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सोशल: ”मुस्लिम महिलाओं को आज मिली आज़ादी”

तीन तलाक़ के मामले में सुप्रीम कोर्ट की पांच सदस्यीय बेंच ने आख़िरकार वो फ़ैसला सुना दिया जिसका कई दिन से इंतज़ार हो रहा था. खंडपीठ की बहुमत तीन तलाक़ के ख़िलाफ़ गया. इससे पहले ख़बरें आ रही थीं कि इस प्रथा पर छह महीने रोक रहेगी, तब तक सरकार को इससे जुड़ा नया कानून […]

तीन तलाक़ के मामले में सुप्रीम कोर्ट की पांच सदस्यीय बेंच ने आख़िरकार वो फ़ैसला सुना दिया जिसका कई दिन से इंतज़ार हो रहा था.

खंडपीठ की बहुमत तीन तलाक़ के ख़िलाफ़ गया. इससे पहले ख़बरें आ रही थीं कि इस प्रथा पर छह महीने रोक रहेगी, तब तक सरकार को इससे जुड़ा नया कानून लाना होगा.

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साथ ही ये भी ख़बरें आईं कि बेंच को कुछ जजों ने इसे संविधान के तहत मिले अधिकारों का हनन नहीं माना है और ये बरक़रार रहेगा.

फ़ैसले को लेकर लंबे वक़्त तक पसोपेश चलती रही और इसका अक़्स सोशल मीडिया पर भी नज़र आया.

जब साफ़ हुआ कि सुप्रीम कोर्ट ने तीन तलाक़ को असंवैधानिक बता दिया और अब ये प्रथा वजूद में नहीं रहेगी तो सोशल पर आने वाली प्रतिक्रियाएं बदल गईं.

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बिंदास लड़की हैंडल से लिखा गया है, ‘मुस्लिम महिलाओं के लिए 23 अगस्त 2017 आज़ादी का दिन है.’ वो शायद 22 अगस्त लिखना चाहती थीं.

चेतन झा ने लिखा है, ‘तलाक़ से तलाक़ हो गया.’

इस फ़ैसले के परिप्रेक्ष्य में कुछ लोग इस ओर भी ध्यान दिला रहे हैं कि धर्म किस तरह औरतों के शोषण का हथियार बनता रहा है.

मयंक ने लिखा है, ‘धर्म ने औरतों का सबसे ज़्यादा शोषण किया है. धर्म आधारित सारे अमानवीय प्रथाओं पर रोक लगनी चाहिए. देर से ही सही पर ऐतिहासिक फैसला.’

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निखिल ने ध्यान दिलाया कि मुस्लिमों के साथ-साथ हिंदुओं में ऐसी कुछ रूढ़ीवादी परंपराएं हैं जिनसे पार पाना ज़रूरी हैं.

अनिल ने इस मुद्दे पर चुहलबाज़ी करते हुए लिखा है, ‘पति: तलाक़ तलाक़ तलाक़. पत्नी: हाहाहाहाहाहा हाहाहाहाहा.’

सुप्रीम कोर्ट में पांच जजों की एक बेंच ने तीन तलाक़ के मुद्दे पर फ़ैसला सुनाया.

इस विवाद को निपटाने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने पांच जजों की जो बेंच बनाई है उसमें सभी अलग-अलग धर्मों से हैं.

जस्टिस कुरियन जोसेफ ईसाई, आरएफ़ नरीमन पारसी, यूयू ललित हिन्दू, अब्दुल नज़ीर मुस्लिम और इस बेंच की अध्यक्षता कर रहे सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायधीश जेएस खेहर सिख हैं.

फ़ेसबुक पर भी इस मुद्दे की चर्चा है. लोग लिख रहे हैं कि ये फ़ैसला स्वागत योग्य है.

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