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अब होगी बिना मिट्टी की खेती

दुनियाभर में बढ़ते शहरीकरण के कारण खेती योग्य जमीनों का रकबा कम हो रहा है, लेकिन अब मिट्टी के बिना खेती की तकनीक पर कई देशों में तेजी से काम चल रहा है. पंजाब एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी ने ऐसी ही तकनीक का सफलतापूर्वक परीक्षण किया है. क्या है खेती की यह तकनीक और कैसे मिट्टी के […]

दुनियाभर में बढ़ते शहरीकरण के कारण खेती योग्य जमीनों का रकबा कम हो रहा है, लेकिन अब मिट्टी के बिना खेती की तकनीक पर कई देशों में तेजी से काम चल रहा है. पंजाब एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी ने ऐसी ही तकनीक का सफलतापूर्वक परीक्षण किया है. क्या है खेती की यह तकनीक और कैसे मिट्टी के बिना ही सब्जियों को उगाने में मिल रही है सफलता, बता रहा है आज का नॉलेज..

अजय कुमार राय

देशभर में आवासीय इलाकों में बढ़ोतरी हो रही है, जिससे खेती की जमीन कम हो रही है. इससे भविष्य में खाद्यान्न उत्पादन पर असर पड़ सकता है. हालांकि, बदलते दौर में पैदा होनेवाली नयी चुनौतियों से निबटने के लिए वैज्ञानिक निरंतर शोधकार्यो में जुटे रहते हैं. आज दुनियाभर में कृषि की बेहतरी के लिए नये-नये रिसर्च हो रहे हैं.

काफी अरसे से वैज्ञानिक इस खोज में जुटे हैं कि छतों पर भी सब्जियों आदि की खेती कैसे की जा सकती है. कृषि वैज्ञानिकों ने इस दिशा में बड़ी कामयाबी हासिल की है. जेनेटिक्स साइंस ने इसके नये आयाम खोल दिये हैं. हालांकि अब भी जब हम कृषि के बारे में सोचते हैं तो उसके साथ उपजाऊ भूमि यानी खेतों की तसवीर भी उभरती है. लेकिन, हमें इस कटु सच्चई को स्वीकारना होगा कि जमीन का विस्तार नहीं हो सकता. जैसे-जैसे अर्थव्यवस्था का आकार बढ़ रहा है, वैसे-वैसे भूमि भी सिकुड़ने लगी है. आबादी बढ़ने से भी संसाधनों पर भी दबाव बढ़ रहा है. तो फिर भविष्य में भी खेती योग्य जमीनों में कमी आने की पूरी आशंका है. ऐसे में जरूरी हो जाता है कि मानव जीवन का अस्तित्व बनाये रखने के लिए कृषि के नये तरीके खोजे जाएं.

इसी कड़ी में आता है बिना मिट्टी के खेती करने का विचार. मिट्टी में फल-सब्जियों को उगते सभी ने देखा होगा, लेकिन यदि कहा जाये कि बिना मिट्टी के भी फल-सब्जियां पैदा हो सकती हैं, तो सुन कर थोड़ा अटपटा लगेगा, लेकिन ऐसा संभव है. इजराइल, जापान, चीन और अमेरिका आदि देशों के बाद अब भारत में भी यह तकनीक दस्तक दे चुकी है. इसकी सफलता को देखते हुए इंडोनेशिया, सिंगापुर, सऊदी अरब, कोरिया जैसे देशों से इस तकनीक की मांग तेजी से बढ़ रही है. किसान इस तकनीक से खीरा, टमाटर, पालक, गोभी, शिमला मिर्च जैसी सब्जियां उगा सकते हैं.

बिना मिट्टी के खेती

इस तकनीक को स्वॉयललेस कल्टीवेशन कहा जाता है. वैज्ञानिकों ने इसे हाइड्रोपोनिक्स यानी जलकृषि नाम दिया है. इसमें मिट्टी का प्रयोग नहीं होता है. पौधों को पानी भरे एक बर्तन में उगाया जाता है. परंतु सिर्फ पानी में रख देने मात्र से ही पौधे नहीं उगते, बल्कि अन्य इंतजाम करने होते हैं. इसमें पौधों के विकास के लिए जरूरी पोषक तत्वों का घोल पानी में मिला दिया जाता है.पोषक तत्वों व ऑक्सीजन को पौधे की जड़ों तक पहुंचाने के लिए एक पतली नली या पंपिंग मशीन का प्रयोग होता है.

