चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने चीन की राजनीति को नया रूप दिया है. वह टीवी पर नज़र आ रहे हैं और आसान भाषा में नीतियों को आम लोगों को समझा रहे हैं.
उनके भ्रष्टाचार विरोधी अभियान के शिकंजे में कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ़ चाइना(सीसीपी), के बड़े-बड़े नेता फंस रहे हैं. लेकिन ऐसा लगता है कि वह सिर्फ़ शी के विरोधी और उनके सहयोगी ही हैं.
उधर चीन में घरेलू और विदेशी बिज़नेस कॉर्पोरशन, मध्यवर्गीय घर मालिकों के नेटवर्क, बेदख़ल किसान, प्रदूषण या असुरक्षित भोजन के शिकार, प्रवासी मज़दूर और ऐसे ही लोग अब राजनीतिक असर रखने लगे हैं.
लेकिन सवाल यह है कि क्या शी जिनपिंग सीसीपी और चीनी सरकार की राजनीतिक प्रवृत्ति को बदल पाएंगे.
पढ़िए प्रोफ़ेसर फ्रैंक पाइके का विशेष आलेख
साल 2012 में सत्ता में आने के बाद कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ़ चाइना (सीसीपी) महासचिव शी जिनपिंग ने चीन की राजनीति को नया रूप दिया है.
वह सार्वजनिक रूप से लोगों के साथ पेस्ट्री खा रहे हैं, टीवी पर नज़र आ रहे हैं और नीतियों को आम लोगों को समझ आने वाली भाषा में समझा रहे हैं. दुनिया के नेताओं को सादे बर्ताव से प्रभावित कर रहे हैं जो एक ही वक़्त में आसान पहुंच भी दर्शाता है और आत्मविश्वास की मज़बूती भी.
शी जिनपिंग अपने पूर्ववर्ती हू जिंताओ से जितने अलग हो सकते थे, हैं. लेकिन सवाल यह है कि क्या वह चीनी राजनीतिक ढांचे की प्रवृत्ति को बदल पाएंगे?
ऐसा नहीं कि शी जिनपिंग से सब ख़ुश हैं. एक के बाद एक हाई-प्रोफ़ाइल लोग उनके अभूतपूर्व भ्रष्टाचार विरोधी अभियान का शिकार हो रहे हैं. यह न सिर्फ़ मामूली रिश्वतख़ोरी का पर्दाफ़ाश कर रहा है बल्कि चीनी नेताओं के बड़े घोटालों को भी सामने ला रहा है.
इस साल मई में शक्तिशाली उद्योगपति लियू हान को ‘संगठित और माफ़िया की तरह के अपराधों ओर हत्या’ के लिए मौत की सज़ा का फ़ैसला हुआ. इसके भी मायने कुछ और हैं. इसने राजनीतिक ढांचे में शक्तिशाली आपराधिक संगठनों की घुसपैठ को ज़ाहिर किया है.
भ्रष्टाचार विरोधी अभियान ऐसा कोई युग परिवर्तनकारी साबित नहीं होने जा रहा जैसा कि यह लगता है. इस अभियान के शिकार यक़ीनन ऊंचे ओहदों पर बैठे लोग भी हैं लेकिन ऐसा लगता है कि वह सिर्फ़ शी के विरोधी और उनके सहयोगी ही हैं. जिनमें पूर्व सिक्योरिटी पार्टी प्रमुख ज़ाउ यॉन्गकांग प्रमुख है.
यह पार्टी की सामान्य राजनीति है जिसमें बो शिलाई मामले (जिन्हें 2013 में भ्रष्टाचार के आरोप में जेल भेजा गया था) के चलते गहरी दरारें आ गई हैं और जो इस अभियान की प्रचंडता की वजह हैं.
बो शिलाई के पतन और ज़ाउ यॉन्गकांग और उनके साथियों को उखाड़ फेंकने की कोशिशें चीनी राजनीति के बारे में काफ़ी कुछ कहती हैं, जो सीसीपी जितनी ही पुरानी है.
