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देश के वैज्ञानिकों ने विकसित की ए-सैट मिसाइल क्षमता, भारत बना अंतरिक्ष महाशक्ति

रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) के वैज्ञानिकों ने देश को एक बार फिर गर्व करने का मौका दिया है. बीते 27 मार्च को वैज्ञानिकों ने सफल ए-सैट परीक्षण को अंजाम दिया. हालांकि, भारत बहुत पहले से ही अंतरिक्ष विज्ञान के क्षेत्र में अग्रणी था, लेकिन इस परीक्षण से अब वह अंतरिक्ष महाशक्ति बन गया […]

रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) के वैज्ञानिकों ने देश को एक बार फिर गर्व करने का मौका दिया है. बीते 27 मार्च को वैज्ञानिकों ने सफल ए-सैट परीक्षण को अंजाम दिया. हालांकि, भारत बहुत पहले से ही अंतरिक्ष विज्ञान के क्षेत्र में अग्रणी था, लेकिन इस परीक्षण से अब वह अंतरिक्ष महाशक्ति बन गया है. अब हम अंतरिक्ष में भी दुश्मनों को मुंहतोड़ जवाब देने में सक्षम हैं.

इसरो
इसरो ने 19 अप्रैल, 1975 को देश का अपना पहला उपग्रह ‘आर्यभट्ट’ लॉन्च किया था.
इसरो ने साल 1983 में कम्युनिकेशन और ब्रॉडकास्ट के उद्देश्य से 9 सैटेलाइट लॉन्च किये थे, जिसे इनसैट के रूप में जाना जाता है.
इसरो ने साल 1993 में पोलर सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल (पीएसएलवी) के माध्यम से 19 देशों के 40 से ज्यादा सैटेलाइट लॉन्च किये थे.
इसरो के चंद्रमा पर मिशन ‘चंद्रयान’ ने भारत को अग्रणी देशों के बीच ला खड़ा किया था. साल 2008 में चंद्रयान के प्रक्षेपण के साथ इसरो दुनिया की उन छह अंतरिक्ष एजेंसियों में एक बन गया था जिसने यह प्रयास किया था.
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के मंगलयान मिशन ने भारत को पहले प्रयास में मंगल ग्रह पर पहुंचने वाला दुनिया का पहला देश बना दिया था. यह अभियान नवंबर, 2013 में लॉन्च किया गया था. इस मार्स ऑर्बिटर मिशन ने भारत को दुनिया के उन चार देशों में से एक बना दिया था, जो मंगल ग्रह पर पहुंचने में सफल हुए हैं.
इसरो ने साल 2013 में देश की अपनी पहली भारतीय क्षेत्रीय नौवहन उपग्रह प्रणाली (आईआरएनएसएस) विकसित की थी. इससे भारत दुनिया के उन पांच देशों में से एक हो गया है, जिनके पास अपनी खुद की नेविगेशन प्रणाली है.
इसरो ने साल 2015 में भारत की अपनी अंतरिक्ष वेधशाला एस्ट्रोसैट को लॉन्च किया था. एक विकासशील देश द्वारा लॉन्च की गयी यह पहली अंतरिक्ष दूरबीन है.
साल 2016 में इसरो ने स्वदेश निर्मित स्पेस शटल आरएलवी-टीडी लॉन्च किया था.
इसरो ने साल 2016 में भारत के पुन: प्रयोज्य प्रक्षेपण यान का प्रदर्शन परीक्षण किया था.
दिसंबर 2014 में, इसरो ने अब तक के सबसे भारी रॉकेट जीएसएलवी एमके3-डी1 को लॉन्च किया था, जिससे भारत के पास अंतरिक्ष यात्रियों को अंतरिक्ष में भेजने की क्षमता प्राप्त हुई थी.
इसरो ने फरवरी 2017 में एक ही मिशन में 104 सैटेलाइट लॉन्च करके इतिहास रच दिया था. कक्षा में रखे गये कुल 104 उपग्रहों में से 101 उपग्रह छह अन्य देशों के थे. इससे पहले, रूसी अंतरिक्ष एजेंसी ने एक ही बार में 37 उपग्रहों को लॉन्च करने का रिकॉर्ड बनाया था.
डीआरडीओ
साल 2016 में, डीआरडीओ ने देश का पहला स्वदेशी रूप से विकसित भारी ड्यूटी ड्रोन का सफलतापूर्वक परीक्षण किया, जिसका नाम रुस्तम-2 था. यह एक मानवरहित सशस्त्र लड़ाकू वाहन है. इसके माध्यम से अमेरिका और इजराइल से आयातित ड्रोन को स्वदेशी के साथ बदला जा रहा है.
डीआरडीओ ने साल 2018 में देश की पहली परमाणु बैलिस्टिक मिसाइल पनडुब्बी आइएनएस अरिहंत का सह-विकास किया. इसके साथ ही भारत ने अपना परमाणु त्रय पूरा कर लिया और भूमि, वायु और समुद्र तीनों जगहों से परमाणु हथियार चलाने में सक्षम हो गया.