जलकृषि की दो प्रमुख पद्धतियां अभी प्रयोग में लायी जा रही हैं- घोल विधि और माध्यम विधि. घोल विधि में जड़ों के फैलाव के लिए ठोस पदार्थ का प्रयोग नहीं करते हैं. इसमें पौधों को पानी से भरे एक बर्तन में वैज्ञानिक तरीके से रखा जाता है और फिर पोषक तत्वों का घोल प्रवाहित किया जाता है. पौधों की जड़ों तक ऑक्सीजन और पोषक तत्व पहुंचाने की प्रक्रिया वैज्ञानिकों ने निर्धारित कर रखी है. घोल विधि तीन प्रकार की है- स्थैतिक घोल विधि, सतत बहाव विधि और एयरोपोनिक्स. स्थैतिक घोल विधि में पौधों को पानी युक्त बर्तन में रखा जाता है और फिर पोषक तत्वों के घोल को धीरे-धीरे या रुक-रुक कर नली या पंप से प्रवाहित किया जाता है. जब पौधे कम हों तो यह विधि प्रयोग में लायी जाती है. ऐसा होने से जड़ों को ऑक्सीजन भी मिलता रहता है.

खेती की डीप वाटर विधि

सतत बहाव घोल विधि में पोषक तत्वों के घोल को लगातार जड़ों की ओर प्रवाहित किया जाता है. जब बड़े से बर्तन में ढेरों पौधों को उगाना हो तो इसका प्रयोग करते हैं. इन्हें डीप वाटर विधि भी कहा जाता है. आमतौर पर एक हफ्ते में घोल को बदल दिया जाता है अथवा जब घोल निर्धारित स्तर से कम हो जाता है तो पानी या पोषक तत्वों को मिलाया जाता है. वहीं एयरोपोनिक्स में पोषक तत्वों को पौधों की जड़ों में एयरोसॉल के रूप में प्रयोग करते हैं. बीजों को अंकुरित करना हो या आलू, टमाटर व पत्तेदार सब्जियोंके लिए यह काफी उपयोगी है.

अंतरिक्ष में खेती की तैयारी

इस तकनीक पर नासा का विशेष ध्यान है, क्योंकि अंतरिक्ष में जीरो ग्रेविटी में द्रव की तुलना में एयरोसॉल को बेहतर तरीके से नियंत्रित किया जा सकता है. इसमें हाइड्रोपोनिक्स की तुलना में 65 फीसदी से भी कम पानी लगता है. वहीं माध्यम विधि में पानी का प्रयोग नहीं के बराबर होता है. पौधों की जड़ों को ठोस पदार्थो पर फैलाया जाता है. इन ठोस पदार्थो में नमी बनाये रखने की क्षमता होनी चाहिए. दूसरे शब्दों में कहें तो इस विधि में पौधों को पानी में उगाने की बजाय ठोस पदार्थ जो नमी को सोख सके, उस पर उगाया जाता है.

इस तकनीक में मिट्टी के स्थान पर ठोस पदार्थ के रूप में मिट्टी की गोली, बालू, बजरी, धान की भूसी, फैलने वाली मिट्टी, कंकड़, नारियल का जट्टा, राख, लकड़ी का चूरा, ऊन आदि हो सकते हैं. वहीं पौधों का वेस्ट जैसे जूट, नारियल, मिनरल, वर्मी कुलाइट आदि के मिश्रण का भी प्रयोग किया जाता है. इनमें पानी रोकने की क्षमता अधिक होती है और यह भुरभुरा होता है ताकि जड़ों को हवा मिल सके.

उपयोगी पोषक तत्व

हाइड्रोपोनिक्स विधि द्वारा खेती में ऐसे पोषक तत्वों को प्रयोग में लाया जाता है, जो जल में घुलनशील होते हैं. इनका रूप प्राय: अकार्बनिक तथा आयनिक होता है. कैल्सियम, मैग्निशियम और पोटैशियम प्राथमिक घुलनशील तत्व हैं. वहीं प्रमुख घोल के रूप में नाइट्रेट, सल्फेट और डिहाइड्रोजन फॉस्फेट उपयोग में लाये जाते हैं. पोटेशियम नाइट्रेट, कैल्सियम नाइट्रेट, पोटेशियम फास्फेट और मैग्निशियम सल्फेट रसायनों का भी प्रयोग होता है. इसके अलावा आयरन, मैगनीज, कॉपर, जिंक, बोरोन, क्लोरीन और निकल का भी प्रयोग होता है.

