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श्रेष्ठताबोध से ग्रस्त राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय

थियेटर-रंगमंच एनएसडी का भारतीय रंगमंच में एक सीमित किंतु महत्वपूर्ण योगदान है, पर ऐसा या इससे कहीं अधिक और गुणवत्तापूर्ण योगदान तो दर्जनों दूसरी संस्थाओं का भी है! सवाल यह उठता है कि फिर एनएसडी भारतीय रंगमंच और मीडिया में इतना अधिक प्रचारित क्यों है? रा ष्ट्रीय नाट्य विद्यालय या एनएसडी संस्कृति, विशेष रूप से […]

थियेटर-रंगमंच

एनएसडी का भारतीय रंगमंच में एक सीमित किंतु महत्वपूर्ण योगदान है, पर ऐसा या इससे कहीं अधिक और गुणवत्तापूर्ण योगदान तो दर्जनों दूसरी संस्थाओं का भी है! सवाल यह उठता है कि फिर एनएसडी भारतीय रंगमंच और मीडिया में इतना अधिक प्रचारित क्यों है?
रा ष्ट्रीय नाट्य विद्यालय या एनएसडी संस्कृति, विशेष रूप से रंगमंच के सभी मामलों में भारत सरकार की नोडल एजेंसी है, जिसका अतीत बहुत समृद्ध रहा है.
भारत में रंगकला के सांस्थानिक और व्यवस्थित प्रशिक्षण की शुरुआत वहीं से हुई और उससे प्रशिक्षण प्राप्त कर निकले रंगकर्मियों ने एक लंबे दौर तक आधुनिक भारतीय रंगमंच के स्वरूप का निर्धारण करते हुए उसे विश्वव्यापी पहचान भी दिलायी, परन्तु विगत एक-डेढ़ दशकों से वह अपने योगदान की वजह से नहीं, बल्कि दूसरी वजहों से चर्चा के केन्द्र में है और यह केन्द्रीयता बेहद विवादास्पद और नकारात्मक है.
आज देश भर में इप्टा, निनासम, समुदाय, रंग शंकरा, लोकधर्मी, बहुरूपी, नांदिकार, रंगकर्मी, पदातिक, अस्मिता थियेटर, सर्किल थियेटर कंपनी, विवेचना, अंश, अंक, एकजुट, द इंडियन एन्सेम्बल, आसक्त कला मंच, अनन्य नाट्य गोष्ठी, स्वप्नसंधानी, अल्टरनेटिव लिविंग थियेटर, अर्पण, भूमिका, नट-बुंदेले, पीरट्स ट्रुप और सांझा सपना जैसे दर्जनों ऐसे रंग-समूह मौजूद हैं,
जो एनएसडी से कहीं बेहतर, सार्थक और गंभीर रंग-प्रशिक्षण उपलब्ध करा रहे हैं. रंगकला में बेहतर और संपूर्ण प्रोफेशनल कोर्स की बात करें, तो आज डिपार्टमेंट ऑफ इंडियन थियेटर, पंजाब विश्वविद्यालय, चंडीगढ़, एकेडमी ऑफ थियेटर आर्ट्स, मुंबई विश्वविद्यालय, डिपार्टमेंट ऑफ थियेटर आर्ट्स, हैदराबाद विश्वविद्यालय और डिपार्टमेंट आॅफ परफाॅर्मिंग आर्ट्स, महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विवि, वर्धा द्वारा रंगकला के विविध आयामों का संपूर्ण सैद्धांतिक और व्यावहारिक प्रशिक्षण उपलब्ध कराया जा रहा है.
एनएसडी में दाखिला पाने के लिए रातों की नींद हराम करने और बाद में पछताने से बेहतर है कि कुछ प्रश्नों पर विचार किया जाये और किसी अच्छे रंगकर्मी से इनका उत्तर पाने की कोशिश की जाये. एनएसडी का भारतीय रंगमंच में एक सीमित किंतु महत्वपूर्ण योगदान है, पर ऐसा या इससे कहीं अधिक और गुणवत्तापूर्ण योगदान तो दर्जनों दूसरी संस्थाओं का भी है! सवाल यह उठता है कि फिर एनएसडी भारतीय रंगमंच और मीडिया में इतना अधिक प्रचारित क्यों है? असल में एनएसडी अपने योगदान की वजह से नहीं,
बल्कि रंगमंच के सभी मामलों में भारत सरकार की नोडल एजेंसी होने की वजह से है. रंगमंच के सारे संसाधन, सारा फंड, सारे ग्रांट के वितरण से लेकर भारत रंग महोत्सव, सम्मान-पुरस्कार, सभी परियोजनाएं, स्कॉलरशिप और फेलोशिप तय करने का असीमित अधिकार उसे प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से मिला हुआ है. यही उसकी सबसे बड़ी शक्ति है. बुनियादी तौर पर वह एक विद्यालय है, पर वह शिक्षा और प्रशिक्षण के काम को कोई अहमियत नहीं देता. रंगमंच का सारा सार्थक काम उसकी चारदीवारी के बाहर ही हो रहा है. उसमें एनएसडी से निकले रंगकर्मियों का भी योगदान है, उससे इनकार नहीं, पर उनमें भी वैसे रंगकर्मी ही कुछ बेहतर कर पाये, जिनका अपनी जमीन से, भाषा और लोगों से जुड़ाव था.
एनएसडी द्वारा प्रशिक्षण की अवहेलना कर शाहखर्च महोत्सवों और ग्रांट के प्रबंधन एवं वितरण जैसे गैरजरूरी कार्यों में साल भर लगे रहने की प्रवृत्ति के कारण प्रशिक्षण का उसका प्राथमिक काम लगातार पतन की तरफ अग्रसर है. वास्तव में यह एनएसडी का वर्गवादी श्रेष्ठताबोध ही है कि वह शिकायतों और सुझावों पर कभी कान नहीं देता, क्योंकि उसे लगता है कि भारतीय रंगमंच में जो कुछ भी श्रेष्ठ है, महानतम है, गौरवशाली है वह उसी की देन है और जो कुछ भी उसके वर्चस्व के किले से बाहर का है, वह निकृष्ट है, त्याज्य है, कूड़ा-कबाड़ है! यह एक प्रकार से मिथ्या दंभ है.
राजेश चंद्र, वरिष्ठ रंगकर्मी

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