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नयी किताब: संगीत का कथा रूप

एक बंदिश है- सहेला रे, आ मिलि गायें/ सप्त सुरन के भेद सुनायें/ जनम जनम का संग न भूलें/ अबकी मिलें तो बिछड़ी न जायें/ सहेला रे… किशोरी अमोनकर जी की गायी राग भूप की यह बंदिश एक दर्द और अटूट लगाव की तरफ संकेत करती है. संगीत के उस स्वर्णकाल का संकेत, जब गानेवाले […]

एक बंदिश है- सहेला रे, आ मिलि गायें/ सप्त सुरन के भेद सुनायें/ जनम जनम का संग न भूलें/ अबकी मिलें तो बिछड़ी न जायें/ सहेला रे… किशोरी अमोनकर जी की गायी राग भूप की यह बंदिश एक दर्द और अटूट लगाव की तरफ संकेत करती है. संगीत के उस स्वर्णकाल का संकेत, जब गानेवाले संगीत की साधना करते थे और सुननेवाले भी संगीत की मर्मज्ञता को समझते थे. गुजरते समय के साथ संगीत की बारीकियां कहीं खोती चली गयीं और एक नया ही संगीत उभरा है. इसी की कहानी कहता है मृणाल पांडे का उपन्यास ‘सहेला रे’, जो राधाकृष्ण प्रकाशन से प्रकाशित हुआ है.

कथा-शिल्प, शब्द-विन्यास, संवादशीलता आदि सभी साहित्यिक बारीकियों से परिपूर्ण यह एक पठनीय उपन्यास है. इसको पढ़ते हुए संगीत और कहानी के शौकीन दोनों आनंदित होते हैं. संगीत पर लिखना एक कठिन कार्य है और यही वजह है कि संगीत पर कथा रूप में बहुत कम ही लिखा गया है. इसलिए इस मामले में यह किताब बहुत समृद्ध है. इसका स्वर इतना मीठा है कि यह अपने सुरों के रंग में पाठकों को सराबोर कर देता है.

उपन्यास ‘सहेला रे’ की कहानी में पांच वंश वृक्ष हैं, जो कहानी को दिल्ली से शुरू कर लखनऊ, बनारस, कलकत्ता फिर पहाड़ों में रानीखेत, अलमोड़ा और सात समंदर पार अमेरिका तक फैलाते हैं. इसकी कहानी एक रिसर्च स्कॉलर विद्या के अपने मुंहबोले भाई और प्रकाशक राधा दादा को पत्र लिखने से शुरू होती है. पत्र में लंबे समय के बाद संपर्क का जिक्र है, लेकिन रिश्तों में आत्मीयता भरपूर है. विद्या ने ईमेल से अपने रिसर्च को पुस्तक में छपवाने की बात पूछी है. राधा दादा उत्साह से परिपूर्ण पुस्तक छापने की बात सहर्ष स्वीकारते हैं.

अपनी खोजबीन के सिलसिले में विद्या रानीखेत के सुंदर पहाड़ों में जाती है जहां उसे अपने समय की मशहूर गानेवाली हीरा के बारे में जानकारी मिलती है. हीरा का विवाह अंग्रेज अफसर हिवेट से हुआ और उनकी एक बेटी हुई अंजली. हिवेट की मौत के बाद अंजली को लेकर वह बनारस पहुंचती है, जो संगीत रसिकों का गढ़ है. वहां अपनी काबिलियत और नफासत से वह जल्द ही हीराबाई के नाम से मशहूर हो जाती है. वह अंजली के लिए संगीत की तालीम जारी रखती है. जिन तवायफ को नीची नजर से देखा जाता था, दरअसल सांस्कृतिक धरोहर को सहेजकर रखने में इनका बहुत बड़ा योगदान रहा है.

सहेला रे की कहानी रिश्तों के दर्द, समय के बदलाव, पहनावे, खान-पान आदि को छूती है और संगीत के अगाध प्रेम से परिपूर्ण है. इसका कथा-शिल्प काफी रोचक है और भाषा इतनी समृद्ध कि हर पंक्ति से प्यार सा हो जाता है. शब्दों का चयन भी बड़ा मनोरम है और इसमें कई लोकोक्तियां भी हैं.
अर्चना शर्मा

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