।। नॉलेज डेस्क, नयी दिल्ली।।
पिछले कुछ चुनावों में मतदान प्रतिशत लगातार बढ़ने की खबरों को लोकतंत्र के लिए शुभ संकेत बताया जाता है, लेकिन चुनाव आयोग के तमाम प्रयासों के बावजूद देश में मतदान का प्रतिशत उतना नहीं बढ़ पाया है, जितना हम आधुनिक तकनीकों और तौर-तरीकों का इस्तेमाल करते हुए बढ़ाने में सक्षम हो सकते हैं. आज तकनीक ने हमें ऐसे साधन मुहैया कराये हैं, जिनसे रोजमर्रा के बहुत से काम आसानी से ऑनलाइन निबटाये जा रहे हैं, लेकिन मतदान के लिए अपने क्षेत्र में रहना जरूरी होता है. सौ फीसदी मतदान की राह में पेश आ रही कुछ बाधाओं और संभावनाओं पर नजर डाल रहा है आज का नॉलेज..
हाल ही में अमेरिका के फ्लोरिडा में आयोजित आइफा एवॉर्ड समारोह में शिरकत करने गयी कई प्रमुख फिल्मी हस्तियां भारत में मौजूदा लोकसभा चुनावों में अपना वोट नहीं डाल पायीं. प्रियंका चोपड़ा और जावेद अख्तर ने तो बाकायदा टि¦ट करके इस बात पर दुख भी जताया कि वे अपना वोट नहीं डाल पाये. इतना ही नहीं, आइपीएल मैचों में व्यस्त क्रिकेटर महेंद्र सिंह धौनी समेत कई भारतीय खिलाड़ी भी इन चुनावों में अपने मताधिकार का प्रयोग करने से वंचित रह गये. मजे की बात यह है कि महेंद्र सिंह धौनी और विराट कोहली की छवि को चुनाव आयोग ने मतदाताओं को वोट डालने के प्रति प्रोत्साहित करने के लिए ब्रांड एंबेसडर के तौर पर इस्तेमाल भी किया है.
कुछ और परिस्थितियों पर नजर डालते हैं. कहलगांव (भागलपुर) स्थिति एनटीपीसी में कार्यरत एके झा और दरभंगा के एक माध्यमिक स्कूल में शिक्षक हृदय कुमार की परेशानियां भी एक जैसी हैं. भले ही ये दोनों दो अलग-अलग इलाकों और अलग-अलग विभागों में कार्यरत हैं, लेकिन मताधिकार का इस्तेमाल करने को लेकर इनकी चिंताएं समान हैं. इनकी इस लोकसभा चुनाव में डय़ूटी लगी थी. इनका कहना है कि चुनाव ड्यूटी को समुचित तरीके से निभाने की प्रक्रिया में लाखों लोग खुद अपना वोट डालने से वंचित रह जाते हैं. मतदान कर्मियों के मताधिकार के प्रयोग के लिए चुनाव आयोग व्यवस्था तो करता है, लेकिन उसमें कई तरह की खामियां हैं. उल्लेखनीय है कि देशभर में लोकसभा चुनाव संपन्न कराने के लिए लाखों लोगों को चुनाव और सुरक्षा डय़ूटी में लगाया जाता है. ये लोग चुनाव कार्यो में तो सक्रिय भूमिका निभाते हैं, परंतु खुद ही अपना वोट देने से वंचित रह जाते हैं.
बिहार में 17 अप्रैल को हुए सात लोकसभा चुनावों में केंद्रीय अर्धसैनिक बलों की 152 कंपनियों, बिहार मिलिटरी पुलिस की 74 कंपनियों और होम गार्ड के 28,000 जवानों समेत कुल 42,600 सुरक्षा बलों को सुरक्षा व्यवस्था कायम रखने की जिम्मेवारी सौंपी गयी थी. इसके अलावा, इन सात लोकसभा क्षेत्रों में 11,846 मतदान केंद्रों पर तकरीबन 52,000 मतदानकर्मियों की ड्यूटी लगायी गयी. ये आंकड़े महज सात लोकसभा क्षेत्र के ही हैं. पूरे देश के आंकड़े तो इससे कई गुना ज्यादा होंगे.
