हिप रिप्लेसमेंट सर्जरी एक ऐसी सजर्री है, जिसमें हिप (कूल्हा) पूरी तरह बदल दिया जाता है. तकनीक के काफी विकसित होने के कारण इस प्रक्रिया में पहले की अपेक्षा समस्याएं बहुत कम हो गयी हैं. सर्जरी के बाद नये हिप के जोड़ में दर्द बहुत कम होता है और मरीज दैनिक कार्यो को पहले की तरह ही कर सकता है.
क्या है हिप रिप्लेसमेंट सर्जरी
जब हिप के ज्वाइंट खराब या क्षतिग्रस्त हो जाते हैं, तो इनमें दर्द होना आम बात होती है. मूवमेंट में भी परेशानी होती है. इस सर्जरी में हिप के क्षतिग्रस्त हिस्से को मेटल के आर्टिफिशियल कूल्हे द्वारा बदला जाता है. सर्जरी के दौरान बदले जानेवाले ज्वाइंट्स को ‘प्रोस्थेसिस’ कहते हैं. यह सर्जरी ज्यादातर ऑस्टियो आर्थराइटिस की वजह से करानी पड़ती है. यह उन लोगों के लिए भी फायदेमंद है जिनको कूल्हे में किसी प्रकार की चोट लगी हो. हिप आर्थराइटिस में काफी तेज दर्द होता है. इस सर्जरी के बाद काफी हद तक दर्द से राहत मिल जाती है.
क्यों होते है कूल्हे क्षतिग्रस्त
कार्टिलेज, लिगामेंट्स और मांसपेशियों से घिरा होने के कारण हिप में भार वहन करने की क्षमता अधिक होती है. कार्टिलेज अत्यधिक लचीला होता है. क्षतिग्रस्त हिप में कार्टिलेज हड्डियों के अंतिम छोर से हट जाता है, जिससे मूवमेंट (हिलने-डुलने) में समस्या आती है. कार्टिलेज के हट जाने से हड्डियों का छोर खुरदरा हो जाता है. लंबे समय तक हड्डी में घर्षण होने से यह क्षतिग्रस्त हो जाता है. अक्सर ऐसा बढ़ती उम्र में या फिर किसी दुर्घटना में होता है. इस समस्या का प्रतिकूल असर सॉकेट पर पड़ता है. चलने-फिरने से सॉकेट की बॉल घिसने लगती है. इसलिए दर्द महसूस होता है..
सीमेंटेड हिप रिप्लेसमेंट सर्जरी
इस प्रकार की सर्जरी का इस्तेमाल 70 वर्ष की आयु से ज्यादा के बुजुर्गों के लिए किया जाता है. इस सर्जरी को कराने के बाद लगभग 20 साल तक हिप सामान्य रूप से काम करता है.
अनसीमेटेंड हिप रिप्लेसमेंट सर्जरी : यह सर्जरी 70 वर्ष से पहले तक की जाती है और इसके परिणाम भी लंबे समय तक देखने को मिलते हैं. आमतौर पर 25 साल तक इस सर्जरी के बाद व्यक्ति सामान्य जीवन बिताता है.
डॉ.मनमोहन अग्रवाल
हड्डी रोग विशेषज्ञ, मैक्स अस्पताल, दिल्ली
अब आसान है हिप रिप्लेसमेंट सजर्री
चिकित्सा के क्षेत्र में आधुनिक तकनीक के कारण सर्जरी के तौर-तरीकों में कई परिवर्तन हुए हैं. इसके कारण मरीज को इस सजर्री में अब नाममात्र का दर्द होता है. नयी तकनीक के कारण अब हिप रिप्लेसमेंट सजर्री काफी आसान भी हो गयी है. इसमें क्षतिग्रस्त कूल्हे को कृत्रिम कूल्हे से बदल दिया जाता है या फिर कम क्षतिग्रस्त कूल्हे की रिसर्फेसिंग भी की जा सकती है.
सर्जरी की पूरी प्रक्रिया
इस सर्जरी में जांघ के हड्डी की बॉल को मेटल बॉल से रिप्लेस किया जाता है. मेटल की यह बॉल स्टेम से जुड़ी होती है, जो जांघ में लगी होती है. हिप की हड्डी के क्षतिग्रस्त सॉकेट को बदलने के लिए एक प्लास्टिक व मेटल सॉकेट को हिप की हड्डी में प्रत्यारोपित किया जाता है. सर्जरी के दौरान छोटा चीरा लगाया जाता है, जो कुछ दिनों में ही भर जाता है. कृत्रिम अंगों को प्राकृतिक अंगों का शेप दिया जाता है. सर्जरी से इन्हें इस प्रकार जोड़ा जाता है कि प्राकृतिक हड्डी का आकार न बढ़े. इन्हें ऑर्गेनिक मेटीरियल से कोटिंग भी की जाती है. पूरी प्रक्रिया में 1-2 घंटे का समय लगता है. टोटल हिप रिप्लेसमेंट सर्जरी में मरीज को 4-6 दिनों तक अस्पताल में रुकना पड़ता है. पार्शियल हिप रिप्लेसमेंट में 2-3 दिन ही मरीज को अस्पताल में रुकना पड़ता है.
