होमी भाभा जवाहरलाल नेहरू के काफ़ी नज़दीक थे और दुनिया के उन चुनिंदा लोगों में से थे जो उन्हें भाई कह कर पुकारते थे.
इंदिरा चौधरी कहती हैं, "नेहरू को सिर्फ़ दो लोग भाई कहते थे… एक थे जयप्रकाश नारायण और दूसरे होमी भाभा. हमारे आर्काइव में इंदिरा गांधी का एक भाषण है जिसमें वह कहती हैं कि नेहरू को भाभा अक्सर देर रात में फ़ोन करते थे और नेहरू हमेशा उनसे बात करने के लिए समय निकालते थे."
"एक अंग्रेज़ वैज्ञानिक थे पैट्रिक बैंकेट जो डीआरडीओ के सलाहकार होते थे… उनका कहना था कि नेहरू को बौद्धिक कंपनी बहुत पसंद थी और होमी भाभा से वह कंपनी उन्हें मिला करती थी."
भाभा का सोचने का दाएरा काफ़ी विस्तृत था. वो वर्तमान के साथ-साथ आने वाले समय की ज़रूरतों को भी उतना ही महत्व देते थे.
आगे की सोच
जाने-माने वैज्ञानिक प्रोफ़ेसर एमजीके मेनन एक दिलचस्प क़िस्सा सुनाते हैं, "एक बार मैं उनके साथ देहरादून गया था. उस समय पंडित नेहरू वहाँ रुके हुए थे."
"एक बार हम सर्किट हाउस के भवन से निकल कर उसके ड्राइव वे पर चलने लगे. उन्होंने मुझसे पूछा कि क्या आप इस ड्राइव वे के दोनों तरफ़ लगे पेड़ों को पहचानते हैं. मैंने कहा इनका नाम स्टरफ़ूलिया अमाटा है."
"भाभा बोले मैं इसी तरह के पेड़ ट्रॉम्बे के अपने सेंट्रल एवेन्यू में लगाने वाला हूँ. मैंने कहा होमी आपको पता है इन पेड़ों को बड़ा होने में कितना समय लगता है. उन्होंने पूछा कितना? मैंने कहा कम से कम सौ साल. उन्होंने कहा इससे क्या मतलब."
"हम नहीं रहेंगे. तुम नहीं रहोगे लेकिन वृक्ष तो रहेंगे और आने वाले लोग इन्हें देखेंगे जैसे हम इस सर्किट हाउस में इन पेड़ों को देख रहे हैं. मुझे ये देख कर बहुत अच्छा लगा कि वो आगे के बारे में सोच रहे थे न कि अपने लिए."
(साठ साल पहले ही भाभा ने किया था पेड़ों का ट्रांसप्लांट- पढ़िए भाग-3 में)
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