राहुल सिंह
मोटे अनाज अपने यहां एक उपेक्षित खाद्यान्न है. किसानों के साथ खाने वालों में भी इसको लेकर कोई खास उत्साह नहीं रहा है. जबकि यह सबसे पुराने खाद्यन्न हैं, जो प्राचीन काल से हमारे खानपान में शामिल रहे हैं. हाल के दशकों में आधुनिकता की चपेट में आकर किसान व गैर किसान दोनों इसके महत्व को भुलने लगे. लेकिन अब दोनों तबकों को इसका ध्यान फिर से आ रहा है.
किसान जहां सूखे की चुनौती से निबटने और अनुपयोगी पड़ी जमीन को फिर से उपयोगी बनाने के लिए मोटे अनाज की खेती को अपना रहे हैं, वहीं आमलोग स्वास्थ्य कारणों से इसके खाद्यान्न को अपना रहे हैं. मधुमेह, उच्च रक्तचाप, पेट सहित कई तरह की दूसरी बीमारियों के शिकार लोग अब मड़ुवा व अन्य दूसरे मोटे अनाज को अपना रहे हैं. लेकिन इससे भी दिलचस्प बात यह है कि अगर आपको मोटे अनाज का स्वादिष्ट व्यंजन मिले तो आप क्या कहेंगे? रांची स्थित बिरसा कृषि विश्वविद्यालय की गृह विज्ञान विभाग की अध्यक्ष डॉ रेखा सिन्हा व वैकल्पिक अनाजों को बढ़ावा देने के लिए काम करने वाली संस्था धान फाउंडेशन (डेवलपमेंट ऑफ ह्यूमन एक्शन फाउंडेशन) के साझा प्रयास से मोटे अनाज के 20 तरह के स्वादिष्ट व्यंजन तैयार हो रहे हैं. इन व्यंजनों को प्रोत्साहित करने के लिए मेले व अन्य तरह के आयोजनों में स्टॉल लगाये जा रहे हैं और लोगों को इस ओर आकर्षित किया जा रहा है.
मालूम हो कि परंपरागत रूप से मडुवा या अन्य मोटे अनाज के चार तरह के ही व्यंजन बनते रहे हैं. ये हैं : रोटी, डंबु (हलुवा जैसा व्यंजन), लेटो (घाटा) और पिट्ठा. लेकिन धान और बिरसा कृषि विश्वविद्यालय के साझा प्रयास से आज इसके 20 तरह के व्यंजन तैयार हो रहे हैं. ये हैं : मडुवा का डोसका, मालपुआ, बालूशाही, चिल्ला, गुलगुल्ला, लड्डू, शकरपाला, बिस्कुट आदि. डॉ रेखा सिन्हा बताती हैं कि बिरसा कृषि विश्वविद्यालय के द्वारा एक वेल्यू ऐडेड प्रोग्राम के तहत जनजातीय महिलाओं को इस तरह का प्रशिक्षण दिया जाता है. इसका उद्देश्य परंपरागत अनाजों को पुन: स्थापित करते हुए आदिवासी महिलाओं को दीर्घकालिक विकास का अवसर उपलब्ध कराना है. वे कहती हैं कि पहले भी लोगों के खानपान में रागी व दूसरे मोटे अनाज शामिल थे, लेकिन बीच में उनका धान की तरफ ज्यादा झुकाव हो गया. ऐसे में लोगों का ध्यान फिर से इस ओर खींचना है. मोटे अनाज स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से भी अधिक लाभप्रद हैं. धान फाउंडेशन के पशुपतिनाथ पांडेय कहते हैं कि वे कार्यक्रमों में मोटे अनाज का व्यंजन ही प्रस्तुत करवाते हैं और लोगों को इसके फायदे के बारे में बताते हैं. ताकि लोगों का रुझान इस ओर बढ़े.
बिरसा कृषि विश्वविद्यालय के गृह विज्ञान विभाग की ओर से मोटे अनाज का व्यंजन तैयार करने के लिए आयोजित प्रशिक्षण में शुरुआत में 12 महिलाएं शामिल हुईं. धान फाउंडेशन की ओर से इसमें मरियम मिंज और पार्वती उरांव को भी शामिल कराया गया. प्रशिक्षण में शामिल करायी गयी महिलाओं के साथ यह शर्त जुड़ी थी कि वे इस विषय में प्रशिक्षण पाने के बाद दूसरी महिलाओं को प्रशिक्षित करेंगी. उन्हें गांव-गांव में इसके लिए दूसरी महिलाओं को ट्रेनिंग देनी होगी और न्यूनतम तीन महीने तक इसका डिमांस्ट्रेशन करना होगा. उन्हें इस बात के लिए भी प्रेरित किया गया कि वे मेहमानों को मोटे अनाज का व्यंजन ही खिलायें. मरियम व पार्वती को यह काम भा गया. अबतक उन्होंने कई महिलाओं को इसका प्रशिक्षण दिया है और मेले-हाट में इसका स्टॉल भी लगाती हैं.
