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जिन्होंने दिये वाडेकर और गावस्कर जैसे खिलाड़ी

।। अनुज सिन्हा।। (वरिष्ठ संपादक प्रभात खबर) सिर्फ आंकड़े किसी खिलाड़ी को महान नहीं बनाते. आंकड़े देखेंगे तो माधव मंत्री का भारतीय क्रिकेट इतिहास में मामूली योगदान माना जायेगा. चार टेस्ट और कुल रन एक सौ भी नहीं. लेकिन उनका भारतीय क्रिकेट में अमूल्य योगदान रहा है. प्यार से ‘नाना-मामा’ कहलानेवाले इस खिलाड़ी का 92 […]

।। अनुज सिन्हा।।

(वरिष्ठ संपादक प्रभात खबर)

सिर्फ आंकड़े किसी खिलाड़ी को महान नहीं बनाते. आंकड़े देखेंगे तो माधव मंत्री का भारतीय क्रिकेट इतिहास में मामूली योगदान माना जायेगा. चार टेस्ट और कुल रन एक सौ भी नहीं. लेकिन उनका भारतीय क्रिकेट में अमूल्य योगदान रहा है. प्यार से ‘नाना-मामा’ कहलानेवाले इस खिलाड़ी का 92 साल की उम्र में बीते शुक्रवार को निधन हो गया. वह भारतीय क्रिकेट टीम में 1951 से 1956 तक थे. दाहिने हाथ के बल्लेबाज और विकेट कीपर माधव मंत्री भले ही टेस्ट में सफल नहीं रहे हों, लेकिन उन्होंने तीन-तीन बार मुंबई के लिए रणजी ट्राफी जीती.

1951-52 में अपने पहले मैच में उन्होंने 39 रन बनाये थे. पर दुर्भाग्य से इसके बाद वे कोई बड़ी पारी नहीं खेल पाये. उन्हें उन दिनों दुनिया के कुछ श्रेष्ठ खिलाड़ियों (लेन हटन, पीटर मे, जिम लेकर और फ्रेडी ट्रूमैन) के साथ खेलने का मौका मिला. लेन हटन को उनकी 364 रन की पारी और जिम लेकर को एक टेस्ट में 19 विकेट लेने के लिए याद किया जाता है. उनके साथी खिलाड़ियों में पंकज राय, विजय हजारे, पाली उमरीगर, लाला अमरनाथ, वीनू मांकड जैसे दिग्गज थे. माधव मंत्री में युवाओं को आगे बढ़ाने, अनुशासन लागू कराने और विपक्षी टीम की रणनीति पकड़ने के अदभुत गुण थे. जब वे मुंबई के लिए खेलते थे तो हर मैच से पहले पूरी टीम की परेड कराते थे. उन्हें सक्रिय करते थे. किसी को वे छोड़ते नहीं थे. जब वे चयनकर्ता बने तो उन खिलाड़ियों के लिए लड़ते रहे जो प्रतिभावान तो थे पर जिनकी पैरवी नहीं थी.

सच यह है कि अगर माधव मंत्री नहीं अड़े होते, तो भारत को अजीत वाडेकर और सुनील गावस्कर जैसे बल्लेबाज नहीं मिलते. 1966 के वेस्ट इंडीज दौरे के लिए टीम का चयन हो रहा था. कप्तान थे नवाब पटौदी. माधव मंत्री चयनकर्ता थे. उस सीजन में भी अजीत वाडेकर बेहतर खेल रहे थे, लेकिन उन्हें टेस्ट टीम में लेने को कोई तैयार नहीं था. माधव मंत्री अड़ गये. कप्तान पटौदी नहीं माने. लंच ब्रेक में पटौदी को माधव मंत्री किनारे ले गये और समझाया कि वाडेकर में कितना दम है. इसके बाद पटौदी को मानना पड़ा. वाडेकर को पहली बार भारतीय टीम में शामिल किया गया. बाद में यही वाडेकर भारतीय टीम के कप्तान बने और पहली बार उन्हीं के नेतृत्व में भारत ने वेस्ट इंडीज को वेस्ट इंडीज में और इंग्लैंड को इंग्लैंड की धरती पर हराया था.

माधव मंत्री गावस्कर के मामा थे. बचपन से गावस्कर को क्रिकेट सिखाया. एक बार गावस्कर ने उनसे कैप/ब्लेजर (भारतीय टीम का) मांगा. माधव मंत्री ने यह कहते हुए इनकार कर दिया कि खुद स्थान बनाओ और अपनी मेहनत से इसे हासिल करो. गावस्कर के दिमाग में यह बात घुस गयी और वे रात-दिन मेहनत कर न सिर्फ भारतीय टीम में शामिल हुए, बल्कि भारतीय क्रिकेट को शिखर तक पहुंचाया. किसी खिलाड़ी का मनोबल बढ़ाने का यह उदाहरण है. गावस्कर को उन्होंने यही मंत्र दिया था- किसी भी मैच में, चाहे वह छोटा हो या बड़ा, अपना विकेट फेंकना मत (यानी घटिया शाट खेल कर, घटिया गेंद पर मत आउट होना, बल्कि गेंदबाज को मेहनत से विकेट कमाने देना). माधव मंत्री के इसी मूल मंत्र का कमाल था कि गावस्कर के अंदर धैर्य आया, लंबी-लंबी पारी खेली. जल्दीबाजी में गावस्कर कभी नहीं दिखे. (पहले वर्ल्ड कप में गावस्कर ने इंग्लैंड के खिलाफ 60 ओवर खेल कर सिर्फ 36 रन बनाये थे. वह प्रकरण अलग था).

1990 में जब अजहर के नेतृत्व में टीम इंडिया इंग्लैंड गयी थी, तो माधव मंत्री मैनेजर थे. उस उम्र में भी सक्रिय. हाल तक भी सक्रिय रहे. इसी साल (जब उनकी उम्र 92 साल की हो गयी थी), माधव मंत्री महाराष्ट्र की टीम के खिलाड़ियों को बधाई देने के लिए 30 सीढ़ियां चढ़ कर ड्रेसिंग रूम तक उस समय पहुंच गये थे जब उन्होंने क्वार्टर फाइनल मैच जीता था. ‘नाना-मामा’ के वहां आने से खिलाड़ियों का मनोबल देखने लायक था. ऐसा उन्होंने खिलाड़ियों का मनोबल बढ़ाने के लिए किया था.

ऐसे थे माधव मंत्री. उन्हें श्रद्धांजलि.

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