सीसीपी के नेतृत्व के लिए पार्टी के वरिष्ठ नेताओं के बीच मतभेद बाहरी ख़तरों- अलगाववादी, असंतुष्टों, धार्मिक चरमपंथियों- के मुक़ाबले, सत्ता के अस्थिर होने की चिंता का सबसे बड़ा कारण है.
शीर्ष नेतृत्व में प्रतिस्पर्धा पार्टी के एकता के दिखावे के टुकड़े कर देती है और सीसीपी के सत्ता के पवित्र अधिकार के रहस्य को कम कर देती है.
शी जिनपिंग के नेतृत्व के संक्रमणकाल की मुश्किलों और उठापटक के अलावा चीन के राजनीतिक ढांचे में बहुत से ‘कम प्रभावशाली’ परिवर्तन हो रहे हैं जो दीर्घकाल में ज़्यादा महत्वपूर्ण साबित हो सकते हैं.
पूंजावादी बाज़ार अर्थव्यवस्था के विकास ने चीन के सामाजिक ढांचे को बदल दिया है और नए सामाजिक विरोधाभास और आपसी द्वंद्वों को जन्म दिया है. घरेलू और विदेशी बिज़नेस कॉर्पोरेशन, मध्यवर्गीय घर मालिकों के नेटवर्क, बेदखल किसान, प्रदूषण या असुरक्षित भोजन के शिकार, प्रवासी मज़दूर और ऐसे ही लोग अब राजनीतिक असर रखने लगे हैं.
कुल मिलाकार सीसीपी ने दबाना नहीं चाहा है बल्कि राजनीतिक ढांचे के विशेष हितों के प्रभाव को नियंत्रित करना और मार्ग देना चाहा है. एक ऐसी पद्धति जिसे ‘सोशल मैनेजमेंट’ या आजकल ‘सोशल गवर्नेंस’ कहा जाने लगा है.
हालांकि पार्टी अब पूरी तरह चीज़ों को निंयत्रित करने की स्थिति में नहीं है. पार्टी जितना समाज के प्रबंधन में बेहतर होती है समाज को भी पार्टी और सरकार के प्रबंधन में उतनी ही जगह मिल जाती है.
उदाहरण के लिए शिकायत तंत्र या न्याय तंत्र में चिट्ठियों या व्यक्तिगत शिकायत के ज़रिए असंतुष्ट नागरिकों को हर्जाना या जवाब मांगने का मौक़ा मिलता है और अधिकारियों को नीतियां लागू करते वक़्त उनकी बातों का ध्यान रखना पड़ता है.
सामान्यतः ऐसे बहुत से तरीक़ों की जानकारी नहीं है कि राजनीतिक ढांचा, विशेष हित के लिए ज़ोर लगाने वाले (लॉबीइंग) आम बुद्धिजीवियों या नीति उद्यमियों के लिए भेद्य हो गया है.
समाज और पार्टी-सरकार के बीच के संबंध को नियंत्रित कर रहे यह नए राजनीतिक खिलाड़ी राजनीतिक ढांचे में कई दरारों को ढूंढते और बढ़ाते हैं.
नीतिगत फ़ैसलों को प्रभावित करने के लिए एनजीओ, व्यापारिक संगठन, बड़े निगम- देसी, विदेशी दोनों ही कॉंफ्रेंस, मीडिया, शोध और नीति के बारे में संरक्षित जानकारियों का इस्तेमाल करते हैं. इसके अलावा चुनिंदा नेताओं से सीधे मिलना तो शामिल है ही.
इसके बदले पार्टी और सरकार ने अपनी नीतियों के बारे में बताने का अपना तरीक़ा ईजाद कर लिया है- शोध, विशेषज्ञों की राय और जनमत संग्रह के द्वारा.
अस्सी के दशक में ही नेताओं से जुड़े थिंक-टैंक सामने आने लगे थे और अब हर सरकारी विभाग के पास नीतिगत शोध के लिए अपना ब्यूरो, सेक्शन या संस्थान है.