इस तकनीक की खासियत

हाइड्रोपोनिक तकनीक की विशेषता यह है कि इसमें मिट्टी के बिना और पानी के कम इस्तेमाल से सब्जियां पैदा की जाती हैं. चूंकि इसमें मिट्टी का प्रयोग नहीं होता, इसलिए पौधों के साथ न तो अनावश्यक खर-पतवार उगते हैं और न इन पौधों पर कीड़े- मकोड़े लगने का डर रहता है. इसके लिए आपको खेत की जरूरत नहीं पड़ती, बल्कि अगर आप शहर में रह रहे हैं तो अपने मकान की छत पर भी सब्जियां उगा सकते हैं. इस तकनीक में क्यारी बनाने और पौधों में पानी देने की जरूरत नहीं होती, इसलिए परिश्रम और लागत कम है. हाइड्रोपोनिक तकनीक से लगातार पैदावार ली जा सकती है और किसी भी मौसम में सब्जियां पैदा की जा सकती हैं. साथ ही जल और एग्री इनपुट्स की बर्बादी भी कम होती है. यह तकनीक पत्ते वाली सब्जियों के लिए ज्यादा उपयुक्त है. एक किलो सब्जी को खेत में उगाने पर 1800 से 3000 लीटर पानी की जरूरत पड़ती है, लेकिन हाइड्रोपोनिक तकनीक से केवल 15 लीटर पानी से एक किलो सब्जी पैदा की जा सकती है. इस विधि में खेती के आधुनिक उपकरणों की जरूरत नहीं होती. इसमें काफी कम पूंजी की जरूरत होती है. सभी काम प्रबंधकीय होते हैं जैसे पानी देना और खाद देना, जिससे चोट लगाने की संभावना नहीं होती. इस तकनीक से द्वीप, पहाड़ी क्षेत्रों और जहां मिट्टी नहीं है यानी अंतरिक्ष में भी कारगर है. ‘नासा’ भी हाइड्रोपोनिक्स पर शोध कर रहा है. उसकी योजना मंगल पर खेती की है. वह इसका प्रयोग स्पेस प्रोग्राम में भी करना चाहता है. इस पर सूखा, बाढ़ आदि प्राकृतिक आपदाओं का भी कोई प्रभाव नहीं पड़ता है.

हाइड्रोपोनिक्स तकनीक से लाभ

सब्जियों और अन्य फसलों की उत्पादन क्षमता को बढ़ाने के लिए पिछले दशकों में विभिन्न प्रकार के रसायनों के प्रयोग से तात्कालिक उत्पादन तो बढ़ा, परंतु धीरे-धीरे भूमि की भौतिक दशा खराब हो गयी और उर्वरा शक्ति भी कम होती गयी. इसे नियंत्रित करने के लिए वैज्ञानिकों ने कई तकनीकों का आविष्कार किया और कई प्रयोग किये. इसी क्रम में हाइड्रोपोनिक्स तकनीक भी सामने आयी है. यह विधि कामयाब भी हो रही है. इससे सामान्य विधि से तैयार फसलों की तुलना में न सिर्फ पैदावार अधिक मिल सकती है, बल्कि स्वस्थ सब्जियां उगायी जा सकती हैं.

शुरू से ही पौधा स्वस्थ होने के कारण तैयार सब्जियों की गुणवत्ता भी बढ़ जाती है. नतीजन सभी पौष्टिक तत्व बरकरार रहते हैं. रसायनों व कीटाणुनाशकों का इन सब्जियों पर कोई असर नहीं होता. कीटनाशकों प्रयोग नहीं किया जाता और सब्जी लंबे समय तक खराब भी नहीं होती. इस तकनीक से तैयार सब्जियां पूर्ण रूप से ऑर्गेनिक होती हैं. आज के दौर में फसलों को तैयार करने के लिए अंधाधुंध रसायनों और कीटनाशक का प्रयोग किया जाता है, जिससे स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ रहा है. इस तकनीक से कृषि जनित ग्रीनहाउस गैसों के उत्सजर्न को भी नियंत्रित किया जा सकता है.

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