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जनता मुझे मौका देगी तो 60 दिनों में सुलझा दूंगा स्थानीयता का मुद्दा : बाबूलाल मरांडी

झारखंड के प्रथम मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी अपने राजनीतिक जीवन की सबसे अहम पारी खेल रहे हैं. राष्ट्रीय मुद्दों पर लड़े गये लोकसभा चुनाव में उनकी पार्टी झारखंड विकास मोर्चा एक भी सीट नहीं जीत सकी, लेकिन स्थानीय मुद्दों पर लड़े जाने वाले विधानसभा चुनाव में मरांडी को उम्मीद है कि उनकी पार्टी बेहतर प्रदर्शन करेगी. […]

झारखंड के प्रथम मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी अपने राजनीतिक जीवन की सबसे अहम पारी खेल रहे हैं. राष्ट्रीय मुद्दों पर लड़े गये लोकसभा चुनाव में उनकी पार्टी झारखंड विकास मोर्चा एक भी सीट नहीं जीत सकी, लेकिन स्थानीय मुद्दों पर लड़े जाने वाले विधानसभा चुनाव में मरांडी को उम्मीद है कि उनकी पार्टी बेहतर प्रदर्शन करेगी. वे इन दिनों पार्टी कार्यालय व आवास पर सुबह से देर रात तक चुनाव तैयारियों का जायजा ले रहे हैं और राज्य के मौजूदा हालात को बदलने के लिए एक बार फिर प्रदेश वासियों से खुद में भरोसा व्यक्त करने की अपील करते हैं. वे कहते हैं, अगर जनता उन्हें एक मौका देगी तो वे राज्य की बहुतसीउलझी गुथ्थियों को सुलझायेंगे और राज्य को नयी दिशा देंगे.

प्रभात खबर डॉट कॉम के लिए उनके आवास पर चुनावी गहमागहमी के बीच राज्य स्थापना दिवस से ठीक एक दिन पहले कुणाल किशोर व राहुल सिंह ने विस्तृत बातचीत की. प्रस्तुत है प्रमुख अंश :

आप झारखंड के पहले मुख्यमंत्री रहे हैं. आप राज्य को इस हालात में देख कर क्या महसूस करते हैं. कहां चूक हो गयी?

14 वर्षो में मैं 28 महीने तक झारखंड का मुख्यमंत्री रहा और जिस तरह मुझे हटना पडाऔर भाजपा ने सरकार बनायी. उस समय जो सरकार बनी वह सौदेबाजी की बुनियाद पर बनी सरकार थी और यहां से सत्ता की सौदेबाजी का खेल प्रारंभ हुआ. 14 साल में जितनी सरकार बनी, 28 महीना छोड़ कोई पार्टी साबित बची नहीं. भाजपा, झामुमो, आजसू ने राज्य को लूटा और लुटाया. यह पतन का बड़ा कारण है.

14 साल में राज्य को आगे बढना चाहिए था, पर वह पीछे आ गया. देश की दोनों राष्ट्रीय पार्टी भाजपा, कांग्रेस इसके लिए समान रूप से जिम्मेवार है. बड़े काम को बड़े लोग प्रश्रय देते हैं. बड़े इसलिए बच जाते हैं, क्योंकि उनके खिलाफ कोई बोलता नहीं. दिल्ली में बैठ कर सरकार बनाते, चलाते रहे. यह राज्य के पतन का प्रमुख कारण है. इसलिए झारखंड की जनता ने 14 सालों में सबको देख लिया कि कैसे-कैसे लोगों ने सरकार बनायी व राज किया.हम किसान के बेटे हैं, जनता मुझे मौका दे. अगर ऐसा किया तो मैं खुद को ईमानदारी पूर्वक राज्य के लिए लगा दूंगा.

आज की राजनीति में राजनीतिक विश्वसनीयता का संकट है. क्या कहेंगे इस मुद्दे पर आप?

मेरा यह मानना है कि 14 सालों में जो भी घटनाक्र म हुआ है, राज्य की जनता ने उसे अच्छे से देखा है. अनुभव किया है.मुझे लगता है कि जनता सोच-समझ कर अच्छे से मतदान करेगी. भाजपा, कांग्रेस ने यह पूरी तरह छिपाये रखा है कि वह किसके नेतृत्व में चुनाव लड़ेगी. भाजपा ने ही अधिक समय तक राज्य में शासन किया है, उन्हें लगता है कि चेहरा लेकर जायेंगे तो जनता नकार देगी. उन्हें लगता है कि जनता से खोखले वादे कर वोट लिया जाये और अपने पसंद के व्यक्ति को मुख्यमंत्री बनायें और दिल्ली से राज्य में सरकार चलायें.

भाजपा कांग्रेस ने पिछले दिनों यही काम किया. दोनों सुधरते नहीं हैं और राज्य को सरकार बना कर लुटते रहे हैं. जनता इस बात को समझे.