व्यवस्था है, पर काफी जटिल
हालांकि, चुनाव आयोग मतदानकर्मियों के लिए भी वोट डालने की व्यवस्था करता है, लेकिन उसकी प्रक्रिया इनती अव्यावहारिक या कहें कि इतनी जटिल है कि बहुत कम ही कर्मचारी उसका फायदा उठा पाते हैं. ऐसे में जहां एक ओर चुनाव आयोग देशभर में वोटिंग प्रतिशत बढ़ाने के लिए तरह-तरह के अभियान चलाता है, वहीं देखा जाता है कि पर्याप्त एवं व्यावहारिक इंतजामों के अभाव में देशभर में लाखों मतदाता अपने लोकतांत्रिक अधिकारों का प्रयोग करने से वंचित रह जाते हैं. यदि अपने क्षेत्र से बाहर होने के कारण मतदान न कर पाने वाले आम लोगों की संख्या इसमें जोड़ लें, तो आंकड़ा कई करोड़ में पहुंच जायेगा.
नयी तकनीक का इस्तेमाल
विशेषज्ञों का कहना है कि आज तकनीक इतनी आगे बढ़ चुकी है कि चुनाव के पूरे सिस्टम को ऑनलाइन वोटिंग माध्यम से कराया जा सकता है. देशभर में आज लोगों के पास मोबाइल फोन, कंप्यूटर, इंटरनेट आदि की सुविधा है. आधुनिक तकनीकों का इस्तेमाल करते हुए न केवल सभी मतदाताओं को मतदान की प्रक्रिया में व्यावहारिक रूप से शामिल होने का मौका मिल सकता है, बल्कि चुनाव के खर्च को भी कम किया जा सकता है.
आज देश में तमाम टीवी चैनल्स से लेकर अखबार और रेडियो तक आम जनता से जुड़े अनेक मसलों पर लोगों की राय जानने के लिए उनसे सवाल पूछते हैं और उसके जवाब के विकल्प मुहैया कराते हुए एसएमएस के माध्यम से जवाब भेजने को कहते हैं. इसके माध्यम से हजारों, कई बार लाखों लोग अपने जवाब भेजते हैं और आसानी से उसका निष्कर्ष निकाला जाता है. हाल ही में दिल्ली विधानसभा चुनावों के बाद ‘आम आदमी पार्टी’ ने सरकार गठन के बारे में जनता से रायशुमारी के लिए कुछ इस तरह के तरीकों को अपनाया था. ऐसी कुछ नयी तकनीकों के इस्तेमाल से भले ही मतदान को सौ फीसदी तक न पहुंचाया जा सके, पर मौजूदा मतदान फीसदी को तो काफी हद तक बढ़ाया ही जा सकता है. लोकतंत्र के लिहाज से यह बड़ी उपलब्धि कही जायेगी.
ऑनलाइन सेवाओं का प्रसार
आज आधुनिक तकनीक इस कदर आगे बढ़ चुकी है कि हम दुनिया के किसी भी कोने से इंटरनेट बैंकिंग का इस्तेमाल करते हुए अपने बैंक खाते का संचालन कर सकते हैं. लाखों रुपये के लेन-देन की प्रक्रियाओं को अब बड़े पैमाने पर ऑनलाइन निबटाया जा रहा है. बिजली बिल से लेकर टेलीफोन बिल, पानी का बिल आदि ऑनलाइन जमा किये जा रहे हैं. अपने प्रोविडेंट फंड के खाते में शेष रकम (बैलेंस) को जानना अब आसान हो गया है. भारतीय रेलवे के ज्यादातर रिजर्व टिकट ऑनलाइन बुक हो रहे हैं. देशभर में बड़ी ट्रैवल्स कंपनियां बस यात्रियों को अब ऑनलाइन टिकट बुकिंग की सुविधा मुहैया करा रही हैं. लोगों को इन सुविधाओं से बड़ी आसानी हुई है. इसमें न तो कहीं आने-जाने का झंझट है और न ही कतार में लगने की दिक्कत. झट से कंप्यूटर ऑन किया और ऑनलाइन सारा काम निबट जाता है.
