लंबी आयु का राज जानने के लिए दुनिया भर में शोध और अध्ययन होते रहे हैं. इनका मकसद यह पता लगाना है कि एक स्वस्थ एवं लंबी आयु के लिए सेहत के प्रति सजगता व सात्विक जीवन की जरूरत है या इसके लिए अनुवांशिक कारक भी जिम्मेवार हैं. जानिए क्या कहते हैं कुछ हालिया शोध नतीजे.
दुनियाभर में बुजुर्ग लोगों की जीवन-प्रत्याशा लगातार बढ़ रही है. भारत में 106 वर्षीय शास्त्रीय गायक उस्ताद अब्दुल राशिद खान और 94 साल की नृत्यांगना सितारा देवी को मिसाल के तौर पर देखा जा सकता है. विश्वस्वास्थ्य संगठन की एक रपट के मुताबिक 2050 तक दुनिया में 60 और उससे ज्यादा वर्ष के लोगों की संख्या के बढ़कर दो अरब हो जाने का अनुमान है. आज यह संख्या 84 करोड़ है. यानी बुजुर्गों की संख्या में करीब 1.15 अरब का इजाफा अलगे 36 वर्षों में लगाया गया है. ऐसा नहीं है कि बुजुर्ग लोगों की संख्या पश्चिम के समृद्ध देशों में ही बढ़ेगी. रिपोर्ट के मुताबिक इस वृद्धि में बांग्लादेश जैसे कम और मध्ययम आय वाले देशों का योगदान 80 फीसदी होगा. इस दौरान यह जानने की कोशिशें भी तेज हो गयी हैं कि आखिर लंबी आयु का राज क्या है?
क्या जीन है लंबी उम्र का कारण!
स्टैंडफोर्ड यूनिवर्सिटी के एक हालिया शोध में लंबी आयु का राज जानने की कोशिश की गयी. दुनिया भर के 17 सबसे उम्रदराज लोगों पर किये गये इस शोध में यह पता लगाने की कोशिश की गयी कि क्या उनकी लंबी उम्र के पीछे कोई अनुवांशिक या कहें जेनेटिक कारण है! क्या उनकी अनुवांशिक संरचना में उन्हें औरों से अलग करनेवाली कोई खास बात है. जिन लोगों के जीन के नमूने लिए गये, उनकी उम्र 110 से 116 साल के बीच थी, जिनमें 16 महिलाएं थीं और एक पुरुष था. इनमें अधिकतर बुजुर्ग सक्रिय थे. एक बुजुर्ग की 103 साल की आयु तक चिकित्सक के तौर पर प्रैक्टिस जारी थी, वहीं एक और वृद्ध ने 107 की उम्र तक कार चलायी. शोध में उनकी लंबी आयु के साथ इस उम्र में भी सक्रियता का राज जानने की कोशिश की गयी. स्टैंफर्ड यूनिवर्सिटी में डेवेलपमेंट बायोलॉजी और जेनेटिक्स के प्रोफेसर स्टुअर्ट किम के अनुसार,‘लंबी उम्र के राज जानना आसान नहीं. यह लंबी आयु के लिए जिम्मेदार जीन की खोज में यह रिसर्च महज एक शुरुआत है. हम उम्मीद कर रहे थे कि हमें लंबी आयु के लिए जिम्मेदार खास जीन का पता लगेगा. लेकिन शोध में शामिल किये गये बुजुर्गों के जीन में कोई एक समानता नहीं पायी गयी. यह परिणाम इस तरफ इशारा करते हैं कि लंबी आयु में कई कारकों की भूमिका होती है.’ स्टुअर्ट किम की रिपोर्ट साइंस की प्लोस वन पत्रिका में प्रकाशित हुई है.
बुढ़ापा महज एक रोग है, जिसका उपचार संभव है!
हाल ही में द मिंट में एक रोचक रिपोर्ट छपी जिसमें यह कहा गया कि बुढ़ापा महज एक रोग है, जिसका उपचार किया जा सकता है और लोग 200 वर्ष तक की उम्र तक जी सकते हैं. ब्रिटिश जेरेंटोलॉजिस्ट ऑडब्रे ग्रे को उद्धृत करते हुए इस रिपोर्ट में कहा गया है कि बुढ़ापे का इलाज किया जा सकता है और यह कोई हैरत की बात नहीं होगी कि आज जीवित कोई व्यक्ति 1000 वर्ष तक जी सके. हालांकि यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया के इवोल्युशनरी बाइलोजिस्ट माइकल रोज इस बात से इत्तेफाक नहीं रखते, लेकिन वे कहते हैं कि बायोमेडिकल रिसर्च में हुई प्रगति को देखते हुए कहा जा सकता है कि 2050 के बाद जन्मे लोग दो शताब्दी तक जी सकेंगे. फिलहाल वर्ष 2000 के बाद जन्मे लोग शतक बना सकते हैं.
