विश्व हिंदू परिषद के वरिष्ठ नेता गिरिराज किशोर का रविवार देर शाम दिल्ली में निधन हो गया. 96 साल के गिरिराज किशोर काफी समय से बीमार थे.
वे अयोध्या में राम मंदिर निर्माण आंदोलन के सक्रिय नेता थे.
उनका जन्म चार फरवरी 1920 को उत्तर प्रदेश के एटा ज़िले में हुआ.
इसके बाद मध्य प्रदेश के मुरैना ज़िले में उन्होंने बतौर स्कूल शिक्षक काम किया था.
संघ के प्रचारक
उन्होंने हिंदी, राजनीति शास्त्र और इतिहास में पोस्ट ग्रेजुएट तक शिक्षा हासिल की थी. दिवंगत वीएचपी नेता बहुत ही कम उम्र में ही राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ में शामिल हो गए थे और वो इसके प्रचारक भी रहे.
बाद में आरएसएस ने उन्हें वीएचपी में भेज दिया था.
लेकिन गिरिराज किशोर तब अधिक सुर्खियों में आए जब वो रामजन्म भूमि आंदोलन के एक बहुत ही सक्रिय नेता के रूप में आगे बढ़ने लगे.
आरएसएस के विचारक राकेश सिन्हा का कहना है, "गिरिराज किशोर राम जन्म भूमि आंदोलन की नींव से लेकर आंदोलन के लिए लोगों के जनजागरण और बाद में हुए संघर्ष तक से जुड़े रहे."
जब राम जन्म भूमि आंदोलन अपने उफ़ान पर था तो गिरिराज किशोर ने कहा था कि दुनिया की कोई भी ताकत, चाहे वो न्यायपालिका ही क्यों न हो, राम मंदिर के निर्माण को नहीं रोक सकती.
निरंतर संवाद के हिमायती
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने संदेश में कहा है कि उनका जीवन मातृभूमि की सेवा में समर्पित था.
गिरिराज किशोर विहिप की स्थापना के समय से उससे जुड़े रहे थे. वो अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के संस्थापक सदस्यों में से भी थे.
उनके जानने वाले उन्हें एक सुलझा हुआ और बातचीत के ज़रिए मामले सुलझाने में यकीन रखने वाले व्यक्ति के तौर पर याद करते हैं. हालांकि जिन विचारों पर उनका यकीन था उस पर वो समझौता करने को तैयार नहीं होते थे.
राकेश सिन्हा का कहना है, "वे इस बात के समर्थक थे कि सभी पक्षों के साथ निरंतर संवाद होना चाहिए लेकिन सिर्फ समझौतावादी रुख अपनाते हुए नहीं."
एक समय में वे विहिप की ओर से मीडिया से संवाद भी करते थे. उन्हें काफी समय से चलने-फिरने में दिक्कत थी और उन्हें व्हील चेयर का सहारा लेना पड़ता था.
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