दुर्गम भौगोलिक इलाकों में सरहद की सुरक्षा सैनिकों के लिए बहुत बड़ी चुनौती है. इस चुनौती से निबटने में कामयाब हो सकती है लेजर बीम आधारित तकनीक. भारत-पाक सीमा पर निगरानी के लिए इसका इस्तेमाल करने की योजना है. क्या है लेजर बीम तकनीक, दुनियाभर में किन अन्य सर्विलांस कार्यो में किया जाता है इसका इस्तेमाल, एयरपोर्ट पर इससे कैसे हो रही है निगरानी आदि की जानकारी आज के नॉलेज में..
कन्हैया झा
पाकिस्तान से सटी सीमा पर देश के एक बड़े इलाके में भले ही कंटीले तारों से बाड़बंदी की जा चुकी है, लेकिन अवैध घुसपैठ को पूरी तरह से नियंत्रित नहीं किया जा सका है. दरअसल, जम्मू-कश्मीर में पाकिस्तान की सीमा पर बेहद दुर्गम भौगोलिक क्षेत्र (पहाड़ियां, घाटियां, नदियां आदि) होने के कारण इन इलाकों में अवैध घुसपैठ को नियंत्रित करना सैन्यकर्मियों के लिए एक बड़ी चुनौती बना हुआ है. इसलिए सीमा पर घुसपैठ को रोकने के लिए जल्द ही लेजर वॉल और एंटी टनल सेंसर जैसी तकनीकों का सहारा लिया जायेगा. एक अंगरेजी अखबार की रिपोर्ट के मुताबिक, सीमा की चौकसी के लिए सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) अब इस विकल्प पर गंभीरता से विचार कर रहा है. लेजर वॉल बनने के बाद अगर बिना बाड़बंदी वाले रास्ते से कोई अवैध घुसपैठिया भारतीय सीमा में घुसने की कोशिश करेगा, तो अलार्म सिस्टम सुरक्षा बलों को एलर्ट कर देगा.
रिपोर्ट के मुताबिक, इजराइल समेत कई अन्य देशों में सीमा पर चौकसी के लिए इन तकनीकों का इस्तेमाल पहले से ही हो रहा है. बीएसएफ के महानिदेशक डीके पाठक के हवाले से इस रिपोर्ट में बताया गया है कि सीमा पर नयी चुनौतियों का सामना करने के लिए हथियारों और चौकसी के स्तर पर अत्याधुनिक तकनीकों का सहारा लिया जायेगा. सुरक्षा बल के सूत्रों का कहना है कि कुछ सीमावर्ती इलाकों में बाड़बंदी करना संभव नहीं है. ऐसे इलाकों में लेजर बीम की एक दीवार बनायी जायेगी. यदि इस दीवार को कोई क्रॉस करने की कोशिश करेगा तो अलार्म बज उठेगा और सुरक्षा बल चौकन्ने हो जायेंगे.
भारत-पाक सीमा पर निगरानी
भारत-पाक सीमा पर मौजूदा समय में करीब 15 फीसदी और बांग्लादेश से सटी सीमा पर 35 फीसदी हिस्से में बाड़बंदी नहीं है. सीमा पर घुसपैठ करने के लिए आतंकी सुरंग का भी इस्तेमाल करते हैं, लिहाजा इस चुनौती से निपटने के लिए बीएसएफ सिसमिक सेंसर का इस्तेमाल करेगी, जिन्हें बॉर्डर के साथ-साथ जमीन के भीतर लगाया जायेगा. अगर आतंकी इन हिस्सों में सुरंग बनाने की कोशिश करेंगे तो जमीन में कंपन पैदा होगी और सेंसर कंट्रोल रूम को एलर्ट भेज देंगे. जम्मू और पंजाब में पाकिस्तान से सटी सीमा पर कई बार सुरंग के सहारे घुसपैठ की कोशिश के मामले सामने आ चुके हैं, लिहाजा टनल सेंसर का इस्तेमाल इन क्षेत्रों में घुसपैठ रोकने के लिए किया जायेगा. बीएसएफ ‘स्मार्ट फेंसिंग सिस्टम’ बना कर भी घुसपैठ पर लगाम कसेगी. इसके लिए सीमा पर थर्मल सेंसर लगाये जायेंगे. इसके अलावा बीएसएफ सीमा पर चौकसी बढ़ाने के लिए सर्विलांस उपकरण भी तैयार कर रहा है.
लेजर वॉल से थमेगी घुसपैठ
इजराइल में आतंकी घुसपैठ रोकने के लिए जेरूसलम में लेजर वॉल लगायी गयी है. जैसे ही कोई भी घुसपैठिया सीमा की तरफ बढ़ता है या बिना फेंसिंग के क्षेत्र में बीम को पार करने की कोशिश करता है तो एलार्म बज उठता है. लेजर वॉल नदियों और घाटियों जैसे इलाकों के लिए ज्यादा कार्यसक्षम है, क्योंकि यहां फेंसिंग नहीं की जा सकती.
‘इजराइल नेशनल न्यूज’ की एक रिपोर्ट के मुताबिक, इजराइल में लगाया गया लेजर आधारित हथियार शॉर्ट-रेंज मिसाइल को भी निष्क्रिय कर सकता है. ऐसे खतरे की आशंका होने पर एक फ्लैश चमकेगा और लेजर अपने लक्ष्य को नष्ट कर देगा. अमेरिका के साथ काम करते हुए इंजीनियरों ने इसे विकसित किया.
