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कैसे ज़िंदा रहते हैं तिब्बती इतनी ऊँचाई पर?

रीबेका मोरेली विज्ञान संवाददाता, बीबीसी वर्ल्ड सर्विस एक नए अध्ययन से पता चला है कि ऊँचाई पर ज़िंदगी के साथ तालमेल बिठाने में एक विशेष जीन तिब्बतियों की मददगार है. इस जीन का ताल्लुक़ इंसान की एक विलुप्त प्रजाति से है. अधिकांश लोगों की तिब्बत की ऊँचाई वाले क्षेत्रों में ऑक्सीजन की कमी के कारण […]

एक नए अध्ययन से पता चला है कि ऊँचाई पर ज़िंदगी के साथ तालमेल बिठाने में एक विशेष जीन तिब्बतियों की मददगार है.

इस जीन का ताल्लुक़ इंसान की एक विलुप्त प्रजाति से है.

अधिकांश लोगों की तिब्बत की ऊँचाई वाले क्षेत्रों में ऑक्सीजन की कमी के कारण तबियत ख़राब हो जाती है लेकिन तिब्बतियों में ख़ून को पतला करने वाली एक विशेष प्रकार की जीन पाई जाती है.

इस जीन की वजह से ऑक्सीजन कम होने पर भी इंसान सांस ले सकता है.

यह शोध नेचर जर्नल में प्रकाशित हुआ है.

50 हज़ार साल पुरानी जीन

यूनिवर्सिटी ऑफ़ कैलिफ़ोर्निया, बर्कले के वैज्ञानिकों ने इस जीन की खोज डेनिसोवांस प्रजाति के डीएनए में की है.

डेनिसोवांस 50 हज़ार साल पहले पाई जाने वाली इंसान की एक प्रजाति थी.

इस प्रजाति की उंगली की हड्डी के टुकड़े का जीवाश्म एकमात्र ज्ञात जीवाश्म है जो साइबेरिया की एक गुफा में पाया गया था.

डेनिसोवांस प्रजाति के डीएनए का कुछ अंश चीन और पापुआ न्यू गिनी के कुछ समुदायों में भी पाया गया है.

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