ऑनलाइन वोटिंग क्यों नहीं
विशेषज्ञों का मानना है कि जब बहुत सारे काम ऑनलाइन निबटाये जा रहे हैं, पैसों तक का लेन-देन ऑनलाइन हो रहा है और वह प्रक्रिया पूरी तरह से सुरक्षित है, तो फिर वोटिंग की प्रक्रिया ऑनलाइन क्यों नहीं हो सकती. इससे न केवल मतदान प्रतिशतता को बढ़ाया जा सकेगा, बल्कि जो लोग मतदान करना तो चाहते हैं, पर अपने क्षेत्र से बाहर होने या किसी अन्य मजबूरी के चलते मतदान नहीं कर पाते, वे भी मतदान कर पायेंगे. ऐसा देखा गया है कि शहरों में कई जगह मतदान केंद्र दूर होने के चलते भी मतदाता वोट नहीं डालने जाते हैं. कई बार ज्यादा ठंड या गरमी होने यानी मौसम अनुकूल न होने के चलते भी लोग वोट डालने के लिए घरों से निकलने से कतराते हैं.
हालांकि, इस संबंध में हैकिंग के खतरे तो मौजूद रहेंगे ही, एक समस्या यह भी हो सकती है कि गांवों में रहनेवाला एक बड़ा तबका, जहां लोग आधुनिक तकनीक से पूरी तरह रूबरू नहीं हुए हैं, वहां इस राह में दिक्कतें आ सकती हैं. लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि अब गांव में प्रत्येक घर में कम से कम एक मोबाइल फोन जरूर है. इसलिए जहां कंप्यूटर या इंटरनेट की व्यवस्था नहीं है, वहां मोबाइल फोन के माध्यम से ऑनलाइन वोटिंग की तकनीक विकसित की जा सकती है.
ट्रांसपोर्टर्स की दिक्कतें
देशभर में ट्रकों और बड़ी गाड़ियों से सामान ढोने के कारोबार से जुड़े ड्राइवर और इस तरह के अन्य व्यक्ति मतदान के दिन अपने इलाके में नहीं होने के चलते मतदान के हक से वंचित रह जाते हैं. हाल ही में अखिल भारतीय ट्रांसपोर्टर्स एसोसिएशन ने सरकार से इसका कोई समुचित हल निकालने की गुजारिश भी की है. इसके अलावा, चुनावों के दौरान पेट्रोलिंग मजिस्ट्रेट, निगरानी दस्तों, पर्यवेक्षकों समेत सुरक्षा बलों और मतदानकर्मियों आदि को चुनाववाले दिन जो वाहन मुहैया कराये जाते हैं, वे सरकारी नहीं होते, बल्कि गैर-सरकारी व्यावसायिक वाहन होते हैं. उसके चालक ज्यादातर उस वाहन के स्थायी चालक होते हैं. इन वाहनों के चालक उस दिन मतदान से वंचित रह जाते हैं. यदि ऑनलाइन वोटिंग सिस्टम हो तो इन्हें वोट डालने में सुविधा होगी और मतदान की प्रतिशतता बढ़ सकती है.
बीमार या शारीरिक अशक्त
देश में तकरीबन एक करोड़ लोग शारीरिक अशक्तता के शिकार हैं. इनमें से ज्यादातर बिना किसी की मदद के मतदान केंद्र तक जाने में असमर्थ हैं. इनमें से कम ही लोग मतदान कर पाते हैं. बीमार या अस्थायी अशक्तता का शिकार होने की अवस्था में भी कई लोग वोट नहीं डाल पाते हैं. यदि ऑनलाइन वोटिंग की सुविधा हो तो ये लोग आसानी से वोट डाल पायेंगे और मतदान की प्रतिशतता बढ़ेगी.
गुजरात में ऑनलाइन वोटिंग
गुजरात में वर्ष 2011 में छह म्यूनिसिपल कॉरपोरेशन के लिए कराये गये चुनावों में इ-वोटिंग यानी ऑनलाइन वोटिंग के इंतजाम किये गये थे. इसे देश का सबसे पहला ऑनलाइन वोटिंग चुनाव माना जाता है. दरअसल, पहली बार इस तरह से ऑनलाइन चुनाव आयोजित किये गये, जिसे राज्य चुनाव आयोग की मंजूरी भी मिली थी.