स्मार्ट फेंसिंग से एलर्ट जारी
स्मार्ट फेंसिंग सिस्टम मौजूदा फेंसिंग सिस्टम को ज्यादा तकनीकों से लैस करते हुए उसकी गुणवत्ता को बढ़ाता है. किसी तरह की घुसपैठ की आशंका होने पर यह तुरंत उसकी पहचान कर लेगा और अनाधिकृत घुसपैठ की दशा में दृश्यमान एलर्ट जारी करेगा. किसी भी प्रकार के फेंसिंग ढांचे पर इसे लागू किया जा सकता है. ‘इयोन इनफोटेक’ के मुताबिक, एयरपोर्ट, रक्षा संस्थानों समेत अंतरराष्ट्रीय सीमाओं पर फैंसिंग सिस्टम में इसे लगाया जा सकता है. इसमें मुख्य रूप से चार उपकरण लगाये जाते हैं- सेंसर, एलार्म प्रोसेसर (फील्ड यूनिट/ सेक्टर कंट्रोलर), कंट्रोल रूम/ एलार्म मॉनिटरिंग स्टेशन और इन्हें आपस में जोड़ने वाला कम्युनिकेशन बैकबोन. विभिन्न जोनों में अलग-अलग प्रकार के आवाज करने वाले एलार्म लगाये जाते हैं. इससे किसी प्रकार के खतरे की दशा में एलार्म बजने पर यह जाना जा सकता है कि किस खास इलाके में खतरा है. यह पूरा सिस्टम माइक्रोकंट्रोलर पर आधारित है और सॉफ्टवेयर से संचालित है. साथ ही इसमें फिजिकल पेट्रोलिंग की जरूरत नहीं पड़ती और सभी सूचनाएं कंट्रोल रूम में बैठे हुए ही हासिल की जा सकती हैं.
गीगाबाइट की स्पीड से होगा डाटा ट्रांसफर
डाटा ट्रांसफर का भविष्य फोटोनिक को माना जा रहा है. लेजर आधारित यह कम्युनिकेशन एक बार में वृहत्तर आंकड़ों को स्थानांतरित कर सकता है और वह भी रेडियो तरंगों की स्पीड के मुकाबले ज्यादा तेजी से. ‘डिफेंस एंड सिक्योरिटी- एयर बस डीएस’ की रिपोर्ट के मुताबिक, अंतरिक्ष समेत सतह और पानी के भीतर इसका सफल प्रयोग किया जा चुका है. बताया गया है कि लेजर आधारित इस तकनीक को एयरबस डीएस ऑप्ट्रॉनिक्स ने विकसित किया है. ऑप्टिकल कम्युनिकेशन गीगाबाइट की स्पीड से आंकड़ों को संप्रेषित करता है. विशेषज्ञों का कहना है कि नेटवर्क पर आधारित कार्यो के लिए यह तकनीक वरदान साबित हो सकती है. ऑप्टिकल कम्युनिकेशन के इस प्रारूप को लंबी दूरी तक फैलाया जा सकता है. इसकी बड़ी खासियत यह है कि टेप-प्रूफ होने के साथ यह केबल्स द्वारा लगायी गयी बाधाओं से मुक्त है. मल्टीपल ट्रांसमीटर्स और रिसिविंग टर्मिनल्स के बीच इसे नेटवर्क कम्युनिकेशन के तौर पर स्थापित किया जाता है, ताकि यह प्वाइंट-टू-प्वाइंट और प्वाइंट-टू-मल्टीप्वाइंट ट्रांसमिशन कार्याे में सक्षम हो. रिमोट यूनिट के माध्यम से आंकड़ों की भरोसेमंद आवाजाही के लिए कमांड, कंट्रोल और इंटेलीजेंस का होना बहुत जरूरी है. आज इस सवाल का जवाब रेडियो फ्रिक्वेंसी टेक्नोलॉजी है. लेकिन ये रियल टाइम में आंकड़ों को संप्रेषित नहीं कर पाते. सीमित फ्रिक्वेंसी बैंड के कारण इसकी कुछ सीमाएं हैं. रेडियो फ्रिक्वेंसी टेक्नोलॉजी विशाल आंकड़ों के संप्रेषण में पूरी तरह सक्षम नहीं है और इसमें कई बार आंकड़े क्षय भी हो जाते हैं. विशेषज्ञों का मानना है कि लेजर आधारित तकनीक से इस समस्या से निबटा जा सकता है. उच्च बैंडविड्थ और संप्रेषण की तेज दर सर्विलांस की जरूरतों को पूरा करेगी और कम लागत में उच्च क्षमता मुहैया करायेगी.
लेजर आधारित सिक्योरिटी सिस्टम : ऑप्टिल कम्युनिकेशन उपकरण बोर्डर सर्विलांस एप्लीके शंस के लिए अनकंप्रेस्ड एचडी डाटा को संप्रेषित कर सकते हैं. प्रायोगिक तौर पर कार्यक्षेत्र में ये अपनी दक्षता को साबित भी कर चुके हैं.