भाजपा व केंद्र की सरकार ने राज्य को कोयला का राजस्व देने की बात कही है. इससे राज्य को लाभ होगा या दूसरे तरह की परिस्थितियां बनेंगी?

जहां तक आपने कोयला से राज्य सरकार को आय होने की बात कही है, उसमें सरकार के द्वारा बड़ी बात छोड़ दी गयी है, जिससे अधिक लोग प्रभावित होते हैं. अबतक राज्य में 20 से 25 लाख लोग उजाड़े गये हैं. उन्हें न्याय नहीं मिला है. हमें उम्मीद थी कि नयी सरकार बनी, सुप्रीम कोर्ट ने कोल ब्लॉक आवंटन को रद्द किया है, इससे चीजें बदलेंगी. इससे हमने सोचा कि सरकार के सामने मौका आया है और वह गरीबों पर विचार करेगी, लेकिन उन्हें नकार दिया. वैसे लोगों पर सरकार ने विचार नहीं किया. सुनने में अच्छा लगता है कि आय राज्य को जायेगी. खजाने का पैसा यहां रहे या वहां, कुल मिला कर आम आदमी को उसका लाभ होना चाहिए.

आदिवासी मूलवासी व बाहरी का विवाद यहां है. यह मुद्दा कितना वास्तविक है और कितना काल्पनिक?

इस बात पर लोग बेकार बहस करते हैं. जिन्हें काम से मतलब नहीं होता है, वे बहस छेड़ देते हैं. मैंने कहा कि यहां यह विवाद शुरू हुआ. जब मैं मुख्यमंत्री था, तब राज्य पुनर्गठन विधेयक में इस बात का उल्लेख था कि जो भी पैरेंट स्टेट होंगे दो साल तक जब तक नये राज्य अपना नियम कानून ड्राफ्ट नहीं कर लेते हैं, तबतक पैरेंट स्टेट के कानून के हिसाब से काम कर सकते हैं. वैसे में हमने बिहार के 1982 के चतुर्थवर्गीय कर्मियों की नियुक्ति के नियम को एडॉप्ट किया. और, उसी पर बवाल उठ खड़ा हुआ. जबकि इसके लिए सर्वदलीय बैठक हुई व इसमें तय किया गया कि बिहार सरकार ने जो नियमावली बनायी है, उसे अपनाया जाये. मार्च में मैंमुख्यमंत्री पदसे हट गया. उस पर लोग विवाद करते हैं, उसे अबतक दूर नहीं किया गया. मुझेराज्य की जनता मौका देगी तो 60 दिन में मैं इस समस्या को दूर कर दूंगा. मैं इस काम में 61वां दिन नहीं लगने दूंगा.

क्या राज्य में हड़िया दारू एक समस्या है. अगर है तो इसे खत्म करने के लिए किस तरह के प्रयास की जरूरत है?

नशापान समाज व मानव जीवन के लिए अभिशाप है. नशा से जितना मुक्त हो सकें, तो लोग उतना स्वस्थ होंगे. स्वस्थ झारखंड होगा. नशा के आदि हो चुके लोगों को देखिए, उनके शरीर में हीमोग्लोबीन कम रहता है. गरीबों की औसत आयु कम होती है. जन जागरूकता की जानी चाहिए. सरकार समाज मिल कर काम करे.

नक्सल समस्या पर आपका क्या कहना है. इसके लिएक्याटाइम फ्रेम होना चाहिए?

नक्सल समस्या के लिए सरकार को संवेदनशील होना चाहिए, सिर्फ दलायु नहीं. विकास उन्मुख सरकार को भटके लोगों को जोड़ने का प्रयास करना चाहिए. मैं जबमुख्यमंत्री, तब गिरिडीह, बोकारो से इसकी शुरु आत की. लोगों को मुख्यधारा में लाया जाये. पीडब्ल्यूजी व एमसीसी उस समय सक्रिय थे. दोनों मिल गये. फिर भी उनके पैर उखड़ गये. मेरे हटने के बाद सरकार की सोच बदल गयी. बाद में जो सरकार आयी, उसने अपराध से अपराध को दूर करने का प्रयास किया. उस समय दो संगठन थे, आज दर्जन हो गये हैं. इतने सारे संगठन बन गये हैं कि लोग परेशान हैं. शिक्षक, ठेकेदार से वसूली हो रही है. पुल, पुलिया, सड़क नहीं बन रहे हैं. इसलिए मैंने कहा कि सरकार की ड्यूटी है, अपराध खत्म करने की. पुलिस अपना दायित्व निभाये.

चुनावी राजनीति में गंठबंधन कितना जरूरी है. 2009 में आप कांग्रेस से गंठबंधन कर 25 सीटों पर लड़े और 11 सीटें जीत ली, आपको नहीं लगता है कि अगर ज्यादा सीटों पर लड़े होते थे, तो ज्यादा सीटें जीत लेते?

