झारखंड सरकार ने पिछले कुछ वर्षों में ग़रीबों के लिए विशेष योजनाएं शुरू की हैं जिनमें साड़ी-धोती, नमक, चावल आदि सस्ती दरों पर मुहैया करवाया जाना था लेकिन इनका शत-प्रतिशत आवंटन सुनिश्चित नहीं हो पाया है.
अब सरकार सस्ती चीनी का वादा कर रही है. विपक्ष इसे चुनावी स्टंट करार दे रहा है. पहले भी कई सरकारी योजनाएं ज़रूरतमंदों तक पहुंचने में विफल रही हैं.
दो साल पहले नमक के लिए किया गया वादा भी अब तक पूरा नहीं हो सका है.
यही हाल साड़ी-धोती योजना का भी है. घोषणा के बाद से ही धोती और साड़ी के पेंच ऐसे उलझे कि अब तक इसका ओर-छोर की सरकार को सुध नहीं है.
राज्य में जल्दी ही विधानसभा चुनाव होंगे इसलिए ऐसे वादों की बौछार बढ़ने के आसार हैं.
लुभाने वाला फ़ैसला
झारखंड सरकार ने जन वितरण प्रणाली की दुकानों के ज़रिए बीपीएल परिवारों को सस्ती दर पर दो- दो किलो चीनी देने का फ़ैसला लिया है जिसे विपक्ष ने चुनावी साल में लुभाने वाला फ़ैसला बताया है.
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26 जून को राज्य मंत्रिपरिषद द्वारा स्वीकृत इस फ़ैसले में फ़िलहाल इसकी जानकारी नहीं दी गई है कि ग़रीबों को सस्ती दर पर चीनी कब से मिलेगी.
ग़रीबों के मुद्दे और पीडीएस सिस्टम पर विधानसभा और उसके बाहर मुखर रहे भाकपा माले के विधायक विनोद सिंह कहते हैं कि चीनी देने की घोषणा ऊपरी तौर पर मिठास घोलने का प्रयास है. वास्तविकता में ग़रीबों को इसकी मिठास मिलने से रही.
चुनावी स्टंट
भाजपा के वरिष्ठ विधायक रघुवर दास कहते हैं कि सस्ती चीनी देने का फ़ैसला सरकार का महज चुनावी स्टंट है. इस साल के अंत में चुनाव होना है.
वे पूछते हैं कि अब तक राज्य में लोगों के बीच राशन कार्ड क्यों नहीं बांटे गए हैं, जबकि तीन साल पहले आवेदन लिए गए थे.
ग़रीबों के बीच लोकप्रिय मुख्यमंत्री दाल- भात योजना बंद हो गई. ग़रीबों को धोती- साड़ी देने की योजना का हश्र भी राज्य की जनता देख रही है.
इससे पहले राज्य में बीपीएल परिवारों को आठ आने किलो आयोडाइज्ड नमक देने की योजना भी बेपटरी हो चुकी है.
सरकार के खाद्य सार्वजनिक वितरण एवं उपभोक्ता मामले विभाग के सचिव डॉक्टर प्रदीप कुमार कहते हैं कि पिछले साल नमक ख़रीदा नहीं जा सका था लेकिन इस साल ख़रीद की प्रक्रिया पूरी होने को है. ग़रीबों को सस्ता नमक ज़रूर मिलेगा और जल्दी मिलेगा.
सचिव बताते हैं कि चीनी में केंद्र और राज्य सरकार की ओर से 25 रुपए की सब्सिडी दी जाएगी. चीनी कब से बंटेगी, इस पर वे कहते हैं पहले टेंडर की प्रक्रिया शुरू हो जाए.
धोती-साड़ी
ग़रीबों को सस्ती दर पर धोती-साड़ी देना भी हेमंत सोरेन सरकार की महत्वाकांक्षी योजना है.
इस योजना का नाम सोना-सोबरन धोती साड़ी योजना रखा गया है. ये नाम झारखंड मुक्ति मोर्चा के अध्यक्ष शिबू सोरेन के माता-पिता से जुड़े हैं.