पार्टी के स्कूलों या नियमित विश्वविद्यालयों को लगातार विशिष्ट नीति संबंधी प्रोजेक्ट चलाने को कहा जाता है.
पार्टी का पोलित ब्यूरो ख़ुद ‘सामूहिक अध्ययन सत्र’ आयोजित करता रहा है जहां विशेष शोध और ख़ास नीतियों के क्षेत्र में बताया जाता है. ख़ासतौर पर नब्बे के दशक की शुरुआत से काफ़ी पढ़े-लिखे चीनियों ने चीन में ही रुकना या चीन लौटकर पार्टी-राज्य के उपक्रमों के साथ काम करना तय किया है.
उनका मानना है कि सिस्टम के अंदर से उनका प्रभाव ज़्यादा बेहतर होगा बनिस्बत कि असंतुष्ट, कार्यकर्ता या देश के बाहर रहकर सरकार के प्रदर्शन करने के.
बीजिंग दिन-ब-दिन पश्चिम के राजनीतिक केंद्रों की तरह लगता जा रहा है. जैसे कि वॉशिंगटन या ब्रसेल्स, जो कि शोध केंद्रों, थिंक टैंक्स, लॉबी करने वाली कंपनियों, संगठनों और फ़ाउंडेशनों से भरे रहते हैं जो प्रभाव और ताक़त की दलाली करते हैं.
लेकिन नीति-निर्माण अब भी ‘नेतृत्व के छोटे समूह’ के ब्लैक बॉक्स, केंद्रीय पार्टी की समितियों, विभागों और सरकारी उपक्रमों में ही होता है. लेकिन अब इसका संचालन भव्य एकांत से नहीं होता.
नीतियों को कई माध्यमों से प्रभावित किया जाता है जिनमें से कुछ तो संघटित होकर पैदा हुए हैं लेकिन कुछ को बहुत सोच-समझकर उनकी जगहों पर रखा गया है.
इससे हम एक बार फिर से भ्रष्टाचार के मुद्दे पर आ जाते हैं. हालांकि ज़्यादातर लॉबीइंग और अपने हितों पर आधारित राजनीति पूरी तरह क़ानूनी है, लेकिन साफ़ है कि सारी नहीं. अगर शी जिनपिंग का भ्रष्टाचार विरोधी अभियान सचमुच चीन की राजनीति की सफ़ाई करना चाहता है तो कुछ बहुत अलग सवाल पूछे जाने होंगे.
भ्रष्टाचार का असली मुद्दा राजनीतिक हैसियत का इस्तेमाल कर अपने लिए संपदा बनाने से नही है, जो कि यूं भी वैश्विक लगता है, लेकिन यह है कि कैसे भ्रष्टाचार राजनीतिक प्रक्रिया की मूल प्रवृत्ति को ही बदल देता है.
रिश्वत लेना, या उससे भी चिंताजनक बात, अरबपति पार्टी नेताओं के व्यापारिक हित कैसे नीति निर्माण और लागू करने को प्रभावित करते हैं?
दूसरे शब्दों में क्या सीसीपी सत्ता के शीर्ष पर बैठे ऐसे लोगों का ढोने वाला वाहन बन गया है जो सिर्फ़ अपने हित साधने के लिए ही देश पर राज कर रहे हैं?
इन सवालों के जवाब से ही हमें पता चलेगा कि शक्ति, धन और संगठित अपराध का मिश्रण किस स्तर तक पहुंच गया है और सीसीपी और उसके सत्ता करने के साधन- राजनीतिक संगठन को कितना बदला है, और चीनी राजनीति में वह खाई कितनी चौड़ी है जो सिद्धांत और हकीकत को अलग करती है.
चीन का राजनीतिक तंत्र अब भी इस तरह से विकसित हो रहा है कि हम पूरी तरह इसकी थाह नहीं पा सकते. चीन पश्चिम के बहु-दलीय लोकतंत्र की दिशा में नहीं बढ़ रहा है तो अब यह भी साफ़ है कि यह पूरी तरह तानाशाही भी नहीं है.
