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रंगमंच को जनता की तरफ मुड़ना चाहिए

अमितेश कुमाररंगकर्म समीक्षक व र्ष 1945 में पृथ्वी थियेटर ने ‘दीवार’ नाटक का मंचन किया. इसमें एक संयुक्त परिवार में बाहरी शक्तियों के कारण बंटवारा हो जाने और इसके कारण उत्पन्न त्रासद स्थिति को दिखाया गया था. यह देश के संभावित बंटवारे को ध्यान में रखकर गढ़ा गया रूपक था, जिसमें दो धर्मों को एक […]

अमितेश कुमार
रंगकर्म समीक्षक

व र्ष 1945 में पृथ्वी थियेटर ने ‘दीवार’ नाटक का मंचन किया. इसमें एक संयुक्त परिवार में बाहरी शक्तियों के कारण बंटवारा हो जाने और इसके कारण उत्पन्न त्रासद स्थिति को दिखाया गया था. यह देश के संभावित बंटवारे को ध्यान में रखकर गढ़ा गया रूपक था, जिसमें दो धर्मों को एक ही परिवार के भीतर परिकल्पित किया गया था. रंगमंच ने अपने समय के इस सवाल पर अपनी चिंता जाहिर की थी. अब 2020 में भी रंगमंच के सामने यह सवाल है कि क्या वह वर्तमान मानसिक बंटवारे की त्रासदी को अपनी चिंता के केंद्र में लेगा?
अनुराधा कपूर द्वारा पिछले साल एनएसडी छात्रों के लिए निर्देशित प्रस्तुति ‘नाले वाली लड़की’ में उन्होंने एक होर्डिंग का इस्तेमाल किया था, जिसके लाल बैकड्रॉप पर काले अक्षरों से लिखा हुआ था- ‘सिविल नाफरमानी’, यानी सविनय अवज्ञा. आजादी के आंदोलन के दौरान अंग्रेजी जनविरोधी कानूनों के विरोध के लिए अविष्कृत शब्द. भारत के कई हिस्सों में आंदोलन हो रहे हैं.
लखनऊ, दिल्ली, मुंबई में भी अभिनेता अपने कंफर्ट जोन से बाहर आकर अपनी सामाजिक भूमिका तलाश रहे हैं, यह कला के लिए मुक्त स्पेस को बचाने की कोशिश है, ताकि कला निर्भीकता से अपना पक्ष रख सके. रंगमंच आंदोलनरत होकर और हुए बिना भी सत्ता के लिए हमेशा से सिविल नाफरमानी करता रहा है. उससे उम्मीद की जाती है कि वह सत्ता से सच कहे और जनता के पक्ष में खड़ा हो.
पिछले साल फरवरी महीने में जयपुर के जवाहर कला केंद्र में अभिषेक मजूमदार निर्देशित और लिखित नाटक ‘ईदगाह के जिन्नात’ के शो इसलिए रद्द कर दिये कि कुछ कट्टरपंथी संगठनों ने आरोप लगाया कि इसमें सेना का अपमान किया गया था, जबकि नाटककार का कहना था कि व्यापक शोध के बाद लिखे गये इस नाटक में कश्मीर की वास्तविक स्थिति को हर पहलू से दिखाने की कोशिश की गयी है.
साल के अंत में गोवा में होनेवाले सेरेंडिपिटी आर्ट्स फेस्टिवल में इस नाटक का मंचन हुआ, लेकिन इसी फेस्टिवल में ‘दास्तान लाइव’ नाम के एक बैंड के सदस्यों को नागार्जुन की ‘मंत्र’ कविता की प्रस्तुति के लिए जेल जाना पड़ा, आरोप था कि इस कविता से धार्मिक भावनाएं आहत हुई थीं. रंगमंच का काम पहले से स्थापित भावनाओं को पुष्ट करना नहीं, बल्कि हमारी भावनाओं को झकझोरना है, ताकि समाज में बेहतरी आये और एक दर्शक के तौर पर हम बेहतर मनुष्य बन सकें.
महात्मा गांधी के जन्म का 150वां साल चल रहा है. इसको ध्यान में रखते हुए रंगमंच पर कई निर्देशकों ने गांधी पर प्रस्तुतियां कीं, गांधी के जीवन को आधार बनाकर नये नाटक लिख गये. आज अफवाहों की एक परत गांधी के व्यक्तित्व पर चढ़ा दी गयी है. साल 1968 में इन अफवाहों को निरस्त करनेवाला नाटक लिखा था ललित सहगल ने- ‘हत्या एक आकार की’.
इस नाटक की तरफ रंगकर्मियों का ध्यान गया और अलग-अलग शहरों में इसकी प्रस्तुति हुई. चार पात्रों वाले इस नाटक में एक पात्र गांधी के तर्क बाकी तीन से रखता है, जो गांधी की हत्या के पक्ष में है. यह नाटक उनकी हत्या के कारणों और उनकी विचारों की अमरता की भी बात करता है. इस साल उम्मीद है कि कुछ ऐसी और नाट्य प्रस्तुतियां सामने आयेंगी, जो गांधी के विचारों को दर्शकों तक ले जायेंगी.
साल 2019 में भारतीय रंगमंच ने गिरीश कर्नाड, अरुण ककड़े और डॉ श्रीराम लागू को खो दिया. इन तीनों ने अपने समय में काफी हस्तक्षेप किया था. अब इस नये साल में भी रंगकर्मियों को मंच पर और जीवन में अपनी सार्थक और सतर्क भूमिका की तलाश करनी होगी. शासन का आर्थिक सहयोग रंगमंच के लिए संकुचित होता जा रहा है. इसलिए रंगमंच को देश की आम जनता की तरफ मुड़ना होगा, आत्मनिर्भरता के लिए और आत्माभिव्यक्ति के लिए भी.

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