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बिहार के ढाई लाख शिक्षकों की नौकरी ख़तरे में!

<p>&quot;नमस्कार सर, मैं आसीव रेहान पूर्णिया ज़िले का रहने वाला हूं. हमारा एक मैटर था, NIOS के डीएलईडी पास टीचर वाला. मैं भी एक डीएलईडी पास टीचर हूं. बिहार सरकार ने एनसीटीई के फ़ैसले के आधार पर हम ढाई़ लाख शिक्षकों के नियोजन में भाग लेने पर रोक लगा दी है. जबकि केंद्र सरकार के […]

<p>&quot;नमस्कार सर, मैं आसीव रेहान पूर्णिया ज़िले का रहने वाला हूं. हमारा एक मैटर था, NIOS के डीएलईडी पास टीचर वाला. मैं भी एक डीएलईडी पास टीचर हूं. बिहार सरकार ने एनसीटीई के फ़ैसले के आधार पर हम ढाई़ लाख शिक्षकों के नियोजन में भाग लेने पर रोक लगा दी है. जबकि केंद्र सरकार के कहने पर राज्य सरकार की देखरेख में ही वो कोर्स कराया गया था. हम बस यही चाहते हैं कि आप इस मैटर को मुख्यमंत्री जी तक पहुँचा दीजिए.&quot;</p><p>मुख्यमंत्री कार्यालय से जवाब मिलता है, &quot;आपलोग एकदम से बैचेन आत्मा हैं क्या जी! इसके पहले भी आपलोग फ़ोन किए थे ना! आपको क्या लगता है इससे मुख्यमंत्री तक मैटर पहुंच जाएगा! कभी नहीं जाएगा. चलिए रखिए फ़ोन.&quot;</p><p>बिहार विधानसभा से थोड़ी ही दूर गर्दनीबाग़ में आमरण अनशन पर बैठे डीएलईडी शिक्षक अपने उन तमाम प्रयासों के बारे में बता रहे थे जो उन्होंने सरकारी शिक्षक की नौकरी पाने के लिए किया है. उसी में मुख्यमंत्री कार्यालय के एक अधिकारी से बातचीत की ये ऑडियो कॉल रिकार्डिंग भी थी.</p><p>राष्ट्रीय मुक्त विद्यालयी शिक्षा संस्थान (NIOS) से D. El. Ed पाठ्यक्रम पूरा किए बिहार के क़रीब 2.5 लाख शिक्षकों के नियोजन पर बिहार सरकार ने रोक लगा दी है.</p><h1>वादा तो नौकरी का था</h1><p>भारत सरकार के मानव संसाधन विकास मंत्रालय के अंतर्गत NIOS से डीएलईडी पाठ्यक्रम इस वादे के साथ कराया गया था कि जो अप्रशिक्षित शिक्षक यह कोर्स कंप्लीट कर लेंगे वे पूरे देश में पहली से आठवीं तक की कक्षाओं में पढ़ाने के लिए योग्य होंगे.</p><p>18 महीने के इस कोर्स को पूरा करने का 40 हज़ार रुपये का ख़र्च था. देश भर में क़रीब 15 लाख लोगों ने यह पाठ्यक्रम पूरा किया. बिहार से केवल 2.5 लाख शिक्षक थे. इनमें से कुछ का पहले नियोजन भी हुआ है, बाकी ग़ैर-सरकारी विद्यालयों में पढ़ा रहे हैं.</p><p>लेकिन बिहार सरकार ने नए शिक्षक नियोजन के लिए इस कोर्स की मान्यता एनसीटीई के एक फ़ैसले के हवाले से रद्द कर दी है.</p><p>छह सितंबर को एक लिखित आदेश में एनसीटीई ने कहा है कि शिक्षक बनने के लिए कम से कम दो साल की डिप्लोमा ट्रेनिंग ज़रूरी है. लेकिन इन शिक्षकों ने एनआईओएस के तहत 18 महीने का ट्रेनिंग प्रोग्राम पूरा किया है.</p><p>अभ्यर्थियों के लिए त्रासदी ये भी है कि जब से उन्होंने यह कोर्स कंप्लीट किया है, तब से एक भी बार बिहार TET की परीक्षा नहीं हुई जिसको पास कर वे बिहार सरकार की तरफ़ से शिक्षक बनने की योग्यता हासिल कर लें.</p><h1>&quot;प्रधानमंत्री की तस्वीर के साथ आया था विज्ञापन&quot;</h1><p>आमरण अनशन पर बैठे एक शिक्षक दुर्गानंदन झा कहते हैं, &quot;मुझे याद है कि एनआईओएस का वह विज्ञापन प्रधानमंत्री की एक तस्वीर के साथ आया था. ये वादा किया गया था कि डीएलईडी प्रोग्राम पूरा करने के बाद हमलोग देश में कहीं भी पहली से आठवीं तक कक्षाओं में पढ़ाने के योग्य हो जाएंगे. इसी लालच के साथ हमनें ये कोर्स किया. लेकिन अब जब नियोजन की बारी आयी है तो कोर्स की मान्यता रद्द कर दी गई. जबकि पूरे देश में इसी डीएलईडी पाठ्यक्रम को पूरा किए हुए लोग सरकारी शिक्षक बन रहे हैं.