अजय कुमार ठाकुर
हजारीबाग जिले के चौपारण प्रखंड के उग्रवाद प्रभावित भदान गांव की रहने वाली शारदा देवी आज परिचय की मुंहताज नहीं हैं. शारदा की राजनीतिक दल के नेताओं से लेकर सरकारी बाबुओं तक में अपनी एक अलग पहचान बन चुकी है. शारदा के प्रयास से वैसे सैकड़ों लोग जो सरकार की जन कल्याणकारी योजनाओं के लाभ पाने के लिए सरकारी बाबुओं व दफ्तर का चक्कर लगाते-लगाते लाभ पाने से हार चुके थे, उन्हें बड़ी राहत मिली है.
शारदा अपने प्रयास से वैसे लोगों का वृद्धावस्था पेंशन, विधवा पेंशन, विकलांगता पेंशन, अन्नपूर्णा योजना जैसी कई योजनाओं का लाभ दिलवा रही हैं. हाथ में झोला और झोले में अलग-अलग व्यक्ति की समस्या का दस्तावेज, यही है शारदा देवी की पहचान. शारदा देवी (पति स्वर्गीय जंगली भुईयां) के दो पुत्र हैं. वे दोनों उनसे अलग रहते हैं. शारदा स्वयं कमाती-खाती हैं. इतना ही नहीं अनपढ़ होने के बाद शारदा शिक्षा की महता को जानती हैं. वे अपने गांव के खास कर दलित बच्चों को पढ़ाने के लिए उनके अभिभावकों को प्रेरित करती हैं. इसके प्रयास से गांव के दलित परिवार की बेटियां भी पढ़ने सरकारी विद्यालय जा रही हैं.
कैसे समाज सेवी बनीं शारदा
शारदा देवी के पति जंगली भुईयां की मौत 15 वर्ष पूर्व हो गयी थी. वे पहली बार प्रखंड मुख्यालय दैहर पंचायत के तेतरीया गांव की राजनीतिक महिला कार्यकर्ता राजवंती सिंह के साथ पति का मृत्यु प्रमाण पत्र लेने आयीं थी. उन्हें इस प्रमाण पत्र को हासिल करने में करीबन डेढ़ माह ब्लॉक के बाबुओं का चक्कर लगाना पड़ा था. तब कहीं उनकी मृत्यु का प्रमाण पत्र हाथ लगा था. प्रखंड मुख्यालय से शारदा का घर की दूरी करीब नौ किलोमीटर है. वह प्रत्येक दिन विभिन्न गांव के लोगों से मिलने प्रखंड मुख्यालय आती हैं.
दीदी के नाम से पुकारते हैं लोग
शारदा की लोकप्रियता क्षेत्र में इतनी बढ़ गयी है कि लोग अब आम लोग उसे दीदी कह कर पुकारने लगे हैं. जन्म प्रमाण पत्र, मृत्यु प्रमाण पत्र, पारिवारिक प्रमाण पत्र गरीब दुखियों को सरकारी अस्पताल में इलाज करवाना शारदा का दिनचर्या बन गयी है. इन सभी कामों के लिए शारदा को ब्लॉक, थाने से लेकर एसडीओ कार्यालय के लगभग सारे स्टाफ जानते-पहचानते हैं.