खुशी में छिपा लंबी उम्र का राज!
ब्रिटेन में हुए एक सर्वेक्षण के मुताबिक जिन लोगों के जीवन का एक मकसद है, वे ज्यादा लंबी उम्र जीते हैं. द लैंसेट ने ब्रिटेन मे करीब 9000 लोगों पर यह शोध आठ वर्षों तक किया. शोध रिपोर्ट में कहा गया है कि जिनके जीवन का कोई लक्ष्य है, उनके लंबे जीने की संभावना कहीं ज्यादा है. रिपोर्ट के लेखक, एंड्रयू स्टेपटो के मुताबिक आत्मनिर्भरता और व्यस्तता को लंबी उम्र का राज माना जा सकता है. जरूरी नहीं है कि जीवन का उद्देश्य महान हो. बागवानी करना, खाना बनाना, परिवार और बच्चों के साथ व्यस्त रहना, पड़ोसियों की मदद करना, ये सब जीवन में एक मकसद और अपने जीवन पर नियंत्रण की भावना ला सकते हैं.
अधिक उम्र : चिंताएं और चुनौतियां
जीवन प्रत्याशा यानी जीने की औसत आयु बढ़ना एक डेमोग्राफिक बदलाव है, जो कम आय वाले देशों में स्वास्थ्य सेवाओं की उपलब्धता में वृद्धि और जीवन स्थितियों के बेहतर होने की ओर इशारा कर रहा है. हालांकि यह एक तथ्य है कि सिर्फ बढ़ी हुई उम्र ही नियामत नहीं है. असल नियामत यह है कि बुढ़ापा स्वस्थ और खुशहाल हो और व्यक्ति स्वतंत्र रूप से रहते हुए समुदाय और समाज में योगदान देना. इसके लिए जरूरी है कि आनेवाले वर्षों में स्वास्थ्य सेवाओं में और सुधार किया जाये. विशेषज्ञों का कहना है कि जीवन-पयर्ंत हेल्थ प्रोमोशन और रोग-निरोधक गतिविधियों का विस्तार करके हृदय रोग, स्ट्रोक और कैंसर जैसे गैरसंचारी और असाध्य बीमारियों को ज्यादा समय तक टाला जा सकता है या उसे रोका जा सकता है. गौर करने लायक बात यह है कि ये बीमारियां बुजुर्गों की मौत का प्रमुख कारण हैं. लैंसेंट शोध जर्नल में स्वास्थ्य और बुढ़ापे पर प्रकाशित एक नयी रपट यह चेतावनी देती है कि जब तक जब स्वास्थ्य तंत्र द्वारा बूढ़ी हो रही जनसंख्या की स्वास्थ्य समस्याओं के बेहतर निदान की ओर कदम नहीं उठाया जायेगा, तब तक बूढ़े हो रहे लोगों को असाध्य बीमारियों से महफूज रखना मुमकिन नहीं हो पायेगा.
उम्र बढ़ रही है, लेकिन स्वास्थ्य नहीं
लोगों की जीवन-प्रत्याशा बढ़ी है, इसका मतलब यह नहीं कि वे पहले से ज्यादा स्वस्थ हैं. दुनिया में होनेवाली कुल मौतों और रोगों का लगभग एक चैथाई बुजुर्ग लोगों यानी साठ से ज्यादा उम्र के लोगों से संबंधित है. इन रोगों में कैंसर, सांस की असाध्य बीमारियां, हृदय रोग, मांशपेशियों और हड्डियों की बीमारियां और मानसिक और तंत्रिका तंत्र संबंधी रोग प्रमुख हैं. एक अनुमान के मुताबिक 2050 तक डिमेंशिया से पीड़ित लोगों की संख्या वर्तमान के 4.4 करोड़ से बढ़ कर 13.5 करोड़ होने की आशंका है. इसलिए विशेषज्ञों का कहना है कि सरकारों को अपनी बूढ़ी हो रही जनता के स्वास्थ्य की देख-रेख, उनके रेगुलर चेक-अप की ओर ज्यादा ध्यान देने की जरूरत है, ताकि उनकी विशिष्ट जरूरतों को समझ कर उनकी समस्याओं का निदान किया जा सके. इसके लिए रोगों की रोकथाम और उनके उचित प्रबंधन की आवश्यकता है. विशेषज्ञ इसके लिए बूढे लोगों को ज्यादा लंबे समय तक वर्क-फोर्स का हिस्सा बनाये रखने, रोग के उपचार की जगह उसकी मितव्ययी रोकथाम और अर्ली डिटेक्शन पर जोर दिया जाना चाहिए. इसके साथ ही बुजुर्गों को बेहतर जीवन-शैली के लिए भी प्रेरित किया जाना चाहिए.
प्रीति सिंह परिहार