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बर्खास्तगी के बाद भी नहीं छोड़ा मैदान कॉमरेड दा ने

बर्नपुर: मध्यमग्राम (कोलकाता) से बर्नपुर नौकरी करने आये दिलीप सरकार ने बर्न स्टैंडर्ड कंपनी से बर्खास्त होने के बाद यहां से पलायन करने के बजाय श्रमिक हितों के लिए संघर्ष करने का निर्णय लिया और आजीवन श्रमिक हित के लिए संघर्ष करते हुये रविवार को अपनी शहादत दी थी. मध्यग्राम के श्रमिक परिवार में स्व. […]

बर्नपुर: मध्यमग्राम (कोलकाता) से बर्नपुर नौकरी करने आये दिलीप सरकार ने बर्न स्टैंडर्ड कंपनी से बर्खास्त होने के बाद यहां से पलायन करने के बजाय श्रमिक हितों के लिए संघर्ष करने का निर्णय लिया और आजीवन श्रमिक हित के लिए संघर्ष करते हुये रविवार को अपनी शहादत दी थी.
मध्यग्राम के श्रमिक परिवार में स्व. सरकार का जन्म सात अप्रैल, 1944 को हुआ था. स्कूली शिक्षा हासिल करने के बाद वे वर्ष 1964 में बर्न स्टैंडर्ड कंपनी में नौकरी करने आये.

उस समय बर्नपुर में सीटू के नेतृत्व में श्रमिकों का आंदोलन काफी तेजी पक ड़रहा था. वामापदो मुखर्जी, चंद्रशेखर मुखर्जी व हराधन राय के नेतृत्व में विभिन्न कारखानों में आंदोलन चरम की ओर बढ़ रहा था. बर्न स्टैंडर्ड में भी आंदोलन शुरू हुआ और स्व. सरकार भी उस आंदोलन में न सिर्फ शामिल हुये बल्कि बढ़-चढ़ कर भागीदारी की. परिणाम यह निकला कि कंपनी ने उन्हें नौकरी से बर्खास्त कर दिया. नौकरी से हटाये जा ने के बाद भी उनका हौसला नहीं टूटा और उन्होंने श्रमिक हितों के लिए बर्नपुर में श्रमिक आंदोलन से जुड़ाव को और मजबूत करने का निर्णय लिया. इसके साथ ही उनके रा जनीतिक जीवन की शुरूआत हुई.

उन्होंने फिर पीछे मुड़ कर नहीं देखा. ट्रेड यूनियन की सक्रियता के बाद भी उन्हें भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) की सदस्यता मिली. उन्होंने पार्टी व ट्रेड यूनियन के मोर्चे पर अपनी सक्रियता बढ़ाई. विभिन्न यूनियनों के महत्वपूर्ण पदों पर उन्होंने कार्य किया. वर्ष 2006 में उन्हें बाराबनी विधानसभा चुनाव में क्षेत्र के दबंग व तृणमूल कांग्रेस के नेता स्व. माणिक उपाध्याय को मात दी. वे बाराबनी क्षेत्र से विधायक बने. लेकिन वर्ष 2011 में पार्टी ने युवा नेतृत्व को मौका देने के लिए डीवाईएफआई के प्रदेश अध्यक्ष आभाष राय चौधरी को बाराबनी से प्रत्याशी बनाया. स्व. सरकार ने पार्टी के इस निर्णय को स्वीकार कर लिया.

हालांकि चुनाव में श्री रायचौधरी को मात मिली. इधर यूनियन के मोर्चे पर वामापदो मुखर्जी वृद्ध होने के कारण कम समय देने लगे. फलस्वरुप बर्नपुर स्थित आईएसपी व बर्न स्टैंडर्ड में यूनियन के नेतृत्व की जिम्मेवारी उन पर आ गयी थी. उन्होंने बखूबी इस दायित्व का भी निर्वाहन शुरू किया था. हाल के दिनों में बर्नपुर क्षेत्र में पार्टी व यूनियन की गतिविधियों का नेतृत्व वहीं कर रहे थे. पंचायत चुनाव घोषित होने के बाद सालानपुर व बाराबनी प्रखंडों में पार्टी की ओर से उन्हें ही दायित्व दिया गया था. उनके कुशल नेतृत्व का ही परिणाम था कि विषम परिस्थितियों में भी सालानपुर व बाराबनी प्रखंड में वाममोर्चा प्रत्याशियों ने सर्वाधिक संख्या में नामांकन करने में सफलता हासिल की है. अंतिम क्षणों तक उन्होंने जन हित में पार्टी नेतृत्व का दायित्व सफलतापूर्वक निभाया और संभवत: उनकी यह प्रतिबद्धता ही उनके दुश्मनों पर भारी पड़ रही थी और उनकी हत्या कर दी गयी.

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