&quot;</p><p>बिहार में 49000 नए शिक्षकों के नियोजन की भर्ती प्रक्रिया में शामिल होने के लिए आवेदन की तिथि 9 नवंबर है. ये अभ्यर्थी मानव संसाधन विकास मंत्रालय से लेकर बिहार के मुख्यमंत्री तक का दरवाज़ा खटखटा चुके हैं. बक़ौल इनके, &quot;कहीं किसी ने नहीं सुनी. सब कहते हैं कोर्ट जाइए.&quot;</p><p>ये शिक्षक अदालत भी गए. लेकिन वहाँ भी छुट्टियों के कारण इनकी सुनवाई नहीं हो पा रही. हार थक कर वे अब पटना के गर्दनीबाग़ में पिछले कुछ दिनों से आमरण अनशन पर हैं. कई अनशनकारियों की अब तबीयत बिगड़ने लगी है. पहले भी इन शिक्षकों की आत्महत्या की ख़बरें सुर्खियां बनी हैं.</p><p>जहां तक बात एनआईओएस के जवाब की है तो उसके राष्ट्रीय सेक्रेटरी सीबी शर्मा कहते हैं, &quot;हमनें एनआरसी की अनुमति से ये कोर्स कराया है. हमारे शिक्षकों की जाँच करा ली जाए. ये बाक़ी प्रशिक्षित से किसी भी मामले में कम नहीं है. बिहार सरकार की ये ग़लती है कि वह हमारे शिक्षकों को अयोग्य क़रार दे रही है.&quot;</p><p>सरकार इस मामले पर एनसीटीई के उस आदेश का हवाला दे रही है जिसमें शिक्षक बनने के लिए कम से कम योग्यता दो साल के डिप्लोमा प्रोग्राम को दी गई है.</p><p>सीबी शर्मा कहते हैं, &quot;ये इन-सर्विस टीचर के लिए प्रोग्राम था. वैसे शिक्षक जो कहीं पढ़ा तो रहे थे मगर उनके पास टीचर ट्रेनिंग नहीं थी जिसके कारण नियोजन और नियुक्ति में वे पिछड़ जा रहे थे. यह भी दो साल का ही डिप्लोमा था, जिसमें बाक़ी के छह महीने बतौर इंटर्नशिप शामिल किए गए थे. क्योंकि सभी शिक्षक अपनी सर्विस में थे. &quot;</p><p>हमनें बिहार सरकार के प्राथमिक शिक्षा निदेशक अरविंद वर्मा से इस मसले पर बात की. वे कहते हैं, &quot;जब एनसीटीई ने कम से कम दो साल के न्यूनतम ट्रेनिंग प्रोग्राम को ही मान्यता दी है तो हम कैसे उससे कम अवधि की ट्रेनिंग वाले टीचर्स को नियोजित कर सकते हैं. एनसीटीई का आदेश जब से जारी हुआ, उसके पहले तक तो हमलोग सबको नियोजन में शामिल करते ही थे. लेकिन अब जबकि एनसीटीई का अलग से आदेश आ गया है, तब नियमों के ख़िलाफ़ नहीं जाया जा सकता.&quot;</p><p>एनआईओस ने डीएलईडी पाठ्यक्रम के विज्ञापन के दौरान बहुत चटख अक्षरों में लिखवाया था, &quot;यह कोर्स एनसीटीई और एमएचआरडी द्वारा स्वीकृत है. कोई भी इस योग्यता के साथ देश में कहीं भी नौकरी के लिए आवेदन कर सकता है.&quot;</p><h1>जब मान्यता है तो फिर रोक क्यों ? </h1><p>लेकिन अब बिहार सरकार ने एनसीटीई के आदेश का हवाला देते हुए इस कोर्स को करने वालों की नौकरी पर रोक लगा दी है. यदि एनसीटीई ने इस कोर्स को मान्यता दी है तो फिर रोक क्यों?