सर्जरी के प्रकार
भारत में पहली हिप रिप्लेसमेंट सर्जरी 1962 में हुई थी. तब सर्जरी के दौरान इस्तेमाल होनेवाले कृत्रिम अंग अभी की तरह एडवांस नहीं थे. इस सर्जरी में बॉल और सॉकेट को बदला जाता है. पहली सर्जरी को प्राइमरी हिप रिप्लेसमेंट सर्जरी भी कहते हैं. अगर सिर्फ बॉल को बदला जाता है, तो उसे पार्शियल हिप रिप्लेसमेंट सर्जरी कहा जाता है. अगर बॉल और सॉकेट दोनों को बदला जाता है, तो उसे टोटल हिप रिप्लेसमेंट सर्जरी कहते हैं.
कब जरूरी है सर्जरी
हिप के क्षतिग्रस्त हो जाने से चलने-फिरने में तो दिक्कत आती ही है साथ ही व्यक्ति अन्य कार्य करने में भी असहज महसूस करता है. यदि कार्य कर भी ले, तो असहनीय दर्द से परेशान हो जाता है. यह दर्द समय के साथ साथ बढ़ता है और कार्य करने की क्षमता समय के साथ-साथ कम होती जाती है. सर्जरी कराने के डेढ़ महीने के अंदर व्यक्ति अपनी पुरानी दिनचर्या अपना सकता है. सर्जरी के बाद मरीज को सावधानी बरतना बेहद जरूरी है. यदि सावधानी न बरती जाये, तो कई प्रकार की समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं. खान-पान भी चिकित्सक के निर्देशानुसार ही करें. सर्जरी के बाद निमोनिया, ब्लीडिंग, सूजन, इन्फेक्शन आदि कुछ कॉम्पलिकेशन हो सकते हैं, पर पूरी सावधानी बरत कर इन समस्याओं से बचा जा सकता है. यह तब होता है जब मरीज सर्जरी के तुरंत बाद ही कार्य करना शुरू कर देता है. अत: सजर्री के बाद दिनचर्या चिकित्सक के अनुसार ही बनाएं.
प्रमुख संस्थान व खर्च : मैक्स हॉस्पिटल दिल्ली, एमआइओटी चेन्नई, फोर्टिस हॉस्पिटल दिल्ली बेहतरीन संस्थान माने जाते हैं. सजर्री में करीब तीन लाख रुपये का खर्च आता है, जो सजर्री के तरीकों पर निर्भर करता है.
हिप रिप्लेसमेंट और रिसर्फेसिंग में अंतर
मरीज के पास हिप रिप्लेसमेंट के अलावा रिसर्फेसिंग का भी ऑप्शन होता है. इसमें फिमोरल बॉल के डैमेज हो चुके सतह को मेटल कैप की मदद से रिसर्फेस कर दिया जाता है. लेकिन यह प्रक्रिया तब की जाती है जब आर्थराइटिस के कारण हड्डियां पूरी तरह से क्षतिग्रस्त नहीं हुई हों. इसे सर्फेस रिप्लेसमेंट भी कहा जाता है. आर्थराइटिस में क्षतिग्रस्त हो चुकी हड्डियां काफी कमजोर हो जाती हैं. रिसर्फेसिंग करने पर इसमें फ्रैर होने का खतरा होता है.
रिसर्फेसिंग आम तौर पर 50 वर्ष से कम उम्र के लोगों में ही की जाती है, जबकि हिप रिप्लेसमेंट में सजर्न आर्थराइटिस से ग्रस्त पूरे हिस्से को ही बदल देते हैं. हालांकि दोनों तरीकों में हड्डी के सर्फेस को रीशेप दिया जाता है. उसके बाद उसमें मेटल कैप बिठाया जाता है. रिसर्फेसिंग की एक और सीमा है कि कुछ ही प्रकार के मेटल का उपयोग किया जाता है. महिला मरीज में विशेष ध्यान रखने की जरूरत होती है, क्योंकि कुछ मेटल से आयन बनते हैं और इससे प्रेग्नेंसी पर असर पड़ने की आशंका होती है. वहीं टोटल हिप रिप्लेसमेंट में पूरे बॉल को ही निकाला जाता है.