इसके बजाय यह थोड़ा-थोड़ा दोनों है और इसके साथ ही कुछ पूरी तरह से नया भी.
सीसीपी अब एकदम नई दिशा में बढ़ रही है. सीसीपी के नेतृत्व समेत कोई भी नहीं जानता कि भविष्य में क्या होगा. अभी आगे बहुत से चुनौतियां हैं- आर्थिक, कूटनीतिक, रणनीतिक, सामाजिक और राजनीतिक.
इससे पहले कि इन्हें सुलझाया जाए, सीसीपी की भूमिका को भी बदलना होगा. यहां हम उन कुछ महत्वपूर्ण क़दमों के बारे में बता दें, जो उठाए जाने हैं.
पहला, पारदर्शिता और उत्तरदायित्वः वर्तमान तंत्र में पार्टी के अंदर ही अब भी नीति निर्माण को लेकर स्पष्टता का अभाव है. बेशक पार्टी नेतृत्व भ्रष्टाचार विरोधी अभियान, समय-समय पर शुद्धिकरण और पार्टी की गोपनीयता के परखे हुए तरीकों को ही जारी रख सकता है.
लेकिन एक विकल्प यह भी है कि पार्टी राजनीतिक खेल की प्रवृत्ति को ही बदलने की कोशिश करे.
राजनीतिक प्रतिस्पर्धा, प्रभाव जमाने, बहस और फ़ैसला करने के ज़्यादा साफ़ नियम और प्रक्रिया लागू की जाए जो मौजूदा ‘सलाहकार लोकतंत्र’ के दायरे से इतर सार्वजनिक समीक्षा के लिए खुले हों.
तंत्र के अंदर मौजूद भ्रष्टाचार से लड़ने के लिए पार्टी नेताओं को अपने हितों को सार्वजनिक करना होगा.
ऐसे नियम और व्यवस्था तैयार करनी होगी जो नेताओं को ऐसे फ़ैसले करने से रोक सके जिससे उन्हें खुद फ़ायदा होता हो.
दूसरा- पार्टी और समाज के बीच अलगावः व्यक्तियों, कार्पोरेशनों, समूहों, संगठनों को क़ानूनी या सामाजिक सरकार के तहत हासिल आज़ादी पार्टी की समीक्षा पर निर्भर करती है.
कहा जा सकता है कि यह तब तक चलता है जब तक कि चीनी नागरिक ऐसे बच्चों की तरह बर्ताव करें जिन पर वयस्कों को नज़र रखने की ज़रूरत है. लेकिन पूरे चीन में राजनीतिक गतिविधियों में वृद्धि इस बात का संकेत है कि अब ऐसा नहीं रह गया है.
इसके बजाय पार्टी को सामाजिक स्थायित्व पर अपने पूर्वाधिकार से ख़ुद को अलग कर लेना चाहिए और उस समाज पर भरोसा करना चाहिए, जो इसने तैयार किया है.
वैचारिक या धार्मिक विभेद या संघर्ष और प्रतिस्पर्धा हमेशा बुरी या स्थायित्व को ख़तरा नहीं होती. इसके विपरीत ये तो एक जीवंत, स्थायी और परिवक्व समाज का चिन्ह हैं.
इस बात की बहुत अधिक संभावना है कि सीसीपी चीन पर लंबे वक़्त तक शासन करती रहेगी. ज़्यादातर चीनियों, चीन और दुनिया के लिए शायद यह अच्छा ही है.
लेकिन अब सत्ता की बागडोर को ढीला करने का वक़्त आ गया है. चीन अब बड़ा हो गया है.
(लाइडेन विश्वविद्यालय में मॉडर्न चाइना स्टडीज़ के प्रोफ़ेसर फ्रैंक पाइके चीनी राजनीति और समाज पर एक किताब लिख रहे हैं. यह किताब कैंब्रिज विश्वविद्यालय से 2015 में प्रकाशित होगी.)
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