गंठबंधन मजबूरी का नाम है. डेमोक्रेसी के लिए यह उपयुक्त नहीं है. डेमोक्रेसी को यह पंगु बना देता है. गंठबंधन वे लोग करते हैं, जो पॉलिटिकल पार्टी बनाते हैं, लेकिन जन मुद्दों पर संघर्ष नहीं करते हैं. कास्ट, कैश पर चलते हैं. उसी से गंठबंधन चलता है. हमने पिछली बार भी गंठबंधन किया था. इस बार भी छोटा सा गंठबंधन किया है. वह भी लास्ट में. हम सिजनल पॉलिटिक्स नहीं करते. 365 दिन लोगों के लिए संघर्ष करते हैं.

मेरा मानना है कि परीक्षा में बैठे बिना यह पता नहीं चलता कि कितना नंबर आया. इसलिए चुनाव लड़ना चाहिए. 2009 में अगर हम सभी सीटों पर लड़े होते तो स्थिति अलग होती और हर सीट पर हमारा कार्यकर्ता भी तैयार हो जाता.

क्या विधानसभा चुनाव में मोदी फैक्टर भी है?

देश में उनकी सरकार है. उनके प्रशंसक हैं. 40 प्रतिशत वोट उन्होंने हासिल किया. मैं था तो 45 प्रतिशत वोट आये थे. हाइटैक प्रचार उनकी पार्टी करती है. पैसे का उपयोग भी मोदी जी कर रहे हैं. मैंने अपने लोगों से कहा कि दो चार होर्डिग लगाओ. उन्होंने मुङो बताया कि जगह कहीं बची नहीं, जहां बची है, वहां कोई उसे देखेगा नहीं.

आपको ऐसा नहीं लगता कि आपकी पार्टी झारखंड विकास मोर्चा को कई लोगों ने पॉलिटिकल कैरियर का प्लेटफॉर्म बना लिया. जमशेदपुर, रांची इसका उदाहरण है?

जो दूसरों के लिए गड्ढा खोदता है, वह उसी में गिर जाता है. हमारे यहां के लोग दूसरी जगहों पर गये, वे भी वहां परेशान हैं ओर जो लेकर गये वह भी परेशान हैं. दूसरी बात मैं कभी अपने लोगों, अपने कार्यकर्ताओं की अनदेखी नहीं करता. सामान्यत: कोशिश करता हूं कि हर कार्यकर्ता को सुनूं, देखूं. अनजाने में कभी हो सकता है कि मैं उन पर ध्यान नहीं दे पाया.

प्रत्याशी चयन करने के समय भी मैं अपना सिक्का नहीं चलाता हूं. कोशिश करता हूं कि कार्यकर्ताओं के लायक क्या है, वही निर्णय लूं.

क्या आपको लगता है चुनाव में धन बल का प्रभाव है और चुनाव सुधार के लिए भी पहल की जानी चाहिए? चुनाव सुधारों की बात लालकृष्ण आडवाणी जी भी कह चुके हैं.

धन का असर है. चुनाव सुधार किया जाना चाहिए. चुनाव सुधार पर ठोस निर्णय हो. मैं व्यापक स्तर पर चुनाव सुधार के लिए तीन सुझाव देता हूं :

1. चुनाव व्यक्ति नहीं पार्टी लड़े.

2. हर वोट की कीमत होती है, इसलिए समानुपातिक प्रणाली अपनायें. 70 से 60 प्रतिशत वोट की कोई कीमत नहीं होती. लोकसभा चुनाव में 50 प्रतिशत से अधिक वोट कितने लोग ला पाते हैं? दल को मिले वोट के आधार पर विधानसभा में विधायक व लोकसभा में सांसद चुने जायें.

3. प्रधानमंत्री और राज्यों के मुख्यमंत्रियों का चयन सीधे जनता करे. अभी होता यह है कि 30 प्रतिशत वोट पाने वाली पार्टी भी सरकार बना लेती है. हमारा कहना है कि मुख्यमंत्री पद के लिए चुनाव हो. और, एक बात कि चुनाव का खर्च विशुद्ध रूप से सरकार वहन करे. अगर ये तीनों चीजें की जायेंगी तो धनबल पर रोक लगेगी, कालाधन का प्रयोग व पेड न्यूज बंद होगा.

आप अपने राजनीतिक जीवन का एक सबसे सही फैसला या निर्णय क्या मानते हैं?

यह जनता पर छोड़ देता हूं. जो भी निर्णय लेता हूं, हृदय से लेता हूं. उसे ही कार्य रूप में उतारता हूं. संगठन में सबकी सलाह व अंतरात्मा की आवाज पर काम करता हूं.

और सबसे बड़ी राजनीतिक भूल या गलत फैसला?

(हंसते हुए) राजनीति में आना.

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