‘‘अभी हमने हिंदी पखवारा मनाया, हिंदी दिवस मनाया. मगर क्या फायदा? माता-पिता बच्चों को इंगलिश मीडियम से ही पढ़ाना चाहते हैं. सही भी है, जो माध्यम बच्चों को आगे काम दे, वही पढ़ना चाहिए. लेकिन परिवार के सदस्यों को बच्चों को हिंदी जरूर सिखानी चाहिए ताकि वे अपनी भाषा में कभी कमजोर न पड़ें.’’
दादी मां ‘एक पंथ दो काज’ क्या होता है? झरना ने पूछा. नीला ने कहा- झरना तुम तो एक बिग क्वेश्चन मार्कहो. तुम्हारे सवाल सुन कर कभी-कभी थकान होने लगती है. मम्मा अगर बड़े लोग ही हमें नहीं बतायेंगे तो हमें कैसे पता चलेगा? झरना ने बड़ी मासूमियत से कहा. शारदा देवी ने नीला से कहा- मैंने तुम सबसे बार-बार यह कहा है कि कभी भी सवालों पर झल्लाओ नहीं. उनकी जो जिज्ञासाएं हैं, शंकाएं हैं, उनका समाधान करो और शांत करो. मन में उपजे सवाल बीज की तरह होते हैं जिनका पौधा बनना ही है. वह बीज किसी कटीले-जहरीले पेड़ के आस-पास उग गया, किसी सुनसान-बियावान जगह या जंगल में चला गया, तो जंगल का होकर रह जायेगा. इसलिए उस बीज को अगर सावधानी से अच्छी मिट्टी और अपने ही बागीचे में बोया जाये, उसकी देख-रेख ठीक से की जाये, तो न केवल पौधे का विकास अच्छी तरह होगा, बल्किवह आंखों के सामने निगरानी में रहेगा.
उसकी प्रॉपर देखभाल से वह सुंदर व स्वस्थ होगा. बीज को अंकुर बन कर कहीं-न-कहीं निकलना ही होता है. इसलिए उसे अपने हाथ में रखो और उचित स्थान पर लगाओ. मतलब अगर तुम बच्चों को उनके सवालों के जवाब नहीं दोगी, तो वे कि किसी दूसरे स्त्रोत से जानकारी जुटायेंगे. हो सकता है वह जानकारी आधी-आधूरी हो, गलत भी हो सकती है.
इसलिए बच्चों के सवालों को कभी नजरंदाज मत करो. झरना बेटा ‘एक पंथ दो काज’ को ऐसे समझो, जैसे ताऊ जी सुबह वॉक पर जाते हैं और अक्सर सब्जी लेकर आते हैं. यह हुआ एक पंथ दो काज. इससे यह फायदा हुआ कि सुबह की वॉक भी हो गयी और फ्रेश सब्जियां भी ले आये.
सब्जी लेने के लिए दोबारा जाना नहीं पड़ा. किसी-न-किसी को तो सब्जी लानी ही होती है. उसका भी समय बच गया. सुबह की सैर सेहत के लिए बहुत फायदेमंद होती है और सुबह-सुबह सब्जियां भी फ्रेश मिलती हैं. लोग अपने खेत से तोड़ कर लाते हैं और बेच कर जल्दी घर चले जाते हैं. हो गये न एक पंथ दो काज. सैर की सैर रही और बढ़िया सब्जियां भी मिलीं. अबसे मैं तुम्हें रोज दो मुहावरे सिखाऊंगी, जिससे तुम धीरे-धीरे मुहावरों के बारे में जान जाओ. वैसे भी तुम लोग हिंदी में जरा पैदल हो. फिर से झरना ने पूछा अब इसका क्या मतलब? मतलब यह कि पैदल चलने वालों की तरह हिंदी बोलने और लिखने में तुम लोगों की रफ्तार धीमी है.
