– भारतीय रुपये की कीमत में डॉलर के मुकाबले लगातार आ रही गिरावट ने नीति-नियंताओं से लेकर आम भारतीयों तक को उलझन में डाल दिया है. गिरावट के पथ पर चलते हुए रुपया मंगलवार को प्रति डॉलर 58.98 के ऐतिहासिक न्यूनतम स्तर तक पहुंच गया. हालांकि बाद में आरबीआइ के हस्तक्षेप के बाद रुपये में थोड़ी मजबूती आयी. लेकिन जानकारों का कहना है कि रुपये में गिरावट का यह दौर अभी जारी रह सकता है और यह प्रति डॉलर साठ के स्तर तक गिर सकता है. रुपये की गिरावट की गुत्थी को सुलझाता नॉलेज.. –
रुपये की कीमत में गिरावट के लंबे दौर ने भारतीय नीति नियंताओं से उनकी चैन की नींद छीन ली है. अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रुपये की गिरती कीमत को देश की अर्थव्यवस्था के लिए यह अच्छा संकेत नहीं माना जा सकता. इसका एक बड़ा असर यह हुआ है कि कच्चे तेल की कीमतों में जिस तरह से कमी आयी है, उसका फायदा भारतीय उपभोक्ताओं को नहीं मिल पा रहा है, बल्कि देखा जाये तो भारतीय मुद्रा के मूल्य में गिरावट आने के कारण ईंधन की कीमतों को तर्कसंगत बनाये रखने के लिए किसी भी समय इसकी कीमत में वृद्धि होने की आशंका जतायी जा रही है. ऐसा हुआ तो महंगाई से जूझते आम आदमी की जेब पर और अधिक मार पड़ेगी.
रुपये की कीमत में जारी गिरावट के चलते रुपये की कीमत मंगलवार को प्रति डॉलर 58.98 के अपने ऐतिहासिक न्यूनतम स्तर तक पहुंच गयी थी.
रिजर्व बैंक द्वारा आनन-फानन किये गये त्वरित उपायों से बेशक रुपये की कीमत में कुछ मजबूती आयी या कहें कि उसके लगातार गिरावट को रोकने में यह हस्तक्षेप मददगार साबित हुआ, लेकिन अर्थशास्त्रियों का मानना है कि रुपया प्रति डॉलर 60 के स्तर से भी नीचे जा सकता है.
* ऐतिहासिक गिरावट
किसी देश की मुद्रा की कीमत में ह्रास का मतलब सोना या या अन्य देशों की मुद्रा के संबंध में उसकी मूल्य में गिरावट से है. रुपये की कीमत में गिरावट का अपना एक अलग अर्थशास्त्र है, जिसमें अर्थव्यस्था के कई घटकों को तो फायदा होता है, लेकिन आम आदमी को इससे नुकसान ही ज्यादा होता है.
इस साल कीमतों पर नजर डालें तो 5 फरवरी को रुपया सबसे मजबूत था, जब एक डॉलर का मूल्य 53.13 भारतीय रुपया था. इस साल 11 जून का दिन रुपये की कीमत में ऐतिहासिक गिरावट वाला रहा, जब डॉलर के मुकाबले गिर कर यह अब तक के सबसे निचले स्तर (58.98) पर पहुंच गया था. वैसे, इस साल अब तक अमेरिकी डॉलर का औसत मूल्य 54.58 रुपया रहा है.
* मुद्रा का अवमूल्यन और ह्रास
अवमूल्यन और ह्रास, इन दो शब्दों के बारे में ज्यादातर लोगों को भ्रम है लेकिन इसमें कुछ तकनीकी अंतर है. अवमूल्यन का मतलब किसी देश की मुद्रा के मूल्य में आधिकारिक (सरकारी) तौर पर कमी किये जाने से है, जब स्थायी विनिमय दर पद्धति के तहत देश की मुद्रा के मूल्य में कटौती की जाती है. जबकि इसके विपरीत, जब बाजार की ताकतों से उत्पन्न कारणों के चलते (न कि सरकार या केंद्रीय बैंक की नीतियों की वजह से) मुद्रा की कीमत में गिरावट होती है तो उसे मुद्रा की कीमत में ह्रास होना कहा जाता है. अवमूल्यन सरकार की आधिकारिक नीतियों का नतीजा है जबकि विनिमय दर में ह्रास या गिरावट बाजार की ताकतों के संदर्भ में अन्य कारणों से जुड़ा हुआ है.