एनडीटीवी डॉट कॉम की एक रिपोर्ट के मुताबिक, राज्य चुनाव आयोग ने ऑनलाइन वोटिंग सिस्टम को विकसित करने के लिए टाटा कंसल्टेंसी का सहयोग लिया था. इ-वोटिंग के तरीके के बारे में इस रिपोर्ट में बताया गया है कि वोट डालने के लिए वोटर को पहले राज्य चुनाव आयोग कार्यालय से खुद को पंजीकृत कराना पड़ा और उसे एक खास पासवर्ड दिया गया. उसके बाद राज्य चुनाव आयोग की वेबसाइट पर जाकर और पासवर्ड का इस्तेमाल करते हुए ऑनलाइन मतदान में भागीदारी निभायी. इस प्रक्रिया के तहत मतदाता की ओर से वोटिंग की इच्छा जताने पर उसके रजिस्टर्ड मोबाइल फोन पर एसएमएस के माध्यम से एक कोड भेजा गया और कोड डालने पर उसके कंप्यूटर की स्क्रीन पर इ-बैलेट पेपर खुला. अब मतदाता जिस उम्मीदवार को वोट देना चाहेगा उसके नाम के आगे क्लिक करते हुए वोट डाल सकता है.
राज्य चुनाव आयोग ने भी इस बारे में अपनी वेबसाइट पर इस प्रक्रिया का जिक्र किया है. हालांकि, उस समय ऑनलाइन वोटिंग को ज्यादा रिस्पांस नहीं मिल पाया, जितनी राज्य चुनाव आयोग को उम्मीद थी. दरअसल, मतदान फीसदी कम रहने के बारे में विशेषज्ञों का मानना रहा कि इ-वोटिंग के रजिस्ट्रेशन की प्रक्रिया कुछ जटिल थी, जिसके चलते बहुत से वोटरों ने इसमें ज्यादा दिलचस्पी नहीं दिखायी. विशेषज्ञों का मानना है कि रजिस्ट्रेशन की प्रक्रिया को आसान बनाने पर इससे ज्यादा मतदाता जुड़ पायेंगे. राज्य चुनाव आयोग का यह मानना रहा कि भले ही इससे ज्यादा मतदाता नहीं जुड़ पाये लेकिन यह एक अच्छी शुरुआत रही. साथ ही, यह पता चला कि इस सिस्टम को ज्यादा से ज्यादा भरोसेमंद बनाये जाने की स्थिति में अधिकांश लोगों को इससे जोड़ा जा सकता है. इस रिपोर्ट में एक रजिस्टर्ड वोटर का जिक्र करते हुए बताया गया है कि वह मतदाता मुंबई में था और उसने वहीं से राजकोट म्यूनिसिपल कॉरपोरेशन के लिए चुनाव में वोटिंग की. खासकर ऐसे मामलों में तो यह बेहद कारगर साबित हो सकता है. इस मामले में एक बेहद उल्लेखनीय तथ्य यह भी है कि राज्य चुनाव आयोग की इस पेशकश को नेशनल इ-गवर्नेस अवॉर्डस, 2013 के तहत ‘एक्सेलेंस इन गवर्नमेंट प्रोसेस री-इंजीनियरिंग’ श्रेणी में कांस्य पुरस्कार दिया गया.
गुजरात के एक गांव में अनिवार्य है मतदान!
अकसर चुनावों के दौरान कुछ गांवों से ऐसी खबरें सुनने को मिलती हैं कि विकास न होने के चलते वहां के मतदाताओं ने वोटिंग का बहिष्कार करने का फैसला लिया है. लेकिन इस बार के लोकसभा चुनाव में गुजरात में एक ऐसा भी गांव है, जहां के सभी निवासियों के लिए वोटिंग अनिवार्य है. राजकोट जिले के गांव राज समधियाला में ग्रामीणों ने इस बार खुद ही वोटिंग को अनिवार्य कर रखा है. पिछले कुछ दशकों के दौरान इस गांव में लोकसभा, विधानसभा और पंचायत चुनावों में 90 से 95 फीसदी तक मतदान हुआ है.