तभी संजेश आया और बोल- मां इसमें बच्चे क्या करें. अभी हमने हिंदी पखवारा मनाया, हिंदी दिवस मनाया. मगर क्या फायदा? हम फिर वहीं उसी ढर्रे पर आ गये. माता-पिता बच्चों को इंगलिश मीडियम से पढ़ाना चाहते हैं. बच्चे किसी तरह से हिंदी को रो-रोकर पढ़ते हैं और हाइस्कूल के बाद बच्चे हिंदी लेना ही नहीं चाहते. वे भी क्या करें! सारे कोर्सेस और प्रोफेशनल पढ़ाई इंगलिश में ही होती है. सही भी है, जो माध्यम बच्चों को आगे काम दे, वही पढ़ना चाहिए. लेकिन परिवार के सदस्यों को बच्चों को हिंदी सिखानी चाहिए ताकि वे अपनी भाषा में कमजोर न पड़ें. अपने बच्चों को रोज दो मुहावरे सिखाने की बात सोचकर अच्छा किया. कम-से-कम ये कुछ तो सीखेंगे. झरना को मैं एक कहानी की किताब लाकर दूंगा. उसमें से वह कहानी पढ़ेगी और मुङो सुनायेगी. जब वह मुङो कहानी सुनायेगी तो उसके रिटर्न में मैं भी उसे एक कहानी सुनाऊंगा. क्यों झरना ठीक हैं न? हां बड़े ताऊ जी, बिल्कुल ठीक है.
आप अच्छी-सी स्टोरी बुक लाइयेगा. मैं आपको उसमें से कहानी सुनाऊंगी और आप मुङो कोई और कहानी सुनाना और वह कहानी मैं सबको सुनाऊंगी. लेकिन सब मुङो अलग-अलग कहानी सुनायेंगे. प्रॉमिस? झरना ने पूछा. तभी राशि ने कहा- बाप रे आज के बच्चे! कितने तेज हैं. हम सबसे कहीं ज्यादा तेज इनका दिमाग दौड़ता है. देखा इसकी चालाकी. खुद एक कहानी पढ़ेगी, सबको वही सुनायेगी और बदले में 10-12 कहानी सुनेगी.
आज की जेनरेशन बहुत तेज है. खैर, इससे एक बात तो अच्छी होगी कि उसमें पढ़ने की आदत पड़ेगी. जब पराग पढ़ना सीख जायेगा तो उससे भी इसी तरह हिंदी और इंगलिश दोनों की छोटी-छोटी स्टोरी सुनेंगे जिससे उसमें शुरू से ही रीडिंग हैबिट पड़ जाये.
तभी शारदा देवी ने कहा- चलो आज सब लोग काम जल्दी खत्म करके सो जाओ. कल सुबह जल्दी उठना है, क्योंकि कल से नवरात्र शुरू हो रहे हैं. वंशिका ने कहा- हां मैंने देखा, पूजा के लिए पंडाल भी बन रहे हैं. हर साल की तरह इस बार भी हम सब घूमने चलेंगे न मम्मा? हां बेटा, जरूर चलेंगे लेकिन एक शर्त पर.
राशि ने कहा. क्या शर्त मम्मा? राशि ने अपनी बात रखते हुए कहा- तुम सब हमारी बातें मानोगे और जो जिम्मेदारी तुमको दी गयी है उसे पूरी ईमानदारी के साथ निभाओगे. ईमानदारी मतलब ईमानदारी. नो चीटिंग. वैसे भी एक बात याद रखना बच्चों, हमें कोई भी काम पूरी ईमानदारी से करना चाहिए. जब हम ऑनेस्ट होंगे तभी अपना काम मन लगाकर कर सकेंगे और जब कोई भी काम मन लगाकर किया जायेगा तो उसका रिजल्ट भी हंड्रेड परसेंट होगा.
वीना श्रीवास्तव
लेखिका व कवयित्री
इ-मेल: veena.rajshiv@gmail.com