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कस्बों में प्रचार, गांव में प्रत्याशी लाचार

चतरा से विवेक चंद्रचतरा लोकसभा क्षेत्र में चुनाव का रंग थोड़ा फीका है. गांव अब तक चुनावी रंग में नहीं रंगे हैं. वहीं कस्बों में चुनावी माहौल परवान पर है. बैनर-पोस्टरों से गली-मोहल्ले पटे पड़े हैं. प्रचार वाहनों से कानफोड़ू आवाज में प्रत्याशी के प्रचार में गीत बज रहे हैं. पार्टियों के चुनावी कार्यालय हर […]

चतरा से विवेक चंद्र
चतरा लोकसभा क्षेत्र में चुनाव का रंग थोड़ा फीका है. गांव अब तक चुनावी रंग में नहीं रंगे हैं. वहीं कस्बों में चुनावी माहौल परवान पर है. बैनर-पोस्टरों से गली-मोहल्ले पटे पड़े हैं. प्रचार वाहनों से कानफोड़ू आवाज में प्रत्याशी के प्रचार में गीत बज रहे हैं. पार्टियों के चुनावी कार्यालय हर मोहल्ले में दिख जाते हैं. वहीं, गांवों में सीन बिल्कुल उलट है. मुख्य सड़क से सटे ग्रामीण इलाकों ने भी चुनावी रंगत नहीं पकड़ी है. कुंदा, हेरहंज, चीर, पोरसम जैसे ग्रामीण इलाकों में इक्का-दुक्का जगहों पर पार्टियों के पोस्टर, बैनर नजर आते हैं. पार्टियों के प्रचार वाहन कहीं नहीं नजर आते हैं.

हां, सुनसान रास्तों में कभी-कभार दिखने वाली मोटरसाइकिल और चार पहिया वाहनों पर विभिन्न पार्टियों के झंडे जरूर नजर आ जाते हैं. चतरा लोकसभा क्षेत्र के बड़े इलाके को नक्सली प्रभावित करते हैं. इटखोरी जैसे इक्का-दुक्का प्रखंड ही पूरी तरह से नक्सलियों के प्रभाव क्षेत्र में नहीं है. क्षेत्र के ग्रामीण इलाकों में जगह-जगह दीवारों पर नक्सलियों का लाल सलाम लिखा नारा नजर आता है.

लाल स्याही से शहीदों को श्रद्धांजलि देने की बात लिखी दिखायी देती है. फिलहाल चतरा में तृतीय प्रस्तुति कमेटी (टीपीसी) का वर्चस्व बताया जाता है. टीपीसी ने वोट बहिष्कार का आह्वान नहीं किया है. इस वजह से ग्रामीण इलाकों के लोग वोट डालने की बात कहते हैं.

अपनी साख बचाने में विधायक: चतरा लोकसभा क्षेत्र के विधायक और स्थानीय नेता चुनाव में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं. विधायक अपने-अपने दलों या दलों द्वारा समर्थित प्रत्याशियों को जिताने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगा रहे हैं. क्षेत्र के निर्दलीय विधायक द्वारा भी एक प्रत्याशी को समर्थन देने की सूचना है. पंचायतों के प्रमुख, गांवों के मुखिया और पंचायत सदस्य भी अपनी भूमिका निभा रहे हैं.

गांव में केवल नर्स आती हैं
पोरसम पंचायत के लोग कहते हैं कि पहले नक्सलियों के वोट बहिष्कार की बात के कारण गांव से कोई वोट देने नहीं निकलता था. इस बार ऐसा नहीं है. लोग वोट देंगे. वहीं पास में बूटझंगरी तोड़ कर इकट्ठा कर रही रामरतिया गोंझू कहती है : हमनी तो वोट नहीं दे पारबो. हमनी के वोटर आइडी नखौ. बनाने वाले नहीं आये? इस सवाल पर रामरती ऐसे मुंह ताकने लगती है जैसे उसे कुछ समझ में ही नहीं आया. वह कहती है : गांव में नर्स को छोड़ कर कभी कोई नहीं आता.

स्थानीय मुद्दे पूरी तरह गौण
चतरा लोकसभा के चुनाव में कोई स्थानीय मुद्दा नहीं है. घोर गरीबी, पानी-बिजली की समस्या से जूझ कर दो जून की रोटी के जुगाड़ में रहने वाले लोग भी चुनाव में मुद्दे की बात करने पर खामोश हो जाते हैं. चतरा के ग्रामीण क्षेत्रों में महुआ चुनती महिलाएं, सिर पर टोकरी रख कर महुआ ढोता पूरा परिवार नजर आता है. बावजूद इन सबके स्थानीय मुद्दे पूरी तरह से गौण हैं. आप वोट क्यों देंगे? सरकार से क्या चाहते हैं? मनिका के शंभु प्रसाद कहते हैं : किसी ना किसी को देना है, तो दे देंगे. लोकसभा चुनाव में वोट देने से क्षेत्र का विकास थोड़े होता है. यह वोट तो देश में सरकार बनाने के लिए दिया जाता है.

जातीय गोलबंदी की रणनीति
चतरा में कुल 20 प्रत्याशी चुनावी दंगल में किस्मत आजमा रहे हैं. जाति का समीकरण फिट करने की कोशिश कर रहे हैं. कोईरी, यादव, गंझू जैसी घनी आबादी वाली जातियों को पक्ष में करने की होड़ मची है. वैश्य समुदाय के साहु, सौंडिक, बनिया जातियों पर डोरे डाले जा रहे हैं. राजपूत, भूमिहार, ब्राrाण मतदाताओं का समर्थन जुटाने का प्रयास किया जा रहा है. क्षेत्र में बड़ी आबादी होने के कारण मुसलिम मतदाताओं पर भी सबकी नजर है.

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