डीआरडीओ ने साल 2017 में हवाई जहाज के लिए एक सेल्फ-इजेक्टेबल (स्वयं निकलने वाला) ब्लैक बॉक्स विकसित किया, जो पानी में दुर्घटना की स्थिति में बचावकर्मियों को आसानी से मलबे का पता लगाने में मदद कर सकता है. इनका पनडुब्बियों में भी बखूबी इस्तेमाल किया जा सकता है.
डीआरडीओ ने साल 2017 में भारत का पहला मानवरहित टैंक ‘मंत्र’ विकसित किया. इस टैंक के तीन अलग-अलग प्रतिरूप मानव रहित निगरानी मिशन के लिए, खानों का पता लगाने के लिए और परमाणु विकिरण या जैव हथियार के जोखिम वाले क्षेत्रों में ऑपरेशन के लिए विकसित किये गये हैं.
डीआरडीओ ने अपने इंटीग्रेटेड गाइडेड मिसाइल डेवलपमेंट प्रोग्राम (आइजीएमडीपी) के तहत कई बैलिस्टिक मिसाइलों का विकास किया है.
डीआरडीओ के आइजीएमडीपी में पृथ्वी, त्रिशूल, अग्नि, आकाश और नाग जैसी मिसाइलें शामिल हैं. इस श्रृंखला में परमाणु क्षमता में सक्षम अग्नि वी मिसाइल का सफल परीक्षण नवीनतम रहा है.
हाल में, डीआरडीओ ने नयी जनरेशन की एंटी-रेडिएशन मिसाइल (एनजीएआरएम) का सफल परीक्षण किया, जो दुश्मन के रडार को नष्ट करने की क्षमता रखता है.
यह मिसाइल भारत में अपनी तरह की पहली मिसाइल है और इसे अलग-अलग ऊंचाई से लॉन्च किया जा सकता है. यह दुश्मन के रडार या अन्य ट्रैकिंग उपकरणों द्वारा उत्सर्जित संकेतों या विकिरणों को पकड़ सकता है और उन्हें नष्ट कर सकता है.
पहले भी इसरो और डीआरडीओ ने दिये हैं गर्व के क्षण
बीते 27 मार्च को भारत ने अपने पहले उपग्रह रोधी (एंटी-सैटेलाइट) मिसाइल का सफलतापूर्वक परीक्षण किया. इस परीक्षण के लिए रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) द्वारा विकसित बैलिस्टिक मिसाइल डिफेंस इंटरसेप्टर ने ओडिशा तट से 300 किमी की ऊंचाई पर पृथ्वी की निचली कक्षा में पहले से मौजूद अपने ही एक उपग्रह को ध्वस्त कर दिया. धरती की इसी निचली कक्षा से अधिकांश उपग्रह पृथ्वी का सर्वेक्षण करते हैं.
डीआरडीओ ने इस अभियान को मिशन ‘शक्ति’ नाम दिया था. स्वयं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने टीवी और ट्विटर के जरिये इस उपलब्धि को देश के साथ साझा किया. इस उपलब्धि को हासिल करने वाला भारत चौथा देश है. भारत से पहले केवल अमेरिका, रूस और चीन के पास ही यह क्षमता थी.
इस क्षमता को हासिल करने के बाद अब भारत अपने दुश्मन के कम्युनिकेशन और सर्विलांस सैटेलाइट को अंतरिक्ष में मार गिराने में सक्षम हो गया है. गौरतलब है कि वर्ष 2011 में ही डीआरडीओ ने यह तकनीक विकसित कर ली थी, लेकिन किन्हीं कारणों से अब तक इसका परीक्षण नहीं हो पाया था.
क्या है उपग्रह रोधी हथियार
उपग्रह रोधी हथियार, वास्तव में अंतरिक्ष उपकरण होते हैं. इस उपकरण को अंतरिक्ष में मौजूद उपग्रहों को निष्क्रिय करने या उन्हें नष्ट करने के लिए डिजाइन किया जाता है.
इस उपकरण का उपयोग युद्ध के समय दुश्मन देशों के संचार या सैन्य उपग्रहों को बाधित करने और उन्हें अपने सैनिकों के साथ संचार करने से रोकने के लिए किया जा सकता है. साथ ही, इसका इस्तेमाल सैन्य टुकड़ी या आनेवाली मिसाइलों के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी हासिल करने के लिए भी किया जा सकता है.
डीआरडीओ की स्थापना
रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन यानी डीआरडीओ की स्थापना 1958 में हुई थी. भारतीय सेना के लिए पहले से कार्यरत प्रौद्योगिकी विकास प्रतिष्ठान (टीडीई) और रक्षा विज्ञान संस्थान (डीएसओ) व प्रौद्योगिकी विकास और उत्पादन निदेशालय (डीटीडीपी) के एकीकरण के पश्चात डीआरडीओ का गठन किया गया था.
