियों के बारे में सोचिए़ उनका जो तप होता था, इसीलिए इतना कठिन था. क्योंकि वो अपने आप को चैलेंज करते थ़े खुद को आंकते या परखते थ़े वो परिवर्तनशील रहते थ़े यह परिवर्तनशील (वेरिएबल) शब्द कृष्णमूर्ति ने इस्तेमाल किया था. इस स्टेट ऑफ कांससनेस (चेतना) को बताने के लिए.. जिस स्टेट (दशा) में हम रहते हैं, उसमें हम पुश नहीं करते हैं.
किसी चीज को आमंत्रित नहीं करते है. मेरे गाइड ने एक बार मेरे प्रश्न के उत्तर में 32 साल पहले कहा था कि नाइदर इंडल्ज नॉर सप्रेस़ दैट इज द प्रिस्क्रिप्शन ही गेव़ नाव यू कैन अंडरस्टेंड हाउ डिफिक्लट ऑर थिंग्स़ आप जब अपने रास्ते पर चलते हैं, तो आप देखेंगे कि विरोध के कारण आपके अंदर क्या चेंज आते हैं? आपके कन्विक्शन पर क्या असर पड़ता है उस विरोध का? वो कैसा प्रभाव डाल रहा है आपके ऊपर? आपके विचारों पर आपके कन्विक्शन पर असर हो रहा है? अगर ऐसा कुछ नहीं है, तो बहुत अच्छी बात है. विनोबा जी कहते थे कि सत्याग्रह के दिन लद गय़े कंट्रोवर्सी हो गयी थी. 1963 की बात है.
पूर्णिया में एक आश्रम है. वहीं पर उन्होंने यह बात कही थी. गांधीवादियों ने इसका विरोध भी किया, पर विनोबा बड़े सही थ़े उन्होंने कहा था कि सत्याग्रह का एक समय था. सत्याग्रह का दिन गया. जहां भी सत्य है, उसको आप ले लीजिए़ आप भी देखिए कि आपके जो अपोनेंटस (विरोधी) हैं, जो आपका विरोध कर रहे हैं या जो भी कुछ कर रहे हैं, वो आपको क्या कर रहे हैं? आपके भीतर किस तरह का बदलाव कर रहे हैं? क्या उनमें कुछ सत्य है? वो कुछ सत्य बोल रहे हैं? अगर है, तो निश्चित रूप से उसको स्वीकार कर लीजिए़ नहीं तो रिजेक्ट कर दीजिए़ अपने दिमाग में मत रखिए़ हम बेवजह कूड़ा–कचरा अपने दिमाग में रखते हैं.
यह तो कोई समझदारी की बात नहीं है. हां, यदि कोई वर्क दिमाग में रखने लायक है, तो मान लीजिए़ मेरे जैसा कोई आदमी चाहता है कि मैं अपने मन में सिर्फ भगवान का ही मान रखूं, तो सेंसीबल बात कही जायेगी. चाहे कोई भी क्यों न हो, जो कमेंट करते हैं, उन्हें जाने दीजिए़ वो भी अपना काम कर रहा है और अपने ढंग से कर रहा है. उनके शब्दों को अपने दिमाग में मत रखो. अगर उसमें कोई सत्य हो, तो जरूर ले लीजिए़ सत्यग्राही बनो.
* हरिद्वार में एक साधु ने हमसे कहा कि वह पैसेवाला है, वह भगवान को क्यों खोजेगा? उसके पास पैसे हैं. तुम मूर्ख हो, तुम इतनी छोटी–सी बात नहीं समझ सकते.. वह अमीर आदमी है. वह भगवान को क्यों खोजेगा? उसके पास पैसा है. तब हमको याद आया कि क्राइस्ट (ईसा) ने कहा था कि ऊंट, सूई की नोक से पार कर सकता है, पर एक धनी स्वर्ग में प्रवेश नहीं पा सकता. पूरा वेस्टर्न वर्ल्ड क्रिश्चियन वर्ल्ड (ईसाई संसार) है. मार्केटिंग वगैरह सब कुछ वहीं पुष्पित–पल्लवित हुआ़ वहीं पर इस महापुरुष ने कहा कि कैमल कैन पास़ और, तब भी रुपया और हाय रुपये की कहानी ने पश्चिम के जीवन को एकदम पजल (जटिल) कर दिया है. माननेवाली बात है कि आज रुपया क्या नहीं कर सकता है?