20 तरह के व्यंजन बनते हैं
मरियम मिंज बताती हैं कि उन्हें मोटे अनाज के 20 प्रकार के व्यंजन बनाये जाते हैं. इसमें रागी का लड्डू, निमकी, शकरपाला, डोसका, बालूशाही छिलका आदि शामिल हैं. वे रांची जिले के बेड़ो प्रखंड की खुखरा पंचायत के सरदाबाड़ी गांव से दो किमी की दूरी पर स्थित चट्टी बाजार में लगने वाले साप्ताहिक हाट में मोटे अनाज के पकवानों की हर शनिवार को दुकान लगाती हैं. उनकी इच्छा है कि अपेक्षाकृत अधिक बड़े बाजार बेड़ो में वे अपनी दुकान लगायें. हालांकि अभी वे वहां मेले व विशेष आयोजनों पर दुकानें लगाती हैं. मरियम मिंज व पार्वती उरांव के पास फिलहाल ओवेन नहीं है, इस कारण वे इसका स्वादिष्ट बिस्कुट नहीं बना पाती हैं.
मडुआ का स्वादिष्ट पेय
मरियम बताती हैं कि मडुए का स्वादिष्ट पेय भी तैयार किया जाता है. वे इसकी तुलना हॉर्लिक्स से करते हुए इसे मडुए का हार्लिक्स कहती हैं. मरियम बताती हैं कि मडुआ, जाै और गेंहू को भिगो कर उसे अंकुरित कर देते हैं. फिर उसे सूखा देते हैं और उसके बाद पीस कर डब्बे में रख लेते हैं. उसके बाद उस पाउडर को दूध या पानी में चीनी के साथ मिला कर बच्चे को पीने के लिए देते है. इसे मॉल्ट कहा जाता है. यह हॉर्लिक्स की तरह ही एक स्वादिष्ट पेय है.
दो हजार महिलाओं को दिया प्रशिक्षण
मरियम मिंज व पार्वती उरांव के द्वारा आयोजित किये जाने प्रशिक्षण कार्यक्रम में अबतक दो हजार महिलाएं शामिल हो चुकी हैं. धान फाउंडेशन की शर्त के अनुसार, उन्हें विभिन्न गांवों में महिलाओं को प्रशिक्षण देने के लिए जाना होता है. धान फाउंडेशन ने एक यह भी शर्त रखी है कि जो भी महिला मोटे अनाज का पकवान बनाना सीख लेगी वह तीन गांव की महिलाओं को उसका प्रशिक्षण देगी. इस संस्था की कार्यशैली के कारण मरियम व पार्वती जैसी महिलाओं को यह काम बोझ नहीं लगता, बल्कि वे पूरे उत्साह से उसमें शामिल होती हैं. इस प्रशिक्षण कार्यक्रम के लिए संसाधन धान फाउंडेशन उपलब्ध कराता है, लेकिन समय इन महिलाओं को लगाना पड़ता है. एक प्रशिक्षण सत्र में 60 से 70 महिलाएं शामिल होती हैं.
मोटे अनाज के व्यंजन पर मेले का आयोजनमोटे अनाज को व्यवहार में लाने के लिए लोगों को प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से बेड़ो बाजार में जनवरी में मडुआ के विभिन्न व्यंजनों पर एक कार्यक्रम आयोजित किया गया. इसमें आसपास के 500 किसानों ने हिस्सा लिया. इस तरह के कार्यक्रम के आयोजन का उद्देश्य किसानों व दूसरे लोगों की मोटे अनाज के प्रति मानसिकता बदलना है. इसके माध्यम से यह कोशिश की जाती है कि लोग यह जानें कि मोटे अनाज के भी स्वादिष्ट व्यंजन हो सकते हैं.
मोटे अनाज परंपरागत रूप से लोगों के खानपान में शुमार रहे हैं. लेकिन बीच में लोगों का धान की तरफ ज्यादा झुकाव हो गया. हमारी कोशिश है कि लोगों के खानपान की आदतों में वैकल्पिक अनाज को फिर से शुमार किया जाये.
डॉ रेखा सिन्हा, अध्यक्ष, गृह विज्ञान विभाग, बीएयू.
कार्यक्रमों में मोटे अनाज का व्यंजन ही प्रस्तुत करवाते हैं और लोगों को इसके फायदे के बारे में बताते हैं. ताकि लोगों का रुझान इस ओर बढ़े. हम इसके व्यंजन बनाने का प्रशिक्षण अधिक से अधिक महिलाओं को देने की भी कोशिश कर रहे हैं.
पशुपतिनाथ पांडे, धान फाउंडेशन