दक्षा वैदकर
कुछ लोगों को बिना मांगे सलाह देने की आदत होती है. वे किसी को बेवकूफी करते देख चुप नहीं रह पाते और सलाह दे देते हैं. हालांकि उनका उद्देश्य अच्छा होता है. वे सिर्फ सामनेवाले की भलाई चाहते हैं, लेकिन कई लोग इस बात को गलत अर्थ में ले लेते हैं. अब ये कहानी ही पढ़ लें.
बहुत समय पहले की बात है. नर्मदा नदी के किनारे एक विशालकाय वृक्ष था. इस पर बड़ी संख्या में पक्षियों के घोसले थे. पेड़ इतना घना था कि भारी बारिश में भी घोसलों का कुछ नहीं बिगड़ता था. एक दिन मानसून की भारी बारिश हुई. घंटों तक रुकने का नाम नहीं ले रही थी. बारिश के साथ तेज हवा भी चल रही थी. तभी बंदरों का एक झुंड वहां पहुंचा. बंदर बहुत भीग चुके थे और ठंडी हवा के झोंकों से कांप रहे थे.
घोसलों में बैठे पक्षियों ने बंदरों की यह हालत देखी. उनमें से एक पक्षी बंदरों से बोला, ‘तुम्हें हर बार बारिश में इस तरह परेशान क्यों होना पड़ता है? हमें देखो, हमने सिर्फ घास-फूस और तिनके लाकर ही अपने घोंसले बनाये हैं और आज हम सुरक्षित हैं, लेकिन ईश्वर ने तुम्हें दो हाथ, दो पैर दिये हैं, जिनका इस्तेमाल तुम इधर-उधर कूदने और खेलने में करते हो. तुम अपने लिए घर क्यों नहीं बना लेते, जो बारिश-धूप में तुम्हारी रक्षा करेगा.’
पक्षी की यह बात सुन कर बंदर आग-बबूला हो गये. उन्हें लगा कि यह पक्षी हमारे बारे में इस तरह से कैसे बात कर रहा है. बंदरों को लगा कि यह पक्षी अपने घोसले में बैठ कर हमें उपदेश दे रहा है. ‘बारिश रुक जाने दो, तब हम इन्हें सबक सिखायेंगे.’ बंदरों के सरदार ने कहा.जैसे ही बारिश थमी, सारे बंदर पेड़ पर चढ़ गये और उन्होंने घोसलों को तबाह कर डाला. घोसलों में रखे अंडों को फोड़ दिया. अब पेड़ पर घोसलों का नामोनिशान नहीं रह गया था. नतीजा यह हुआ कि पक्षियों ने इधर-उधर उड़ कर अपनी जान बचायी. इसलिए कहा गया है कि सलाह हमेशा समझदार को देनी चाहिए और वह भी तब, जब मांगी जाये. मूर्खो को सलाह कभी नहीं देना चाहिए.
बात पते की..
– सलाह देना अच्छी बात है, लेकिन सलाह देने के पहले सामने वाले व्यक्ति का स्वभाव देख लें. यह अच्छी तरह समझ लें कि कहीं वह मूर्ख तो नहीं?
– बिना मांगे किसी को सलाह न दें, वरना सलाह की अहमियत कम हो जाती है. सलाह तभी देनी चाहिए, जब खुद सामने वाला आपसे आ कर मांगे.