* यह खतरनाक हो सकता है
अकसर भुगतान संतुलन में कमी होने की वजह से अवमूल्यन की स्थिति पैदा होती है. कुछ विश्लेषकों का यह मानना है कि मुद्रा का अवमूल्यन करने से कई बार कमजोर पड़ चुकी अर्थव्यस्था में निर्माण और उत्पादन को बढ़ावा देते हुए उसे गति प्रदान की जा सकती है. लेकिन रुपये के मूल्य में ज्यादा तेजी से गिरावट होना खतरनाक हो सकता है और विदेशी निवेशक अपना निवेश रोक सकते हैं और ऐसा होने से भुगतान संतुलन (व्यापार) घाटे को वित्तीय मदद पहुंचाना नामुमकिन हो सकता है.
फिलहाल रुपये के मूल्य में गिरावट ऐसी कई चिंताओं को जन्म दे रहा है. सबसे बड़ी चिंता आयात के मूल्य में वृद्धि और पहले से ही चिंताजनक स्तर पर पहुंच चुके चालू खाते की और बढ़ोतरी की है. आम आदमी पर इसका असर महंगाई बढ़ने के रूप में पड़ सकता है. अमेरिकी मुद्रा की कीमत बढ़ने का एक मतलब यह भी है कि वैश्विक निवेशकों को अमेरिकी सरकार पर ज्यादा भरोसा है.
– रुपये में ह्रास से नुकसान
* कच्चे तेल की कीमतों में बढ़ोतरी
डीजल, पेट्रोल समेत घरेलू गैस सिलिंडरों की कीमत में वृद्धि हो जायेगी. जब ईंधन की कीमत बढ़ेगी, तो स्वाभावित तौर पर परिवहन पर इसका असर पड़ेगा और माल ढुलाई महंगी हो जाएगी, जिसका असर अर्थव्यवस्था में तमाम चीजों पर दिखाई देगा और मुद्रास्फीति बढ़ जायेगी.
* आयात पर निर्भर कंपनियों पर असर
ऐसी कंपनियां जो मुख्य रूप से कच्चे सामग्रियों के आयात पर निर्भर हैं, उनकी लागत बढ़ जायेगी. ऐसा होने से उनके मुनाफे में कमी आयेगी.
* विदेश यात्रा, विदेशी शिक्षा महंगी
रुपये की कीमत में ह्रास होने से विदेश यात्रा और विदेशी शिक्षा महंगी हो जायेगी. विदेश जाते समय यात्रियों को पहले के मुकाबले ज्यादा रकम अपने साथ लेकर जाना होगा.
* आयातित इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों पर असर
आयातित इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों की कीमतें बढ़ जायेंगी.
– रुपये में ह्रास से फायदे
* निर्यातकों को हासिल होगी अधिक रकम
ऐसी स्थिति में निर्यातकों को सबसे ज्यादा फायदा होता है और उन्हें हासिल होने वाले प्रत्येक डॉलर के एवज में अधिक भारतीय मुद्रा प्राप्त होती है. इस प्रकार, उत्पादों की कीमत को बिना बढ़ाये हुए और समान मात्र में वस्तुओं की बिक्री से उन्होंने ज्यादा भारतीय रुपया प्राप्त होता है. माना जा रहा है रुपये की कीमत में गिरावट से सॉफ्टवेयर कंपनियों, वस्त्र निर्यातकों, स्टील उत्पादकों आदि को फायदा होगा.
* अनिवासी भारतीयों को ज्यादा धनी होने का मौका
आप भले ही इसे मानें या न मानें, ज्यादातर अनिवासी भारतीय अपनी संपत्ति का मूल्यांकन भारतीय रुपये में ही करते हैं. रुपये में गिरावट से उन्हें बेहद फायदा होता है.
* पर्यटन उद्योग को भी अधिक मुनाफा
पर्यटन उद्योग से जुड़ी एजेंसियों और कारोबारियों समेत सरकारी उपक्रमों को रुपये की कमजोरी का फायदा मिलता है. क्योंकि कमजोर रुपये के कारण भारत में पर्यटन करना सस्ता हो जाता है.