अपनी स्थापना के समय डीआरडीओ के पास महज 10 प्रयोगशालाएं थीं और यह एक छोटा सा संगठन था. लेकिन, तब से आज तक इस संगठन ने शिक्षण, प्रयोगशालाओं, उपलब्धियों समेत कई क्षेत्र में प्रगति की है.
आज डीआरडीओ के पास 50 से अधिक प्रयोगशालाएं हैं जो एयरोनॉटिक्स, आर्मामेंट, इलेक्ट्रॉनिक्स, कॉम्बैट व्हीकल, इंजीनियरिंग सिस्टम्स, इंस्ट्रूमेंटेशन, मिसाइल, एडवांस्ड कंप्यूटिंग व सिमुलेशन, स्पेशल मटीरियल्स, नवल सिस्टम्स, लाइफ साइंसेज, ट्रेनिंग, इनफॉर्मेशन सिस्टम्स और एग्रीकल्चर जैसी अनेक शाखाओं को सुरक्षा देनेवाली प्रौद्योगिकियों के विकास में गंभीरता से लगी हैं. इस संगठन में 5000 से अधिक वैज्ञानिक और 25,000 अन्य तकनीकी विशेषज्ञ और सहयोगी हैं.
यहां मिसाइलों, हथियारों, हल्के लड़ाकू विमानों, रडार, इलेक्ट्रॉनिक युद्धक प्रणालियों आदि के विकास के लिए अनेक प्रमुख परियोजनाएं मौजूद हैं. अपनी रचनात्मकता व दूरदर्शिता के कारण इस संगठन ने प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में अनेक महत्वपूर्ण उपलब्धियां हासिल की हैं.
भारत को समृद्ध बनाना है लक्ष्य
रक्षा अनुसंधान व विकास संगठन का उद्देश्य सैन्य सेवाओं के लिए अत्याधुनिक तकनीकों वाले सेंसर, युद्धक प्रणाली व संबद्ध उपकरणों को डिजाइन व विकसित करना है. बुनियादी सुविधाओं का विकास और स्वदेशी प्रोद्यौगिकी आधार को मजबूत बनाना डीआरडीओ के प्रमुख लक्ष्यों में शामिल है.
यह संगठन विज्ञान व प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में विश्वस्तरीय उपलब्धि हासिल कर भारत को समृद्ध बनाने के साथ ही उसे प्रतिस्पर्धी प्रणालियों से लैस कर रक्षा सेवा में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर निर्णायक बढ़त प्रदान करने के लिए लगातार प्रयासरत है.
रक्षा उपकरणों के निर्यात को तैयार है भारत
यह सच है कि सैन्य साजो-सामान व अंतरिक्ष उपकरणों के लिए भारत बहुत हद तक विदेशी तकनीक व उपकरण पर निर्भर है और आज भी हम अधिकांश साजो-सामान का आयात करते हैं.
लेकिन, बीते एक दशक में हमने इस दिशा में प्रगति की है और देशी तकनीक के जरिये रडार, इलेक्ट्रॉनिक युद्धक प्रणाली, मिसाइल समेत अनेक रक्षा संबंधी उपकरणों को डिजाइन व विकसित किया है. इन तकनीकों को भारत न सिर्फ अपनी सैन्य क्षमता बढ़ाने के लिए इस्तेमाल कर रहा है, बल्कि कम मात्रा में ही सही, लेकिन उनका निर्यात भी कर रहा है.
अप्रैल 2015 में एक लिखित जवाब में तत्कालीन रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर ने राज्यसभा में बताया था कि भारतीय नौसेना के लिए डीआरडीओ द्वारा विकसित तीन सोनार सिस्टम (साउंड नेविगेशन रेंजिंग सिस्टम) को भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड ने म्यांमार को निर्यात किया था.
वहीं, कई अन्य देशों ने भी सोनार सिस्टम को प्राप्त करने में रुचि दिखाई थी. उन्होंने यह भी कहा था कि डीआरडीओ द्वारा विकसित रडार, इलेक्ट्रॉनिक युद्धक प्रणाली, एईडब्ल्यू एंड सी सिस्टम, ब्रीजिंग सिस्टम, मिसाइल, टॉर्पीडो, डेकोय एंड फायर कंट्रोल सिस्टम आदि मित्र देशों को निर्यात करने पर विचार किया जा सकता है.
एमिसैट के लॉन्च से बढ़ेगी शक्ति
इसी एक अप्रैल को डीआरडीओ द्वारा विकसित इलेक्ट्रॉनिक इंटेलिजेंस सैटेलाइट ‘एमिसैट’ को इसरो लॉन्च करेगा. इस उपग्रह के लॉन्च होने के बाद भारत को दुश्मनों के रडार और सीमा पर तैनात सेंसर गतिविधियों का पता लगाने में मदद मिलेगी. साथ ही, दुश्मन क्षेत्र की भौगोलिक स्थिति का सटीक आकलन करने और उस क्षेत्र में कितने संचार उपकरण सक्रिय हैं, इसका लगाने में भी हमारा देश सक्षम हो पायेगा.

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