द ट्रिब्यून की एक खबर के मुताबिक, इस बार के लोकसभा चुनाव में ग्राम समिति के 15 सदस्यों ने गांव के कुल 960 मतदाताओं के लिए ‘अनिवार्य वोटिंग’ का प्रावधान किया है. इस दिन सभी मतदाताओं को गांव में ही रहने को कहा गया है. यदि कोई व्यक्ति किन्हीं व्यक्तिगत कारणों से मतदान करने से अक्षम है, तो उसे ग्राम समिति को लिखित में वजह बतानी होगी.
उल्लेखनीय है कि भाजपा ने गुजरात विधानसभा में अनिवार्य वोटिंग का विधेयक पारित कर दिया था, लेकिन कुछ कारणों से राज्यपाल ने उसे अभी मंजूरी नहीं दी है.
तकनीक से बदल सकता है चुनाव का तौर-तरीका!
भारत में 18 से 23 साल की उम्र के 4.8 करोड़ मतदाता कॉलेज में पढ़ाई कर रहे हैं. बिजनेस स्टैंडर्ड की एक रिपोर्ट में बताया गया है कि हरेक लोकसभा क्षेत्र में औसतन 90,000 नये मतदाता जुड़े हैं. उनमें से ज्यादातर साइबर मीडिया के जरिये आपस में जुड़े हुए हैं. कॉलेज के इन्हीं छात्रों का डिजिटल दुनिया में दबदबा है और इंटरनेट एंड मोबाइल एसोसिएशन ऑफ इंडिया (आइएएमएआइ) के अनुसार देश में इंटरनेट उपभोक्ताओं का 29 फीसदी हिस्सा यही तबका है, जो उन्हें इंटरनेट उपभोक्ताओं का सबसे बड़ा वर्ग बनाता है.
इंटरनेट पर दूसरा सबसे बड़ा वर्ग युवाओं का है, जिनकी हिस्सेदारी 26 फीसदी है. इसके बाद 10 फीसदी के साथ कामकाजी महिलाओं की बारी आती है. देश में कुल 80 करोड़ मतदाताओं में से 17 करोड़ की पहुंच इंटरनेट तक है. आइएएमएआइ द्वारा ‘सोशल मीडिया और लोकसभा चुनाव’ नाम से आइरिस नॉलेज फाउंडेशन द्वारा किये गये अध्ययन में एक बात सामने आयी है कि इस लोकसभा चुनाव में लगभग 160 सीटें ऐसी हैं, जिन पर सोशल मीडिया प्रभाव छोड़ेगा. साथ ही जानकार यह उम्मीद भी जता रहे हैं कि इंटरनेट और सोशल मीडिया के बढ़ते उपयोग के कारण अगले एक दशक में चुनाव का तौर-तरीका भी बदल सकता है.
चुनावों के दौरान इंटरनेट की बढ़ती भूमिका
दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र भारत के लोकसभा चुनावों पर गूगल और फेसबुक की नजरें भी टिकी हुई हैं. भारत में 2009 में करीब सात करोड़ लोग इंटरनेट पर थे, जबकि 2014 में यह आंकड़ा तीन गुना से अधिक बढ़ चुका है. देश में तकरीबन 24 करोड़ इंटरनेट यूजर्स हैं. इंटरनेट कंपनियों के लिए भी यह चुनाव एक महत्वपूर्ण मौका है, जब वे नये यूजर्स से चुनावी विषयों पर संवाद कर सकते हैं और अपने से जोड़ सकते हैं.
सबसे बड़े सर्च इंजन गूगल ने इस चुनाव को अपने तरीके से कवर करने की योजना बनायी है. बीबीसी की एक खबर के मुताबिक, गूगल इंडिया के मार्केटिंग डायरेक्टर संदीप मेनन कहते हैं, यह पहला आम चुनाव है, जिसमें इंटरनेट की एक सार्थक भूमिका होगी. गूगल ने इस लोकसभा चुनाव के लिए एक विशेष पन्ना बनाया है, जिसमें चुनाव से जुड़ी जानकारियां लोगों तक पहुचाने के लिए ग्राफिक्स और तस्वीरों का प्रयोग किया गया है. गूगल ने लोगों को वोट देने के लिए प्रेरित करने के लिए ‘प्लेज टू वोट’ अभियान भी शुरू किया है.