– रुपये में गिरावट का मौजूदा दौर मुख्यत: वैश्विक वजहों से आया है. इसमें घरेलू कारकों का ज्यादा हाथ नहीं है. रुपया जल्द खुद को दुरुस्त कर लेगा, क्योंकि भारतीय अर्थव्यवस्था के फंडामेंटल्स मजबूत हैं. विकास बढ़ रहा है. महंगाई घट रही है.
अरविंद मायाराम, आर्थिक मामलों के सचिव
– रुपये में होनेवाली गिरावट का मतलब निर्यातकों के बीच आपसी प्रतिस्पर्धी माहौल बनाया जाना कतई नहीं है. ऐसी भ्रांति है कि हम इससे निर्यात को प्रतिस्पर्धी बना सकते हैं. हम ऐसा चाहते जरूर हैं लेकिन उसके लिए हम उत्पादकता बढ़ाने के साथ अन्य प्रतिस्पर्धी तरीकों पर जोर दे रहे हैं.
– डी सुब्बाराव, आरबीआइ गवर्नर
– रुपये में गिरावट के प्रमुख कारण
1. तेल की भूख और सोने से बेपनाह मोहब्बत
भारत में सोना समेत कच्चे तेल के कुल खपत का अधिकांश हिस्सा विदेशों से आयात किया जाता है. इनके आयात मूल्य में लगातार वृद्धि के कारण सरकार पर आयात का बोझ बढ़ रहा है.
2. गिरावट का अमेरिकी कनेक्शन
रुपये में गिरावट का एक बड़ा कारण अमेरिकी अर्थव्यवथा में सुधार के ठोस संकेतों को माना जा रहा है. अमेरिकी अर्थव्यवस्था में सुधार के कारण निवेशक अमेरिका के ओर रुख कर रहे हैं और भारत जैसी अर्थव्यवस्थाओं से पैसा निकाल रहे हैं. इसके साथ ही निवेशक तेल बॉन्ड और सोने की जगह डॉलर में निवेश करने को ज्यादा सुरक्षित मान रहे हैं.
3. चालू खाते का बढ़ता घाटा
भारत का चालू खाते का घाटा चिंताजनक स्तर तक बढ़ गया है. ऐसा मुख्यत: सोने और तेल के आयात मूल्य में वृद्धि के कारण हुआ है. चालू खाते के बढ़ते घाटे के कारण भारतीय अर्थव्यवस्था में निवेशकों का यकीन कम हुआ है.
4. शेयर बाजार का निराशाजनक प्रदर्शन
भारत में अमेरिकी डॉलर के आने का महत्वपूर्ण स्त्रोत शेयर बाजार है. विदेशी वित्तीय निवेशक, भारतीय कंपनियों और म्यूचुअल फंडों के शेयरों में अरबों डॉलर का निवेश करते हैं ताकि तुलनात्मक रूप से उच्चतर दरों से आय अजिर्त की जा सके. भारतीय बैंक ये डॉलर रिजर्व के तौर पर रखते हैं ताकि भारतीयों की डॉलर से संबंधित जरूरतों को पूरा किया जा सके.
हालांकि, जब शेयर बाजार का प्रदर्शन अच्छा नहीं होता और सूचकांक गिरता है तो विदेशी निवेशक ज्यादा नुकसान होने से बचने के लिए अपने शेयरों को बेचने लगते हैं और अजिर्त रुपये को डॉलर में परिवर्तित करते हुए भारत से बाहर अन्यत्र इस्तेमाल के लिए निकालने लगते हैं. इस तरीके से, बहुत ही कम समय के दौरान डॉलर की आपूर्ति में व्यापक गिरावट आने लगती है और रुपये को खरीदने की इसकी क्षमता बढ़ने लगती है.
5. बेलगाम महंगाई
बेलगाम महंगाई ने भी रुपये की फिलसलन में अहम भूमिका निभायी है. थोक और खुदरा मूल्य आधारित मुद्रास्फीति के सूचकांक के लगातार 10 फीसदी के आसपास बने रहने के कारण रुपया कमजोर हुआ है. हालांकि थोक मूल्य मुद्रास्फीति में सुधार के संकेत हैं.