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लोग फिरंगियों जैसा करते हैं सलूक

अनुवांशिक दोष के शिकार परिवार का अलग ही दर्द दुनिया रंग-बिरंगी है, और इसके हर रंग अनोखे हैं. ‘अजब परिवारों की गजब कहानियां’ श्रृंखला की पांचवीं कड़ी में आज पढ़िए रस्तौरी परिवार के बारे में. सफेद चमड़ी लिए इस परिवार ने दुनिया के सबसे बड़े वर्णहीन परिवार होने के कारण विश्व रिकॉर्ड कायम किया है. […]

अनुवांशिक दोष के शिकार परिवार का अलग ही दर्द

दुनिया रंग-बिरंगी है, और इसके हर रंग अनोखे हैं. ‘अजब परिवारों की गजब कहानियां’ श्रृंखला की पांचवीं कड़ी में आज पढ़िए रस्तौरी परिवार के बारे में. सफेद चमड़ी लिए इस परिवार ने दुनिया के सबसे बड़े वर्णहीन परिवार होने के कारण विश्व रिकॉर्ड कायम किया है. पर दर्द यह है कि पड़ोसी इन्हें अपना नहीं समझते.

उत्तर पश्चिमी दिल्ली की एक झुग्गी बस्ती. संकरी गलियों में क्रिकेट खेलते बच्चे, चबूतरों पर ठहाके लगाता पुरुषों का जमघट, कच्ची ईंटों से बने घरों के बाहर बातें करतीं महिलाएं और छोटी-छोटी गुमटियों से ग्राहकों को लुभाने वाली आवाज, यहां की आम बात है. लेकिन, इतने शोर के बीच भी वहां एक घर ऐसा है, जहां सन्नाटा पसरा है.

रस्तौरी पुल्लर का घर मानो अपने आसपास की दुनिया से अलग-थलग है. इस घर में कुल दस लोग हैं, लेकिन फिर भी खामोशी है. आसपास के लोगों के लिए यह फिरंगियों का घर है.

रस्तौरी परिवार अपनी एक विशेष खूबी से पहचाना जाता है. विदेशियों जैसी सफेद चमड़ी लिए इस भारतीय परिवार ने दुनिया के सबसे बड़े अल्बिनो (वर्णहीन) परिवार होने के कारण विश्व रिकॉर्ड कायम किया है. 50 वर्षीय रस्तौरी और 45 वर्षीय मानी के इस पुल्लर परिवार में दस सदस्य हैं.

सभी अल्बिनो हैं. पिछले कई वर्षो से यह परिवार अन्य लोगों, यहां तक कि अपने सगे-संबंधियों से भी दूर रह रहा है. मानी कहती हैं, हमारे पड़ोसी हमें विदेशी समझते हैं, क्योंकि हमारी त्वचा और बालों का रंग विदेशियों की भांति सफेद है. यह हमारे लिए दुर्भाग्य की बात है कि हम भारतीय होकर भी भारतीयों की तरह नहीं दिखते.

क्या है ऐल्बिीनिज्म

ऐल्बिीनिज्म एक अनुवांशिक जन्मजात विकार है. इसमें शरीर पर्याप्त मात्र में मेलेनिन नहीं बना पाता. मेलेनिन से ही हमारी चमड़ी को रंग मिलता है.

इसकी मात्र जितनी ज्यादा होती है, रंग उतना गहरा होता है. मेलेनिन न बन पाने से पीड़ित के बालों, आंखों और त्वचा का रंग पूरी तरह सफेद या पीला हो जाता है. चूंकि ऐल्बिीनिज्म ग्रस्त लोगों की त्वचा में आंशिक रूप से या पूरी तरह से मेलेनिन रंजक का अभाव होता है, जो त्वचा को सूर्य की पराबैंगनी विकिरण से रक्षा करने में मदद करता है.

इसलिए उनकी त्वचा सूर्य की किरणों के अत्यधिक संपर्क में आने पर बड़ी आसानी से जल सकती है. उनमें धूप से झुलसने व त्वचा कैंसर होने का खतरा अधिक होता है.

रात, दिन के बराबर

दो कमरे वाले घर में रहने वाला यह परिवार खुद को औरों से अलग पाता है. जब लोग दिन भर की थकावट के बाद काम से लौटते हैं, तब इस परिवार का सदस्य काम पर जाता है. इनके लिए रात, दिन के बराबर है. रस्तौरी कहते हैं, दिन में धूप की वजह से हम बाहर नहीं निकल पाते इसलिए हमारी सुबह रात में ही होती है.

