।।अनुज सिन्हा।।
(वरिष्ठ संपादक प्रभात खबर)
आइपीएल में राजस्थान रॉयल्स की टीम में हैं प्रवीण तांबे. लेग स्पिन गेंदबाजी करते हैं. उम्र है 42 साल से अधिक. इस उम्र में उन्होंने जो कमाल दिखाया है, वह शायद ही देखने को मिलता है. कोई टेस्ट मैच नहीं खेला, कोई वन डे नहीं खेला, राज्य स्तर का कोई मैच नहीं खेला, जिला की टीम के लायक भी उन्हें नहीं समझा गया. सिर्फ क्लब मैचों में मौका मिलता था. इसी में 20 साल से ज्यादा बीत गये. इंतजार करते रहे कि कभी तो मौका मिलेगा. कोई और खिलाड़ी होता तो थक-हार कर, निराश होकर खेलना बंद कर देता. लेकिन तांबे किसी और मिट्टी के बने हुए हैं. उन्होंने न कभी हार मानी और न कभी प्रैक्टिस बंद की. इसका फल उन्हें 41 साल की उम्र में तब मिला जब पिछले वर्ष उनका चयन आइपीएल के लिए हुआ. मौका मिला तो दुनिया को दिखा दिया कि उनके अंदर कितनी प्रतिभा है. उन्हें टीम में ऐसे ही नहीं लिया गया है. लगभग हारे हुए मैच में कप्तान वाटसन ने जब उन्हें गेंदबाजी के लिए बुलाया, तो दो गेंदों पर तीन विकेट (वाइड गेंद पर भी विकेट, स्टंप) लेकर न सिर्फ हैटट्रिक बनायी, बल्कि अपनी टीम को जीत भी दिलायी. अप्रत्याशित जीत. तांबे ने साबित कर दिखाया कि उम्र कोई बाधा नहीं है. बस जज्बा चाहिए. मेहनत चाहिए. यह सब तांबे में है. तभी तो राहुल द्रविड़ को कहना पड़ा कि तांबे उनसे भी बड़े प्रेरणास्रोत हैं. खुद द्रविड़ ने भी 40 साल की उम्र में पहला टी-20 मैच खेला था.
हो सकता है कि तांबे मेहनत करते रह जाते और उन्हें मौका नहीं मिलता, अगर उनकी मुलाकात द्रविड़ से न होती. तांबे की प्रतिभा को राहुल द्रविड़ ने ही सबसे पहले पहचाना और मौका दिया. कुछ कमी देखी तो उसे सुधारने को कहा. अगली बार जब वे मिले तो सब कुछ सुधर चुका था. तांबे 41 साल (सबसे अधिक उम्र) में आइपीएल का पहला मैच खेलनेवाले खिलाड़ी बने. यह वह उम्र है जब क्रिकेट में गेंदबाज तो क्या, बल्लेबाज भी संन्यास ले लेते हैं. लेकिन प्रवीण तांबे ने 41-42 साल में क्रिकेट का बड़ा टूर्नामेंट खेलना आरंभ किया है. फुरती इतनी कि युवा भी शरमा जायें. इस खिलाड़ी में अद्भुत संघर्ष क्षमता है. इनका कमाल दिखा केकेआर टीम के खिलाफ, जब उन्होंने हैटट्रिक ली. उनकी गेंदबाजी का कमाल था कि आठ गेंदों पर केकेआर ने छह विकेट खो दिये. रन बनाये सिर्फ दो. तांबे ने जिन खिलाड़ियों को आउट किया, उनमें मनीष पांडेय, युसूफ पठान और रेयान थे.
इस उम्र में तांबे जैसा खेल रहे हैं, उससे उन खिलाड़ियों में आशा बंधी है जो उम्र गुजरते जाने की चिंता में निराश होने लगते हैं. तांबे को एक बार मुंबई की रणजी टीम के संभावित खिलाड़ियों में रखा गया था, लेकिन मैच खेलने का मौका नहीं मिल पाया. पहले वह तेज गेंदबाज थे, लेकिन जब वह ओरियेंट शिपिंग टीम से खेलते थे तो उनके कप्तान अजय कदम ने उन्हें लेग स्पिनर बनने की सलाह दी. तांबे उसी राह पर चले. समय भले लगा, लेकिन उन्होंने कुछ कर दिखाया.
तांबे आशावादी हैं. उन्हें पता है कि अगर उनका यही प्रदर्शन रहा तो आगे भी इससे बेहतर मौका मिल सकता है. क्रिकेट का इतिहास कहता है कि लगभग 50 साल के व्यक्ति को भी टेस्ट खेलने का मौका मिल सकता है. जे साउथर्टन इंग्लैंड के खिलाड़ी थे. 1877 में जब उन्हें आस्ट्रेलिया के खिलाफ पहली बार टेस्ट खेलने का मौका मिला तो उनकी उम्र 49 साल 119 दिन थी. भारत में भी कई ऐसे खिलाड़ी हैं जिन्हें 40 साल के बाद भी पहली बार टेस्ट खेलने का मौक मिला है. आरजेडी जमशेदजी ने 41 साल और सी रामास्वामी ने 40 साल में अपने जीवन का पहला टेस्ट खेला था. प्रवीण तांबे की उम्र भले ही 42 साल से ज्यादा है, लेकिन मैदान पर उनकी फुरती, विकेट लेने के बाद का उत्साह बिल्कुल बच्चे जैसा है. अपनी ही गेंद पर तेजी से वापस लौटी गेंद को उन्होंने जिस तरीके से कैच किया था, वह युवा से युवा खिलाड़ी भी शायद नहीं कर पाते. यह उनकी फिटनेस का कमाल है. सच है कि इच्छाशक्ति हो तो दुनिया में सब कुछ संभव है.