पश्चिम बंगाल में सत्तारुढ़ तृणमूल कांग्रेस और नंबर दो की ओर बढ़ती भाजपा के बीच राजनीतिक वर्चस्व की लगातार तेज होती लड़ाई राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की सहयोगी संगठनों की ओर से चलाए जा रहे सैकड़ों स्कूलों और उनमें पढ़ने वाले हजारों बच्चों के लिए भारी साबित हो रहा है.
मानक पाठ्यक्रम का पालन नहीं करने, धार्मिक असहिष्णुता का पाठ पढ़ाने और लाठी चलाने की ट्रेनिंग देने के आरोप में राज्य सरकार ने ऐसे सवा सौ स्कूलों को बंद करने की नोटिस भेजा है.
कम से कम चार सौ ऐसे अन्य स्कूलों पर भी उसकी निगाह है. सरकार की दलील है कि इन स्कूलों के पास अनापत्ति प्रमाणपत्र (एनओसी) नहीं है.
दूसरी ओर, संघ ने कहा है कि इन स्कूलों से उसका कोई लेना-देना नहीं है. इन स्कूलों को तीन अलग-अलग ट्रस्टों की ओर से किया जाता है. इस मुद्दे पर अदालती लड़ाई भी शुरू हो चुकी है.
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दरअसल, यह मामला कोई साल भर पुराना है. उस समय भी सीपीएम के एक विधायक ने विधानसभा में ऐसे स्कूलों के संचालन और उनके पाठ्यक्रम का मुद्दा उठाया था.
सरकार ने तब इन स्कूलों की गतिविधियों की जांच का भरोसा दिया था. संघ ने हालांकि इन स्कूलों के संचालन में अपना हाथ होने से इंकार किया है.
लेकिन शिक्षा मंत्री पार्थ चटर्जी कहते हैं, "इन स्कूलों के पीछे संघ का हाथ हो या नहीं, उनके पास एनओसी नहीं है. ऐसे स्कूल नहीं चल सकते."
लेकिन संघ और भाजपा की दलील है कि ममता बनर्जी सरकार को ऐसे स्कूलों को बंद करने की बजाय राज्य में तेजी से पांव पसारने वाले मदरसों और क्रिश्चियन स्कूलों की गतिविधियों पर निगाह रखनी चाहिए.
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दरअसल, तृणमूल कांग्रेस और भाजपा के बीच राजनीतिक वर्चस्व की जंग कोई नई है. बीते कम से कम पांच वर्षों से संघ की सहायता से भाजपा राज्य में होने वाले ज्यादातर चुनावों में कांग्रेस और वामदलों को पछाड़ते हुए नंबर दो के स्थान पर मज़बूती से कदम जमाने में जुटी है.
इस वजह से कभी मुहर्रम और दुर्गाप्रतिमा विसर्जन के जुलूस, कभी संघ प्रमुख मोहन भागवत की रैली को अनुमति नहीं मिलने तो कभी रामनवमी पर हथियारों के साथ जुलूस निकालने के मुद्दे पर दोनों दलों के बीच भिड़ंत होती रही है.
अब अगले साल होने वाले लोकसभा चुनावों से पहले दोनों के बीच जारी जंग में तेज़ी आने के आसार हैं.
स्कूलों पर होने वाले विवाद भी इसी जंग की कड़ी है. इस मुद्दे पर स्कूलों को चलाने वाला ट्रस्ट पहले ही अदालत की शरण ले चुका है. लेकिन सरकार का कहना है कि वह अदालत में भी इस मामले से निपटने में सक्षम है.
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शारदा शिशु तीर्थ, सरस्वती शिशु मंदिर और विवेकानंद विद्या विकास परिषद राज्य में के विभिन्न हिस्सों में कम से कम पांच सौ स्कूलों का संचालन करते हैं.
शिक्षा मंत्री कहते हैं, "जांच से पता चला है कि 125 स्कूलों के पास एनओसी नहीं है. उनको बंद करने को नेटिस भेजा गया है. बाकी स्कूलों की भी जांच की जा रही है."
दूसरी ओर, विवेकानंद विद्या विकास परिषद के संगठन सचिव तारक दास सरकार कहते हैं, "सरकार की नोटिस को पहले ही हाईकोर्ट में चुनौती दी जा चुकी है."
वह बताते हैं कि संगठन ने वर्ष 2012 में ही सरकार से इन स्कूलों के संचालन की अनुमति मांगी थी. लेकिन सरकार ने अब तक वह मंजूरी नहीं दी है.
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राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सचिव (दक्षिण बंगाल) जिष्णु बसु कहते हैं, "राज्य में प्राथमिक शिक्षा बदहाल है. उक्त स्कूल छात्रों को बेहतर शिक्षा मुहैया करा रहे हैं. ऐसे में बंद करने से पहले शिक्षा मंत्री को उन स्कूलों का दौरा करना चाहिए."
शिक्षा मंत्री का कहना है कि ऐसे ज़्यादातर स्कूल उत्तर बंगाल के कूचबिहार और अलीपुरदुआर ज़िलों में स्थित हैं.
विवेकानंद विद्या विकास परिषद के सचिव तारक दास बताते हैं कि उनकी सोसयाटी वर्ष 1975 से ही ऐसे स्कूलों का संचालन कर रही है. लेकिन राज्य सरकार ने वर्ष 2012 में नियमों में संशोधन करते हुए तमाम स्कूलों के लिए शिक्षा विभाग से एनओसी लेना अनिवार्य कर दिया था. यही समस्या की जड़ है.
भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष दिलीप घोष की दलील है कि तृणमूल कांग्रेस को हर बात में राजनीति नजर आती है. वह कहते हैं, "सरकार के फ़ैसले के ख़िलाफ़ कानूनी लड़ाई लड़ी जाएगी. आखिर स्कूल चलाना कोई ग़ैर-कानूनी काम तो है नहीं?"
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राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि एक-दूसरे को मात देने की खातिर तृणमूल कांग्रेस और भाजपा ‘तू डाल-डाल, मैं पात-पात’ की रणनीति पर आगे बढ़ रही हैं.
भाजपा को यहां अपने कदम जमाने में संघ और उसके सहयोगी संगठनों का भी सहारा मिल रहा है. अलीपुरदुआर में राजनीतिशास्त्र के एक प्रोफेसर राजेश्वर तिर्की कहते हैं, "स्कूलों पर साल भर से चलने वाले विवाद की जड़ें राजनीतिक वर्चस्व की लड़ाई में ही छिपी हैं."
अब सरकार जहां जमीनी स्तर पर संघ के बढ़ते असर को रोकने के लिए राज्य में ऐसे स्कूलों पर नकेल लगाने पर तुली है वहीं संघ के सहयोगी संगठनों ने भी कानूनी तौर पर इसका मुकाबला करने का फैसला किया है.
ऐसे में मौजूदा विवाद शीघ्र थमने के आसार कम ही हैं.
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