19 मार्च 2012 को तत्कालीन खाद्य आपूर्ति मंत्री मथुरा प्रसाद महतो ने विधानसभा में अपने बजटीय भाषण में इस योजना के शीघ्र शुरू किए जाने की घोषणा करते हुए ख़ुशी ज़ाहिर की थी.
फिर क्या हुआ
तब जाकर साल 2013 के दिसंबर में कैबिनेट की बैठक में यह फ़ैसला लिया गया कि राज्य में 35 लाख 38 हजार 860 बीपीएल परिवारों को साल में दो बार दस-दस रुपए में धोती- साड़ी दी जाएगी, ताकि वे सम्मानजनक तौर पर जीवन गुजार सकें.
इसके लिए निविदा भी फ़ाइनल हो गई. फिर इसे लेकर सरकारी स्तर पर ही विवाद हो गया. धोती-साड़ी योजना को लेकर सरकार के अंदर ही आपस में तंज कसा जाने लगा.
विभागीय मंत्री साइमन मरांडी की बरख़ास्तगी की वजहों में धोती-साड़ी योजना भी सुर्ख़ियों में रही. हालांकि तब मरांडी ने कहा था कि ग़रीबों को धोती-साड़ी देने के लिए वे गंभीर थे, लेकिन इसे लटकाये रखा गया.
अब लुंगी भी
अब सरकार में नए सिरे से धोती के साथ लुंगी ख़रीदने का फ़ैसला हुआ है.
हाल ही में खाद्य आपूर्ति और उपभोक्ता मामले के नए मंत्री बने लोबिन हेंब्रम कहते हैं कि जिन ग़रीबों को धोती लेना पसंद नहीं होगा वे लुंगी ले सकते हैं.
उनका दावा है कि सरकार बहुत जल्दी ग़रीबों को सस्ते दर पर कपड़े देगी. चीनी कब तक बांट देंगे, इस सवाल पर वे कहते हैं इसे भी देंगे.
दाल-भात
ग़ौरतलब है कि पिछले तीन महीने से राज्य में मुख्यमंत्री दाल-भात योजना भी बंद पड़ी है. इस योजना के तहत शुरुआत में राज्य भर में 370 केंद्र खोले गए थे, जहां ग़रीबों- लाचारों को महज पांच रुपए में एक समय का भोजन मिलता था.
राजधानी रांची में रिक्शा खींचने वाले जोधन लोहरा कहते हैं कि ग़रीब की योजना थी, सो बंद हो गई.
योजना क्यों बंद हो गई इसकी छानबीन करने पर पता चला कि रियायती दर पर केंद्र सरकार से राज्य को चावल का आवंटन नहीं मिला है.
खाद्य आपूर्ति विभाग के विशेष सचिव रविरंजन बताते हैं कि आवंटन के लिए भारत सरकार को पत्र भेजा गया है.
खाद्य सुरक्षा
विपक्ष के नेता और आजसू पार्टी के वरिष्ठ नेता चंद्रप्रकाश चौधरी कहते हैं कि राज्य सरकार झारखंड में अब तक खाद्य सुरक्षा क़ानून लागू करने में विफल रही है, जबकि इसे लागू करने की मियाद चार जुलाई तक थी.
गनीमत है कि केंद्र सरकार ने इसे लागू करने के लिए चार महीने का समय बढ़ाया है. वे कहते हैं कि ग़रीबों को राहत और राशन देने के लिए सरकार कतई गंभीर नहीं है.
एक अन्य योजना के तहत राज्य के अतिरिक्त 11.44 लाख बीपीएल परिवारों को राज्य सरकार हर महीने एक रुपए किलो के हिसाब से 35 किलो चावल देती रही है. बाद में ये आवंटन 35 किलो से घटक 12 किलो पर पहुंच गए.
पिछले साल आवंटन के अभाव में छह महीने ग़रीबों को राशन नहीं मिला था.
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