।। दक्षा वैदकर।।
आ पने कार को कभी गौर से देखा है. जब वह नयी-नयी होती है, तो उसके शीशे कैसे चमकते रहते हैं. धीरे-धीरे मार्केट में घूम-घूम कर उसमें धूल जमने लगती है, वह घिसने लगता है. हमारा जीवन भी कुछ ऐसा ही है. बचपन में हम हर चीज करने की इच्छा रखते हैं, तेज भागते हैं, किसी से नहीं डरते हैं. लेकिन जैसे-जैसे हम बड़े होते जाते हैं, हमारी सोच, नजरिये और आत्मविश्वास, निडरता में कमी आती जाती है. लोगों की बातों का असर इसमें होने लगता है और सोच रूपी शीशे में धूल जमने लगती है.
हम कोई प्रयोग करते हैं, उसमें हमें नुकसान होता है. हम डर कर प्रयोग करना बंद कर देते हैं. कंगना रनौत ने इंडियाज मोस्ट डिजायरेबल के शो में बताया था कि फिल्म इंडस्ट्री में आने से पहले उन्हें इंगलिश नहीं आती थी, लेकिन जिस तरह उन्होंने एक्टिंग सीखी, ड्रेसिंग स्टाइल सीखा, ठीक उसी तरह इंगलिश भी सीखी. कंगना कहती है कि जब उन्होंने इंगलिश बोलना शुरू किया, तो शुरुआत में बहुत लोग उनकी गलत इंगलिश पर हंसे, लेकिन वे रुकी नहीं. क्योंकि अगर लोगों की हंसी के डर से वह बोलना ही बंद कर देती, तो जिंदगीभर नहीं सीख पाती. आज उनके इंगलिश उच्चरण को लेकर लोग तारीफ करते हैं, जो बिलकुल परफेक्ट है.
दोस्तों, हमें भी अपनी सोच के शीशे को साफ करना होगा और उसे दोबारा नया बनाना होगा. आप यह क्यों सोचते हैं कि मैं सेल्समैन नहीं बन सकता, क्योंकि मेरी कम्यूनिकेशन स्किल अच्छी नहीं, मैं बिजनेसमैन नहीं बन सकता, क्योंकि मैं उतना चालाक नहीं, मैं क्लास का टॉपर नहीं बन सकता, क्योंकि मैं एक औसत बच्च हूं. दोस्तों इस तरह तो हमने शीशे की धूल को ही सच मान लिया है. हम शीशे पर और धूल चढ़ाते जा रहे हैं और अपने लक्ष्य को धूमिल करते जा रहे हैं. लोग कुछ भी कह रहे हैं और हम उनकी बातों में आकर अपना नुकसान कर रहे हैं. वे कहते हैं, ‘हंसने से तुम गंदी दिखती हो’ और हम हंसना बंद कर देते हैं. वे कहते हैं ‘तुम अटक-अटक कर बोलते हो’ और हम बोलना बंद कर देते हैं. इस धूल को तुरंत साफ करें.
बात पते की..
लोगों की बातों में आ कर हार न मानें. नये प्रयोग करते चले जायें. उसी तरह निडर बनें, जिस तरह आप बचपन में हुआ करते थे.
जब हम छोटे थे और चलना सीख रहे थे, तो हम कई बार गिरे थे. लेकिन तब हमने खड़े होकर चलना बंद नहीं किया, तो फिर आज क्यों रुकें.