खराब दृष्टि के कारण हम दूर-दराज काम पर नहीं जा सकते. घर के बाहर ही अंडे का स्टॉल लगाते हैं, जो हमारे इतने बड़े परिवार की आमदनी का एकमात्र जरिया है.

आर्थिक तंगी का शिकार

आर्थिक तंगी से गुजर रहा यह परिवार 50 वर्ष पूर्व तमिलनाडु से दिल्ली एक बेहतर जीवन की तलाश में आया था. रस्तौरी आगे कहते हैं, आज हम अपने ही अस्तित्व के लिए लड़ाई लड़ रहे हैं. परिवार कोई भी सदस्य अगर बाहर सामान खरीदने जाता है, तो लोग हमारा मजाक उड़ाते हैं. कई बार तो हमारे बाल खींचे जाते हैं और चिकोटी काटी जाती है. बच्चों के लिए तो हम फिरंगी हैं.

मुझे एक बात खटकती है कि इस देश में कई एनजीओ हैं, जो कैंसर पीड़ितों, विक्षिप्त लोगों की मदद करते हैं, लेकिन एक भी ऐसा एनजीओ नहीं है जो अल्बिनो की मदद करे? यह सुन कर अजीब लगता है कि कोई भी ऐल्बीनिज्म के प्रति लोगों में जागरूकता फैलाने का काम नहीं करता.

समस्या यह भी

पुत्र विजय (26), रामकिशन (22), शंकर (24) और बेटियों रेणु (23), दीपा (21) और पूजा (19) की यह बीमारी अनुवांशिक है, जो माता-पिता से मिली है. रस्तौरी की 23 वर्षीय बेटी रेणु का विवाह 27 वर्षीय रोशेह से हुआ है, जो स्वयं एक अल्बिनो है. रस्तौरी कहते हैं, मेरी और मानी की अरैंज मैरेज हुई थी. मेरे माता-पिता चाहते थे कि मैं इस बीमारी से पीड़ित लड़की से ही विवाह करूं.

मेरे ना चाहने पर भी मुझे यह शादी करनी पड़ी, क्योंकि एक सामान्य परिवार के लोग हमसे शादी नहीं करना चाहते. दो और बेटियों के लिए अच्छा लड़का ढूंढ़ना मेरे लिए बहुत मुश्किल है. मैं नहीं चाहता कि मेरे पोते-पोती भी अल्बिनो हों. पर हम मजबूर हैं.

बच्चों के भी हैं कई सपने

मेरे बच्चों पर यह विकार हावी न हो इसलिए मैं उन्हें बेहतर शिक्षा प्रदान कर रहा हूं. शिक्षा ही हमारी मुसीबत का एकमात्र समाधान है. घर के पास के ब्लाइंड स्कूल में मेरे बच्चे पढ़ते हैं. दीपा ने खेलकूद में कई पुरस्कार जीते हैं. रामकिशन ने 12वीं बोर्ड में 82 प्रतिशत लाकर हमारा सिर ऊंचा किया है. आगे वह दिल्ली विश्वविद्यालय से साइकोलॉजी पढ़ना चाहता है. शंकर डीयू से राजनीति शास्त्र में एमए कर रहा है.

राजनीति में रुचि रखने वाला शंकर अपने परिवार को इस गंदगी से दूर कहीं अच्छी जगह ले जाना चाहता है. वहीं दीपा के भी अपने सपने हैं. वह 400 मीटर के दौड़ में भारत का प्रतिनिधित्व करना चाहती है. लेकिन उसे पता है कि यह आसान नहीं. सामान्य लोगों की तुलना में उसे तिगुनी मेहनत करनी होगी.

इस बात पर शंकर लेखक पाओलो कोएल्हो की लिखी गयी बातों को याद करता है, ‘जब तुम किसी चीज को पाने की इच्छा रखते हो, तो पूरी सृष्टि तुम्हें उससे मिलवाने की कोशिश में लग जाती है.’ रस्तौरी परिवार के सारे बच्चों का यही कहना है कि दुनिया में कुछ भी नामुमकिन नहीं है, हम वो सब कुछ कर सकते हैं, जो एक सामान्य शख्स करता है. इसकी पहल उन्होंने रेणु के बच्चे धर्मराज को एक सामान्य स्कूल में भेज कर कर दी है.

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