</p><p>एनसीटीई के सेक्रेटरी प्रभु कुमार यादव इसके जवाब में कहते हैं, &quot;एनसीटीई के जिस लेटर का हवाला दिया जा रहा है उसमें हमनें कहीं नहीं लिखा है कि 18 महीने वाले डीएलईडी प्रोग्राम को नियोजन में शामिल करने पर रोक लगा दिया जाए. हमनें सिर्फ़ इतना कहा है कि कम से कम दो साल वाले ट्रेनिंग प्रोग्राम की न्यूनतम अहर्ता वाले नियम का कड़ाई से पालन किया जाए. अगर एनआईओएस अपने तर्कों के साथ इस बात का स्पष्टीकरण देता है कि उनका पाठयक्रम भी दो साल के पाठ्यक्रम के समकक्ष है तो बिहार सरकार के ऊपर है कि वो अपने यहां नियोजन में इन छात्रों को शामिल करे अथवा नहीं.&quot;</p><p>अनशनकारी डीएलएड शिक्षक बातचीत में बताते हैं कि वे दो साल वाले ट्रेनिंग प्रोग्राम को पूरा किए शिक्षकों से किसी मायने में कम नहीं हैं. क्योंकि पहले से ग़ैर-सरकारी विद्यालयों में बतौर शिक्षक पढ़ा रहे थे. बतौर शिक्षक प्राइवेट स्कूलों में नौकरी करना ज्यादा कॉम्पिटिशन वाला है.</p><p>कुछ शिक्षक अपना रिज़ल्ट दिखाते हुए कहते हैं, &quot;पिछले सीटेट (CTET) में बिहार से जितने अभ्यर्थियों ने पास किया है उनमें सबसे अधिक डीएलईडी टीचर्स ही हैं. फिर भी पता नहीं बिहार सरकार को क्यों लगता है कि हमारी योग्यता कम है. अगर हमारी योग्यता कम है तो दूसरे राज्यों में डीएलईडी टीचर्स कैसे नियुक्त हो जा रहे हैं.&quot;</p><p>आख़िर बिहार सरकार को अब डीएलईडी शिक्षकों से क्या दिक्क़त हो गई? जबकि इनका रिकॉर्ड भी इतना बढ़िया रहा है.</p><p><a href="https://www.bbc.com/hindi/india-49013377?xtor=AL-73-%5Bpartner%5D-%5Bprabhatkhabar.com%5D-%5Blink%5D-%5Bhindi%5D-%5Bbizdev%5D-%5Bisapi%5D">क्या बिहार में बाढ़ एक ‘घोटाला’ है?</a></p><p><a href="https://www.bbc.com/hindi/india-48778949?xtor=AL-73-%5Bpartner%5D-%5Bprabhatkhabar.com%5D-%5Blink%5D-%5Bhindi%5D-%5Bbizdev%5D-%5Bisapi%5D">स्वास्थ्य सुविधाओं में बिहार और यूपी क्यों हैं बदतर?</a></p><p>मुज़फ्फ़रपुर के एक प्राइवेट स्कूल में पढ़ने वाली डीएलईडी पास टीचर प्रियंका कहती हैं, &quot;ये शिक्षा माफ़िया लोगों के कारण हो रहा है. जिनके अपने बीएड स्कूल चलते हैं. उसमें सरकार के भी कई लोग शामिल हैं. वे जानते हैं कि अगर डीएलईडी वालों को नियोजन में शामिल किया गया तो उनके यहां से ट्रेनिंग किए हुए लोग पिछड़ जाएंगे.&quot;</p><p>आगामी छह नवंबर को पटना हाई कोर्ट में डीएलईडी शिक्षकों की एक पीआईएल पर सुनवाई होनी है. नौ नवंबर तक भर्ती में भाग लेने की अंतिम तारीख़ है. फिर भी सरकार नहीं सुनती है तो वे क्या करेंगे?</p><p>छह दिनों से अनशन पर बैठे सूखे पड़ गए चेहरे पर ग़ुस्सा आ जाता है. सोनू कहते हैं, &quot;अगर इस नियोजन में शामिल नहीं हो सके तो जहां पढ़ा रहे हैं वहां से भी हटा दिया जाएगा. यहां से या तो हमारी भागीदारी नियोजन में सुनिश्चित होगी या नहीं तो फिर हमारी लाश जाएगी.&quot;</p><p><strong>(बीबीसी हिन्दी के एंड्रॉएड ऐप के लिए आप </strong><a href="https://play.google.com/store/apps/details?id=uk.co.bbc.hindi">यहां क्लिक</a><strong> कर सकते हैं. आप हमें </strong><a href="https://www.facebook.com/bbchindi">फ़ेसबुक</a><strong>, </strong><a href="https://twitter.com/BBCHindi">ट्विटर</a><strong>, </strong><a href="https://www.instagram.com/bbchindi/">इंस्टाग्राम </a><strong>और </strong><a href="https://www.youtube.com/user/bbchindi">यूट्यूब</a><strong>पर फ़ॉलो भी कर सकते हैं.)</strong></p>

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