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पाक उच्चायुक्त से भेंट का सिलसिला जारी

बशीर मंज़र श्रीनगर से, बीबीसी हिंदी डॉटकॉम के लिए पाकिस्तान के साथ विदेश सचिव स्तर की बातचीत रद्द करने के भारत सरकार के फ़ैसले से अलगाववादियों समेत कश्मीर घाटी के ज़्यादातर लोग निराश हैं. भारत-पाकिस्तान के बीच सचिव स्तर की द्विपक्षीय बातचीत 25 अगस्त को प्रस्तावित थी. अलगाववादी नेताओं ने पाकिस्तानी उच्चायुक्त और शब्बीर शाह […]

पाकिस्तान के साथ विदेश सचिव स्तर की बातचीत रद्द करने के भारत सरकार के फ़ैसले से अलगाववादियों समेत कश्मीर घाटी के ज़्यादातर लोग निराश हैं.

भारत-पाकिस्तान के बीच सचिव स्तर की द्विपक्षीय बातचीत 25 अगस्त को प्रस्तावित थी. अलगाववादी नेताओं ने पाकिस्तानी उच्चायुक्त और शब्बीर शाह की मुलाक़ात के बाद लिए गए भारत सरकार के फ़ैसले को ‘दुर्भाग्यपूर्ण’ बताया है.

हालांकि अलगाववादी नेताओं का पाकिस्तानी उच्चायुक्त से मिलने का सिलसिला जारी है. कश्मीरी नेता सैयद अली शाह गिलानी और मीरवाइज़ उमर फ़ारुक़ मंगलवार को पाकिस्तान के उच्चायुक्त अब्दुल बासित से मिल रहे हैं.

बुधवार को उच्चायुक्त और मोहम्मद यासीन मलिक के मुलाकात का कार्यक्रम है.

घाटी में निराशा

मीरवाइज़ उमर फ़ारूक़ ने कहा कि अलगाववादी नेताओं की पाकिस्तानी उच्चायुक्त के साथ मुलाक़ात में कोई नुक़सान नहीं है. उन्होंने कहा, "हमने सिर्फ़ अपने विचार रखे और ऐसा पहली बार नहीं हुआ है."

जेकेएलएफ के प्रमुख मोहम्मद यासीन मलिक ने भी कहा कि अलगाववादी नेताओं की पाक अधिकारियों से मुलाक़ात में कुछ भी नया नहीं है.

हुर्रियत के उग्र धड़े के प्रमुख सैयद अली गिलानी ने भी निराशा जताई है और कहा कि भारत की प्रतिक्रिया ‘ग़ैरज़रूरी और अपरिपक्व’ है.

राजनीतिक विश्लेषक और उर्दू दैनिक चट्टान के संपादक ताहिर मोहिउद्दीन का मानना है कि भाजपा सरकार ने यह ‘निराशाजनक’ निर्णय विपक्षी पार्टी कांग्रेस के दबाव में लिया है.

मोहिउद्दीन ने कहा, "बातचीत रद्द करने का निर्णय निराशाजनक है. भाजपा सरकार को प्रस्तावित बैठक के साथ आगे बढ़ना चाहिए था. लेकिन वे कांग्रेस के दबाव के आगे झुक गए और पड़ोसी देश के साथ बातचीत की प्रक्रिया शुरू करने का मौका गंवा दिया."

पहले भी मुलाक़ातें

एक अन्य उर्दू दैनिक युक़ाब के संपादक मंज़ूर अंजुम कहते हैं, "ऐसी मुलाक़ातें कई साल से होती रही हैं. अप्रैल 2005 में भी ये अलगाववादी नेता नई दिल्ली में पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति परवेज़ मुशर्रफ़ से मिले थे."

राज्य के प्रमुख राजनीतिक दलों नेशनल कॉन्फ्रेंस और पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी यानी पीडीपी ने भी इस फ़ैसले पर निराशा जताई है.

नेशनल कॉन्फ्रेंस के महासचिव अली मोहम्मद सागर ने कहा, "सवाल ये नहीं है कि आप इसकी निंदा करते हैं या नहीं. हमारा ये मानना है कि जब ऐसी मुलाक़ातें पहले भी होती रही हैं तो अब इस पर सवाल क्यों उठाया जा रहा है?"

उन्होंने सवाल किया कि भाजपा कश्मीर पर वाजपेयी की नीतियों को आगे बढ़ाने का दावा करती है तो फिर ऐसा कदम क्यों उठाया गया.

उधर, पीडीपी की अध्यक्ष महबूबा मुफ़्ती ने कहा कि यह कदम बेहद ‘नकारात्मक’ है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के शपथ ग्रहण समारोह में नवाज़ शरीफ़ को न्यौता देकर जो माहौल बनाया गया था, वो बिगड़ गया है.

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